राधा ने अकेलेपन की तन्हाई को दूर करने के लिए घर मे टेप,टी वी,रेडियो,वी सी आर घर मे सब कुछ था।सुरेश कैसेट लाकर देता रहता था।राधा इनसे अपना अकेलापन दूर किया करती।उस दिन सुरेश जाने से पहले उसे ब्लू फिल्म की केस्ट दे गया था।राधा ने केस्ट वी सी आर में लगा दी।वह उसे चलाने वाली ही थी कि उसे माया का ख्याल आया और वह उसे जबरदस्ती अपने घर ले गयी।
और माया के बैठते ही उसने फ़िल्म ऑन कर दी।यह एक विदेशी फ़िल्म थी।एक काला अफ्रीकी आदमी और गोरी औरत।और आदमी ने उस औरत को बुरी तरह पस्त कर दिया था।फ़िल्म इतनी उतेजक,सेक्सी और गर्म थी कि उसे देखकर माया का रोम रोम फड़क उठा।दिल के किसी कोने में दबी वासना की आग सुलग उठी।फ़िल्म देखने के बाद माया अपने घर लौटी तो बिन पानी की तरह मछली सी बिस्तर में तड़पने लगी।उसका बदन भी चाहने लगा कि कोई उसे भी गोरी औरत की तरह बिस्तर में मसले।लेकिन वह तो विधवा थी।उसके शरीर की प्यास कौन बुझायेगा?और उसके मन मे तरह तरह के विचार आ और जा रहे थे।अनेक प्रश्न थे,लेकिन उनके उत्तर नही थे।उसके पास।वह सोच विचार में डूबी थी तभी गीता के घर से देवेन लौट आया था।
माया के बदन में वासना की आग सुलग रही थी।उस दिन वैसे ही सर्द रात थी।ऊपर से अचानक हुई बरसात ने ठंड को और ज्यादा बड़ा दिया था।ठंड,बरसात और तन में सुलग रही वासना की आग ने माया को बेचैन कर दिया।
देवेन बगल वाले कमरे में सो रहा था।पूरे घर मे अकेली औरत और मर्द।लेकिन वह मर्द कोई और नही उसकी बेटी का पति है।
यह विचार मन मे आया था लेकिन मन मे आये विचार को दिल ठुकराते हुए बोला।वह तेरी अपनी बेटी नही है।सौतेली है।उसमें तेरा नही तेरे पति का खून है।
है तो बेटी।और बेटी के मर्द से।
फालतू का सोच विचार मत कर।इस समय तेरे लिए वह एक मर्द है।सिर्फ मर्द।
और आखिर में माया धर्म अधर्म,पाप पुण्य,नैतिकता अनैतिकता का विचार किये बिना देवेन के पास उसके बिस्तर में जा पहुंची।और उस रात की घटना को याद करते हुए माया बोली,"उस रात तुमने मुझे समझाया था।जो K कुछ उस रात मैने किया मुझे नही करना चाहिए था। जो कुछ उस रात हमारे बीच हुआ।वो पाप था।"
"पाप और पुण्य की बात तो उसी रात खत्म हो गयी थी।पति पत्नी को एक दूसरे के प्रति वफादार रहना चाहिए।मैं भी रहना चाहता था।मैं किसी दूसरी औरत से सम्पर्क स्थापित नही करना चाहता था।मैं नही चाहता था निशा के अलावा किसी दूसरी औरत के शरीर का स्वाद चखु लेकिन आपने मुझे मजबूर कर दिया और मुझे आपके शरीर का स्वाद चखना पड़ा।अब मैं उस स्वाद को चखने के लिए आया हूँ।"
"नही देवेन।उस रात जो कुछ हुआ उसे भूल जाओ।वो मेरी भूल थी।भूल को सुधार लेने में ही बुद्धिमानी है।"माया ने देवेन को समझाया था।
"यह भूल ऐसी है जो अब सुधर नही सकती।"
"यह पाप है।"माया ने फिर उसे समझाया था
"इस पाप को हम कर चुके है।पाप चाहे एज बार किया जाए या बार बार किया जाए।पाप,पाप ही रहता है।"माया की बात सुनकर देवेन बोला था।