संघतारा प्रेत अब आ चूका है और आते ही उसने अपने जाल फैलाने चालू कर दिए, वो अपनी हरकतों और अजीब-अजीब तरह की आवाजों से रुद्र और उसके दोस्तों को डराने के कोशिश करने लगा, ठीक उसी समय तांत्रिक योगीनाथ जी की पहले से सोची हुई योजना के तहत राजकुमार अचिंतन की आत्मा अब अपने सही आकर में आने लगती है और कुछ ही देर बाद चबूतरे पर एक सुन्दर, गठीला और राजसी परिवेश पहने हुए राजकुमार अचिंतन दिखाई देने लगता है, संघतारा प्रेत उसे देख कर शांत हो जाता है, और उसके पास जाने के लिए तालाब में आने की कोशिश करता है पर योगीनाथ जी के सुरक्षा घेरे को पार करना इतना आसन नहीं है, वो कई बार कोशिश के बाद भी जब अन्दर नहीं जा पाया तब शांत होकर एक जगह ही रुक गया वो इस समय एक काले धुएँ के रूप में है।
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प्रेत-लोक १६
तांत्रिक योगीनाथ जी राजकुमार अचिंतन की आत्मा को कुछ इशारा करते हैं, उनका इशारा समझ कर राजकुमार अचिंतन की आत्मा तालाब के अन्दर से ही संघतारा प्रेत से बात करने की कोशिश करती है, राजकुमार अचिंतन ने प्रेत संघतारा से कहा “तुमने क्या हाल बना लिया है संघतारा, तुम तो ऐसे नहीं थे, आज इतने सालों बाद मुझे लगा की जब में तुम्हें देखूंगा तो तुम आज भी पहले जैसे सुंदर और कामुक दिखाई दोगे जैसे पहले थे, जिससे मैंने प्यार किया था पर तुम तो पूरी तरह बदल चुके हो, अब तुम पहले वाले संघतारा नहीं बचे हो”।
“तुम कितनी दिलकश अदाओं से मुझे रिझाने की कोशिश किया करते थे, तुम्हारी नज़रें हमेशा मेरे पुरुषत्व को घूरती रहतीं थी, जब भी हम अकेले में होते थे तब तुम हमेशा मुझसे सिर्फ एक बात कहा करते थे की कुछ भी हो जाए तुम सब कुछ भूल सकते हो पर मुझे नहीं, तुम हमेशा मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर घंटों बैठे रहते थे और कहते थे की तुम्हारी बाँहों में जन्नत है में मर के भी तुम्हारी इन बाँहों में ही रहना चाहूँगा, पर आज लगता है तुम सब कुछ भूल गए हो या उस समय तुमने जो भी कहा था वो सिर्फ वासना पूर्ति के लिए किया गया एक उपक्रम मात्र था”
“नहीं मेरे राजकुमार, मेरा दिल जानता है की मैं आज भी तुम्हें कितना प्यार करता हूँ, शायद तुम्हें पता नहीं है की मेरी जो हालत आज तुम देख रहे हो वो सिर्फ तुम्हारे प्यार की वजह से ही हुई है, तुम्हारे सामने ही मेरी निर्मम हत्या कर दी गई थी और मुझे इस तालाब में जब फेंका गया था तब में पूरी तरह से मरा नहीं था, किसी ने ये तक जाने की कोशिश भी नहीं की, की में जिंदा हूँ या नहीं, तालाब में मछलियों और कीड़ों के काटने का दर्द आज भी मेरी आत्मा पर बना हुआ है”
“मैं ये मानता हूँ की मैंने ही तुम्हारे सारे राज्य और बाकी सभी को विनाश तक पहुँचाया पर तुम्हारी मौत को में चाह कर भी नहीं रोक सका, मैंने तुम्हें मेरी आँखों के सामने मरते हुए देखा पर में कुछ कर नहीं पाया, पर तुम आज तक मुझसे दूर क्यों रहे, क्यों तुम मेरे सामने नहीं आये, आखिर क्यों तुमने अपने आप को मुझसे दूर रखा, उस दिन जब वो तांत्रिक यहाँ आया और तुम्हें अपने साथ लेकर जाने लगा तब मुझे पता लगा की तुम इतने सालों से यहाँ हो”। संघतारा प्रेत, राजकुमार अचिंतन की बात सुनकर तड़प कर बोला।
तांत्रिक योगीनाथ जी समय की नजाकत को समझते हुए दोनों को बीच में टोकते हुए जोर से बोले “बंद करो ये बकवास तुम दोनों, में यहाँ तुम दोनों की प्रेम कहानी सुनने नहीं आया हूँ, में यहाँ सिर्फ इस लिए आय हूँ की तुम प्रेत संघतारा तुम अभी के अभी यहाँ से चले जाओ और इन लड़कों का पीछा छोड़ दो, अगर तुम ऐसा करोगे तो में तुम्हारी मुक्ति के लिए कोशिश करूंगा पर अगर तुम इसके लिए मना करोगे तो मैं तुम्हें कैद करके इस नरक योनि में हजारों साल तड़पने के लिए छोड़ दूंगा”।
प्रेत संघतारा ठहाका लगा कर बहुत ही भयानक आवाज में हँसता है और कहता है “योगीनाथ तुम जैसे तांत्रिक पता नहीं कितने आये और कितने गए, बहुत से तांत्रिकों की तो हड्डियाँ इसी तालाब में आज भी मौजूद हैं, तुम सिर्फ सोच सकते हो पर कुछ कर नहीं सकते, मैं हमेशा से आजाद था और रहूँगा”।
तांत्रिक योगीनाथ संघतारा की बातों को सुनकर हँसते हुए बोले “में जानता हूँ की तुम इतनी आसानी से नहीं मानोगे इसलिए मेरे पास तुम्हारे लिए दूसरा उपाय भी है”।
इतना कह कर उन्होंने जलती हुई अग्नि में रार के साथ सिंदूर मिला कर आहुति दी, उस सिंदूर मिश्रित आहुति से उठती हुई लपटें बहुत ऊपर तक गई और फिर उससे निकले धुएं ने राजकुमार अचिंतन को चारों तरफ से घेर लिया। राजकुमार अचिंतन उन लपटों में घिर कर तड़पने लगा उसकी चीख सारे उसकी चीख ने माहौल को बहुत ही भयानक कर दिया।
तांत्रिक योगीनाथ अपनी जगह से खड़े होकर बोले “प्रेत संघतारा जिस प्यार की खातिर तूने एक पुरे साम्राज्य को नष्ट कर दिया आज तेरी हट की वजह से तेरा वो प्यार हमेशा- हमेशा के लिए मेरा बंधक बन जायेगा, मैं उसे पाताल में बाँध कर रखूँगा”।
प्रेत संघतारा अपने प्यारे राजकुमार की ये दशा देख कर तड़प कर बोला “महाराज आपको जो करना है आप मेरे साथ कर सकते हो, मेरे राजकुमार को छोड़ दो, में आपकी हर बात मानने को तैयार हूँ”
इतना कह कर प्रेत संघतारा अट्टहास लगता हुआ हजारों चमगादड़ों की कर्कश आवाज में बोला “तू समझता क्या है अपने आप को तांत्रिक, तेरे इस नकली तंत्र से मेरा कुछ नहीं होने वाला, तुझे क्या लगता है की मेरे रहते हुए, मेरे सामने तू मेरे राजकुमार को बंधक बना लेगा और में कुछ नहीं कर पाऊँगा” और फिर जिस बात का डर था वही हुआ।
तालाब में मौजूद कंकाल जो अभी तक केवल संघतारा प्रेत की वजह से शांत थे वो एक बार फिर रुद्र और वहां खड़े सभी दोस्तों की तरफ बढ़ने लगे, सभी घबराकर तांत्रिक योगीनाथ से उनको बचाने के लिए कहने लगे, सुनील और विकास जहाँ खड़े थे वहां वे चारों तरफ से कंकालों से घिर चुके थे, और लगातार अपने पास आ रही मौत से बचने के लिए योगीनाथ जी को आवाज लगा रहे थे।
रुद्र जो तांत्रिक योगीनाथ के नजदीक ही खड़ा था वो बोला “ योगीनाथ जी आप देख रहें हैं की ये कंकाल लगातार आगे बढ़ रहे हैं अगर ऐसा ही चलता रहा तो कुछ समय बाद हम में से किसी का बचना बहुत मुश्किल हो जायेगा, कृपया कर इन्हें रोकने का कोई उपाय कीजिये”
तांत्रिक योगीनाथ रुद्र की बात सुनकर बोले “नहीं रुद्र नहीं में कुछ भी नहीं कर सकता, क्योंकि अगर इस चक्र के अन्दर मैंने किसी भी तरह की कोई भी तांत्रिक क्रिया की तो, बाहरी चक्र टूट जायेगा और संघतारा को फिर रोकना बहुत मुश्किल होगा”
“पर फिर भी हमें कुछ तो करना होगा हम इस तरह से हार नहीं मान सकते” रुद्र अपने दोस्तों को परेशान देखा कर योगीनाथ जी से बोला।
“इसका अब सिर्फ एक ही उपाय है, हमें किसी भी तरीके से ये पहचानना होगा की इन कंकालों में से प्रेत संघतारा का कंकाल कौन सा है, और इसके लिए रुद्र तुम्हें तालाब में जाना होगा, घबराओ मत मेरे पास एक अभिमंत्रित रुद्राक्ष की माला है जिसे पहन कर जाने से कोई भी भूत या प्रेत तुम्हारा कुछ नहीं कर सकता” तांत्रिक योगीनाथ रुद्र से बोले।
रुद्र के चेहरे के भाव इस समय डर और कुतूहल से भरे हुए थे, वो बोला “पर योगीनाथ जी मुझे वहां जाकर करना क्या होगा, मैं अपने दोस्तों के प्राण बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ”
तांत्रिक योगीनाथ प्रशंसनीय भाव के साथ रुद्र से बोले “जब तुम तालाब में जाओगे तब तुम्हें इन कंकालों में से एक ऐसा कंकाल ढूँढना है जिसके बाजू, पसली और जंघा पर सिंदूर का लाल निशान हो क्योंकि संघतारा प्रेत का आवाहन करते समय मैंने जो सिंदूर और रार हवन में डाला था उसमें से उस अभिमंत्रित सिंदूर की शक्ति की वजह से ही संघतारा का कंकाल बाहर आया था, और जब तुम्हें वो कंकाल दिखाई दे तो अपने गले में पड़ी रुद्राक्ष की माला को उसके गले में दाल देना”
रुद्र तांत्रिक योगीनाथ जी की सभी बातों को सुनकर चेहरे पर आने वाले डर के भाव को रोक कर बोला “ठीक है महाराज जी में बैसा ही करूँगा जैसा आपने कहा है और फिर उसके बाद क्या होगा, क्या उस माला से प्रेत संघतारा हमारे वश में आ जायेगा”
तांत्रिक योगीनाथ गंभीर होकर बोले “इस तरह के प्रेत को इतनी आसानी से वश में नहीं किया जा सकता, पर तुम परेशान मत हो उसका भी उपाय है मेरे पास और जब तक तुम ये सब करोगे तब तक में उसके आगे की क्रिया के लिए काम कर चूका रहूँगा” इतना कह कर योगीनाथ जी ने रुद्र को एक रुद्राक्ष की माला दी जिसे रुद्र ने अपने गले में पहन लिया और तालाब के अन्दर जाने के लिए आगे बढ़ा।