Phool bana Hathiyar - 9 in Hindi Fiction Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | फूल बना हथियार - 9

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फूल बना हथियार - 9

अध्याय 9

नकुल के मोबाइल पर तेज आवाज में गुस्से से बोलते ही अक्षय मुस्कुराते हुए बोला "नहीं नकुल... यह मेरी पर्सनल समस्या है। उसमें भी एक लड़की से संबंधित विषय है। मैं ही इसे अपने ढंग से हैंडल कर लूंगा। इसमें तुम अपनी नाक मत घुसाओ।"

"अरे तू ऐसा कैसे बोल रहा है रे ?"

"और कैसे बोलूं ? एक लड़की के मन में जगह मिलने के लिए सुंदरता रुपए स्टेटस इन तीनों के अलावा और कोई एक बात होनी चाहिए, यह उसने मुझे यह पाठ पढ़ा दिया। इसके बाद ही मैं पढ़ कर समझ कर परीक्षा दूँगा। उसमें एक विषय और है। एक लड़की को शादी के लिए जबरदस्ती नहीं कर सकते।"

"अक्षय....! मैं क्या बोलने आ रहा हूं?"

"अच्छी नौकरी मिल गई कह रहा है... ऑल दी बेस्ट, जाकर ड्यूटी ज्वाइन करो। चेन्नई में जब भी आओ तो मुझे आकर मिलना। अभी मैं एक इंपॉर्टेंट मीटिंग में हूं। बाद में बात करूंगा।" अक्षय मोबाइल को बंद करके बड़बड़ाया। यह और बिना समय वक्त का ध्यान दिए...."

उमैयाल ने पूछा "फोन पर कौन था?"

"मेरा एक दोस्त है उसका नाम नकुल.."

"उस नकुल को यामिनी के बारे में बताया ?"

"एक लड़की है यही बताया। परंतु उसका नाम.. उसके जॉब के बारे में विवरण नहीं बताया।"

"अब मत बताना....! और एक विशेष बात भी कहती हूं। उस यामिनी को भूल जाओ..... वह एक पावरफुल लड़कियों के पत्रिका में काम करती है। तुम उसे थोड़ा भी छेड़ो तो बस मीडिया उसे बहुत बड़ा कर एक भूकंप आ जाएगा। फिर आने वाले समस्या को तुम संभाल नहीं पाओगे।"

"क्या है ....आंटी यामिनी एक लड़की है इसलिए आपने अपना पाला बदल लिया ?"

"मैंने पाला नहीं बदला.... तुम्हें सच्चाई से अवगत कराना मेरा कर्तव्य है... मेरे कॉलेज के दिनों में एक साइकोलॉजी के प्रोफ़ेसर एक वाक्य हमेशा कहते थे। "Hurt me truth; But, never satisfy Me with a lie' सच को बताएं तो तुझे पसंद नहीं आएगा। यामिनी के विषय में झूठ बोलकर तुम्हारे मन को तसल्ली देना और खुश करना मैं नहीं चाहती।"

"आंटी ! वह यामिनी घमंडी...."

"वह न्याय वाला घमंड है मैं सोचती हूं।"

अभी तक बिना बोले मौन बैठे परशुराम धीरे से मुंह खोलें।

"डॉक्टर ! आप जो कह रहे हो सही है ! यामिनी से अपमानित हुए अक्षय की आंखेँ बंद है। अभी आप कुछ भी कहे उसके समझ में नहीं आएगा। मैं उसे समझा दूंगा...."

"देट्स गुड मिस्टर परशुराम....! यामिनी को छोड़ो तो अक्षय को दूसरी लड़की नहीं मिलेगी? अक्षय कुछ करने जाएँ और वह बेल न मिलने वाला केस बन कर छ: महीने अंदर रहना पड़ेगा।" कहकर उमैयाल अपने रिस्ट वॉच को देख थोडी घबराकर कुर्सी से उठी।

"सॉरी ! यह मेरा ओ.पी. का समय है। ऑलरेडी मैं दस मिनट लेट हो गई। आप दोनों बात करिए अक्षय ! तुम परशुराम सर को लेकर आईसीयू में अपने अम्मा को देखने जाना है तो विजिटर्स समय खत्म होने के पहले जाकर देख कर आ जाओ। हम कल सुबह मिलते हैं।"

डॉक्टर उमैयाल कमरे से रवाना होने के कुछ क्षण तक मौन रहे परशुराम फिर अक्षय के कंधे पर हाथ रखा। आवाज नीचे करके बोले।

"अक्षय! यामिनी के ऊपर तुम्हें जो गुस्सा है वह न्याय संगत है। उसे तुम कैसा दंडित करना चाहते हो....?"

"मुझे दुत्कारना कितनी बड़ी गलती है वह उसे महसूस होना चाहिए। इन सबसे ऊपर मेरे पैरों में गिर के मुझे माफ कर दो ऐसा बिलक-बिलक कर रोना चाहिए।"

"पक्का.... तुम जो बात सोच रहे हो वह सब होगा।"

अक्षय की आंखें आश्चर्य से फैल गई।

"कैसे अंकल...?"

"उस यामिनी को कल ही तुम्हारे सामने लाकर खड़ा कर देता हूं...."

"अक्षय की आंखें आश्चर्य से फैल गई।"आप उस यामिनी को जानते हैं अंकल ?"

"जानता हूं.... पर कैसे जानता हूं मत पूछना ! सब कुछ कल ही कह दूंगा। उसके पहले कल रात को मेरे फेक्स में आए पत्र को तुम्हें पढ़ना है!"

"क्या है लेटर.... किसने भेजा ?"

"यू.एस से डॉक्टर कैंपरल" परशुराम कहते हुए अपने शर्ट के जेब में से एक कंप्यूटर प्रिंट वाले पत्र को निकाल कर दिया। अक्षय उसे खोलकर जो अंग्रेजी में लिखा हुआ था पढ़ना शुरू किया। पहले तमिल में उसने समझा।

'इदम्' चैरिटेबल ट्रस्ट के मुख्य जो लोग हैं उनके साथ इस फिक्र के विषय में मैं सम्मिलित हूं। मेडिकल साइंस चेंबर की तरफ से चेन्नई में जिस कारण इदम् चैरिटेबल ट्रस्ट शुरू किया जिस उद्देश्य से शुरू किया, उस उद्देश्य में हम 50 प्रतिशत भी सफल नहीं हुए। अभी तक पचास करोड रुपए काउंसिल ने खर्च किए हैं। डॉक्टर उत्तम रामन के विश्वास दिलाने पर उनको तारमणि में, पडपई में दो एकड़ जमीन पर मकान बनवा कर मॉडर्न लाइब्रेरी भी बनवाया। हमारी तरफ से हमने सब कुछ तैयारी सफलतापूर्वक कर रहें हैं। परंतु आपकी तरफ के कार्यवाही यू.एस. पिय्यो. 'मेडिकल साइंस ने जैसे चाहा वैसे संतोष जनक नहीं है। चेन्नई के पुलिस आपको ट्रस्टी मान आपके ऊपर संदेह की दृष्टि से देख रही है ऐसे समाचार मिला। हमारी चेंबर के रिसर्च स्कॉलर मिस्टर कॉल मैथ्यू अभी आने वाले इतवार को चेन्नई आ रहे हैं। उनसे होने वाली बातचीत उपयोगी होगी तो व्यावसायिक दृष्टि से अपनी मित्रता जारी रहेगी। नहीं तो हाथ मिलाकर गुड बॉय बोलना जरूरी हो सकता है?"

अक्षय पत्र को पूरा पढ़ने के बाद आघात लगे चेहरे से परशुराम जी को देखा।

"क्या बात है अंकल कैंपरल ने गुस्से से फेक्स किया है ?"

"अप्पा को इसके बारे में मालूम है ?"

"नहीं मालूम। कल रात को उनके मोबाइल और तुम्हारे मोबाइल पर ट्राई किया। 'नॉट रिचिंग' आया...! "

"सॉरी अंकल ! कल रात को मैं और मेरे अप्पा एक रिप्लेसमेंट के लिए महाबलीपुरम रिसोर्ट में गए थे। इनकमिंग कॉल्स को अवोईड करने के लिए एरोप्लेन मोड को एक्टिवेट करने से आपको नहीं मिला...."

"ठीक है.... इस गेम प्ले स्टोर कैंपरल को कैसा हैंडल करना चाहिए। थोड़ा छोड़ें तो भाग जाएगा लगता है ?"

"ऐसा नहीं छोड़ना चाहिए अंकल....! अप्पा कल दिल्ली से आ जाएंगे। डॉ. उत्तम रामन, मैं, आप और अप्पा चारों मिलकर बैठकर बात करेंगे। कैंपरल इस प्रोजेक्ट को कैंसिल ना कर सके उसके लिए क्या रास्ता निकालना है सोचेंगे!"

"तुम जैसा सोच रहे हो वैसा यह एक साधारण समस्या नहीं है। बहुत बड़ी समस्या है चाबी छोटी है..... इस समस्या के लिए एक चाबी मिलेगी.... आइए, अम्मा को जाकर देखते हैं..."

दोनों उठकर कमरे से बाहर आकर आई.सी.यूनिट की तरफ उस चमकते हुए ग्रेनाइट के बरामदे में चलना शुरू किया।

"अंकल"

"क्या है?"

"कल उस यामिनी को मेरे सामने लाकर खड़े करने की बात आप ने कहीं कैसे ?"

"थोड़ा इंतजार करो ..." बोल रहे परशुराम के होठों पर एक व्यंग्य मुस्कान फैली....

'अपनापन' संस्था की संस्थापिका मंगई अर्शी इस आधी रात के समय उसने नकुल की उम्मीद भी नहीं की थी।

नकुल का चेहरा पसीने से सना और आंखों में दहशत लिए खड़ा था।

"आओ... नकुल...!" कहते हुए अपने पढ़ते हुए पुस्तक को उल्टा करके रखा।

"मैडम ! यामिनी यहां आई थी क्या?"

"दोपहर को आई थी वही...! तुम रवाना हुए उसी के थोड़ी देर बाद ही वह भी चली गई। क्यों क्या बात है...? तुम क्यों इतनी टेंशन में हो...?"

"मैडम ! शाम को 4:00 बजे उससे बात करने की कोशिश की। 'दिस नंबर इस नॉट इन यूज' यह रिकॉर्डर वॉइस सिर्फ सुनाई दी। वह जहां काम करती है उस पत्रिका के ऑफिस में फोन किया। शाम को पत्रिका के ऑफिस में यामिनी को आना था वह नहीं आई एडिटर ने कहा। हो सकता है यामिनी ने अपने मोबाइल को कहीं भूल गई हो तो भी किसी और नंबर से मुझे कांटेक्ट कर सकती थी...."

मंगई अर्शी सीधी हो कर बैठी।

"नकुल ! अभी मुझे याद आ रहा है। मैंने यामिनी को एक काम दिया था। 'इदम् चैरिटेबल ट्रस्ट' से तीन महीने से उन्होंने जो मदद भेजते थे उसका अमाउंट नहीं आया.... उसके बारे में पूछताछ के लिए करने को कहा था। यामिनी ने कहा वह पत्रिका के जाने के रास्ते में ही पड़ेगा.... मैं ट्रस्ट के चेयरमैन से मिलकर पूछ कर बताती हूं ऐसा कहकर वह रवाना हुई। परंतु जैसी उसने बोला वह ट्रस्ट में नहीं गई। उसके बदले मेरे मोबाइल पर एक एस.एम.एस. की।"

"एस.एम.एस. ?

"हां.... ट्रस्ट के चेयरमैन से आज मैं मिल नहीं पाऊंगी। उसके बीच में एक दूसरा जरूरी काम आ गया। एक भ्रष्टाचार से संबंधित राजनेता के कार का पीछा करते हुए जा रही हूं। एक घंटे बाद फिर मैं आपसे कांटेक्ट करूंगी। यही यामिनी ने एस.एम.एस. किया था।"

"उस एस.एम.एस. को मैं देख सकता हूं मैडम ?"

"यह देखो!" कहकर मंगई अर्शी अपने मोबाइल को निकाल के मैसेज ऑप्शन में जाकर उस एस.एम.एस. को दिखाया।

"उसे लेकर पढ़ने के बाद नकुल का चेहरा थोड़ा ठीक हुआ।

"मैडम"

"क्या है नकुल ?"

"आपको संदेह नहीं हो रहा है ?"

"क्या संदेह ?"

"इतनी जल्दी में कोई हो और किसी को फॉलो कर रहा हो तो इतना लंबा एस.एम.एस. कोई कैसे कर सकता है ?"

***