मंगल के जाने के बाद फ़ौरन ही शकीला,केशर के पास पहुँची,उसे देखकर केशर बोली.....
ऐसी क्या बातें हो रहीं थीं तेरे और गुलनार ख़ाला के बीच जो तूने इतनी देर लगा दी,मैं कब से खाने के लिए तेरा इन्तज़ार कर रही हूँ और तू अब आ रही है।।
मत पूछ कि क्या हुआ? शकीला बोली।।
क्यों ऐसा कौन सा सितम हो गया तुझ पर,केशर बोली।।
अरे ! सितम होते होते रह गया,शकीला बोली।।
ये क्या पहेलियांँ बुझा रही है? साफ साफ क्यों नही कहती?केशर बोली।।
अरे! वो आया था...,शकीला बोली।।
कौन आया था?भूत...आया था...केशर ने पूछा।।
नहीं! मंगल आया था,शकीला बोली।।
क्या बकती है?केशर बोली।।
सच!पहले उसने तुझे बुलवाया था,जब तू नहीं गई तो उसने मुझे बुलवाया,कहीं ख़ालाजान को ख़बर हो जाती ना! तो,ख़ैर मना जो उन्हें कुछ पता नहीं चला,शकीला बोली।।
लेकिन वो क्यों आया था? केशर बोली।।
और किसलिए भला! तुझसे मिलने,शकीला बोली।।
मैने तो इनकार कर दिया था ना कि वो मेरा भाई नहीं,फिर क्यों आया था वो?केशर बोली।।
उसे यकीन नहीं हुआ तेरी बात पर,उसे मालूम है कि तू झूठ बोल रही है,शकीला बोली।।
इतना ख़तरा उठाकर वो मुझसे मिलने यहाँ आ गया,केशर बोली।।
हाँ!दो घण्टों तक हम साथ रहें एक कमरें में,शकीला बोली।।
क्या कहती है? वो तेरे साथ था दो घण्टे,केशर ने पूछा।।
ग़लत मत समझ, उसने तो मुझे हाथ तक नहीं लगाया,वो तो मुझसे बात करके वापस जा रहा था लेकिन मैने ही उसे रोके रखा,उससे कहा कि वो इतनी जल्दी बाहर जाएगा तो कहीं ख़ालाजान को शक़ ना हो जाए,शकीला बोली।।
और क्या कह रहा था? केशर ने पूछा।।
कह रहा था कि उसने अभी तक शादी नहीं की,सालों से तुझे ही ढूढ़ने में लगा है,शकीला बोली।।
सच कहती है,केशर ने पूछा।।
हाँ! बिल्कुल सच! और कहता था कि मैं अपनी बहन को इस दलदल से निकाल कर रहूँगा,शकीला बोली।।
तूने उसे समझाया नहीं कि ये नामुमकिन है,केशर बोली।।
कहा था मैनें,लेकिन वो शायद तुझे यहाँ से निकालनें की जिद़ करके बैठा है,शकीला बोली।।
अच्छा! पहले खाना खा लेते हैं फिर आराम से बिस्तर पर लेटकर कर बातें करतें हैं,मैं खाना लेकर आती हूँ और इतना कहकर केशर खाना लेने चली गई।।
थोड़ी देर में दोनों ने खाना खतम किया और फिर काफी देर तक मंगल के बारें में बातें करतीं रहीं....
और उधर जब मंगल हवेली पहुँचा तो उससे नवाबसाहब ने पूछा....
मंगल! कहाँ से लौट रहे हो इस वक्त?
जी! अपनी बहन से मिलने गया था,मंगल ने जवाब दिया।।
बहन! एकाएक तुम्हारी बहन कहाँ से आ गई? नवाबसाहब बोले।।
जी!आपको तो मेरी सारी कहानी पता है,वही बहन जो सालों पहले बिछड़ गई थी,मंगल बोला।।
कहाँ मिली तुम्हें अपनी बहन? नवाबसाहब ने पूछा।।
जी! वक्त आने पर बता दूँगा,मंगल बोला।।
ठीक है! जैसी तुम्हारी मर्जी,नवाबसाहब बोले।।
जी! मैं अब अपनी कोठरी में जाता हूँ,मंगल अपनी कोठरी में आया जहाँ रामजस उसका इन्तजार कर रहा था,वो भी मंगल की तरह इस हवेली में काम करता है ,मंगल से उम्र में दो तीन साल छोटा है और मंगल के साथ ही उसकी कोठरी में रहता है,मंगल को देखते ही रामजस बोला....
तुम आ गए मंगल भइया! मैं कब से तुम्हारा इन्तज़ार कर रहा हूँ खाने के लिए आज तुम्हारी पसन्द की उड़द की दाल बनाई है,साथ में सिलबट्टे पर लाल मिर्च और लहसुन की चटनी भी पीसी है,जाओ हाथ मुँह धो आओ,तब तक मैं हम दोनों की थाली लगाता हूँ ,
रामजस की बात सुनकर मंगल हाथ मुँह धोने चला गया और तब तक रामजस दोनों थालियों में खाना परोस चुका था,दोनों साथ में बैठकर खाना खाने लगें,खाते वक्त तो दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई लेकिन जब दोनों खाना खा चुके और अपनी अपनी चारपाई पर लेट गए तो रामजस ने मंगल से पूछा....
मंगल भइया बताओ ना कि कहाँ गए थे?
अपनी बहन से मिलने,मंगल बोला।।
लेकिन तुमने तो कभी बताया ही नहीं कि तुम्हारी कोई बहन भी है,रामजस बोला।।
कभी मौका ही नहीं मिला और सच कहूँ तो मेरा कुछ भी किसी को भी बताने का मन नहीं था,मंगल बोला।।
लेकिन क्यों भइया? रामजस ने पूछा।
मुझे अपने दुखड़े किसी को भी सुनाने की आदत नहीं है,मंगल बोला।।
लेकिन मैं तो तुम्हारे छोटे भाई की तरह हूँ ,मुझे तो बता ही सकते हो,रामजस बोला।।
क्या किसी को अपने दर्द बताने से वो कम हो जाते हैं? मंगल बोला।।
दर्द हल्के नहीं होते भइया! लेकिन मन जरूर हल्का हो जाता है,रामजस बोला।।
सब कहने की बातें हैं जिस पर बीतती है,बस वो ही जानता है,मंगल बोला।।
एक बार कह कर तो देखो,रामजस बोला।।
तू सुनना चाहता है मेरी कहानी..,मंगल ने पूछा।।
हाँ! भइया! रामजस बोला।।
तो सुन और इतना कहकर मंगल ने अपनी कहानी सुनानी शुरू की.....
बहुत समय पहले जब मैं अपने गाँव में रहता था तो एक दिन जमींदार ने अपने मुनीम को हमारे घर लगान वसूली के लिए भेजा,मैं तब अपनी झोपड़ी में नहीं था,अपनी बहन कुशमा के साथ खेतों पर गया था,जब मैं अपनी बहन के साथ लौटा तो मैने देखा कि जमींदार के लठैत मेरे बाबा को पीट रहे हैं...
और मेरी माँ जब बीच बचाव करने लगी तो उन्हें भी नहीं छोड़ा गया,इतना देखकर मुझे बहुत गुस्सा आ गया और मैनें मुनीम को बहुत लताड़ा और फिर मुनीम ने जमींदार के पास जाकर मेरी शिकायत लगा दी,सारी बातें एक की अठारह जोड़ कर बता दीं,जमींदार बहुत गुस्सा हुआ।।
फिर जमींदार को मुनीम ने कुशमा के बारें में बताया,जमींदार तो वैसे भी गिरा हुआ इन्सान था और लड़कियांँ उसकी कमजोरी हुआ करतीं थीं,मेरी बहन कुशमा को एक रात उसने उठवा लिया और फिर बाबा माँ और मेरी पिटाई करवाकर हमें अधमरा करके नदी में बहवा दिया,माँ बाबा बूढ़े होने की वज़ह से तो ना बच सकें लेकिन मैं बच गया,
हम सब दूसरे दिन सुबह नदी किनारे एक मछुआरे को बेहोश़ पड़े मिले,मैं तो होश़ में आ गया लेकिन मेरे माँ बाप जा चुके थे वे अपनी जान गँवा चुके थे,लोगों की मदद से मैंने दोनों का अन्तिम संस्कार किया,फिर मुझे किसी ने बताया कि तुम नवाबसाहब के यहाँ चले जाओ तुम्हें वहाँ काम मिल जाएगा और फिर मैं यहाँ आ गया,यहाँ मुझे नवाबसाहब ने काम दिया रहने की ज़गह दी,
मैनें उन्हें अपनी पिछली जिन्दगी के बारें में सब कुछ बता दिया,फिर उन्होंने मुझे वापस मेरे गाँव नहीं जाने दिया बोले कि तुम्हारे लिए वहाँ ख़तरा है,तुम वहाँ ना ही जाओ तो ही अच्छा है,लेकिन फिर मैं कुछ वक्त बाद नवाबसाहब को बिना बताएं अपनी बहन को ढूढ़ने अपने गाँव चला ही गया,
वहाँ जाकर मुझे पता चला कि जमींदार और उसके दोनों बेटो का खून जमींदारन ने कर दिया है,जमींदारन का खून मुनीम ने कर दिया तब मेरी बहन ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी और पुलिस ने उसे किसी नारीनिकेतन में भेज दिया,तब से मैं अपनी बहन को ढूढ़ रहा हूँ,अब जाकर मिली है वो भी एक तवायफ़ के रूप में,
मैने उसे तब पहली बार उस कोठे में देखा था जब नवाबसाह एक रात उस कोठे में गए थे ,फिर दूसरी रात मैं अपनी बहन से मिलने कोठे गया,ये पता करने कि वो कुशमा ही है या नहीं,तब उस वक्त मैनें उससे कोई भी बात नहीं की ,उसे जीभर के देखा फिर उसकी हथेली में रूपए रख दिए और बस वहाँ से चला आया,उसके बाद उससे मेरी दो बार और मुलाकात हुई,
एक रात जब वो नवाबसाहब के यहाँ मुज़रा करने आई थी और आज दोपहर मीना बजार में,मैने जब उससे कहा कि मैं तुम्हारा भाई हूँ तो उसने मानने से इनकार कर दिया और इसलिए मुझे फिर से कोठे मे जाना पड़ा उससे मिलने,वज़ह पता करने कि वो मुझे अपना भाई मानने से क्यों इनकार कर रही है?
लेकिन उसने मिलने से इनकार कर दिया इसलिए मैने उसकी सहेली को बुलवाकर उससे बात की कि वो कुशमा को कैसे भी मना ले? उसने पहले तो इनकार कर दिया फिर तरस खाकर उसने कहा कि वो कुशमा से इस बारें में बात करेगी,फिर मैं वहाँ से चला आया, बस इतनी सी ही कहानी है मेरी।।
ओहो....तो तुम कोठे में गए थे अपनी बहन से मिलने,रामजस ने पूछा।।
जाना पड़ा,मजबूरी थी,मंगल बोला।।
अच्छा लगा ये जानकर कि तुम्हें तुम्हारी बहन मिल गई और तुम्हारे मन में उसके लिए अभी भी उतना ही प्यार है ये जानते हुए भी कि वो एक तवायफ़ है,रामजस बोला।।
वो मेरी बहन है,ख़ून का रिश्ता है मेरा उसके साथ,कैसे भूल सकता हूँ उसे ?और उस गन्दगी में वो अपनी मर्जी से नहीं गई है,मंगल बोला।।
कोई भी औरत उस गन्दगी में अपनी मर्जी से नहीं जाती,उसे उस दलदल में जबदस्ती धकेला जाता है,ऐसे उसे भी धकेला गया था,रामजस बोला।।
किसे धकेला गया था? जरा मैं भी तो जानू कि तुम किसके बारें में बात कर रहे हो? मंगल बोला....
क्या करोगें भइया उस की जिन्दगी के बारें में जानकर,?रामजस बोला॥
अरे! वो थी कौन? मंगल ने पूछा।।
वो अभागी मेरी माँ थी,रामजस बोला...
ये सुनकर मंगल एक पल को हैरान हो गया.....
क्रमशः......
सरोज वर्मा....