Vaishya ka bhai - 18 in Hindi Classic Stories by Saroj Verma books and stories PDF | वेश्या का भाई - भाग(१८)

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वेश्या का भाई - भाग(१८)

घायल लठैत की बात सुनकर गुलनार बोली...
जाने दीजिए उन्हें,जी लेने दीजिए अपनी जिन्द़गी,केशरबाई बड़े नसीबों वालीं निकलीं तभी तो उन्हें उनका भाई अपनी जान पर खेलकर उन्हें यहाँ से ले गया,हम जैसे बदनसीबों के तो भाई ही नहीं होते......
तो क्या आप ने केशर को बख्श दिया? घायल लठैत बोला।।
कभी कभी कुछ भलाई के काम भी कर लेने चाहिए,गुलनार बोली।।
और इतना सुनकर घायल लठैत भीतर चला गया और उसके जाते ही सल्तनत ने गुलनार से पूछा...
तो क्या आपने उन सबको वाकई ब्ख्श दिया,
कुछ इन्सानियत हमें भी दिखाने का मौका दीजिए,हमें भी तो ऊपर जाकर खुदा को मुँह दिखाना है,गुलनार बोली।।
बहुत मेहरबानी आपकी ! जो आपने उन सबको बख्श दिया,सल्तनत बोली।।
तो फिर अब आपने क्या सोचा है? अब क्या करेगीं? कहाँ जाएगीं? गुलनार ने सल्तनत से पूछा।।
जहाँ ऊपरवाला ले जाएं तो चले जाऐगें,सल्तनत बोली।।
मुझे मालूम है कि हम गुस्ताख़ी कर रहे हैं लेकिन अगर आपको कोई एतराज़ ना हो तो आप यहाँ हमारे पास ही ठहर जाएं,गुलनार बोली।
क्या आप हमें अपने कोठे पर पनाह देगीं? सल्तनत ने पूछा।।
बेश़क! क्यों नहीं? आखिर एक औरत ही दूसरी औरत के काम ना आ सकें तो फिर क्या फायदा? लेकिन याद रखिएगा ये बदनाम गलियाँ हैं,यहाँ रहने बस से ही शरीफ़ इन्सान भी दाग़दार हो जाते हैं,गुलनार बोली।।
हमें मंजूर है,भला एक बहन को दूसरी बहन के घर रहने में क्या बुराई है?सल्तनत बोली।।
जहेनसीब़! जो आप यहाँ ठहरें,गुलनार बोली।।
हमें तो बहुत खुशी होगी आपके साथ रहने में,सल्तनत बोली।।
अब हम जल्द ही ये काम छोड़ देगें,यहाँ की लड़कियों को सिलाई और कसीदाकारी सिखाकर ही जिन्द़गी जीना सिखाऐगें,बहुत हो चुका अब हम भी इस बदनुमा जिन्द़गी से तंग आ चुकें हैं,गुलनार बोली।।
ये तो बहुत अच्छा सोचा आपने,सल्तनत बोली।।
और दोनों यूँ ही बातें कर रही थीं तभी नवाबसाहब भी केशर और मंगल के बारें में जानने के लिए मेहमानखाने में दाखि़ल हुए और सल्तनत को वहाँ देखते ही तेज़ आवाज़ में बोले....
आप और यहाँ,बस यही रह गया था,ज़रा भी शरम नहीं आई आपको यहाँ आते हुए,ख़ानदान का नाम खाक़ में मिलाते हुए,
अरे...वाह...वाह...आप यहाँ हर रात आएं तो आपकी शान में इजाफा होता है लेकिन हम यहाँ आएं तो खानद़ान का नाम खाक़ में मिल जाता है,ये अलग अलग कायदे कैसे हैं हमें कुछ समझ नहीं आया?मर्द के लिए अलग और औरत के लिए अलग,सल्तनत बोली।।
इतनी हिम्मत आपकी ! आप हमें जवाब दे रहीं हैं और इतना कहते ही नवाबसाहब ने सल्तनत के गाल पर एक तमाचा रसीद दिया।।
गुलनार ये सबकुछ बरदाश्त ना कर सकी और उसने नवाबसाहब के गाल पर भी एक तमाचा रसीद दिया और बोली.....
आपकी इतनी जुर्रत ! हमारे ही कोठे पर हमारे ही मेहमान की बेइज्जती कर रहे हैं आप!
तमाचा खाते ही नवाबसाहब का दिमाग भन्ना गया और वे गुलनार से बोले....
दो कौड़ी की तवायफ़ और हम पर हाथ उठाती है अब देखना तेरा और तेरे इस कोठे का क्या अन्जाम होता है?हमने भी तुझसे दर दर की भीख ना मँगवा ली तो हमारा नाम बदल देना ,केशर और मंगल की भी अब खैर नहीं....
हाँ....हाँ....जाइए...जाइए...नवाबसाहब ! धमकी किसे देते हैं? और नया नाम भी सोच लीजिएगा गुलनार इन गीदड़भभकियों से डरने वाली नहीं,कहीं आपको खुद लेने के देने ना पड़ जाएं,गुलनार बोली।।
हाँ....हाँ....तेरी ये शान और अकड़ सब ना निकलवा दिया तो मेरे रगों में भी खानदानी ख़ून नहीं और बहु-बेग़म आपको भी इन सबकी सज़ा जरूर भुगतनी पड़ेगी,नवाबसाहब बोले।।
सालों से सज़ा ही तो भुगत रहें अभी तो रिहा हुए हैं,सल्तनत बोली।।
दोनों की सब अकड़ धरी की धरी रह जाएगी देखना ......
इतना कहकर नवाबसाहब चले गए और फिर दोनों खूब देर तक यूँ ही नवाबसाहब की बातों पर हँसती रहीं....

और वहाँ रात को चारों जब चलते-चलते थक चुके तो एक पेड़ के नीचें जाकर सो गए,जब पेड़ पर चिड़ियाँ चहचहाने लगी तो सबकी आँख खुलीं.....
सबको बहुत प्यास भी लगी थी और रामजस की हालत तो अभी भी खराब ही थी,उसके पैर का दर्द अभी भी कम ना हुआ था,तभी मंगल ने आस पास नज़र दौड़ाई तो उसे दूर एक झोपड़ी दिखाई दी,फिर मंगल बोला कि मैं वहाँ जाकर देखता हूँ शायद कोई मदद मिल जाएं और मंगल झोपड़ी में पहुँचा तो देखा एक बुढ़िया ने भाड़ लगा रखा है और लोगों का साबुत अनाज भूनने में लगी है,तभी मंगल ने उस बुढ़िया के पास जाकर कहा.....
माई...माई....थोड़ा पानी मिलेगा बहुत प्यास लगी है।।
बुढ़िया ने मंगल को देखा तो बोली....
हाँ...हाँ...आओ बेटा बैठो,अभी पानी लाती हूँ और इतना कहने के बाद वो बुढ़िया एक लोटे में पानी और कुछ गुड़ ले आई...
मंगल ने पानी पिया और बोला....
माई! खाऊँगा कुछ नहीं,विपदा का मारा हूँ मेरे साथ मेरी बहन और दो लोंग और हैं,रात को हम पर कुछ लठैतों ने हमला कर दिया था तो मेरे दोस्त को पैर में चोट आई हैं,अगर किसी वैद्य-हकीम का पता बता सकें तो बड़ी कृपा होगी मुझ पर,वें सब भी रात भर से मेरी ही तरह प्यासे हैं॥
तो तू उन्हें भी यहाँ ले आ,जब तक सबका जी करें तो यहीं ठहर जाओ,जब तुम्हारा दोस्त ठीक हो जाएं तो यहाँ से चले जाना,वैसे पास में एक सरकारी दवाखाना है लेकिन वहाँ गोरा डाक्टर बैठता है और मैने सुना है कि भारतीयों को देखते ही नाक भौं सिकोड़ने लगता है,वैसें भारतीय भी जी जान से जुटे हैं देश को आजादी दिलवाने में,रोज कहीं ना कहीं आन्दोलन हो रहे हैं देखते हैं कब तक आजादी मिलती है?,वैसे दवाखाना अच्छा है,इलाज भी अच्छा करता है गोरा डाक्टर तो तुम उस दवाखाने में चले जाना दोस्त को लेकर वहाँ उसका इलाज हो जाएगा,बुढ़िया बोली।।
बहुत बहुत दया माई! मैं अभी उन सबको यहाँ ले आता हूँ और इतना कहकर कुछ ही देर में मंगल उन सबको भी बुढ़िया की झोपड़ी में ले आया,बुढ़िया ने सबको पानी पिलाया और फिर मंगल ने सबका परिचय देते हुए कहा....
ये कुशमा है मेरी बहन ,ये मेरा दोस्त रामजस है और शकीला को देखते ही मंगल कुछ ना कह पाया तो रामजस बोला....
माई! ये मेरी बहन है।।
ये सुनते ही शकीला की आँखें भर आईं लेकिन वो बोली कुछ नहीं....
बुढ़िया के पास दो तीन सूती धोतियाँ पड़ी थी तो उसने शकीला और कुशमा को देते हुए कि जाओ तुम दोनों कुएँ पर जाकर स्नान करके ये धोतियाँ पहन लेना,कल इतवार है तब हाट लगेगी तो तुम दोनों को नए कपड़े दिलवा दूँगीं,तब तक मैं रसोई बना लेती हूँ तुम सबको भूख लगी होगी.....
माई! तुम्हें रसोई बनाने की जरूरत नहीं है,मैं स्नान करके सबके लिए रसोई बना दूँगीं,शकीला बोली।।
तब कुशमा धीरे से बोली....
माई हमारा छुआ खाएगी।।
तो फिर हम सच्चाई कह दें माई से,क्योकिं किसी का फायदा नहीं उठाना चाहिए,मेरा मन नहीं मानता,शकीला बोली।।
तू सही कहती है,कुशमा बोली।।
तब माई ने दोनों से पूछा....
वहाँ क्या खुसर पुसर हो रही है?
कुछ नहीं माई! हम तुम्हें अपनी सच्चाई बताने की बात कर रहे थे,कुशमा बोली।।
अच्छा! तो बता दो,माई बोली।।
तुम सच्चाई सुनकर हमें यहाँ से निकालोगी तो नहीं,शकीला बोली।।
इतने सालों बाद तो कोई मेरे यहाँ आया है,भला कैसे निकाल दूँगीं?मानवता भी कोई चींज होती है या नहीं विजयलक्ष्मी किसी को अपने घर से निकालने वाली नहीं,माई बोली।।
तो माई तुम्हारा नाम विजयलक्ष्मी है,ये तो बिल्कुल राजघरानों जैसा नाम है,कुशमा बोली।।
पहले तुम दोनों अपनी बात बताओ,मेरी कहानी बाद में सुनना,माई बोली।।
और फिर कुशमा ने सारी सच्चाई माई को बता दी,उन सबकी बात सुनकर माई बोलीं.....
बच्चियों! बहुत अच्छा हुआ जो तुम वहाँ से आ गई,अब से ये घर ही तुम्हारा ठिकाना है,तुम सब यहाँ खुशी खुशी रहो,
माई की बात सुनकर शकीला और कुशमा के मन की शंका दूर हो गई और फिर दोनों स्नान करने चलीं गई,स्नान करने के बाद दोनों ने रसोई बनाई और तब तक रामजस और मंगल भी नहाकर आ चुके थे,फिर माई के साथ दोनों खाना खाने बैठे,शकीला और कुशमा ने सबको खाना परोसा और फिर खाना खाने के बाद मंगल माई से बोला कि चलो सरकारी दवाखाने चलते हैं,रामजस की दवा करवा आते हैं,
मंगल ने शकीला और कुशमा को झोपड़ी में छोड़ना ठीक नहीं समझा इसलिए उन्हें भी साथ में ले गए,अस्पताल पहुँचे तो देखा कि सभी मरीज पेड़ो की छाँव में बैठकर गोरे डाक्टर के आने का इन्तज़ार कर रहे हैं,मरीज ज्यादा नहीं थे केवल दो चार मरीज ही नज़र आ रहे थे,तब माई बोली.....
सुना है कि यहाँ का डाक्टर बहुत ही खड़ूस है इसलिए मरीज कम आते हैं इसके पास।।
कुछ ही देर में हाँफ पैन्ट और हैट लगाएं,पैर में जूते पहने,गले में आला लटकाए हुए गोरा डाक्टर अपनी मोटर में दवाखाने में उपस्थित हुआ .....
तब मंगल ,रामजस को लेकर डाक्टर के पास पहुँचा और बोला....
डाक्टर साहब! इसे देख लीजिए,पैर में बहुत तकलीफ़ हैं....
अंग्रेज डाक्टर टूटी-फूटी हिन्दी में बोला.....
तुम थोड़ा इन्तजार करो,हम अभी आता है....
इसे देख लेते तो मेहरबानी होती,मंगल बोला।
तुमको दिखाई नहीं देता,हम अभी आया है हमें भी आराम करना माँगता... ब्लडी फूल इण्डियन्स....,गोरा डाक्टर बोला....
माई ने ये सुना तो भड़क उठी और अंग्रेज डाक्टर से बोली....
यू आर स्टुपिड वी आर नाँट,दिस इज अवर कन्ट्री एण्ड यू आर रिफ्यूजी हियर,डोन्ट शाउट"अन्डरस्टैण्ड!!
माई ने जहाँ गोरे डाक्टर को अँग्रेजी में लताड़ा तो वो सन्न रह गया और तुरन्त ही उसने रामजस का इलाज करना शुरु कर दिया,उसने एक इन्जेक्शन लगाया और कुछ गोलियां खाने को दी और खाने में कुछ हिदायतें दी फिर जब इलाज करवाकर सब आने लगें तो माई ने अंग्रेज डाक्टर से कहा...
नॉव यू आर जस्ट ऑ फ्यू डेज इन दिस कन्ट्री,सो ट्रीट अस काइन्डली!!
और इतना कहकर माई सबके साथ चली गई और गोरा डाक्टर उन्हें जाते हुए देखता रहा...

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....