Dani ki kahani - 23 in Hindi Children Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | दानी की कहानी - 23

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दानी की कहानी - 23

दानी की कहानी

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दानी के बगीचे में रंग-बिरंगे फूल और उन फूलों में खेलते हम सब बच्चे ! कभी तितलियाँ पकड़ते कभी उनके पीछे भागते और न पकड़ पाने पर गंदा सा मुँह बनाकर रोते |

दानी बेचारी आतीं और हम रोते हुए बच्चों को चुप करने में उनका कितना ही समय खराब हो जाता |

उस दिन शिवांग भैया दानी की बात सुना रहे थे कि सोनू जी चुप न रह सके |

"दानी को समय की क्यों परवाह थी ? उन्हें क्या कोई काम करना पड़ता था ?"

"अरे ! करना पड़ता नहीं था ,वे खुशी-खुशी करती थीं |"

"कोई भी अपनी खुशी से काम नहीं करता --" पड़ौस में रहने वाला सोनू बड़ा ही बदमाश था |

सोनू की मम्मी उससे कुछ काम करने के लिए कहतीं ,वह कुछ न कुछ बहाना बना देता |

इसीलिए उसे लगता कि हम सब बच्चे अपनी दानी की झूठी कहानियाँ सुनाते हैं |

"देखो ,यहाँ उम्र की बात नहीं है सोनू ,यहाँ बात नीयत की है ---"अनु दीदी बोल पड़ीं | सभी तो जानते थे कि सोनू किसीकी अच्छाई सुन ही नहीं सकता था |

"इसमें नीयत की काया बात हो गई ,मनु दीदी तुम मुझे गाली दे रही हो ???" सोनू बिफर गया |

"सोनू ! इसमें बुरा मानने की बात नहीं है | मनु दीदी ने किसी गलत नीयत से नहीं कहा | "शिव भैया ने उसे समझने की कोशिश की |

"फिर नीयत ! मम्मी कहती हैं कि मेरी नीयत ठीक नहीं है ,मैं अपनी बहन के हिस्से की चीज़ भी खा लेता हूँ --वही बात तो तुम सब भी कर रहे हो ?"सोनू ने फिर से बिफरकर कहा |

उसकी इस बात पर सब हँसने लगे | शिव भैया ने सबको चुप रहने का इशारा किया |

"सोनू ! तुम भी तो हमारे भाई हो ,तुम्हें यह नहीं पता शायद कि नीयत को एक जगह नहीं ,बहुत जगह प्रयोग किया जाता है |"

" मैं तो सोचता हूँ जो मम्मी कहती हैं ,वही है नीयत का मतलब ---" सोनू गुस्से में तो था लेकिन उसने शिव भैया को उत्तर दिया |

"जो मम्मी कहती हैं ,वो तो ठीक है ही ,इसका मतलब इच्छा भी तो होता है ,तुम केवल नीयत का मतलब लालच ही समझे हो |"

"तो क्या ---ठीक ही तो है |"

"नहीं सोनू ! देखो तुम्हारी मम्मी जो कहती हैं वह लालच के अर्थ में कहती हैं ,यहाँ कहने का मतलब इच्छा से है | कभी भी अपनी सुविधानुसार मतलब नहीं लगा लेना चाहिए |"

" तो क्या करूँ ?" सोनू रुआसा था |

"देखो बेटा सोनू ! हमें काम से जी नहीं चुराना चाहिए | उम्र कोई भी क्यों न हो ,हमें हमेशा अपने विचारों को साफ़ रखना चाहिए |"

न जाने कब से दानी खड़ी बच्चों की बात सुन रही थीं |उन्होंने सोनू को समझाया कि आलस्य से बहुत सी चीज़ें बिगड़ जाती हैं और मम्मी जो कहती हैं ,वो भी ठीक कहती हैं क्योंकि तुम्हें अपने हिस्से की चीज़ ही खानी चाहिए न ! बहन के हिस्से की नहीं ?"

सोनू सभी से नाराज़ हो जाता था फिर भी न जाने उसने उस दिन दानी की बात आराम से सुन ली थी |

"बात मेरी नहीं है बेटा ! मुझे सच ही काम करना अच्छा लगता है ,मैं सोचती हूँ ,तुम भी अपनी मम्मी के कम में हाथ बाँटकर तो देखो ,तुम्हें कितना अच्छा लगेगा |"

सोनू कुछ सोचने लगा ,दानी ने कहा ;

"अच्छा मेरे साथ एक दिन काम करना,देखो मैं तुम्हें बताऊँगी कैसे कम में मन लगेगा |"

दानी ने जिस प्रकार से सोनू को समझाया सोनू को बहुत अच्छा लगा | उसने सोचा कि उसकी मम्मी भी अगर ऐसे ही बात करेंगी तो क्या उसे समझ नहीं आएगा ?

उधर दानी सोच रही थीं कि सोनू की मम्मी से भी बात करेंगी कि बच्चों को कैसे समझाना चाहिए |

आज सोनू को उन सभी बच्चों की बात अच्छी लग रही थी |

डॉ. प्राणव भारती