"हमारे नन्हे जाबाज़ का दिल से स्वागत है!"
"हमारी दुआ है की ये भी बाकी सिंघम जितना ही ताकतवर हो!"
"मेरी भगवान से दुआ है आने वाला राजकुमार या राजकुमारी अपने ढेर सारी खुशियां लाए और पुराने जख्मों को मिटा दे!"
सब लोग अपना अपना आश्रीवाद दे रहे थे अनिका को।
देव को ऐसा लगा जैसे एक ठंडी हवा का झोंका उसके शरीर को चीरते हुए गुजरा। उसने अपनी पलके झपकाई। फिर दुबारा झपकाई। पर कुछ फायदा नही हुआ। उसे कुछ पुराना हादसा याद आ गया, उसके आंखों के सामने बीते सालों में जो यहां उसके साथ घाटा था वो तस्वीरों के रूप में उसके दिमाग में घूमने लगा। उसे किसी इंसान के जलने की गंध भी आने लगी। उसका दम घुटने लगा, उसने अपनी शर्ट की ऊपर के दो बटन खोल दिए। पर इससे भी उसे कोई मदद नहीं मिली। उसकी घुटन बढ़ने लगी। उसने थोड़ा इधर उधर टहलने की कोशिश की लेकिन उसका शरीर साथ नही दे रहा था।
उसे लोगों के चिल्लाने की आवाज़ें आ रही थी, सब बहुत खुश थे जब उन्हें पता चला की अनिका खुशखबरी देने वाली है यानी की सिंघम और प्रजापति का वंश आने वाला है।
जल्दी ही सिंघम ने महसूस किया वोह यादें, वोह गंध अब उस पर हावी हो गई है। "देव?" ऐसा लगा एक गहरी आवाज़ उसके अंदर से आ रही है।
"देव?" बाहर भी उसी वक्त किसी औरत की नरम आवाज़ ने उसे पुकारा। देव को लगने लगा की उसका सिर चकरा रहा है और मंदिर की दीवारें उसे घेर रही हैं।
"देव? क्या तुम ठीक हो?" अनिका ने उसकी तरफ बढ़ते हुए पूछा।
उसके साथ ही अभय भी देव को देख कर परेशान हैरान सा आ रहा था।
देव ने कोई जवाब नही दिया। उसे बस यहां से जाना था। उसे यहां की यादों से छुटकारा चाहिए था।
"देव!" उसने अभय की आवाज़ सुनी।
पर देव सबको इग्नोर करते हुए अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ने लगा था। जैसे ही वो गाड़ी तक पहुंचा तुरंत उसने गाड़ी स्टार्ट कर दी और जल्दी में निकल गया, उसने गाड़ी इतनी तेज़ भगाई की पाइयों की सड़क पर घसीटने की आवाज़ से सबका ध्यान उस तरफ हो गया। उसने सोचा की अभय और अनिका किसी और गाड़ी से घर वापिस चले जायेंगे उन लोगों में से किसी के भी साथ, जो लोग आए थे मंदिर में उनके वापिस आने की खुशी और अनिका के प्रेगनेंसी की खुशी में शामिल होने, इसलिए वो अपनी गाड़ी में बैठ के तुरंत वहां से निकल गया। एक कपकपी सी महसूस हुई उसे अपने शरीर में जब उसने गाड़ी के शीशे से सिंघम मंदिर को देखा। जब वो सात साल का था तब ही वो आखरी बार यहां आया था। उसके बाद से ना ही कभी वोह सिंघम मंदिर गया था और न ही किसी और मंदिर गया था। लेकिन अनिका और अभय एयरपोर्ट से सीधा सिंघम मैंशन नही जाना चाहते थे, वोह पहले मंदिर में दर्शन कर के ही मेंशन जाना चाहते थे। इसलिए ही देव उनके साथ आने को तैयार हो गया, उसे खुद पता ही नही चला की उसने मंदिर आने के लिए क्यों हां करदी। लेकिन ये ही उसकी सबसे बड़ी गलती थी। वोह सोचने लगा उसे अभय और अनिका को एयरपोर्ट से लेने के बाद उन्हें मंदिर छोड़ कर चले जाना चाहिए था, क्यों ही वो वहां रुका। उसका दिल ज़ोरो से धड़क रहा था, एक अजीब सी घबराहट हो रही थी उसे। वोह बहुत असहाय महसूस कर रहा था। सिर्फ उसकी स्वर्गवासी दादी ही जानती थी की वोह मंदिर क्यों नही जाता था, उनके अलावा और कोई भी असली वजह नही जानता था। बाकी लोगों को लगता था की देव भगवान को नही मानता, वोह नास्तिक है या फिर वो नए जमाने का है और पुराने रीती रिवाजों और परंपराएं उसे बेमाने लगते हैं। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं था। वोह भगवान पे ही नही विश्वास रखता था बल्कि अपनी परंपरा और संस्कृति पर भी उसे पूरा भरोसा था। बस वो मंदिर नही जाता था क्योंकि मंदिर उसे बीस साल पहले हुआ उस हत्या कांड की याद दिलाता था। उसने अपनी आंखों से वोह सब देखा था जो उसे आज तक हुबहू याद था।
".....और उसके बाद मुझे पुरस्कार के रूप में अपने पिता का छोटे छोटे नागों से जड़ा हुआ कीमती चाकू मिला।"
सात साल के देव की आंखें बड़ी बड़ी हो गई जब वो अपनी दादी से उनके बचपन के कारनामे सुन रहा था। जब भी छुट्टियों में देव अपने परिवार के साथ सिंघम मैंशन जाता था, उसको सबसे अच्छा लगता अपनी दादी के साथ वक्त बिताना। वोह अपनी दादी से बहुत प्यार करता था और उन्ही के साथ सारा समय रहता था। उसे उनकी बचपन की कहानियां सुनने में बहुत ही मज़ा आता था। उसकी दादी सिर्फ उसे अपने बचपन के कारनामों की कहानियां ही नही सुनाती थी बल्कि उसे और उसके भाई को लेकर सेनानी के ज़मीनी हिस्से की तरफ भी लेजाती थी जहां उनका बचपन गुजरा था, जहां वोह बड़ी हुई थी।
"मुझे भी दिखाइए वोह चाकू, दादी!" देव ने खुशी से कहा। उसकी दादी मुस्कुराई। उन्होंने अपनी कमर पर बंधी हुई म्यान से चाकू निकाल कर उसे दिखाया। देव ने उस चाकू को न जाने कितनी बार पहले भी देखा था, लेकिन हर बार वो ऐसे ही उस चाकू को देखता था जैसे पहली बार देख रहा हो। उसने उस चाकू के हैंडल में लगे रत्नों को श्रद्धा से छुआ और उसकी आंखें चमक उठी।
"मैने शादी के बाद ये चाकू तुम्हारे दादाजी को उपहार में दे दिया।" उसकी दादी ने पुरानी बातें याद करते हुए, मुस्कुराते हुए, कहा। "उन्होंने इसे अपनी आखरी सांस तक संभाल के रखा था।" उसकी दादी ने आगे कहा। देव ने कभी अपने दादाजी को नही देखा था। किसी ने उन्हें मार दिया था देव के पैदा होने से पहले ही। देव ने अच्छे से चाकू को अपने हाथ में पकड़ा।
"क्या आप मुझे सिखा सकतीं हैं इसे कैसे फेकते हैं जैसे आप पहले किया करती थीं।" देव बहुत उकसुक्त था जानने में।
"बिलकुल! में तुम्हे जरूर दिखाऊंगी।"
वोह बैड पर बैठने लगा ताकि उसकी दादी उसे चाकू चलाना दिखाए। लेकिन तभी उसकी दादी हसने लगी और तुरंत देव को पकड़ कर वापिस बैड पर लिटा दिया।
"अभी नहीं, मेरे बंदर," उन्होंने उसे रोकते हुए कहा।
"जब तुम ठीक हो जाओगे तब।"
देव ने अपना मुंह बना लिया।
उसे बुखार था और इसी वजह से वो बैड पर लेटा हुआ था। उसके मम्मी पापा, राणा को लेकर गए थे मंदिर किसी जरूरी प्रयोजन के लिए। क्योंकि देव बीमार था इसलिए, वोह देव और अभय को उनकी दादी के पास छोड़ गए थे। देव को पता था की अभय को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उसे घर में रहना अच्छा लगता था। क्योंकि घर पर रह कर वोह सारा दिन किताबे पढ़ता रहता था बल्कि उस दिन भी वोह सिंघम लाइब्रेरी में ही घुसा हुआ था और पुरानी किताबों को पढ़ने में लगा हुआ था। देव को भी घर पर रहने में कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि इसी वजह से वो अपनी दादी के साथ और ज्यादा वक्त बिता सकता था और उनसे और कहानियां सुनने का मौका मिल सकता था।
"ठीक है," देव ने उदास स्वर में कहा।
"फिर मुझे दूसरी कहानी सुनाइए," उसने मांग करते हुए कहा।
उसकी मासूम से शकल देख कर और उसकी बात सुन कर उसकी दादी मुस्कुराई और फिर उसके माथे को बड़े प्यार से चूम लिया। उन्होंने उसे दूसरी कहानी सुनाना शुरू कर दिया। उसने ये कहानी पहले भी कई बार सुनी थी, लेकिन वो उनसे बार बार सुनना चाहता था।
कहानी सबसे रोमांचक हिस्से तक पहुंचने ही वाली थी कि एक जोरदार दस्तक ने उन्हें रोक दिया। उसकी दादी की खास नौकरानी रोते हुए अंदर आई।
"क्या हुआ सीतम्मा?" उसकी दादी ने पूछा।
"देवसेना.....हमे अभी खबर......." वोह औरत फूट फूट कर रो पड़ी।
"विजय और अरुंधती। और अजय भी......" वोह औरत बोलने की कोशिश कर रही थी लेकिन शब्द निकल नही पा रहे थे, वोह लगातार रोए जा रही थी।
"देव, में अभी आती हूं," उसकी दादी ने कहा और अपनी नौकरानी को बाहर ले आई।
कुछ देर बाद, उसकी दादी वापिस आई। वोह कुछ घबराई हुई सी लग रही थी।
"देव, मुझे अभी तुरंत बाहर जाना होगा," उन्होंने कहा।
"में पक्का तुम्हे बाद में पूरी कहानी सुनाऊंगी। में किसी को भेजती हूं जो तुम्हारे साथ यहां रहेगा। और जब अभय वापिस आएगा तो उसे भी बता देना की में थोड़ी देर में लौट आऊंगी।"
देव ने कोई विरोध नहीं किया। उसने कुछ देर कमरे में ही अपनी दादी का इंतजार किया। धीरे धीरे वो बेचैन होने लगा। उसे कुछ अजीब लगने लगा। वोह जानना चाहता था की अचानक क्या हुआ जो उसकी दादी एकदम घबराई हुई कहीं चली गई। क्योंकि वोह बीमार था और उसे बहुत कमज़ोरी भी थी, वोह अपने लड़खड़ाते पैरों से बैड से उतरा और दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया। उसे बाहर कोई नही दिखा लेकिन वो शोर आराम से सुन सकता था जो नीचे की तरफ से आ रहा था। वोह धीरे धीरे नीचे उतरा और सबसे नज़र बचाते हुए मुख्य द्वार की तरफ बढ़ गया। उसने देखा कई सारी गाडियां लोगों से भर कर मेंशन से बाहर की तरफ निकल रही थी। उसने देखा कुछ और गाडियां भी खड़ी थी जिसमे लोग जल्दी जल्दी बैठ रहे थे। उसने चुपके से एक गाड़ी का पीछे का दरवाज़ा खोला और सीट के नीचे छुप गया। जब कार कहीं पर जाकर रुकी तो देव गाड़ी के ड्राइवर और उसमे बैठे लोगों का गाड़ी से उतरने का इंतजार करने लगा। जो पहली चीज़ देव ने गाड़ी से उतरने के बाद देखी थी वोह थी आग। वोह मंदिर आग की लपटों से पूरा जल रहा था और उसकी लौ आसमान तक जा रही थी। उसके बाद उसकी नज़र उन ढेर सारी लाशों पर गई जो आस पास पड़ी थी और उनमें से कुछ जली हुई थी। वहां जलने की गंध इतनी तेज़ थी की उसकी गंध से और वहां के नज़ारे ने देव को रुला दिया। वोह ये सब देख कर कांप गया था। वोह ज़ोर ज़ोर से रोते हुए उन लाशों से होते हुए आगे बढ़ने लगा। उनमें से कुछ ऐसे भी जिन्हे देव जनता था या उनके साथ कई बार बैठा भी था। वोह एक जगह आकर रुक गया जब उसे एक जली हुई लाश दिखी और उसपर जो जले हुए कपड़े थे वोह कुछ जाने पहचाने थे। और उस जले हुए कपड़ो ने इस जली हुई लाश को आधा ढका हुआ था। उसने उस गहरे लाल रंग के कपड़े जिसपर गोल्डन बॉर्डर था उसे पहचान लिया था। यह तो वोही साड़ी है जो आज सुबह उसकी मां ने पहनी हुई थी।
"हे भगवान!" एक औरत रो रही थी।
"उन्होंने मार डाला हमारी अरुंधती और विजय को और राणा को भी!" वोह रोते हुए चिल्ला रही थी।
"ये सब इस कुत्ते की वजह से हुआ है!" दूसरी औरत ने कहा, उस आदमी को लात मारते हुए जो उसकी मां की लाश के पैरों के पास में पड़ा था।
देव अपने मां बाप की लाशों को एकटक देखने लगा। लेकिन वोह अपने छोटे भाई की लाश नही पहचान पा रहा था क्योंकि वो पूरी तरह से जली हुई थी। उसे पता ही नही चला की कितनी देर वोह ऐसे ही खड़ा था बस उन लाशों को घूरते हुए।
"देव!" उसे अपनी दादी की आवाज़ सुनाई पड़ी। "हे भगवान, देव," उन्होंने घबराए हुए देव को तुरंत गोदी में उठा लिया और उसकी नज़रों को उसके मां बाप की लाशों से दूर कर दिया।
देव देख रहा था की उसकी दादी रो रही है और उनकी आंखे रोने की वजह से लाल हो गई है जिनसे लगातार आंसू बह जा रहे हैं।
"कौन लाया तुम्हे यहां? तुम्हे यहां नही आना चाहिए था और ये सब नहीं देखना चाहिए था।"
देव ने अपनी आंखे बंद कर ली उन पलों को याद करते हुए जो सात साल की उम्र में उसने अपनी आंखों से देखा था। जब तक उसकी दादी ने उसे देखा था और उस भयानक दृश्य को देखने से उसको दूर किया तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वोह भयानक दृश्य, को खौफनाक मंज़र और वो जलने की गंध देव के दिमाग और ज़हन में बस चुकी थी। उसने कभी अभय को नही बताया था की वोह वहां गया था जहां हत्याकांड हुआ था और अपनी आंखों से अपने मां बाप की जली हुई लाशें देखी थी।
उसी दिन बीस साल पहले, अभय ने अपना पूरा दिन लाइब्रेरी में ही बिताया था। वोह लाइब्रेरी में तब तक रहा था जब तक उसकी दादी ने आकर उसे यह नहीं बताया था की उसके मम्मी पापा एक एक्सीडेंट में मारे गए। देव ने उस वक्त कुछ नही कहा था बल्कि वो तो खुद सदमे में था उनकी मौत से। उसे उस हत्याकांड के बाद करीब छह महीने लग गए सदमे में से उभरने में। गुजरे सालों में, उसने उसने बहुत कुछ सहा जैसे उसे बुरे बुरे सपने आने लगे रात को, वोह कभी भी कहीं पर भी उग्र हो जाता था और अपनी भड़ास और गुस्सा दूसरे लोगों पर निकालता था जबकि उनकी कोई छोटी सी ही गलती होती थी तब भी। वोह अपने मन में कल्पना करने लगा था की एक दिन वो उन्हे जान से मार देगा जो उसके माता पिता और उसके परिवार के मौत के जिम्मेदार है। पर दुर्भाग्यपूर्ण, को लोग उसके माता पिता और परिवार के मौत के जिम्मेदार थे वोह खुद ही उस दिन उस हत्याकांड में मर गए थे।
देव ने अपना सिर उठाया और बार बार अपनी पलके झपकाने लगा ताकि उसकी आंसू से भरी हुई लाल आंखों को वोह साफ कर सके। उसने देखा की उसका फोन बज रहा है तो उसने तुरंत उठा लिया।
"देव, तुम ठीक हो?" उधर से अभय ने पूछा।
"हां! में ठीक हूं। में भूल गया था मुझे एक जरूरी मीटिंग के लिए साइट पर जाना था।"
कुछ पल दोनो तरफ शांति बनी रही।
देव जानता था की उसका भाई अभय उसके बहाने पर विश्वास नहीं करेगा लेकिन अभय ने उसे कुछ और नहीं पूछा न ही कोई बहस की।
"जल्दी घर आना," अभय धीरे से कहा।
"हम्मम! में शाम तक आ जाऊंगा।" इतना कह कर देव ने फोन कॉल काट दिया।
उसके बाद देव ने गाड़ी साइट की तरफ मोड़ दी।
बीते सालों में उसे कई मौके मिले जिसमे उसने सोचा की उसे अभय को सब कुछ बता देना चाहिए जो उसने उस दिन मंदिर में देखा था लेकिन कभी भी वोह बोलने की हिम्मत नही कर पाया। वोह चाहता था की अभय अपने मम्मी पापा को उसी रूप में याद रखे जैसे वो मंदिर में जाने से पहले थे। न की उस आधी जली हुई खून से भरी लाश के रूप में जो उसने देखा था। थोड़ी ही देर में देव साइट पर पहुंच गया।
जो पहला इंसान उसे दिखा साइट पर वो थी सबिता प्रजापति....उसके मां के कातिल और उस हत्याकांड के जिम्मेदार की बेटी। देव ने उसे नफरत की निगाहों से घूर कर देखा। उसने भी बदले में उसी तरह उसे घूरा। अपने गुस्से और नफरत को जब्त करते हुए देव अपने ऑफिस की तरफ चला गया।
वोह जल्द से जल्द इस प्रोजेक्ट की प्लानिंग और सैट अप करना चाहता था और उसे पूरा विश्वास था की वोह जल्द से जल्द ये खतम कर लेगा।
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