fight for unemployment vs rights in Hindi Moral Stories by Rajesh Kumar books and stories PDF | बेरोजगारी बनाम हक की लड़ाई

Featured Books
Categories
Share

बेरोजगारी बनाम हक की लड़ाई

मैंने मोबाइल पर एक तस्वीर देखी जिसमें एक युवक का सिर फटा हुआ है और सारा शरीर खून से लतपत है। खबर को पढ़ा तो पता चला वो युवक एक विद्यार्थी है जिस पर पुलिस ने लाठीचार्ज चार्ज किया जिसके कारण उसकी ये दशा हुई है। ऐसे अनेकों छात्र थे जिनको गम्भीर चोटें आईं। ये सब देखकर मन दुखी हो गया।

मन में सवाल थे

क्या ये वही छात्र हैं जिनके कंधों पर देश का भविष्य है?

क्या पुलिस का यही कर्तव्य है कि छात्रों को इस तरह पीटा जाए?

खबर को ध्यान से पढ़ा तो पता चला कि छात्रों ने रेलवे बोर्ड के खिलाफ प्रदर्शन किया है। छात्रों की कुछ मांगे थी जिसमें 12वीं और स्नातकों के लिए एक जैसा पेपर के खिलाफ, आने वाली परीक्षाओं पर अचानक रोक के खिलाफ। रेलवे कई वर्षों से इन्हें लटकाएं हुए है।

बस इन्हीं चीजों को लेकर छात्रों ने रेलवे का विरोध करना प्रारम्भ कर दिया प्रदर्शन उग्र हुआ। कई रेलवे ट्रैकों पर भारी भीड़ जमा होने लगी। शांति व्यवस्था बनी रहे इसलिए पुलिस को हरकत में आना पड़ा। नोबत लाठीचार्ज पर आ गयी। गुस्साएं छात्रों ने सरकारी चीजों को नुक़सान करना शुरू किया। हालात यहां तक बिगड़ गए कि छात्रों को होस्टल से निकाल कर पीटा जाने लगा।

क्या ये समाधान है??

क्या बेरोजगारों को उग्र प्रदर्शन कर नौकरी मिल जाएगी?

क्या सरकारें प्रदर्शन करने वालों पर केस दर्ज कर उनकी पिटाई कराकर पुलिस द्वारा उन्हें डराया जा रहा है?

वर्तमान में हमारे देश में बेरोजगार युवाओं की इतनी आबादी है कि सभी को रोजगार देने सम्भव नही। लेकिन चुनावों के वक्त राजनीतिक दल इतने वादे करते हैं मानो सभी को दो दो नौकरियां मिल जाए, निजी स्वार्थ के चलते सरकारें युवाओं को सपने तो दिखा देती हैं। मगर मिलता है तो बस झुनझुना। हम सभी ने देखा होगा किसी विभाग में रिक्तियां हो तो उन्हें भरने के लिए बातें करने और उन्हें भरने में कई कई साल लग जाते हैं। पहले से ही इंतजार कर रहे योग्य लोगों की उम्र ही बीत जाती है कि नए उम्मीदवार तैयार हो जाते है। कोई परीक्षा जैसे तैसे अभी जाए तो उसका पेपर लीक हो जाता है। यदि सब कुछ ठीक रहा तो किसी न किसी विवाद को लेकर मामला कोर्ट तक चला जाता है। जब तक निर्णय आये तब तक व्यक्ति की आधी उम्र निकल चुकी होती है।

इन सबसे तंग आकर लोग विरोध करें तो कैसे करें? आसानी से सरकारें सुनतीं नही उग्र हो तो मुकदमें दर्ज,या हड्डी पसली टूटती हैं।

नौकरी की आशा में एक वो युवा भी है जिसके घरवालों ने सब कुछ गिरवीं रखकर उसे पढ़ाया है। एक वही आस है घर वालों की। तैयारी भी ठीक है लड़का पेपर पास कर लेगा। पर भृष्टतंत्र की दलदल ने सब मेहनत पर पानी फेर दिया। अब वो क्या करे।

सरकारों को भी परम् आवश्यक है कि तय समय में निष्पक्ष होकर विभागों की रिक्तियों को भरा जाए। ऐसे नए क्षेत्रों का सृजन जहां से अधिकतम लोगों को रोजगार व देश को तरक्की मिले। हमारे देश में युवाओं की संख्या पूरे विश्व में सबसे अधिक है। इस युवा शक्ति का सदुपयोग कर देश को नई दिशा नई तरक्की दी जा सकती है।

अधिक जनसंख्या का उदाहरण चीन है जो विश्व का सबसे बड़ा निर्माता देश है। ऐसा हम क्यों नही कर सकते? सोचने वाली बात है।

युवाओं को भी स्वरोजगार की ओर बढ़ना होगा। सरकारें सभी को रोजगार नही दे सकतीं। पर खुद के रोजगार नई दिशा जरूर दे सकते हैं।

आननफानन में जो छात्र सरकारों या विभागों के खिलाफ आंदोलन करते है उन्हें भी ध्यान देना होगा। कि किसी भी कारण से देश के संसाधनों को, अस्मिता को कोई हानि न हो।

छात्रों की लड़ाई कैसे सही रास्ते पर रहे उनकी सुरक्षा हो? सरकारें सुने उन्हें न्याय मिले इसके लिए न्यायपालिका को भी छात्रों के हितों की पैरवी करनी चाहिए।