Bagi Striyan - 29 in Hindi Fiction Stories by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | बागी स्त्रियाँ - (भाग उनतीस)

Featured Books
Categories
Share

बागी स्त्रियाँ - (भाग उनतीस)

न तो विवाह योग्य मेरी उम्र थी न ही मैं विवाह के सपने देखती थी।पर पिताजी की बीमारी और छोटे भाई -बहनों की जिम्मेदारी ने माँ को मजबूर कर दिया।मैं पढ़ना चाहती थी।माँ ने कहा शादी के बाद भी पढ़ सकती हो।जब तक लड़का कोई काम-काज न करने लगे,तुम्हें यही तो रहना है।इस तरह अर्जुन मेरे जीवन में आया जो मेरी प्रकृति से बिल्कुल विपरीत था।न पढ़ने -लिखने में रूचि ,न साहित्य -संस्कृति में झूठ ,दिखावा फरेब और मर्द होने का अहंकार उसमें कूट -कूटकर भरा था।जाने वह मुझसे क्या चाहता था।मैंने उसके अनुरूप ढलने की बहुत कोशिश की पर हर बार उसकी रूचि बदल जाती थी।वह दूसरी औरतों से उसकी तुलना किया करता।दूसरों के सामने बात -बात पर अपमानित करता।उसके भीतर जबर्दस्त हीन -भावना थी। उसका घर परिवार,रहन सहन बोली वाणी सोच विचार सब पन्द्रहवीं सदी के थे।औरत उसके लिए पैर की जूती थी।वह गरीब था बेरोजगार था यह मुझे नहीं खलता था,पर उसका सामंती और दुहरा व्यवहार मुझे पागल बना देता था।वह मेरे माता पिता का लाडला था पर मेरे सामने उन्हें गालियां देता।जबकि शादी के बाद भी वे मेरा खर्च उठा रहे थे मुझे पढ़ा रहे थे।फिर वह मेरी पढ़ाई के खिलाफ हो गया।वह न मुझे अपने घर अपने साथ रखता था न माँ के घर पढ़ने दे रहा था।अंततः मैंने सती धर्म का लबादा उतारा और अपनी पढ़ाई जारी रखी।वह इतना नाराज हुआ कि दूसरी शादी कर ली।उसका भाग्य कि औरत के साथ उसे नौकरी भी मिल गई और इस तरह मेरे जीवन का वह अध्याय बंद हुआ।उसने सारा इल्जाम मुझपर डाल दिया कि अपनी महत्वाकांक्षा के कारण उससे अलग हुई।
पी एच डी करने शहर आई तो पवन से प्रेम कर बैठी।उससे मैंने अपना अतीत नहीं छिपाया था पर अंततः पवन ने भी दूसरी लड़की से शादी कर ली।बहुत से दोस्त बने।बहुतों ने प्रेम का दावा किया पर मैं दूध की जली थी ।मैंने यह पाया कि कोई भी दोस्त कोई भी प्रेमी मेरे साथ चलने को तैयार नहीं।बस मुझे टाइम-पास बनाना चाहता है ।मैं खुद को इस्तेमाल कैसे होने देती?मैंने एक- एक कर सबको छोड़ दिया।आज न कोई मेरा दोस्त है न प्रेमी।अच्छा है ।किसी के जीवन में आने से मैं भावनात्मक उलझन में पड़ जाती हूँ।
आज मैं अकेली हूँ...बहुत अकेली!मैं सच्चे पुरुष का साथ चाहती हूं...सच्चा प्यार चाहती हूँ पर यही तो एक ऐसीं चीज है जो चाहने से नहीं मिलती।
मैं आत्मनिर्भर हूँ ...सुंदर हूं ...बहुत सारे गुण भी हैं मुझमें।मेरा लेखन के क्षेत्र में नाम है ।अपनी पहचान है ।जो चाहा..वह हासिल किया है।फिर भी अकेली हूँ।अब भी मुझे सच्चे प्यार की उम्मीद है।क्या स्त्री पुरूष के बिना पूर्ण नहीं हो सकती?अकेली खुश नहीं रह सकती?ये कैसी अबूझ प्यास है?जानती हूँ यह देह की नहीं आत्मा की पुकार है। पर आत्मा किसी सांसारिक पुरूष से कैसे संतुष्ट हो सकती है?संसार के पुरूष तो खुद ही अपूर्ण हैं वे मुझे कैसे पूर्ण कर सकते हैं?
वे तो खुद प्रेम की तलाश में भटक रहे हैं ।एक फूल से दूसरे फूल पर भटकने वाले आवारा भौंरे से बेचैन।
क्या अर्जुन संतुष्ट है ?जवान बीबी और चार बच्चों के होते हुए भी मुझसे दोस्ती करना चाहता है।रोज फोन करता है,जिसे मैं उठाती नहीं।वह दो बीबियों का सुख उठाना चाहता है।दो पत्नियों वाला होने का गौरव पाना चाहता है। मेरी प्रेम -कविताओं को अपने लिए लिखा समझता है।जो मेरी नफरत के भी काबिल नहीं ,वह मेरे प्रेम पर अपना हक समझता है।पवन का भी लगभग यही हाल है।सुंदर पत्नी और दो बच्चों के बावजूद वह मेरे प्रेम पर अपना हक समझता है।मेरे ही बेवफा हो जाने की शिकायत करता है।
ये सच है कि मेरी बहुत सी प्रेम -कविताओं का उत्स वही है। पर अब वह सपने में भी उसके सानिध्य की कल्पना नहीं कर सकती।कई और दोस्तों व प्रेमियों को भी यही भरम है पर कोई नहीं जानता कि मैं किसी अज्ञात प्रेमी के लिए तड़पती हूँ।उसके लिए कविताएँ लिखती हूँ...उसकी प्रतीक्षा करती हूँ।कहीं वह प्रेमी कृष्ण तो नहीं ...मेरे बचपन का सखा कृष्ण!कहीं उसने ही तो मेरे जीवन में किसी दूसरे पुरूष का प्यार नहीं आने दिया।वह मुझे किसी और का होते नहीं देख सका।वरना ऐसा कैसे हो सकता है कि सारी खूबियों के बावजूद मैं अकेली हूँ।हाँ,यही सच है और मुझे यह स्वीकार कर लेना चाहिए।वही तो है जिससे मैं मन की बात कह सकती हूँ।वही तो है जो सब कुछ सुन सकता है। मुझे समझ सकता है ।मुझ पर विश्वास कर सकता है। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मेरी उम्र बढ़ रही है और कुछ वर्षों बाद मेरा सारा सौंदर्य,सारा माधुर्य,सारी कोमलता,स्त्री जनित खूबियाँ धूमिल पड़ जाएगी।उसे इस बात की कोई परवाह नहीं कि मैं वर्जिन हूँ या नहीं कि मेरे जीवन में कितने पुरूष आए और गए।सामाजिक रूप से बदनाम हूँ या नेकनाम हूँ।
वह मेरे जीवन के सारे दुःख ...सारे कष्ट..सारे विष पीकर भी मुस्कुराएगा ।मुझे प्रेम की बांसुरी सुनाएगा।
मीता का सारा तनाव धुल गया।होंठों पर मधुर मुस्कान फैल गई।उसने सुना कि रेडियो पर उसका पसंदीदा गीत बज रहा है--ओ कान्हा अब तो मुरली की मधुर सुना दे तान
मैं हूँ तेरी प्रेम -दीवानी मुझको तू पहचान।