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रितेश अपने दोस्तों से विदा लेकर अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने के लिए चल दिया। अपने दोस्तों को उसने कहा था कि उसे अपनी मौसी से मिलने जाना है। उनका घर पास ही है। वह पैदल चला जाएगा। उसके दोस्तों ने उसकी बात पर यकीन कर लिया। वह मॉल से कुछ आगे जाकर अंदर जाती सड़क पर मुड़ गया। उसके बाद एक गली थी। उसे पार करके वह दूसरी सड़क पर चला जाता जहाँ वो रेस्टोरेंट था।
जब रितेश अपने दोस्तों से विदा ले रहा था तब नागेश रेस्टोरेंट से निकल कर उस गली की तरफ बढ़ गया था। गली में पहुँच कर वह एक कार में रितेश के आने की प्रतीक्षा कर रहा था। कार की ड्राइविंग सीट पर बैठा हुआ उसका साथी एकदम तैयार था।
गाड़ी में बैठा नागेश रितेश के आने की राह देख रहा था। पर रितेश अभी तक गली में दाखिल नहीं हुआ था। एक एक क्षण नागेश के लिए भारी पड़ रहा था। उसने अंदाज़ा लगाया कि रितेश भले ही कितना धीरे चलता। अब तक उसे यहाँ पहुँच जाना चाहिए था। वह सोच रहा था कि कहीं उसने अपना प्लान तो नहीं बदल दिया। या फिर उसे रास्ते में कोई और मिल गया हो। वह जानता था कि कारण चाहे जो भी हो पर हर बीतता हुआ पल उसके प्लान के लिए खतरा पैदा कर रहा है। वह सोच रहा था कि क्या करे तभी एक बाइक गली में आकर रुकी। बाइक से उतर कर एक आदमी इधर उधर देखने लगा। ऐसा लग रहा था कि जैसे वह किसी का घर तलाश कर रहा हो। इधर उधर देखने के बाद वह नागेश की गाड़ी की तरफ बड़ा। नागेश ने अपने साथी को सावधान रहने के लिए कहा। उसने अपनी गन पर पकड़ बना ली। उस आदमी ने ड्राइवर से पूछा,
"तुम बता सकते हो कि एडवोकेट गुप्ता का घर किधर है ?"
ड्राइवर ने नागेश की तरफ देखा। नागेश ने उसे इशारा करके टालने को कहा। ड्राइवर ने कह दिया कि उसे नहीं पता। वो आदमी सोचते हुए अपने आप से बोला,
"गली तो यही बताई थी। पर घर तो नज़र नहीं आ रहा है।"
यह कहते हुए वह बाइक की तरफ गया और फोन करने लगा। नागेश का शातिर दिमाग हरकत में आ गया। उसने खतरा भांपते हुए अपने साथी से तुरंत वहांँ से निकलने को कहा। ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ाई ही थी कि सामने से एक पुलिस जीप आती दिखाई पड़ी। गली में गाड़ी को घुमाना संभव नहीं था। ड्राइवर ने गाड़ी रिवर्स गियर में डाल दी। तभी बाइक वाले ने अपनी गन से टायर पर फायर कर दिया। गाड़ी संतुलन खोकर खंभे से टकरा गई।
पुलिस जीप में से सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे के साथ दो और लोग उतर कर गाड़ी की तरफ बढ़े। बाइक वाले ने ड्राइवर को अपने कब्ज़े में ले लिया था। नागेश ने फुर्ती के साथ दरवाज़ा खोला और बाहर कूद कर गली में भागने लगा। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे उसके पीछे लग गया। नागेश तेज़ी के साथ भागते हुए सड़क पर आ गया। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे चाहता था कि उसे पकड़ ले। उसके ज़रिए बहुत सी बातें पता चल सकती थीं। नागेश किसी भी कीमत पर उसके हाथ नहीं लगना चाहता था। वह बेतहाशा भाग रहा था। सड़क पर ट्रैफिक पूरी रप्तार से था। भागते हुए वह एक कार से टकराया। वो ज़मीन पर गिर गया। उसके सर से खून निकल रहा था।
सड़क पर अफरा तफरी मच गई। ट्रैफिक जाम हो गया। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे नागेश के पास पहुंँचा। उसकी नब्ज़ टटोल कर देखी। सांस चल रही थी। उसके साथी भी वहाँ पहुँच गए थे। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने तुरंत एंबुलेंस को बुलाने का आदेश दिया।
नागेश को अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टर ने कहा कि सर पर गहरी चोट लगी है। इसलिए कहा नहीं जा सकता है कि नागेश बचेगा या नहीं। फिर भी वो अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे। नागेश को जल्दी ही ऑपरेशन के लिए ले जाया गया। अस्पताल के कॉरीडोर में परेशान सा टहलता हुआ सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे मना रहा था कि नागेश बच जाए। वह नहीं चाहता था कि इतना कुछ करने के बाद भी नाकामी उसके हाथ लगे। उसकी किस्मत ने उसका पूरा साथ दिया था। वह विशेष काम से पालमगढ़ पुलिस स्टेशन आया हुआ था। वह इंस्पेक्टर कैलाश जोशी और सब इंस्पेक्टर नंदकिशोर के साथ बात कर रहा था जब उसकी टीम के एक सदस्य कांस्टेबल मनोज ने उसे फोन करके बताया कि एक आदमी रितेश नाम के लड़के को अगवा करने की फिराक में है। इस समय वह मॉल के रेस्टोरेंट में है। उसने उस आदमी की तस्वीर भेजी। वो नागेश था। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने अपनी टीम को तैयार रहने को कहा।
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कांस्टेबल मनोज से कहा कि वह नागेश पर नज़र रखे। वह अपनी टीम के साथ आ रहा है। वह रास्ते में था जब कांस्टेबल मनोज ने बताया कि नागेश उस गली की तरफ चला गया है जहाँ वह रितेश को अगवा करना चाहता है। उसने सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को उस गली के बारे में बता दिया। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कांस्टेबल मनोज को आदेश दिया कि वह रितेश को संभाले। वह अपनी टीम के साथ उस गली में जा रहा है। उसकी टीम का एक आदमी पहले बाइक से उस गली में गया। बातों बातों में उसने पता कर लिया कि नागेश के साथ केवल एक साथी है जो गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर है। उसका संदेश मिलते ही सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे अपने साथियों के साथ गली में चला गया।
पालमगढ़ पुलिस ने रितेश को सुरक्षित उसके माता पिता को सौंप दिया था। जब रितेश गली की तरफ बढ़ रहा था तो चलते हुए उसने अपनी घड़ी पर नज़र डाली। दोस्तों से विदा लेते हुए कुछ देर हो गई थी। उसने अपनी चाल तेज़ कर दी। वह जिस गली में जा रहा था वो सुनसान थी। वह तेज़ कदमों से आगे बढ़ रहा था कि तभी किसी ने उसका नाम लेकर पुकारा। उसने रुककर देखा। एक आदमी बाइक पर बैठा उसे पुकार रहा था। रितेश को आश्चर्य हुआ। वह आदमी जाना पहचाना नहीं था। पर उसका नाम ले रहा था। वह अपनी जगह पर खड़ा हो गया। वह आदमी उसके पास आया। उसने रितेश को सारी बात बताई। रितेश को उसकी बात पर यकीन नहीं हुआ। उस आदमी ने अपना आईडी कार्ड दिखाया। वह कांस्टेबल मनोज था। वह उसी टीम का हिस्सा था जो सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे की मदद के लिए बनाई गई थी। आईडी कार्ड देखकर रितेश को यकीन हो गया। वह चुपचाप उसके साथ चला गया।
करीब एक घंटे बाद डॉक्टर ने आकर अफसोस जताया कि ऑपरेशन के दौरान ही नागेश ने दम तोड़ दिया। यह खबर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे के लिए एक बड़ा धक्का थी। एकबार फिर जब केस सॉल्व होने की उम्मीद जगी थी तब अचानक इस तरह से अंधेरा छा गया था।
एसीपी मंदार पात्रा जो अब केस के सीनियर ऑफिसर थे इस पूरे घटनाक्रम से झुंझलाए हुए थे। उन्होंने सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को पूछताछ के लिए बुलाया था। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे सर झुकाए उनके सामने खड़ा था। उन्होंने कहा,
"आकाश तुम जानते थे कि नागेश का हमारी गिरफ्त में होना कितना ज़रूरी था। फिर तुमने सावधानी से काम क्यों नहीं लिया ?"
"सर मुझे मेरे आदमी कांस्टेबल मनोज ने तब सूचना दी थी जब नागेश रेस्टोरेंट में बैठा था। मैं तुरंत अपनी टीम को लेकर निकल गया। पर तब तक नागेश रेस्टोरेंट से निकल गया।"
"तुम्हें चाहिए था कि अपने आदमी से कहते कि वह उसे वहीं दबोच ले।"
"सर कांस्टेबल मनोज अकेला था। यदि वह नागेश को पकड़ने की कोशिश करता तो नागेश अपने बचाव में दूसरों को नुकसान पहुंँचा सकता था। उस जगह पर बहुत भीड़ थी। मनोज ने मुझे बताया कि वह किस गली में जा रहा है। मुझे लगा कि वहाँ उसे पकड़ना आसान होगा। इसलिए मैं रेस्टोरेंट ना जाकर उस गली में चला गया।"
एसीपी मंदार पात्रा कुछ समय तक शांत रहे। इस घटना के बाद एकबार फिर पुलिस फोर्स की नाकामी पर बात हो रही थी। उन पर भी दबाव बढ़ गया था। एसपी गुरुनूर कौर का भी कुछ पता नहीं चल पाया था। उन्होंने कहा,
"जो भी है उसका जवाब देना पड़ेगा। इस सबके पीछे जो भी है वह बेखौफ है। इतना सबकुछ होने के बावजूद भी उसने बच्चे का अपहरण करवाने की कोशिश की। वह किसी खास उद्देश्य से यह कर रहा है। किसी भी कीमत पर अपना उद्देश्य पूरा करना चाहता है। हमारे लिए चुनौती है कि हम अब उसे उसके इरादे में कामयाब ना होने दें।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"सर हम अब कोई भी गलती नहीं करेंगे। वह पुलिस को चुनौती दे रहा है। हमारी काबिल ऑफिसर एसपी गुरुनूर कौर को अगवा कर हमें ललकारा है। अब कुछ भी हो जाए उसे सज़ा भुगतनी होगी।"
"आकाश तुम्हारी बात में बहुत जोश है। लेकिन वह जो भी है बड़ा शातिर है। उसे हराने के लिए जोश के साथ पूरे होश की ज़रूरत है।"
"सर मैं अपने होश कायम रखते हुए ही जोश दिखाऊंँगा।"
एसीपी मंदार पात्रा ने उठकर उसके कंधे को थपथपा कर उसका हौसला बढ़ाया। एक निश्चय के साथ सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे वहाँ से चला गया।
जांबूर को जब सारी बात का पता चला तो वह गुस्से से आग बबूला हो गया। वह चिल्लाकर बोला,
"काबूर चाहें कुछ भी हो जाए। अब मेरा अनुष्ठान पूरा होकर रहेगा।"
काबूर के मन में भय था। इस भय का कारण जांबूर का गुस्सा उतना नहीं था जितना बार बार मिलने वाली नाकामयाबी थी।