अध्याय 4
देखा तो उसके दोस्त गुरु का फोन था।
"नकुल ! अभी तुम कहां हो?"
"क्या बात है ?"
"तुम्हारे लिए एक नौकरी का मैंने इंतजाम कर दिया। कल ही ज्वाइन करना है। अभी 2:00 बज रहे हैं। शाम को 4:00 बजे इंटरव्यू है.... इंटरव्यू के खत्म होते ही साथ में अप्वाइंटमेंट लेटर।"
"ये... मजाक... मत कर...!"
"मैंने तुमसे कब मज़ाक किया....? बेवकूफों जैसे बातें मत कर। तुरंत मेरे ऑफिस के लिए रवाना होकर आ जा...."
"अभी रवाना हो रहा हूं।" नकुल ने मोबाइल को बंद कर उसी को देख रही यामिनी को उसने बात बताई तो उसने कहा "करेक्ट !"
"यह कैसे संभव है यामिनी ? एक ही दिन में इंटरव्यू, तुरंत अप्वाइंटमेंट ऑर्डर। कल सुबह ड्यूटी जॉइनिंग...."
"यह देखो नकुल....! यह एक जल्दबाजी की दुनिया है। गुरु के पास तुम्हारा रिज्यूम था वे उसके लिए ट्राई कर रहे थे। वह सफल हो गया। दही चावल का त्याग कर दो। (दक्षिण में आखिर में दही चावल खाते हैं) पहले रवाना हो जाओ!"
"नकुल उठ गया !"
"विश... यू.. ऑल.. द… बेस्ट।"
"थैंक यू....! मंगई अर्शी मैडम को बता देना.... मैं बाद में उनसे फोन पर बात कर लूंगा।"
मदुरैय के रोड पर जाना है तो टैक्सी ही उत्तम रहेगा। चलते हुए गूगल में ढूंढ रहा था।
इंदिरा नगर पार करते ही प्रधान रोड आते ही एक ग्रे कलर की ऑडी कार उसके पास आकर खड़ी हुई। घबराकर नकुल मुड़ा।
कार के सामने के कांच को धीरे से नीचे किया तो ड्राइवर सीट पर बैठे युवा को देख नकुल की आंखें आश्चर्य से खुली रह गई।
"अरे! तू है...?"
नकुल की आंखें अभी भी आश्चर्य से खुली हुई थी, कार के स्टेरिंग को पकड़े हुए अक्षय सर झुका कर हंसा।
"क्या बात है नकुल ! इस तपती धूप में पदयात्रा कर रहे हो..... किसी मंदिर में मनौती की है क्या?"
अक्षय के व्यंग्य पर ध्यान न देते हुए नकुल ने पूछा "अक्षय तुम कब फॉरेन से आए?"
"मुझे आए तीन महीने हो गए...."
"तुम्हें तो मैंने देखा ही नहीं...."
"मेरे अप्पा छोड़े तब ना...? एक नया बिजनेस स्टार्ट करने वाले हैं। वह ठीक है तुम यहां कैसे इस तरफ....?"
"पास में जो 'अपनापन' संस्था है वहीं आया था। वहां किसी से मिलकर अब मैं मदुरैय रोड के लिए रवाना हो रहा हूं। कोई ऑटो या टैक्सी दिखाई नहीं दे रहा है ढूंढ रहा हूं। ऑडी कार पास में आकर खड़ी है..."
"ठीक है.... गाड़ी में चढ़ो... तुम्हें ड्रॉप कर दूँगा....!"
"कोई बात.. नहीं" अक्षय की आंखों में गुस्से से थोड़ी लालिमा फैली। नकुल! अभी भी तू नहीं बदला। कॉलेज के दिनों में जैसा था अभी भी वैसा का वैसा ही है! यह स्वयं का अभिमान, गौरव यह सब मनुष्यों में थोड़ा बहुत होना चाहिए। परंतु तुम्हारे खून में यह ओवर है। बैठ... बड़ा आदमी!"
"तुम्हें परेशान ना करूं सोचा" बोलते हुए गाड़ी में बैठा । कार के अंदर एसी की ठंडी हवा उसके शरीर को थपथपा रही थी जैसे उसे लगा।
"मुझे कोई परेशानी नहीं है। आज सुबह से ही मेरा मन ठीक नहीं है। कंपनी में रहना भी अच्छा नहीं लगा। इसीलिए कार को लेकर आ गया।" कहते हुए कार को अक्षय ने स्टार्ट किया।
"क्यों तुम्हारा मन ठीक नहीं है ?"
"क्या बात है ऐसे कैसे होगा ?”
“तुम विश्वास नहीं करोगे... विश्वास मत कर जा।"
"सॉरी ! 'इस दुनिया में खुश रहने वाले सौ लोगों की लिस्ट में लिस्ट तैयार करें तो उसमें तुम्हारा नाम भी होगा' मैं ऐसा विश्वास करने वाला हूं। इसीलिए तो मन ठीक नहीं है बोले तो विश्वास करना मुश्किल है। ठीक है! तुम्हारी क्या समस्या है बोलो....!"
कार अब स्पीड के साथ अगले एक क्रोसिन को क्रॉस करके जा रही थी। अक्षय ड्राइविंग में पूरा ध्यान रखते हुए सामने देखते हुए पूछा "नकुल...! मैं सुंदर हूं कि नहीं?"
"दस साल पहले जैसे अजीत था वैसे ही हो तुम ?"
"रुपयों की सहूलियत ?"
"करोड़ों करोड़ों...!"
"स्टेटस ?"
एल.आई.सी. बिल्डिंग के जितना ऊंचा।"
"मेरे पास एक ही गलत आदत है वह बीयर पीता हूं। इसके अलावा कोई हार्ड ड्रिंक्स नहीं।"
"वह तो मालूम है ?"
"कॉलेज के दिनों में अच्छी फिगर्स को देखें तो कुछ कह देते थे। अब वह सब खत्म हो गया। कितने प्लस पॉइंट तुमको मेरे बारे में लगता है बोलो तो सही देखें।"
"तू तो 99.9 प्रतिशत हॉलमार्क सोना है !"
"इस सोने को एक लड़की ने रिजेक्ट कर दिया नकुल।"
"क्या ! तुम्हें नहीं चाहिए बोल दिया?"
"हां...! तुम्हें तो मालूम है मेरी शादी के लिए मेरे अम्मा और अप्पा दोनों ने ही खुली छूट दे रखी है। मैं किसी भी लड़की को चाहूं तो ठीक है। वह किसी भी जात की हो तो ठीक है, उससे मेरी शादी करने के लिए वे तैयार है.... मुझे इस तरह के पेरेंट्स के मिलने के कारण मैंने भी अपने पसंद की लड़की को ढूंढना शुरू किया।
"पिछले हफ्ते मेरी फैमिली डॉक्टर उमैयाल के घर गया था उस समय एक लड़की को देखा। देखते ही मेरे मन के अंदर एक कलरफुल तस्वीर आ गई थी । मैंने अपने मोबाइल से उसकी फोटो को लेकर घर ले जा कर दिखाया। डॉक्टर ने भी मेरा सपोर्ट किया। अम्मा-अप्पा ने ओके कह दिया। मैंने डॉक्टर को अपनी बात बता दी। उन्होंने तो सपोर्ट किया ही। आज सुबह करीब 10:00 बजे डॉक्टर के घर पर उसको देखा। उसकी फोटो को उसी के हाथ में देकर इसी लड़की से मैं शादी करने वाला हूं कहकर उसके चेहरे को देखा। मैंने सोचा उसको यह एक अच्छा सरप्राइस होगा । परंतु उसने मुझे शॉक ट्रीटमेंट दे दिया। 'अरे चल हट... तू और तेरे रुपए' वह मुझे और डॉक्टर को बुरी तरह हिला के चली गई...."
"अरे... कौन है रे ऐसी घमंडी ?" नकुल के तेज गुस्से की आवाज में पूछते समय ही अक्षय का सेलफोन बज उठा। कान में हेडफोन को लगाकर स्पीकर को ऑन किया । दूसरी तरफ से डॉक्टर उमैयाल बोली।
"अक्षय अभी तुम कहां हो....?"
"एनीथिंग इंर्पोटेंट आंटी ?"
"यस यस... तुम्हारी अम्मा की बी.पी. बढ़ अभी आईसीयू में भर्ती है !"
"ओ... माय गॉड!" सेलफोन को बंद कर कार के गति को कम कर रोड के एक तरफ अक्षय ने खड़ी कर दीया। नकुल ने उसे परेशानी से देखा।
"क्या है रे.... क्या समस्या...?"
"अम्मा की तबीयत ठीक नहीं है ऐसा फोन आया है । सॉरी नकुल....!"
"नो.... प्रॉब्लम अक्षय....! तुम जाकर पहले अम्मा को देखो। मैं शाम तक तुम्हें फोन करूंगा तब तुम सुबह तुम्हे टॉर्चर करने वाली लड़की कौन है बताना। मैं उससे मिलकर...."
"नहीं नहीं नकुल....! यह मेरी समस्या है। मैं ही उसे हैंडल करूंगा।"
"अक्षय! मैं एक बात बोलूं क्या?"
"क्या....?"
"सुंदरता और रुपया दोनों होने वाले तुम्हें रिजेक्ट करने वाली एक लड़की को मन में रखकर क्यों धोखा खा रहे हो ? उससे सुंदर एक लड़की क्या मिलेगी नहीं?"
"मिलेगी... परंतु उसके जैसे नहीं मिलेगी ! वह देखो एक खाली ऑटो आ रहा है। तुम जाओ नकुल...."
नकुल कार से उतर कर ऑटो को रोका।
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