Vaishya ka bhai - 11 in Hindi Classic Stories by Saroj Verma books and stories PDF | वेश्या का भाई - भाग(११)

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वेश्या का भाई - भाग(११)

मत रो मेरे भाई! अब से तू खुद को अकेला मत समझ,मैं हूँ ना ! तेरे दुःख बाँटने के लिए,मंगल बोला।।
लेकिन मंगल भइया! कभी कभी जब माँ की हालत के बारें में सोचता हूँ तो रोना आ ही जाता है,जैसी बततर जिन्द़गी काटी है ना! मेरी माँ ने तो वो उनकी बदकिस्मती थी,हवेली में रहने वाली एक शरीफ़ घर की बेटी को तवायफ़ बनना पड़ा,इस समाज ने उन्हें ऐसा बनने पर मजबूर कर दिया,रामजस बोला।।
सही कहते हो भाई! क्या सभी औरतों की किस्मत में ऐसी ही जिन्द़गी लिखी होती है या फिर हम जिन औरतों को जानते हैं उनकी ही किस्मत ऐसी ख़राब निकली?मंगल बोला।।
क्या पता मंगल भइया? लेकिन मुझे तो लगता है कि शायद सभी औरतों की जिन्द़गी ऐसी ही होती है,चाहें वो रानी हो या नौकरानी,रामजस बोला।।
सच कहते हो,मंगल बोला।।
और यही सच है मंगल भइया! रामजस बोला।।
अच्छा! एक बात कहूँ,मंगल बोला।।
हाँ! कहो ! मंगल भइया! रामजस बोला।।
लेकिन कैसे कहूँ तुझसे? बात कहते हुए कुछ संकोच सा होता है,मंगल बोला।
संकोच कैसा भइया? मैं तो तुम्हारा छोटा भाई हूँ,रामजस बोला।।
मैं चाहता था कि अब कि बार तुम कुशमा से मिलने कोठे जाओ क्योकिं मेरा वहाँ बार बार जाना अच्छा नहीं,फिर मुझसे मिलने के लिए कुशमा भी इनकार करती है,तुम वहाँ जाओगे तो कुशमा तुमसे मिलने से इनकार नहीं करेगी क्योकिं वो तो तुम्हें पहचानती ही नहीं और फिर तुम आसानी से उस तक मेरी बात पहुँचा सकते हो,मंगल बोला।।
मैं...और कोठे पर,रामजस बोला।।
हाँ! भाई!मेरा काम बना दे,मंगल बोला।।
लेकिन जब से मैनें अपनी माँ के संग अमीरनबाई का कोठा छोड़ा था तो फिर उसके बाद दोबारा किसी और कोठे पर ना जाने का खुद से वायदा किया था,रामजस बोला।।
किसी अच्छे काम के लिए खुद से किया हुआ वादा तोड़ा भी जा सकता है,मंगल बोला।।
ठीक है ,तुम कहते हो तो यही सही,कब जाना होगा कुशमा से मिलने?रामजस ने पूछा।।
कल -परसों तक चले जाना,मंगल बोला।।
ठीक है भइया! चला जाऊँगा,रामजस बोला।।
अच्छा,मैं भी चलूँगा,मैं शकीला से मिल लूँगा,जानू तो कि कुशमा ने उससे क्या कहा?मंगल बोला।।
ठीक है तो तुम भी चलना मेरे संग,लेकिन देखों तो आधी रात से ज्यादा वक्त बीत चुका है,आज सोना नहीं है क्या? रामजस बोला।।
हाँ! भाई! बातों में पता ही नहीं चला,चल अब सो जाते हैं और इतना कहकर फिर से दोनों अपनी अपनी चारपाई पर लेट गए।।
दूसरे दिन सुबह-सुबह कोठे पर.....
शकीला....शकीला...उठ देख तो कितना दिन चढ़ आया है अब कब तक सोती रहेगी? केशर ने पूछा।।
तू आज बहुत जल्दी जाग गई,शकीला ने अँगड़ाई लेते हुए कहा।।
मैं तो रातभर सोई ही नहीं,केशर बोली।।
क्या हुआ? क्यों ना सोई?शकीला ने पूछा।।
रात भर मंगल भइया के बारें में सोचती रही,केशर बोली।।
तो तूने मान ही लिया कि वो तेरा भाई है,शकीला बोली।।
कैसे भूल सकती हूँ कि उसका मेरा ख़ून का रिश्ता है? केशर बोली।।
तो उसे एक बार भइया बोलकर देख फिर देखना वो कैसे तेरे सारे दर्दो की दवा बन जाता है? शकीला बोली।।
वही तो मुसीबत है,केशर बोली।।
कैसी मुसीबत? जरा मैं भी सुँनू,शकीला बोली।।
यही कि वो कैसे सारी दुनिया से लड़ पाएगा मेरे लिए,अगर उसकी शिकस्त हुई तो,केशर बोली।।
नहीं होगी उसकी शिकस्त,उसने अब ठान लिया है कि वो तुझे इस कोठे से निकाल कर रहेगा,शकीला बोली।।
अगर उसने मुझे निकाल भी लिया इस कोठे से तो क्या ज़ालिम ज़माना हम भाई-बहन को जीने देगा?केशर ने पूछा।।
मेरी ज़ान,पहले यहाँ से तो निकल जा फिर किसी जंगल में जाकर रह लेना दोनों भाई-बहन,शकीला बोली।।
क्या ये मुमकिन है?केशर बोली।।
सब मुमकिन है मेरी जान,एक बार ठान कर तो देखों,वो किसी शायर ने भी ख़ूब कहा है...कौन कहता है कि आसमां में सुराख़ नहीं हो सकता,एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों।।,शकीला बोली।।
शायद सही कहती है तू,केशर बोली।।
मैं तो हमेशा सही कहती हूँ तू ही नहीं मानती मेरी बात,शकीला बोली।।
ठीक है अब जो होगा देखा जाएगा,लेकिन अब जब भी मंगल भइया मुझे मिलेंगें तो मैं उनसे कह दूँगी कि मैं ही तुम्हारी बहन कुशमा हूँ,केशर बोली।।
शाबास! मेरी बच्ची! ये हुई ना बात! मुझे तुमसे यही उम्मीद थी,शकीला बोली।।
हाँ! दादीजान! और इतना कहकर केशर हंँस पड़ी,
केशर को देख शकीला भी हँस पड़ी और दोनों खूब देर तक यूँ ही हँसतीं रहीं...

और उधर नवाबसाहब की हवेली में नौकरों की कोठरी में रह रहे मंगल और रामजस के बीच बातें चल रही थीं मंगल ,रामजस से बोला.....
मैं सोच रहा हूँ कि मैं बहु-बेग़म से जाकर बात करूँ,शायद एक औरत होने के नाते वें मेरी कुशमा का दर्द समझकर मेरी मदद करने को राज़ी हो जाएं,
लेकिन बहु-बेग़म कैसे तुम्हारी मदद कर सकतीं हैं भइया? वें तो कहीं जाती भी नहीं,उनका जब भी अपने रिश्तेदारों से मिलने का मन होता है तो वें उन्हे हवेली में ही बुलवा लेतीं हैं,फिर तुम्हारी मदद कैसें करेगीं? रामजस बोला।।
मैं उनसे कहूँगा कि वें इस मसले को लेकर नवाबसाहब से बात करें,मंगल बोला।।
नवाबसाहब बहु-बेग़म की इतना ही सुनते होते तो तवायफों को अपने घर मुजरा करने को क्यों बुलवाते?रामजस बोला।।
शायद वें मान जाएं,मंगल बोला।।
ये नामुमकिन है मंगल भइया! ये मर्दों की बनाई हुई दुनिया है और हमेशा से औरतें उनके ही बनाएं हुए कायदे-कानूनों पर चलतीं आईं हैं,ये मर्द कभी भी किसी औरत को उनके बनाएं हुए कानून-कायदों के ख़िलाफ़ नहीं जाने देगें और फिर ये मत भूलिए कुशमा के नाच-गाने से उस कोठे को दौलत मिलती है उस कोठे की मालकिन से भी आपको लड़ना पड़ेगा,रामजस बोला।।
मैने सब सोच लिया है भाई! ये भी सोचा था,मंगल बोला।।
तो फिर कैसें दलदल से निकालोगे़ मंगल भइया अपनी बहन को,रामजस ने पूछा।।
वही तो सोच रहा हूँ लेकिन पहले वो ये तो माने कि मैं ही उसका भाई हूँ,मंगल बोला।।।
आपने कहा था ना कि रात को कोठे पर चलना है कुशमा से बात करने,रामजस बोला।।
लेकिन उसने तो मुझसे मिलने से इनकार कर दिया था,मंगल बोला।।
ठीक है तो आज मैं जाकर कुशमा से बात करता हूँ,रामजस बोला।।
हाँ! भाई !शायद तेरी सुन ले,मंगल बोला।।
हाँ,शायद मेरी बात मान जाएं वो,रामजस बोला।।
हाँ! शाम को तुम मुझे काम के बाद बाहर मिलना,मैं तुम्हें पैसे भी दे दूँगा,मंगल बोला।।
लेकिन पैसे किसलिए?रामजस ने पूछा।।
कोठे के दाम चुकाने के लिए,मंगल बोला।।
लेकिन मेरे पास पैसे है ,मंगल भइया तुम चिन्ता मत करो,रामजस बोला।।
ले लेना भाई! तुम भी तो मेरी तरह गरीब ही हो,मंगल बोला।।
अभी रहने दो भइया! जब जरूरत होगी तो दे देना,रामजस बोला।।
मैं भी संग चलूँगा,मुझे शकीला से पूछना है कि कुशमा ने उससे क्या कहा?मंगल बोला।।
हाँ! यही सही रहेगा,रामजस बोला।।
और फिर दोनों बातें करने के बाद अपने अपने काम पर चले गए,शाम हुई रामजस काम से जल्दी लौट आया था इसलिए उसने खाना बनाकर रख लिया था,तब तक मंगल भी आ पहुँचा और चूल्हे में आग देखकर रामजस से बोला...
तुम आज जल्दी आ गए और खाना भी बना लिया....
हाँ! भइया! मैने सोचा लौटने में कहीं देर ना हो जाए तो खाना बनाकर रख दिया,रामजस बोला।।
ये ठीक किया तुमने,वैसे क्या बनाया है?मंगल ने पूछा।।
आलू-टमाटर की तरकारी और रोटी बनाई हैं,रामजस बोला।।
बहुत बढ़िया किया,वैसे मैं सब्जी खरीद लाया हूँ रास्ते में बिक रही थीं ये रहीं, बिल्कुल ताजीं-ताजीं सब्जियाँ हैं ,मंगल ने सब्जी की पोटली जमीन पर रखते हुए कहा....
ठीक है मंगल भइया तुम हाथ मुँह धो लो फिर चलते हैं,रामजस बोला।।
ठीक है और इतना कहकर मंगल हाथ मुँह धोने चला गया फिर कुछ ही देर में दोनों अँधेरा गहराते ही कोठे की तरफ़ निकल पड़े....
दोनों अपनी योजनानुसार पहुँच गए,रामजस कुशमा के पास और मंगल शकीला के पास....
शकीला ने जैसे ही मंगल को देखा तो सकपका गई,तब गुलनार बोली....
शकीला! आप खड़ी क्यों हैं ? ये वहीं तो हैं जो कल रात आए थे,इन्हें ले जाकर इनकी ख़िदमत कीजिए....
ठीक है ख़ाला ज़ान! इतना कहकर शकीला जैसे ही मंगल को लेकर कमरे में पहुँची तो भड़क उठी और मंगल से बोली..
जनाब! आप !आज भी अपनी जान जोख़िम मे डालकर चले आएं,कुछ तो रह़म कीजिए मुझ पर।।
मैं तो खुद़ आपसे रह़म की भीख माँगने आया था और आप मुझसे रह़म माँग रहीं हैं,मंगल बोला।।
रह़म और मैं,वो भला कैसे कर सकती हूँ? शकीला ने पूछा।।
क्या कहा कुशमा ने आपसे?बस ये बता दीजिए,मंगल बोला।।
उसने आपको अपना भाई मान लिया है,शकीला बोली,।।
सच कह रहीं हैं आप! मंगल ने पूछा।।
हाँ! बिल्कुल सच!शकीला बोली।।
और इतना सुनते ही मंगल ने जज्बातों में बहकर शकीला को अपने गले से लगा लिया,लेकिन जब उसे लगा कि ये ग़लत है तो उसने फौरन ही शकीला को खुद़ से अलग करते हुए कहा....
माँफ कीजिए! भूल हो गई,भूलवश हो गया ये।।
शकीला भी सकुचाते हुए बोली....
कोई बात नहीं जनाब!
और फिर दोनों यूँ ही बातें करते रहें,लेकिन शकीला को आज मंगल का छूना ऐसा लगा कि जैसे किसी ने उसकी रूह को छू लिया हो,आज तक इतने मर्दो ने उसे छुआ था लेकिन मंगल का छूना उसके लिए एक अलग ही तजुर्बा था...
और उधर ज्यों ही रामजस ने केशर को देखा तो देखते ही रह गया,केशर की खूबसूरती ने उसकी जुबान बंद कर थी,फिर वो कुछ बोल ना सका...
लेकिन जब केशर उसके पास आई और जैसे ही उसने रामजस को हाथ लगाया तो रामजस बोला.....
छीः...ये क्या कर रहीं हैं आप?
यही तो मेरा काम है,मर्दों को रिझाना,केशर बोली।।
लेकिन मैं तो केवल आपसे मिलने आया था,रामजस बोला।।
तो क्या तुम्हारी आरती उतारूँ? केशर खींझ पड़ी।
नहीं! मैं तो आपके भाई मंगल का दोस्त हूँ और उनकी बात आप तक पहुँचाने आया हूँ,रामजस बोला।।
ये सुनकर एक पल को केशर ख़ामोश हो गई.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा......