Basanti ki Basant panchmi - 12 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | बसंती की बसंत पंचमी - 12

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बसंती की बसंत पंचमी - 12

शाम को श्रीमती कुनकुनवाला आराम से बैठ कर टीवी देख रही थीं कि उनका बेटा जॉन आया।
आज सुबह की पार्टी का बचा खाना ही इतना रखा था कि श्रीमती कुनकुनवाला को इस समय रसोई में जाकर झांकने की भी जरूरत नहीं थी। किचन मे ढेर सारा खाना रखा हुआ और सबके पेट इस तरह भरे हुए कि खाने के नाम पर ही खीज आए।
बस इसीलिए वह इत्मीनान से टेबल पर पैर फ़ैला कर सोफे पर जमी हुई थीं।
लेकिन अचानक जॉन को देख कर श्रीमती कुनकुनवाला की आंखों में चमक आ गई। जॉन जेब से निकाल कर रुपए गिन रहा था। वह शायद मां को सुनाने के लिए ही ज़ोर ज़ोर से संख्या बोल रहा था।
जब दो हज़ार के नोटों की गिनती बढ़ती हुई लगभग लाख रुपए तक पहुंच गई तो श्रीमती कुनकुनवाला से न रहा गया। उनकी आंखें फ़ैल गईं। वो सोफे से उठीं और बेटे जॉन के करीब पहुंच गईं।
- कहां से लाया ये? किसके रुपए हैं? वो तेज़ आवाज़ में बोल पड़ीं।
जॉन ने ध्यान नहीं दिया। वह उसी तरह ज़ोर- ज़ोर से बोल कर रुपए गिनता रहा।
अरे बेटा, बता तो सही, ये लाखों रुपए किसके लेकर घूम रहा है? वो कुछ उतावली होकर बोलीं।
जॉन हंसा। फ़िर बोला- अरे मॉम, किसी और के रुपए क्यों लेकर घूमूंगा, मेरे ही हैं।
श्रीमती कुनकुनवाला एकदम से बेचैन हो गईं। सच बता, कहां से लाया है? कोई लोन- वोन तो नहीं उठा लिया किसी बैंक से? बेटा, आजकल उधार नहीं लेना चाहिए। तुझे पता है न, इतने दिनों के लॉकडाउन से सब धंधे कारोबार ठप्प हो गए हैं। इस समय बैंक पैसा दे तो देंगे मगर कोई काम धंधा नहीं चलने वाला। बेकार में ही कर्जा चढ़ा कर बैठ जाएगा तू। जा, जाकर वापस लौटा दे। श्रीमती कुनकुनवाला एक सांस में जल्दी जल्दी सब बोल गईं।
जॉन पर कोई असर नहीं पड़ा। वह उसी तरह शांति से बैठा नोट गिनता रहा और फ़िर धीरे से बोला- ओह मॉम, आप तो बिना बात के ही पीछे पड़ जाती हो। कहा न, किसी और के नहीं, बल्कि ये मेरे ही रुपए हैं।
अब श्रीमती कुनकुनवाला हत्थे से ही उखड़ गईं, डांटने के स्वर में बोलीं- तेरे पास कहां से आए इतने रुपए? कहीं चोरी -डकैती की है,या घर का कोई गहना उठा कर बेच आया?
जॉन ज़ोर से हंसा, बोला- थैंक्स मम्मी, थैंक्स! आपने तो मुझे और कई आइडियाज़ दे दिए कमाने के! वैल, अगर अब कोई और फाइनेंशियल प्रॉब्लम आई तो आपके आइडिया ट्राई किए जाएंगे, धन्यवाद!

श्रीमती कुनकुनवाला न मानीं। उन्होंने उठ कर जॉन का कान पकड़ा और हंसते हुए बोलीं- बोल, बोल अब बता कहां से लाया है ये रुपए। जब तक नहीं बताएगा छोड़ूंगी नहीं। वह हंसते हुए कान को ज़ोर से मरोड़ने लगीं।
जॉन ने उछल कर अपना कान छुड़ाया और बोला- ओ हो, क्या मुसीबत है, इस घर में कोई रुपए भी नहीं रख सकता? कंगालों का घर है क्या?
- कंगालों का नहीं, तो इतने धन्ना सेठों का भी नहीं है कि घर का बेरोजगार लड़का ताश के पत्तों की तरह रुपए की गड्डियां लेकर घूमे। श्रीमती कुनकुनवाला ने कहा।
हंसता हुआ जॉन बोला- ओके ओके, बताता हूं, बताता हूं... ये पैसे दरअसल आपकी सब फ्रेंड्स के हैं, तीस हजार अरोड़ा आंटी के, बाईस हज़ार वीर आंटी के, चौबीस हजार चंदू आंटी के... पच्चीस हजार..
- क्या??? वो सब तुझे इतने- इतने रुपए किस बात के दे गईं? और मुझे किसी ने बताया तक नहीं!
श्रीमती कुनकुनवाला की आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं। अब उनका सुर एकदम से बदल गया। बेटे से लिपट कर गलबहियां डालते हुए प्यार से बोलीं- तुझे मेरी कसम, बता तो सही बेटा, ये रुपए वो सब तुझे क्यों दे गईं?
जॉन ने शान से मम्मी को एक ओर हटाते हुए कहा- मॉम, आय एम फायनेंस मैनेजर ऑफ़ द प्रोजेक्ट "बसंती"! डू यू नो?(मम्मी, मैं प्रोजेक्ट बसंती का फायनेंस प्रबंधक हूं, आप जानती हैं?)
श्रीमती कुनकुनवाला का मुंह खुला का खुला रह गया। बोलीं- अच्छा, तो इन सब ने चोरी- छिपे रिश्वत दी है ताकि फ़िल्म में उन्हें काम मिल जाए! देखो तो जरा, मेरे साथ ही गद्दारी? मुझे बताया तक नहीं!
वो ठंडी सांस छोड़ कर फ़िर बोलीं- पर बेटा, रुपए तुझे क्यों दिए? कहीं तूने मांगे तो नहीं? आने दे आज तेरे पापा को, तेरी शिकायत लगाती हूं।
- ओ हो मम्मी, बाक़ी मम्मियां तो बेटे की पहली कमाई पर शान से सबको लड्डू खिलाती हैं और मेरी माताश्री तो मेरे ही पीछे हाथ धोकर पड़ गईं! कह कर जॉन ने नोटों को एक बार फ़िर हवा में लहराया।