Mohall-E-Guftgu - 4 in Hindi Fiction Stories by Deepak Bundela AryMoulik books and stories PDF | मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - 4

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मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - 4

4- मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू

मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू (पार्ट-5)

रोड पर आ गया का मतलब...? मैं सारा कुछ विस्तार से जानना चाहता हूं.. तभी मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूं.

मदद वदद छोड़िए सर.. आज के ज़माने में कोई किसी बिना स्वर्थ के मदद नहीं करता..

मैं आपको विश्वास दिलाता हूं के आपकी इस ज़िन्दगी की कहानी को कहीं भी इस्तेमाल नहीं करूंगा.. ये मेरा आप से वादा हैं.

हम थोड़ी देर चुप रहें मैं उसके जवाब का इंतज़ार करने लगा था..

मेरी टकटकी भरी निगाहें उसके चेहरे पर टिकी हुई थी और मेरे कान के एरियाल उसकी और से आनेवाली आवाज़ की तरंगों को कैच करने के लिए मुस्तेद थे..

मैंने अपनी इस ज़िन्दगी की दास्तां को हजारों बार हजारों लोगों को सुनाई पर कोई फर्क नहीं पड़ा सब ने सुनने के बाद यही सत्भवना दी के ऊपर वाला ज़रूर तुम्हारी मदद करेगा आज इस जिल्लत की ज़िन्दगी से जूझते जूझते पूरे आठ साल हो गए मैं तब कहां था और आज कहां हूं..वैसे तो मैं अपनी ज़िन्दगी में बहुत कुछ करना चाहता था.. अपनों के लिए और अपने लिए.. क्योंकि मैं बचपन से ही क्रिएटिव था कुछ कर गुज़रने का जाज़वा था..जिसके चलते मैंने मुंबई की राह पकड़ ली और फ़िल्म इंडस्ट्री में जमने के लिए दिल से मेहनत की खूब स्ट्रगल किया उन दिनों की परेशानियों से मैंने कभी भी किसी को इस डर से आवगत नहीं कराया कि कही घर वाले मुंबई से वापस आने का ना कहें लेकिन मेरी मेहनत 6 माह में ही रंग लाने लगी थी और मुझे एक फ़िल्म में असिस्टेंड डाइरेक्टर का काम मिल गया था जिसे मैंने वखूबी से निभाया मेरे काम की मेहनत और लगन को देख कर कम्पनी के ऑनर और प्रोडीयूसार ने मुझे इंडिपेंड फ़िल्म का निर्देशन का जिम्मा सौप दिया.. मैंने दिल से दिल तक की कहानी लिखी जिसे मैंने अपने स्कूल और कॉलेज के दौरान लिखी थी जिसकी कहानी सबको पसंद भी आ गई.. मुझे लगने लगा कि अब मेरी किस्मत मेरा साथ देने लगी हैं और मैंने उन पांच सालों में बड़े से बड़े प्रोजेक्ट फ़िल्म और टीवी के किए.. और उन्ही पांच सालों में मैंने गाड़ी घर और पैसा बेहद जमा कर लिया था मैं उस दौर में स्थापित लेखक और निर्देशक बन चुका था.. मैंने सबसे पहले इसी कॉलोनी में बी ब्लॉक में बेंगलो खरीद कर सरकारी मकान से यहां शिफ्ट हो गए ज़िन्दगी खुशहाल गुजरने लगी थी छोटा भाई फौज में जा चुका था हमने अपनी दोनों बहनों का जिम्मेदारी से विवाह किया.. उसी दौरान मैंने एक फ्लेट और सी ब्लॉक में खरीद कर उसे भी अपनी मां के नाम करवा दिया क्योंकि मैंने मुंबई की फ़िल्म इंडस्ट्री को भांप लिया था इसीलिए मैंने अपनी मेहनत का सारा पैसा ज़मीन में इन्वेस्टमेंट करता गया था.. लेकिन मैं आने आने वाले कल के भविष्य से बिलकुल अनभिज्ञ था.. जो सन 2000 के आने की शुरुआत में हुआ.. मेरी उम्र भी अब शादी की हो चली थी मां बाबा का सपना था कि वो बहू मेरे लिए अपनी ही पसंद की लाएंगे उसी सपने को साकार करने के लिए मैं कभी भी दिल विल इश्क़ के चक्कर में नहीं पड़ा था..जो अपनी पसंद का विवाह करने का कभी भी ख्याल भी नहीं आया था मुझे और घर वालों की पसंद के मुताबिक मैं शादी के बंधन में बंध चुका था..

उसने ये सब बातें बिना रुके कहीं थी उसका गला भर सा आया था उसने फ़ौरन अपने पास रखें बैग की जेब से किसी चूरन से आधी भरी डिब्बी निकाली थी और उसने उसे खोल के डिब्बी के ढक्कन में पीला सा पावडर उड़ेला और मुंह में भस्की मारी तब तक मैंने फ़ौरन पानी की बोतल से उसके गिलास में पानी उड़ेला दिया उसने पानी पिया और मेरा सुक्रिया किया..

ये जो आपने खाया ये क्या था..?

उसने डिब्बी का ढक्कन बंद करते हुए कहां

ये मेथीदाना पावडर था... डायवीटीज को कंट्रोल करने के लिए

मतलब आपको शुगर हैं..?

हां......हाई ब्लडप्रेशर भी.. उसके लिए दालचीनी पावडर लेता हूं सुबह शाम और इसे दिन में तीन बार..

इससे क्या दोनों कंट्रोल हो जाते हैं..?

हां लगभग...

तभी मैंने अपनी बात रख दी

मुझे लगता हैं अब हमें कुछ खा लेना चाहिए हैं....?

ओह... आपके लंच का टाइम हो गया हैं..!

जी मेरा नहीं आपके खाने का टाइम हो गया हैं

वो मेरी बात सुन कर थोड़ा सा असहज सा हुआ जैसे मैंने उसकी किसी अहम आदत की बात कर दी हो..... इस बात पर वो मुझे गौर से देखने लगें थे....मैं उस अविनाश को पहचान गया था जो कभी एकदम टाइम का पंचुअल इंसान आज मेरे सामने लाचार और बेबस सा अपनी ज़िन्दगी की दास्तां को मेरे आग्रह पर मुझे सुना रहा था..ये वहीं इंसान हैं जिसे उस समय फ़िल्म इंडस्ट्री के लोग अविनाश दत्त नहीं अविनाश घड़ी के नाम से पुकारा करते थे..तब अविनाश के चर्चे मैं भी अखबारों और फ़िल्मी मैगज़ीनो में खूब छपा करते थे.. मैं सोचते सोचते उठ कर खड़ा हुआ था..तभी अविनाश हंसते हुए बोला..

वो भी मेरे ही दिन थे ये भी मेरे ही दिन हैं अब तो मेरी घड़ी के सारे कल्पुर्जे ही खराब हो चुके हैं सर अब तो जैसा भी जब भी मिल जाए या न मिले सब चल अब तो सब चल जाता हैं अब न वो वक्त रहा और न ही अब वो अविनाश रहा.

वो अविनाश तो अभी भी हैं पर इस वक़्त कमजोर हैं.. अगर फिर से चाहो तो वो वक़्त एक बार फिर से लौट सकता हैं..

आपको क्या लगता हैं क्या मैंने कोशिश नहीं की..मैंने कई बार कोशिश की लेकिन

बस एक बार फिर से आप कोशिश करें मैं आपके साथ हूं

वो मेरी बात सुन कर चुप रहा.... उसने अपना सिर नीचे को झुका लिया था वो अपना सिर झुकाए हुए कारपेंड पर बनी आकृति को घूरे जा रहा था..और मैं उसके जबाब को सुनने लिए उसे देखें जा रहा था..

ठीक बारह बज कर दस मिनट हो चुके हैं सर

मैंने फ़ौरन अपनी गर्दन को उठा कर दीवाल घड़ी की ओर घुमा कर देखा.. जिसमें करेक्ट बारह बज कर दस मिनट ही हो रहें थे..जो उसने बिना देखें सही वक़्त को बतलाते हुए कहा था.. इतना सुनते ही मेरे चेहरे पर ख़ुशी की लहार हौले से लहरा गई थी क्योंकि ये उसका मेरे सवाल का जवाब था.. और मैं मुस्कुराते हुए किचन की तरफ आ गया था..
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अभी शादी के तीन माहीने ही गुजरे थे मैं तीन माह से ही यही था उस दिन जरूरी काम के बाद मैं रात को जब घर लौटा

क्या बात हैं अवि तुम्हारा फोन नहीं लग रहा.... मां ने मेरे घर में आते ही पूछा था

हां मां फोन का एडॉप्टर खराब हो गया इसलिए चार्ज ही नहीं हो सका

तो दूसरा खरीद लेते.. तुम्हे पता आज सुबह से ही नमिता की तबियत ठीक नहीं हैं और न ही तुमने यहां फोन करके हालचाल पूछने का सोचा..?

हां पापाजी काम में इतना फसा था कि समय ही नहीं मिला

हमने डॉ को भी बुलवाया लेकिन बहू ने उसे दिखाने से मना कर दिया हम दोनों ने बहू को काफी समझाया लेकिन उसने एक नहीं सुनी जाओ जा कर पता करों क्या परेशानी हैं उसे..?

जी मैं जा कर देखता हूं..

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मैं जब बैडरूम में पहुंचा तो नमिता बेड पर लेटी हुई थी मैंने उसके पास जा कर उसके माथे पर हौले से हाथ रखा ही था कि उसने अपनी आंखे खोलते हुए मुझे देखा और बोली..

आ गए आप..?

हां... मां बाबा बता रहें हैं कि तुम्हारी तबियत ठीक नहीं.. क्या हुआ..?

वो उठते हुए बोली दरवाजा तो लगा दो बताती हूं

मैंने जाकर दरवाजा बंद किया और नमिता के करीब आकर बैठते हुए पूछ

बोलो नमी क्या हुआ तुम्हे.?

कुछ नहीं बस यूं ही चक्कर और सिर भारी भारी हो रहा हैं

उसकी आंखे भी मुझे चढ़ी चढ़ी सी लग रही थी

जब पापाजी ने डॉ को बुलाया था तो चेकअप करा लेना था डॉ से क्यों नहीं कराया तुमने..?

अब औरतों बाली परेशानी वो सर्दी जुखाम बुखार का डॉ क्या समझेगा

अगर ऐसा था तो मां को कह देती वो ड्राइवर के साथ किसी महिला डॉ के पास तुम्हे लें जाती..?

वो मुझे आपके ही साथ जाना था... खैर छोड़ो आज सुबह बड़े भाई सहाब का फोन आया था.

अच्छा क्या कहा उन्होंने..?

वो रोहित का एडमिशन बेंगलौर में होना हैं कह रहें थे के अगर 2 लाख की व्यवस्था कुछ महीनों के लिए हो जाती तो..

नमिता तुम तो जानती हो अभी कितना खर्चा हो गया हैं जब से शादी हुई हैं हमारी मैं काम पर वापस भी नहीं लौटा हूं.

इसीलिए तो मैं आप से कह रही हूं विनीता भाभी और भईया भी कह रहें थे कि अविनाश को कहो लखनऊ में ही शिफ्ट हो जाए

वहां हम करेंगे क्या..?

वहां भईया भाभी का हॉस्पिटल हैं हम और आप भी उन्ही के साथ बिजनेस करेंगे.

और जो मेरा मुंबई में इतना कारोबार फैला रखा हैं उसका क्या..?

मुझे ये फ़िल्म लाइन और मुंबई बिलकुल भी पसंद नहीं हैं.

ये होना पॉसिबल नहीं हैं.. अगर यही बात मैं उन लोगों के लिए कहूं तो क्या वो मेरी बात मानेंगे..?

लखनऊ में पूरा हमारा परिवार हैं..

और यहां... यहां परिवार नहीं हैं..? मां बाबा को कौन देखेगा..?

अब मां बाबा की उम्र हो चुकी हैं

नमिता तुम्हारा क्या मतलब हैं...तुम कहना क्या चाहती हो..?

मैंने जो कहना था कह दिया

तो तुम भी कान खोल कर सुन लो जैसा तुम चाहती हो वैसा ज़िन्दगी में कभी नहीं होगा समझी..

और अविनाश बैडरूम से बहार निकल आता हैं..


क्रमशः -6