भूमिका
पुनर्जन्म वह दार्शनिक या धार्मिक अवधारणा है जिसके मुताबिक आत्मा ,शरीर के मरने के बाद दुसरे शरीर में एक नया जीवन शुरू कर सकती है | ये अवधारणा हिन्दू धर्म की एक मुख्य विचारधारा है | बोद्ध धर्म के दुबारा जन्म की अवधारणा को भी पुनर्जन्म कहा जाता है और प्य्थाग्रोस , प्लेटो और सोक्रेटस जैसी एतिहासिक हस्तियाँ भी इस विचार में विश्वास रखती थीं | ये कई पुराने और आधुनिक धर्म जैसे अध्यात्म, ब्रह्मविद्या, और एकांकर का भी हिस्सा है और पूर्वी एशिया , साइबेरिया , दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के कई जगहों में मोजूद जातियों का भी अभिन्न अंग हैं |
हांलाकि यहूदी, ईसाई और इस्लाम के अब्राहमिक धर्मों के अधिकतर गुट नहीं मानते की व्यक्ति पुनर्जन्म ले सकता है , लेकिन फिर भी इनमें कुछ गुट हैं जो पुनर्जन्म को मान्यता देते हैं ; इन गुटों में शामिल हैं काब्बालाह , कैथर , द्रुज़े और रोजीक्रूशनस के इतिहासिक और समकालीन शिष्य | पिछले कुछ दशकों में कई यूरोप और उत्तर अमेरिका के लोगों ने अभी पुनर्जन्म में रूचि दिखाई है | समकालीन फिल्मों , किताबों ,और लोकप्रिय गानों में भी कई बार पुनर्जन्म का ज़िक्र होता है | पुनर्जन्म की सत्य कहानियां - शांति देवी
शांति देवी बच्चों की पिछले जन्म की यादों के सबसे बेहतरीन मामलों में से एक हैं | उनकी महात्मा गाँधी द्वारा प्रसिद्द नागरिकों की एक समिति ने जांच की थी जो शांति देवी के साथ उनके पिछले जन्म के गाँव में गए थे और वहां की घटनाओं का परिलेख भी किया |
१८ जनवरी १९०२ में मथुरा निवासी चतुर्भुज के घर एक बेटी का जन्म हुआ जिसका नाम रखा गया लुगडी| जब लुगडी १० साल की हुई तो उसकी पास के दुकानदार केदारनाथ चौबे के साथ शादी कर दी गयी | ये केदारनाथ की दूसरी शादी थी क्यूंकि उसकी पहली पत्नी की मौत हो गयी थी |केदारनाथ की मथुरा में और एक हरिद्वार में कपड़ों की दुकान थी | लुगड़ी बहुत धार्मिक थी और काफी कम उम्र में कई धार्मिक स्थलों पर जा चुकी थी | ऐसी ही एक तीर्थ यात्रा में उसके पैर में चोट लग गयी थी जिसका इलाज पहले मथुरा और फिर आगरा में किया गया |
जब लुगड़ी पहली बार गर्भवती हुई तो ऑपरेशन के बाद भी उसे मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ | दूसरी बार के लिए उसका चिंतित पति उसे आगरा के सरकारी हस्पताल में ले गया , जहाँ उसने ऑपरेशन से ही 25 सितम्बर १९२५ को एक बेटे को जन्म दिया | लेकिन ९ दिन बाद ४ अक्टूबर को लुगड़ी की हालत बिगड़ गयी और उसकी मौत हो गयी |
लुगड़ी की मौत के एक साल १० महीने और ७ दिन बाद ११ दिसम्बर १९२६ को दिल्ली के चिरावाला मोहल्ला में बाबु रंग बहादुर माथुर के यहाँ एक बेटी का जन्म हुआ जिसका नाम उन्होनें शांति देवी रखा | वह किसी साधारण लड़की जैसी ही थी लेकिन ४ साल की उम्र तक भी वह ज्यादा नहीं बोल पाती थी | पर जब वह बोलना शुरू हुई , तो वह अलग ही लड़की थी – वह अपने “पति” और “बच्चे” की बात करती थी |
उसने बताया की उसके पति मथुरा में हैं जहाँ उनकी कपडे की दूकान है और उनका एक बेटा है | वह अपने को चौबाइन (चौबे की बीवी) कहने लगी | माँ बाप ने इसे बच्चे की कल्पना समझ इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया | लेकिन वह तब चिंता में पड़ गए जब उसने बार बार अपने पति के साथ अपनी मथुरा की ज़िन्दगी की बात करनी शुरू कर दी | कई बार खाने के वक़्त वह कहती “मथुरा में अपने घर में मैं अलग तरह की मिठाई खाती थी” | उसने अपने पति की तीन पहचान बताईं ,वह गोरा था , उसके बांये गाल पर बड़ा मस्सा था और वह चश्मा पहनता था | उसने ये भी बताया की उसके पति की दुकान द्वारकाधीश मंदिर के सामने थी |
इस समय तक शांति देवी 6 साल की हो गयी थी और उसके माँ बाप उसकी बातों से परेशान हो गए थे |लड़की ने तो अपनी मौत का विस्तृत ब्यौरा भी सब को दे दिया था |उन्होनें अपने चिकित्सक को ये बात बताई तो वह हैरान था की इतनी छोटी बच्ची इन जटिल शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं के बारे में कैसे जानती थी | इस तरह से राज़ और गहरा होता गया |जैसे जैसे समय निकलता गया वह अपने माँ बाप से मथुरा चलने की विनती करती रही | लेकिन करीब आठ या नौ साल तक उसने अपने पति का नाम नहीं बताया क्यूंकि भारत में औरतें अपने पति का नाम नहीं लेती| अगर कोई पूछता तो वह शर्मा जाती बस ये कहती की वहां ले जाओ में उन्हें पहचान लूंगी | एक दिन एक रिश्तेदार बाबु बिशंचंद जो की दिल्ली के विद्यालय में अध्यापक थे ,उन्होनें शांति से कहा की अगर वह अपने पति का नाम बताएगी तो वह उसे मथुरा ले जायेंगे | इस प्रलोभन में आ उसने उनके कान में पंडित केदारनाथ चौबे नाम बताया |बिशंचंद ने उसे कहा की वह बात पता कर मथुरा की यात्रा की तैयारी करेंगे | उन्होनें पंडित केदारनाथ चौबे को ख़त लिखा और उन्हें दिल्ली आने को कहा | केदारनाथ ने सब बातों की पुष्टि कर सुझाव दिया की उनका दिल्ली में रहने वाला रिश्तेदार पंडित कान्जिमल शांति से पहले मिल ले |
कंजिमल के साथ एक बैठक बुलाई गयी जिसमें शांति देवी ने उसकी अपने पति के भाई के रूप में पहचान की | उन्होनें अपने मथुरा के घर और जहाँ उसने पैसा गाडा था उसकी भी कुछ जानकारी दी | उसने ये भी कहा की अगर उसको मथुरा ले जाया गया तो वह खुद से रेलवे स्टेशन से घर पहुँच सकती है |कंजिमल के कहने पर केदारनाथ 12 नवम्बर १९३५ को लुगड़ी के बेटे नवनीत लाल और अपनी आज की पत्नी के साथ दिल्ली पहुंचे | शांति ने आसानी से अपनी पति की पहचान करली और अपनी माँ को बोला “मेने कहा था न की मेरे पति गोरे हैं और उनके गाल पर एक मस्सा है | उन्होनें अपनी माँ को अपने पति की पसंदीदा सब्जी बनाने को कहा | फिर केदारनाथ के ज्यादा सवाल करने पर उन्होनें अपने मथुरा के घर में स्थित कुँए का ज़िक्र किया जहाँ वह रोज़ नहाती थी |उसने अपने बेटे की भी आसानी से पहचान करली हांलाकि वह उसे बहुत छोटा छोड़ कर ख़तम हो गयी थी | उन्होनें अपनी पति से ये सवाल भी किया की वादा करने के बावजूद भी उन्होनें दूसरी शादी क्यूँ कर ली |
केदारनाथ के जाने के बाद शांति देवी बहुत उदास हो गयी और मथुरा जाने की ज़िद करने लगीं | गांधीजी के द्वारा गठित समिति उन्हें मथुरा लेकर पहुंची जहाँ उन्होंने अपने घर का पता रिक्शे वाले को आराम से दे दिया | अपने घर पहुँच उसने वहां मोजूद सब लोगों की पहचान भी की और घर के मुख्य कमरों का रास्ता भी बताया | शांति ने अन्य स्थानों की भी आसानी से पहचान कर ली और उस जगह के बारे में भी बताया जहाँ उसने पैसे छुपाये थे | अपने पिता के घर जाने पर उसने अपने माँ बाप को पहचाना और अपनी माँ से गले मिल खूब रोई जिसे देख सब लोग हैरान रह गए |
अपनी जांच के दौरान केदारनाथ के एक दोस्त पंडित रामनाथ चौबे ने एक महत्वपूर्ण बात बताई जिसकी हमने और सूत्रों से भी पुष्टि की | जब केदारनाथ दिल्ली में थे तो वह पंडित रामनाथ चौबे के यहाँ एक रात रुके थे | सब सो गए थे और सिर्फ केदारनाथ , उसकी पत्नी , बेटा नवनीत और शांति कमरे में थे | नवनीत गहरी नींद में था | केदारनाथ ने शांति से पुछा की जब उसे गठिया था और वह उठ नहीं सकती थी तो वह गर्भवती कैसे हो गयी | शांति ने केदारनाथ के साथ सम्भोग की पूरी प्रक्रिया का वर्णन किया जिससे केदारनाथ को पूरा यकीन हो गया की शांति ही उसकी पत्नी लुगड़ी है |
जब इस घटना का ज़िक्र शांति देवी से किया गया उसने कहा “हाँ इसी बात से उन्हें मुझ पर पूरा यकीन हो गया था”|
एडवर्ड ऑस्ट्रियन
पत्रिशिया ऑस्ट्रियन के ४ साल के बेटे एडवर्ड को बारिश के दिनों से डर लगता था | फिर उसके गले में कुछ परेशानी उत्पन्न हुई और वह वहां तीव्र दर्द की बात करने लगा | एडवर्ड ने अपनी माँ को अपनी पिछली ज़िन्दगी की कहानियों का विस्तृत ब्यौरा दिया जो की शायद पहले विश्व युद्ध की बात है | उसने बताया की उसकी गले में गोली लगने से मौत हो गयी थी |
पहले तो डॉक्टर को उसके ख़राब गले की वजह समझ नहीं आई और उन्होनें उसके टोनसिलस निकाल दिया | उसके गले में फिर एक गाँठ बन गयी और डॉक्टर के पास उसका इलाज नहीं था | जैसे ही एडवर्ड को अपने माँ बाप को अपने पिछले जनम और अपनी मौत के बारे में बात करने के लिए उकसाया गया वह गाँठ गायब हो गयी | एडवर्ड के डॉक्टर को कभी पता नहीं चला की गाँठ कहाँ गयी |
डच क्लॉक
ब्रूस व्हित्तिएर को बार बार ये सपना आता था की वह एक यहूदी आदमी है और अपने घर में अपने परिवार के साथ छुपा हुआ है | उसका नाम स्टेफन होरोवित्ज था , एक यहूदी जिसको अपने परिवार के साथ ढूँढ लिया गया था और ऑस्च्वित्ज़ ले जाया गया था जहाँ उसकी मौत हो गयी थी | सपनों के बाद वह घबरा कर और बेचैन हो उठ जाता है | उसने अपने सपनों को लिखना शुरू किया और एक रात उसने एक घडी का सपना देखा जिसकी उसने सुबह उठ कर तस्वीर बनाई |
व्हित्तिएर ने उस घडी के एक एंटीक दुकान में होने का सपना देखा और वह वहां उसे देखने पहुंचा | घडी दुकान की खिड़की से दिखाई दे रही थी और बिलकुल उसके सपनों की घडी जैसी थी | व्हित्तिएर ने पुछा की ये घडी कहाँ से आई है |पता चला की दूकानदार ने घडी को नीदरलैंड्स के एक सेवानिवृत्त जर्मन मेजर से खरीदा था | इससे व्हित्तिएर को यकीन हो गया की वाकई में उसका कोई पिछला जन्म था |
जॉन राफेल और टावर पेड़
बिर्मिंघम , इंग्लैंड के पीटर हुम को १६४६ में स्कॉटिश सीमा पर अपनी सैनिक के पद पर तैनाती को लेकर ज़िन्दगी से जुड़े सपने आने लगे | वह क्रोम्वेल्ल की सेना का सैनिक था और उसका नाम जॉन राफेल था | सम्मोहन करने पर हुम ने अन्य स्थान और विवरण याद किये | जो जगहें उसे याद आने लगी थीं वह अपने भाई के साथ उन जगहों पर जाने लगा और उसे कई ऐसी वस्तुएं मिली जिनका इस्तेमाल उस ज़माने में होता था जैसे हॉर्स स्पर्स |
एक गाँव की इतिहासकार की मदद से उसने एक चर्च की जानकारी का खुलासा किया – उसने बताया की इस चर्च के पास एक टावर होता था जिसके नीचे एक येव का पेड़ था | ये जानकारी सार्वजानिक नहीं थी और इसलिए इतिहासकार हैरान थी की हुम को इस बारे में पता है – चर्च टावर को १६७६ में तोड़ दिया गया था | स्थानीय जानकारी के हिसाब से जॉन राफेल ने चर्च में शादी की थी | एक गृहयुद्ध इतिहासकार रोनाल्ड हट्टन ने इस मामले की जांच की और सम्मोहन के माध्यम से हुम से उस सदी के कुछ सवाल पूछे | हट्टन को पूर्ण रूप से विश्वास नहीं हो पाया की हुम अपने पिछले जन्म के समय की ज्यादा जानकारी रखता था , क्यूंकि वह काफी सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया |