Basanti ki Basant panchmi - 10 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | बसंती की बसंत पंचमी - 10

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बसंती की बसंत पंचमी - 10

आख़िर वो दिन भी आया।
सब सहेलियां सज- धज कर तैयार हुईं और रुख किया श्रीमती कुनकुनवाला के घर का।
श्रीमती वीर ने तो मानो अपनी उम्र पूरे दस साल घटा ली। ऐसे दमक रही थीं जैसे प्रियंका चोपड़ा।
मिसेज़ अरोरा ही कहां कम थीं? उन्होंने तो जैसे दीपिका पादुकोण की वार्डरोब ही खंगाल डाली थी।
श्रीमती चंदू तो आइना देख कर चौंक ही गईं। उन्होंने अपनी तैयारी में आलिया भट्ट के आउटफिट्स फ़ॉलो किए थे।
और तो और, ख़ुद श्रीमती कुनकुनवाला कहां किसी से कम थीं। ख़ुद उनका बेटा जॉन उनके कहने पर दमादम उनकी पिक्स लिए जा रहा था उनके मोबाइल पर।
साढ़े दस बजे से पूरा जमावड़ा परवान चढ़ गया जबकि पार्टी का टाइम बारह बजे का था।
एक तो वैसे ही साल भर के लॉकडाउन के बाद आज इतने दिनों बाद सब फ्रेंड्स मिल रही थीं दूसरे श्रीमती कुनकुनवाला ने प्रोड्यूसर साहब के आने की खबर दे दी। क्या पता, किसकी किस्मत खुल जाए और फ़िल्म में चांस मिल जाए। और जब फ़िल्म की कहानी महिलाओं पर आधारित है तो सबको कोई न कोई छोटा- मोटा रोल मिलने का चांस तो बनता ही था।
लेकिन फिल्मकार लोग इतने दुनियादार नहीं होते कि श्रीमती कुनकुनवाला के घर पार्टी है तो उन्हीं को हीरोइन बना दें। ठोक बजा कर सब देखते हैं। बाज़ार में चलने वाला सिक्का ही खोजते हैं। लिहाज़ा सब अपनी एक- एक अदा पर इस तरह कायम थीं मानो पार्टी में नहीं, फ़िल्म के लिए स्क्रीनटेस्ट देने ही आई हों।
ठीक बारह बज कर दस मिनट पर प्रोड्यूसर साहब आ पहुंचे। डायरेक्टर साहब भी साथ ही थे।
सारा माहौल एकदम चहचहा उठा।
डायरेक्टर साहब और प्रोड्यूसर साहब ने अपने रेशमी डिजाइनर मास्क क्या हटाए, मानो वहां उपस्थित महिलाओं की किस्मत के पट खुलने के लिए फड़फड़ाने लगे।

सबसे पहले स्टोरी सैशन हुआ। डायरेक्टर साहब ने फ़िल्म की कहानी सुनानी शुरू की।

उन्हें घेर कर सभी लोग ऐसे बैठ गए मानो किसी प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे हों। कहानी थी ही इतनी दिलचस्प।
किसी ने भी ये नहीं सोचा था कि इस फ़िल्म की कहानी में उन सब महिलाओं की उसी सबसे बड़ी समस्या की बात होगी जिससे वो सब पिछले कई महीनों से परेशान रहीं। महिलाओं की दिलचस्पी कहानी में और भी बढ़ गई।
दरअसल प्रोड्यूसर साहब ने फ़िल्म बनाने के लिए एक बहुत प्रसिद्ध और लोकप्रिय लेखक की किताब को चुना था जिसका नाम था "बसंती"। इस के लेखक भीष्म साहनी एक नामचीन लेखक थे और उन्होंने घर में काम करने वाली बाईयों की समस्या पर ही यह मार्मिक कहानी लिखी थी।
क्योंकि घर- घर में काम करने वाली बाई की ज़रूरत भी रहती है और दुनिया में अशिक्षित या अर्द्ध शिक्षित लोगों के लिए रोजगार की समस्या भी रहती है इसलिए ये एक ऐसी कहानी थी जो सबको पसंद भी आती थी और सबकी समस्या को उठाती थी।
कमरे में पिनड्रॉप साइलेंस छा गया जब डायरेक्टर साहब ने फ़िल्म की कहानी शुरू की। यहां तक कि पार्टी में सर्व किया गया वेलकम ड्रिंक का गिलास भी सब के हाथों में ऐसे ही लगा रहा और सबका ध्यान कहानी में लगा रहा।
केवल प्रोड्यूसर साहब ही इस देश- विदेश में ख्यात जोधपुर के प्रसिद्ध जलजीरे का आनंद लेते रहे। वे धीरे- धीरे गिलास से चटपटी- चरपरी चुस्कियां लेते रहे और बर्फ़ के टुकड़ों से अपने हलक को सींचते रहे।
बाक़ी सभी चेहरों पर तो एक ही सवाल था- फ़िर? फ़िर क्या हुआ?? आगे क्या हुआ???