भाग -2
हमसफ़र
ट्रेन पूरी गति से भाग रही थी।उसी गति से खुशी का दिमाग भी चल रहा था।अगला स्टेशन 2 घंटे बाद यानि रात के 12बजे के आस पास आएगा।उस समय एक अनजान स्टेशन पर उतरना भी सुरक्षित नहीं है।आजकल स्टेशन पर भीड़ भाड़ भी नहीं होती।अगली गाड़ी भी वहां से सुबह आठ बजे है।होटल में रुकना भी ठीक नहीं है,क्योंकि होटल भी सारे खाली पड़े है।खुशी ने जी भरकर कोरोंना को कोसा।जिसकी वजह से ये अजीब परिस्थिति बन गई थी।वरना तो स्टेशन और गाड़ियों में इतनी भीड़ रहती थी कि सांस भी ना ली जाए।शायद अगले स्टेशन पर कुछ पैसेंजर और आ जाए।ईश्वर करे ऐसा ही हो।ऐसा ही होगा...ऐसा ही होगा।खुशी ने मन ही मन म।
खुशी ने बैग में से बेडशीट निकाल कर सीट पर बिछाई और पैर ऊपर करके बैठ गई।बैग में से एक नॉवेल निकाली और पढ़ने लगी।आज रात को सोने का रिस्क वो नहीं ले सकती थी
थोड़ी देर बाद उसे कुछ हलचल की आहट हुई तो खुशी ने सावधानी से झांक
वो युवक सीटों के नीचे कुछ रहा था।घुटनों के बल बैठकर एक सीट के नीचे कुछ ढूंढ़ता,फिर दूसरी सीट के नीचे ढूंढ़ता।फिर गेट पर गया।फिर वापिस आया।फिर ऊपर वाली सीटों पर देखने लगा।फिर निढ़ाल स सीट पर बैठ गया।वो बहुत परेशान लग रह
खुशी का मन किया कि वो पूछे क आ है?पर फिर सिर झटक कर इरादा बदल दिया।
भूख लग रही है,खाना खाती हूं...खुशी ने खुद से कहा और बैग से खाना निकाल कर खाने लगी।
खाना ख़त्म ही किया था कि वो युवक आ गया।खुशी सावधान हो गई।
"मैम, सामान पैक कर लीजिए।अगला स्टेशन आने वाला है। मैं आपका सामान उतरवा दूंगा।"
"नो, थैंक्स।मैंने इरादा बदल दिया है।"...खुशी ने सपाट स्वर में उत्तर दिया।
युवक वापिस चल दिया फिर मुड़ा और बोला.."आप बुरा ना माने तो एक सवाल पूछ सकता हूं?"
खुशी ने कोई उत्तर नहीं दिया पर सवालिया निगाहों से उसकी और देखा..
"ये ट्रेन तो मुंबई से ही चलती है...इसका मतलब आप भी मुंबई से ही इस ट्रेन में चढ़ी होंगी।फिर आप मुंबई में ही क्यों उतरना चाहती थी?"
"बहुत रात हो गई है।मुझे सोना है...आप भी सो जाइए।"खुशी ने कठोर लहज़े में उत्तर दिया।
युवक बिना और कुछ कहे चला गया।
खुशी ने कंधे उचकाए और नॉवेल पढ़ने लगी।
ट्रेन अपनी गति से भाग रही थी।अगला स्टेशन भी चला गया पर कोई पैसेंजर उस कोच में नहीं आया।
खुशी बाथरूम होकर आयी तो मन में आया कि देखू वो युवक क्या कर रहा है?
खुशी दबे पांव से उसकी सीट की ओर चली।नजदीक पहुंची तो देखा युवक बैग में से कुछ निकाल रहा था।उसकी आहट का अहसास होते ही उसने उस वस्तु पर तौलिया रख दिया।उस पर अपना हाथ रख कर बोला.…"जी ,कुछ चाहिए आपको?"
खुशी ने कुछ जवाब नहीं दिया।उसकी निगाहें तौलिए पर थी।वो तौलिए के नीचे छुपी वस्तु को देखना चाहती थी।पर वो युवक तौलिए पर हाथ रख कर बैठा था।
खुशी बिना कुछ कहे पलट गईं।
"अजीब लड़की है"...
खुशी ने सुनकर भी अनसुना कर दिया।उसके दिमाग में एक ही सवाल था...वो लड़का क्या छुपा रहा था? कोई हथियार.....या फिर..... शराब की बोतल...या...या.........
दिमाग सुन्न पड़ता जा रहा था।तभी खुशी को कुछ याद आया।वो अपने हैंडबैग में कुछ ढूंढने लगी।हाथ बैग से बाहर निकाला तो उसमे एक छोटा फोल्डिंग चाकू था।जो उसने एप्पल काटने के लिए रखा था।खुशी को चाकू देखकर कुछ तसल्ली हुई।कुछ ना होने से कुछ होना बेहतर है।खुशी ने चाकू बेडशीट के नीचे छुपा लिया और नॉवेल पढ़ने लगी।
ट्रेन भागे जा रही थी।
सच मेरे यार है...
बस वही प्यार है..
जिसके बदले में कोई तो प्यार दे..
बाकी बेकार है..
यार मेरे... हां..यार मेरे....
खुशी नॉवेल से निगाह हटाकर ध्यान से सुनने लगी।शायद युवक को भी नींद नहीं आ रही थी।इसलिए वो गाना गाकर टाइम पास कर रहा था। आवाज़ बहुत मीठी और सुरीली थी,इसलिए खुशी नॉवेल छोड़कर गाना सुनने लगी।
फिर उसके मन में आया कि ये टाइम ही पास कर रहा है ना कहीं लाइन तो नहीं मार रहा।
मुझे सावधान रहना होगा।
खुशी थोड़ी देर सीटों के बीच चहलकदमी करती रही।फिर थककर बैठ गई।
गाड़ी भागे जा रही थी।अचानक लाइट चली गई और डिब्बे में घनघोर अंधेरा हो गया।
खुशी घबराकर सीट से उठ गई,उसने बेडशीट के नीचे टटोलकर चाकू उठा लिया।
तभी खुशी को अपनी ओर आते हुए कदमों की आवाज़ सुनाई दी।खुशी को और कुछ समझ नहीं आया तो झट से सीट के नीचे छुप गई और चाकू खोल लिया।
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क्या खुशी सुरक्षित घर पहुंच पाएगी?वो युवक क्या ढूंढ़ रहा था और क्या छुपा रहा था।गाड़ी की लाइट कैसे बंद हो गई।युवक के क्या इरादे थे?
जानने के लिए अगला भाग पढ़े।
कृपया कहानी के बारे में अपनी अमूल्य राय अवश्य दे।
लेखक - मनीष सिडाना
सर्वे भवन्तु सुखिन:,सर्वे संतु निरामया: