Tum badi ho in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | तुम बड़ी हो  

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तुम बड़ी हो  

पार्वती के दो बच्चे हैं, बेटी गीता और बेटा रवि, दोनों ही छोटे और नासमझ। बच्चे छोटे होने की वजह से वह उन्हें भी अपने साथ काम पर ले जाती थी। काम शुरू करने से पहले वह अपनी बेटी गीता को कहती, "जा बेटा अपने छोटे भाई को संभाल, उसे रोने मत देना।" 
    
माँ की बात सुनकर गीता अपने भाई को अच्छे से संभालती थी। जब भी गीता के हाथ में कोई छोटी-मोटी वस्तु रवि को दिखाई दे जाती तो वह हमेशा उस चीज को छीनने की कोशिश करने लगता। यह देखकर पार्वती गीता से कहती, "बेटा दे दे तू बड़ी है ना।" 

सुनते ही गीता वह चीज थोड़ा उदास होते हुए रवि को दे देती थी।  

मालती अभी-अभी कुछ हफ्तों पहले ही कपूर परिवार में ब्याह कर आई थी। वह रोज यह सब देखती रहती लेकिन कुछ कह नहीं पाती। घर में उसकी सास और जेठानी तो पहले से ही हैं। यह सब देख कर वह कभी परेशान नहीं होते और पार्वती को कभी कुछ कहते भी नहीं थे। किंतु मालती यह देखकर हर रोज परेशान हो जाती थी।
  
एक दिन मौका देखकर उसने पार्वती से कहा, "पार्वती तुम इतनी छोटी बच्ची को बार-बार बड़ी क्यों बोलती हो ? वह तो ख़ुद ही छोटी बच्ची है, वह कैसे संभालेगी अपने भाई को ? तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।" 

मालती की सच्ची बात सुनकर पार्वती ने कहा, "क्या करूं मालती मैडम, चार पांच घरों में कचरा, बर्तन और पोछा करती हूं तब जाकर दो टाइम की रोटी का जुगाड़ होता है। पति दारु पीता है, थोड़ा बहुत जो भी कमाता है, ख़ुद ही ख़त्म कर देता है। मैं किसी तरह से घर चलाती हूं, घर में और कोई नहीं, क्या करूं मैडम मजबूरी है, हम लोगों के बच्चे जल्दी बड़े हो जाते हैं। वक़्त और हालात उन्हें सब सिखा देता है। आज गीता की वजह से ही मैं काम कर पाती हूं, वरना इतना छोटा बच्चा है, उसे संभालते हुए काम करना मुश्किल है। अब यदि मैं काम नहीं करूंगी तो यह दोनों तो भूखे ही मर जाएंगे।"  

पार्वती की बातों की सच्चाई सुनकर मालती निराश हो गई, वह उसे आगे कुछ भी नहीं कह पाई। मालती अब रोज ही दोनों बच्चों को कुछ ना कुछ खाने के लिए अवश्य ही देने लगी।  

आज मालती की जेठानी सरोज ने उससे कहा, "मालती कल अपने घर पर किटी पार्टी है। माँ और मैं दोनों ही उसमें शामिल हैं, अगली बार जब शुरू होगी तब तुम्हें भी शामिल कर लेंगे। इस बार तुम तुम्हारे हाथ का कोई भी एक व्यंजन जरूर बनाना। हमारी सब दोस्त कह रही थीं कि अगली बार तो नई बहू के हाथ का कुछ व्यंजन खाने को मिलेगा" 


मालती ने कहा, "क्यों नहीं जीजी आप जो भी कहेंगी, मैं जरूर ही बनाऊंगी। मैंने कभी किटी पार्टी में भाग नहीं लिया इसलिए उसमें शामिल होने में मेरी दिलचस्पी बिल्कुल भी नहीं है।"   

"अरे मालती बहुत आनंद आता है, तुम देखना तो सही, कितनी मस्ती, कितने गेम होते हैं, हम लोग जीतने वाले को गिफ़्ट भी देते हैं।" 

मालती ने मुस्कुरा कर कहा, "ठीक है जीजी।"   

रात से ही किटी पार्टी की तैयारियां शुरू हो गईं, क्या बनाना है, कौन से गेम्स रखना है, क्या पहनना है, सरोज और श्यामा बहुत ही ख़ुश थे।  

दूसरे दिन मालती की सास श्यामा और सरोज फटाफट सुबह का काम निपटा कर पार्टी के लिए तैयार होने ब्यूटी पार्लर चले गए। सरोज अपने दोनों बच्चों को मालती के पास ही छोड़ गई थी। 

दोपहर तीन बजे से पार्टी के लिए सरोज की दोस्तों का आना शुरू हो गया। मालती ने सबके लिए दही बड़े बनाये थे। सभी के आने के बाद गेम शुरू हुए, बहुत हो हल्ला, बहुत मस्ती चल रही थी। मालती रसोई घर में व्यस्त थी।  

सरोज के दोनों बच्चे लगभग पार्वती के बच्चों की उम्र के थे। दोनों बच्चे अनाया और आदित्य साथ में खेल रहे थे। तभी किसी खिलौने को लेकर दोनों बच्चे झगड़ा करने लगे। तब सरोज ने आकर कहा, "अनाया तुम बड़ी हो ना, दे दो भाई को, वह कितना छोटा है तुमसे। जाओ उसे चुप कराओ और खेलो उसके साथ।" किसी को भी कोई फ़र्क नहीं पड़ा, शायद उनके लिए यह एक आम बात थी। किंतु मालती इस घटना से विचलित हो गई। अनाया भी रो रही थी किंतु सरोज को मानो उसका रोना दिखा ही नहीं। 

मालती ने यह सुना तो तुरंत ही अनाया को गोदी में उठाकर उसे चुप कराया और आदित्य को भी चुप करा कर अंदर ले गई। 

आज मालती हैरान थी कि पार्वती तो मज़बूर है किन्तु यहां तो ख़ुद के स्वार्थ के लिए ऐसा हो रहा है। ऐसी किटी पार्टी किस काम की जहां अपने मनोरंजन के लिए चार साल की बच्ची को बड़ा कहकर, छोटे बच्चे को संभालने का काम सौंप दिया जाता है। 

आज मालती को अपना बचपन याद आ गया। पांच भाई बहन एक के बाद एक और सबसे बड़ी वह स्वयं, जिसने बचपन को कभी जाना पहचाना ही नहीं, उसे लगता था, मानो वह बड़ी ही पैदा हुई थी। मालती सोच रही थी, ऐसी न जाने कितनी गीता और अनाया अपना बचपन “तुम बड़ी हो” सुनकर गुजार रही हैं।



रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात) 

स्वरचित और मौलिक