Is Colonial Mindset : Hampering India's Devlopment - 2 in Hindi Book Reviews by KHEMENDRA SINGH books and stories PDF | औपनिवेशिक मानसिकता भारत के विकास में चुनौती - 2

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औपनिवेशिक मानसिकता भारत के विकास में चुनौती - 2

औपनिवेशिक मानसिकता भारत के विकास में चुनौती -1 की सफलता के बाद मैं आपके लिए लाया हूं मेरे द्वारा लिखी गई पुस्तक "Is Colonial Mindset : Hampering India's Devlopment" पुस्तक के अनुवाद का पार्ट 2 ,आशा है आपको ये अंश भी पसंद आएगा-

औपनिवेशिक मनोवृत्ति-
औपनिवेशिक मनोवृत्ति से तात्पर्य किसी देश के लोगों की उस हीनभावना से है जो लम्बे समय तक दूसरे देशों के उपनिवेश बने रहने के कारण अन्दर तक पैठ जाती है। उपनिवेशी मनोवृत्ति से ग्रसित व्यक्ति मानता है कि उसके देश को उपनिवेश बनाने वाले लोगों के सांस्कृतिक मूल्य उसके अपने सांस्कृतिक मूल्यों से श्रेष्ठ हैं।
आज हम कई दशकों के औपनिवेशिक शासन के बाद भीअपने मन में व्याप्त नकारात्मक मनोवैज्ञानिक छापों और हीन भावना को संदर्भित करते रहतें है। पश्चिमी संस्कृति का अंधाधुंध अनुकरण करना आज भी हम पूरी तरह से छोड़ नहीं पाए है। यह मानसिकता हमारे कई कार्यों में साफ़ झलकती है -

फैशन में औपनिवेशिक मानसिकता
अंग्रेजों ने भारतीय आबादी को अलग करने और हमारी राष्ट्रीय एकता को ध्वस्त करने के लिए "फूट डालो और राज करो" की रणनीति का पालन किया था। भारतीय पारंपरिक पोशाक भारतीयों के बीच बदलती शैली के कारण खोते जा रहे हैं।
चर्चिल ने गांधी का उपहास "लंगोटी में फकीर" के रूप में किया था। आज भारत में लंगोटी या 'धोती' फैशन से बाहर हो गया है। "लंगोटी का कपड़ा" भारतीय जातीय पहनावे का सिर्फ एक प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व है।पारंपरिक भारतीय पोशाक पहने लोगों को बहिष्कृत करना उपनिवेशवाद के अवशेष हैं।सामाजिक बहिष्कार से अधिक, पारंपरिक पहनावे में गिरावट, पश्चिमी तेजी से फैशन में वृद्धि और विदेशी ब्रांड की होड़ के कारण आज स्थानीय ब्रांडो ने अपना व्यवसाय खो दिया है। एक समय था जब इंग्लैंड में भारतीय वस्त्रों के लिए मारामार होती थी। उस समय विश्व के कुल व्यापार में भारत के हिस्सा २२ प्रतिशत था। लेकिन आज हम अपने देश के कंपनियों के सामन की उपेक्षा कर रहें है।
शिक्षा में उपनिवेशवाद, उपनिवेशवाद और सामाजिक अलगाव, आर्थिक मोर्चे में औपनिवेशिक अवशेष व राजनीति में औपनिवेशिक मानसिकता आदि आज भी
झलकती हैं। कितनी ही भारतीय प्रतिभाए विदेशो में चली जाती है।
आधुनिक उपनिवेशी मनोवृत्ति-
किन्तु औपनिवेशिक मानसिकता न केवल उपनिवेशवाद से ग्रसित हुए इन देश में व्याप्त है बल्कि इसी से जुडी एक मानसिकता उन उपनिवेशक देशों में भी है । ये देश विकासशील देशों को विकसित होते नहीं देखना चाहते हैं। अब विकसित देश विकासशील देशों के लिए उन मार्गों को बंद करना चाहते हैं ; जिन मार्गो और संसाधनों का प्रयोग कर वे स्वयं विकसित हुए है।
मानव सभ्यता के आरम्भ से उन्नसवीं सदी पूर्व तक दुनिया का सारा काम-काज सामान्यतया हस्त चलित औजारों के द्वारा ही किया जाता था। मानव ने ऊर्जा के कई नये स्रोतों की खोज की और इनके उपयोग से उसकी कार्य-शक्ति की कोई सीमा नहीं रही। वाष्प-शक्ति, विद्युत-
ज्वलन, गैस आदि क्षेत्र में मानव के बढ़ते चरण थे, जिसकी परिणति अणु ऊर्जा के अविष्कार में हुई।
भारत दुनिया में भारत कुटीर उद्योगों से सम्पन्न ऐसा देश है ;जहां अति प्राचीन काल में भी लोह भट्टियों से उच्च स्तर का जहां अति प्राचीन काल में भी लोह भट्टियों से उच्च स्तर का इस्पात तैयार होता था। इसका ज्वलंत उदाहरण दिल्ली का 'लौह स्तम्भ' जो बिना जंग लगे खड़ा है। कृषि की उन्नत किस्में एवं बदलकर तथा मिश्रित कृषि भारत की ही देन है। बांध एवं सेतु निर्माण भारत की दुनिया को दिशा देने वाली एवं उद्योगों को आधारभूत ढांचा उपलब्ध कराने में अग्रणी भूमिका है। हजारों वर्ष पूर्व श्रीलंका एवं भारत के बीच बनाया गया ‘रामसेतु' इसका उदाहरण है, जिसके निर्माण की विधि भी हमारे शास्त्रों में विद्यमान है। वर्तमान में 19वीं शताब्दी से पूर्व कृषि उद्योग, व्यापार एवं वाणिज्य की उत्तम व्यवस्था भारत में वर्षों पूर्व विद्यमान रही है, जबकि दुनिया में तथाकथित विकसित राष्ट्रों द्वारा 19 वीं सदी से नये प्रयोग प्रारम्भ किये हैं।
जबकि इन तथाकथित विकसित राष्ट्रों ने औद्योगिक क्रांति के लिए आवश्यक पूंजी की प्राप्ति अपने औपनिवेशों से की थी। आज ये उस औद्योगीकरण के द्वारा सक्तिशाला अर्थव्यवस्था बन चुके है। ऐसे में ये विकाशसील राष्ट्रों के विकसित होने के मार्ग में समस्यांए उत्पन्न कर रहे है। जिस प्रकार विकसित राष्ट्र औपनिवेशो के तथाकथित विकास की योजनाए बनाते थे ;उसी प्रकार आज भी बनाना चाहते है।
चलिए इसका एक उदाहरण देखते है। India a ‘Global Superpower’ in Fight against Climate Change ', Secretary-General Says at Memorial Lecture इस कथन को सुनकर हो सकता है की आप गौरवान्वित हो रहे हैं परन्तु वास्तविकता में यह आधुनिक उपनिवेशी मनोवृत्ति से ग्रसित कथन है। इस कथन में विसकसित राष्ट्रों द्वारा भारत और विकासशील देशो पर आरोप को स्थानांतरित किया जा रहा है। वास्तव में उसे उस समस्या के खिलाफ लीडर बनने के लिए कहा जा रहा है जो विकसित राष्ट्रों के कर्म का फल है।
भारत के केवल २ प्रतिशत वैश्विक co2 उतसर्जन के बाबजूद उसे वर्ल्ड लीडर बनाया जा रहा है। ऐसा इसलिए जिससे भारत जो अभी मूलभूत आवश्यकताओं की प्राप्ति में संघर्षरत है ;उस पर दबाब बनायाजा सके और वह विकसित न बन सके। यदि भारत इन शर्तों को न माने तो कुछ तथाकथित पर्यावरण प्रेमी विदेशों से चंदा लेकर हमारे देश में आंदोलन करते है।