Kajri - Part 4 in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | कजरी- भाग ४

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कजरी- भाग ४

अभी तक आपने पढ़ा मासूम कजरी ने अपने होंठ सिल लिए थे। वह अपनी माँ को सब कुछ बताना चाहती थी लेकिन बता ना पाई ताकि माँ को इतना बड़ा सदमा ना लगे। कुछ दिनों बाद उसकी माँ कजरी को निशा के हवाले करके स्वर्ग सिधार गई।

कजरी की माँ के जाने के इस दुःख के समय में निशा उसके साथ थी, एक माँ की तरह, बड़ी बहन की तरह या मालकिन की तरह, चाहे जो समझ लो। निशा ने कजरी को बहुत संभाला।

अब घर में सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन इसी बीच उनके घर में कुछ अनहोनी घटना होने लगी। एक दिन नवीन जब ऑफिस से बाहर निकला तो उसकी बाइक की सीट पर एक पर्ची चिपकी हुई थी जिस पर एक चाकू के निशान के साथ लिखा हुआ था 'आई विल किल यू'।

नवीन इस तरह की पर्ची देखकर हैरान रह गया परंतु उसने सोचा किसी ने मज़ाक किया होगा। इसलिए उसने अधिक ध्यान ना देते हुए बात को ख़त्म करना ही ठीक समझा। फिर भी उसे यह तो लग ही रहा था कि ऐसा मज़ाक कौन करेगा और क्यों करेगा? उसने उस पर्ची को निकाल कर फाड़ कर फेंक भी दिया। रात तक तो नवीन उस बात को भूल भी गया लेकिन दूसरे दिन सुबह जब ऑफिस जाने के लिए अपनी बाइक लेने आया तो उसने देखा बिल्कुल वैसी ही पर्ची आज भी उसकी बाइक की सीट पर चिपकी हुई थी।

अब नवीन तनाव में आ गया, आख़िर यह कौन कर रहा है? उसने अपने दिमाग पर जोर डाला तो उसे निकिता की याद आई जो कॉलेज में उसके साथ थी। उनके प्यार के किस्से पूरे कॉलेज में मशहूर थे पर शादी नहीं हो पाई थी। इसका कारण नवीन ही था, उसी ने शादी से इंकार कर दिया था। उसने सोचा क्या निकिता ही यह सब कर रही है, बदला ले रही है? नहीं-नहीं वह सीधी-सादी लड़की थी, उसमें इतनी हिम्मत? उसने फिर सोचा निशा से बात करता हूँ पर वह चिंता करने लगेगी, उसे इससे दूर ही रखना चाहिए। पचास तरह के सवाल भी करेगी। अब नवीन सतर्क हो गया। वह नज़र को चौकन्ना रखने लगा। लेकिन वह जो भी कोई था नवीन से ज़्यादा चालाक था। एक कदम आगे की सोचता था।

आज रविवार का दिन था नवीन और निशा फ़िल्म देखने जाने वाले थे। वह तैयार होकर बाहर निकले और जैसे ही अपनी कार के पास आए निशा के मुँह से एक जोर की चीख निकल गई, “नवीन यह क्या है? कैसी अजीब पर्ची है, किसने किया यह और देखो उस पर क्या लिखा है? 'आई विल किल यू'।"

निशा के हाथ काँप रहे थे, वह बहुत घबरा गई।

नवीन ने उसे समझाते हुए कहा, "अरे निशा! डरो नहीं, किसी ने यूँ ही मज़ाक किया होगा।"

"नहीं नवीन, ऐसा मज़ाक कोई नहीं करता? सच बताओ, क्या आज यह पहली बार हुआ है?"

नवीन को आज मजबूरन निशा को सच बताना ही पड़ा। निशा ने कहा, "नवीन अब फ़िल्म देखने का मूड ही नहीं रहा। चलो घर वापस चलते हैं।"

"नहीं निशा डरने की कोई बात ही नहीं। ऐसी गीदड़ धमकी देने वाले कभी सामने नहीं आते। छुप-छुप कर वे बस इतना ही कर सकते हैं। चलो बैठो फ़िल्म देखेंगे तो अच्छा लगेगा, वरना तुम्हारे दिमाग में वही सब चलता रहेगा।"

"क्यों तुम्हारे दिमाग में नहीं चलेगा नवीन?"

नवीन खामोश था वह लोग फ़िल्म देखने चले गए। रात को घर लौटते समय भी निशा बेचैन थी। उसने कहा, "नवीन मुझे बहुत डर लग रहा है। पुलिस की मदद…?"

"ये क्या बोल रही हो निशा? पुलिस हमसे ही दस तरह के उल्टे-सुल्टे सवाल करने लगेगी। देखते हैं वह आगे क्या करता है?"

"नवीन तुम्हें किसी पर शक़ है क्या? तुम्हारी किसी से दुश्मनी है क्या?"

"नहीं निशा ऐसा तो मुझे कुछ भी याद नहीं है।"

"लेकिन नवीन बिना कारण कोई ऐसा क्यों करेगा?"

"कुछ समझ में नहीं आ रहा है निशा।"

"निशा तुम चिंता मत करो," कहते हुए नवीन ने निशा के कंधे पर हाथ रखा और वह दोनों घर चले गए।

दूसरे दिन नवीन टूर पर जाने वाला था। उसने निशा से कहा, "निशा सुबह जल्दी उठना पड़ेगा। मेरी फ्लाइट अर्ली मॉर्निंग की है। चलो सो जाते हैं।"

"नवीन चिंता मत करो। तुम्हारी पूरी पैकिंग मैं कर चुकी हूँ, फ़िल्म देखने जाने से पहले ही।"

एक दूसरे की बाँहों में सिमट कर वे दोनों नींद की आगोश में चले गए।

रत्ना पांडे वडोदरा गुजरात

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः