Bagi Striyan - 27 in Hindi Fiction Stories by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | बागी स्त्रियाँ - (भाग सत्ताईस)

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बागी स्त्रियाँ - (भाग सत्ताईस)

मीता आजकल आत्ममनन के दौर से गुजर रही है।अपने पूरे अतीत को उसने खँगाल डाला है।आखिर वह है कौन,चाहती क्या है?वह साक्षी भाव से खुद को देख रही है ।मानो वह अपनी किसी कहानी की नायिका को देख रही हो कि आखिर वह कौन सा मनोविज्ञान है जो उसे संचालित कर रहा है?उसका व्यक्तित्व कैसे निर्मित हुआ?वह सामाजिक जीवन में असफल क्यों रही है?क्यों उसे सच्चा प्यार नहीं मिला?उसने क्यों सही निर्णय में देर की?
एकाएक उसकी आँखों के सामने एक दूसरी ही मीता आ खड़ी हुई और अपनी कहानी कहने लगी।
मैं मीता हूँ।सहज, सरल ,सुंदर,पर मुझे कोई प्यार नहीं करता।जब मैं माँ के गर्भ में थी ,माँ मुझे लड़के के रूप में देख रही थी।मुझे अच्छा नहीं लगता था कि माँ मुझे लड़की नहीं लड़का समझे।पूरे नौ महीने मैं इस पीड़ा में रही कि माँ मुझे नहीं समझती।मेरे जन्म के बाद तो जैसे हंगामा हो गया।मानो धरती पर किसी पाप ने जन्म लिया हो।नाना,पिता,भाई तो मर्द थे पर नानी,माँ,दीदी तो औरत थीं उन्हें क्यों मेरा लड़की के रूप में जन्म लेना नहीं भाया।सभी ने मुझे हिकारत से देखा।माँ ने सीने से नहीं लगाया।मेरे हिस्से का दूध यूँ ही बहता रहा और मैं भूख से बिलखती रही।पेट भी भूख से ज्यादा प्यार की भूख थी।पूरे बचपन यही सुनती रही कि मैं काली हूँ ,कमजोर हूं, नकारी हूँ ,जिद्दी हूँ और फिर एक नया शब्द भी जुड़ गया कि बिगड़ैल हूँ।क्यों?क्योंकि मैं अपने हिस्से के अधिकार मांगती थी कि क्यों भाई को दूध मिलेगा मुझे नहीं?क्यों भाई को प्यार मिलेगा मुझे नहीं?क्यों भाई बाहर घूमेगा मैं नहीं।क्यों भाई बहन की लड़ाई में भाई की गलती नहीं होगी मेरी होगी।उसे गोद में बिठाकर पुचकारा जाएगा और मुझे दुत्कार मिलेगी?
अनगिनत प्रश्नों से जूझते बचपन बीत गया।बचपन मैं जी ही नहीं पाई।जिद्दी तो मैं थी।मना होने के बाद भी घर के बाहर ज्यादा रहती थी।पेड़ों पर चढ़ती थी,नदी-नालों में मछलियां पकड़ती थी।मुहल्ले के बच्चों के साथ गोटी,गोली,खोखो और छुपा -छुपाई खेलती थी। उनके बरोबर गाली देती थी और मारपीट भी करती थी।बाग -बगीचों में घूमने का भी शगल था।गर्मी की पूरी दुपहरिया अमिया, इमली चुनती थी ।कोई साथ नहीं होता था तो अकेले ही ।प्रकृति से प्रेम उन्हीं दिनों उपजा।मैं पेड़ -पौधों,फूल- पत्तियों,तितलियों और पक्षियों से बतियाती थी।मिट्टी में खेलती तो उसकी सुबास को साँसों से खींचकर मन तक भर लेती।उसकी सोंधी गन्ध मुझे बहुत पसंद थी।अमरूद मुझे पसन्द थे ।आसपास के पेड़ों पर वे पकने भी नहीं पाते थे कि मेरे शिकार हो जाते थे।मेरा लड़कों जैसा आचरण न घर वालों को पसन्द था, न बाहर वालों को पर मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था।जितना ही मना किया जाता, उतना ही ज्यादा मैं करती।दुत्कार के साथ पिटाई भी मेरी खूब होती थी।
स्कूल जाने की उम्र हुई तो स्कूल नहीं जाना चाहती थी।पहली बार स्कूल चार मजबूत हाथों में टाँगकर ले जाई गई।मुझे चीखते- चिल्लाते देखकर घर से स्कूल तक के लंबे रास्ते में मिलने वाले लोग हँसते रहे।और मैं ले जाने वालों पर दांत किटकिटाती रही,उन्हें गालियाँ बकती रही,पर उनके मजबूत शिकंजे से छूट न सकी।स्कूल में बच्चों को पढ़ते देखा तो कुछ अच्छा लगा और शर्म भी आई कि मुझे लिखने नहीं आता।काली पटरी के सफेद अक्षर मुझे बहुत भाए।माँ ने मुझे भी काली पटरी और सफेद दूधिया दी था और गोली बनाना बताया था,पर मुझसे गोली बनती ही नहीं थी।इकट्ट -दुकट्ट खेलने के लिए लकीरें तो खींच लेती थी पर पटरी पर लकीर खींचती ही नहीं थी।गोली खेलना जितना आसान था गोली बनाना उतना ही कठिन।'घोड़ी जैसी हो गई पर गोली बनाना नहीं आ रहा' माँ ने झल्लाकर तमाचा मारती तो मैं गुस्से नें पटरी पटककर बाहर भाग जाती थी।सोच लिया कि स्कूल ही नहीं जाऊंगी।पढ़ना -लिखना कठिन काम है।
दूसरे दिन सुबह ही घर से निकलकर जामुन के पेड़ पर चढ़ गई ताकि फिर भइया लोग मुझे टाँगकर स्कूल न ले जाने पाएं। पर बाबूजी के गरजने से मैं डर गई और पेड़ से उतर आई फिर पहले दिन की ही तरह मुझे जानवर की तरह झुलाते हुए स्कूल पहुंचाया गया।स्कूल में बच्चों ने मेरा मजाक बनाया तो मैं गुस्से में उनसे भिड़ गई।किसी को नाखून मारे किसी को दाँत काटा।वे लोग मेरे रौद्र रूप से डर गए।तभी मास्टर जी छड़ी लेकर आए ।मैं डरकर कोने में दुबक गई।पिताजी के बाद मास्टर जी से मैं डरी थी।
मैंने पटरी पर गोली बनानी चाही तो दूधिया हाथ से छूटकर दूर चला गया।मैं चुपचाप दूसरे बच्चों को लिखते हुए देखती रही।एक लड़की ने गोली बनाई फिर उससे सटाकर लाइन खिंची और दूसरी तरफ कुत्ते की पूंछ बना दी और बोली यह है। कमल वाला क ।दूसरी लड़की ने दो आधा गोल पूंछ के बाद सीधी लाइन खींची और हँसी कि यह है।अनार वाला अ।
मैं चकरा गई कि यह सब बड़ा कठिन है ।मुझे कभी नहीं आएगा।मैंने अपनी पटरी उठाई।बैठने के लिए घर से लाया बोरा समेटा और मास्टर जी की आँख बचाकर अकेली ही घर भाग आई।घर पर मेरी खूब पिटाई हुई और पिताजी साफ कह दिया कि जब तक गोली नहीं बनाएगी,इसे खाना- पानी नहीं देना है।