अनुक्रमणिका
1. नवजीवन 25. प्रेम
2. माँ 26. जीवन का आधार
3. कवि और कविता 27. सांस्कृतिक प्रदूषण
4. तेरा मेरा 28. कर्म
5. अहिंसा परमो धर्मः 29. नैतिकता
6. जननी और जन्मभूमी 30. पत्रकारिता
7. जीवन और हम 31. प्रगतिशीलता
8. जीवन ऐसा हो 32. पत्थर और आस्था
9. मार्गदर्शक 33. दिशा
10. धर्म और कर्म 34. सृजन का आधार
11. सच्चा प्रेम 35. दिशा और राहें
12. जीवन का आधार 36. हमारा जीवन
13. हमारी संस्कृति 37. अमीरी-गरीबी
14. भूख 38. माँ
15. वेदना 39. परिश्रम
16. निर्णय 40. दिशा
17. कठिनाईयाँ 41. अनुभव
18. वक्त 42. पाप और पुण्य
19. अभाव 43. भविष्य का निर्माण
20. मंथन 44. प्रेम की सहजता
21. यथार्थ 45. प्रार्थना और जीवन
22. विवेक 46. सुख का आधार
23. आशा 47. कुटिलता और जीवन
24. सृजन 48. दो बूँद
1. नवजीवन
सूर्योदय की पहली किरण
मन में कर रही
नई आशाओं का संचार
प्रभु कृपा से क्षितिज से
आई एक नई पहचान
हृदय में कल्पनाओं का
हुआ जागरण
प्रतीक्षा का जीवन में हुआ पदार्पण
संसार को बाहों में भर लेने
बढें दो नन्हे हाथ
आकाश के तारों के समान
टिमटिमा रही आँखें
कलम के समान
सुंदर स्वरूप
गुलाब सी महकतीं साँसें
जीवन के यथार्थ से
हो रहा साक्षात्कार
दुनिया के उजाले में
जीवन की पहली साँस
मिल रहा सबका आशीर्वाद
तेरे शुभागमन से
जाग उठा है आशाओं का
एक नया संसार
जीवन में
धीरता, वीरता और गंभीरता का
समन्वय रहे तेरी प्रतिभा में
जिससे पुख्ता हो
तेरे भविष्य की बुनियाद
हमारी सभ्यता और संस्कृति
तेरे भावी जीवन का हो आधार
यही है हम सभी का आशीर्वाद
बेटी तुम हो लक्ष्मी का स्वरूप
सरस्वती की हो तुम पर कृपा
दोनों दिखलाएँ तुम्हें
जीवन की सही राह
और तुम बनो
औरों के लिए
सही राह दिखलाने वाला
प्रकाश स्तम्भ।
02. माँ
माँ की ममता और त्याग का मूल्य
मानव तो क्या
परमात्मा भी नही चुका सकता।
वह स्नेह व प्यार
वे आदर्श की शिक्षाएँ
जो उसने दी
और कौन दे सकता है ?
जननी की शिक्षा में ही छिपी है
हमारे जीवन की सफलता।
हमारी कितनी नादानियों को
वह करती है माफ।
हमारी चंचलता
हमारा हठ और
हमारी शरारतें
वह करती है स्वीकार।
वह है सहनशीलता की प्रतिमूर्ति
उसकी अंतर आत्मा के ममत्व में
प्रकाषित होती है अंतर ज्योति।
जीवन के हर दुख में
वह रही है सहभागी
लेकिन जब सुख के दिन आए तो
वह चलने लगी
प्रभु की तलाश में
एकांत प्रवास में।
हम उसे नही रोक सके
लेकिन उसके पोते पोतियों ने
कर दिया कमाल
जाग उठी उसकी ममता
और दादी रूक गई।
दादी के फर्ज ने उसे रोक लिया
और वह रूक गई।
संसार का नियम है
एक दिन तो उसे भी जाना है
अनन्त में
पर वह जाएगी
हमें अपने पैरों पर खडा करके
हमें स्वावलंबी बनाकर
हेागी वह अलविदा।
03. कवि और कविता
मैं कवि हूँ
संवेदनशील व सृजनात्मक
सृजनकर्ता हूँ।
समय परिवर्तित हुआ
पर मैं
पुरातनपंथी ही रहा,
अब सृजन कम
उसका गुंजन ज्यादा हो गया।
कवि की संवेदना
और उसका प्रेम
आधुनिकता में
कही खो गया।
अब कविता
सृजन का नही
मनोरंजन का साधन है।
जो कर रहे है
इस समय से समझौता,
साहित्य,संस्कृति और सभ्यता को
दे रहे है धोखा।
कविता डिस्को की थिरकन नही है
वह श्रोता या पाठक को
चिंतन मनन और अनुभूति की
दायिका है
युवा अन्तरमन में करती है
भावनाओं का संचार।
राष्ट्रीयता के हित में हो
कवि का सृजन,
ऐसा हो उसके हृदय में
मंथन, चिंतन और मनन।
04. तेरा मेरा
कीचड में कमल और
काँटों में गुलाब खिलता है
तेरा-मेरा का मनन और चिन्तन
करता है विश्वास पर आघात और
दिखलाता है अपना विकराल स्वरूप।
मानव सोचता है
यह भी मेरा
वह भी मेरा
सब कुछ मेरा।
जितनी भी अच्छाइयाँ है
वह सब मेरी
जितनी भी बुराइयाँ है
वे सब दूसरों की।
यही है विवाद की पृष्ठभूमि और
यही है सुख को दुख में
परिवर्तित करने की दास्तान।
यदि हो जाए हमारी सेाच में परिवर्तन
जो मेरा वह तेरा भी
आ जाए यह दृष्टिकोण
तो विवाद होंगे समाप्त
जीवन होगा कमल सा सुन्दर और
गुलाब सा खुशबूदार।
आओं हम प्रण लें
तेरा-मेरा में उलझकर
समय और उर्जा बर्बाद नही करेंगे।
जो वास्तव में मेरा है
वही मेरा है
बाकी सब तेरा है।
इस भावना का उदय करेंगे
अपना संसार
खुशियों से भरेंगे।
दूसरों के लिए
प्रेरणा के स्त्रोत बनेंगे।
05. अहिंसा परमो धर्मः
अहिंसा परमो धर्मः
कभी थी हमारी पहचान
आज गरीबी और मँहगाई में
पिस रह इंसान
जैसे कर्म करो
वैसा फल देता है भगवान।
पर कब, कहाँ और कैसे
नही समझ पाता इंसान।
मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, चर्च
सभी बन रहे हैं आलीशान।
कैसे रहें यहाँ पर
प्रभु स्वयं है परेशान
वे तो बसते है
दरिद्र नारायण के पास।
हम उन्हें खोजते है वहाँ
जहाँ है धन का निवास।
पूजा, भक्ति और श्रद्धा तो
साधन है
हम इन्ही में भटकते है।
परहित, जनसेवा और
स्वार्थरहित कर्म की ओर
कभी नही फटकते है।
काल का चक्र
चलता जा रहा है।
समय निरंतर गुजरता जा रहा है।
दीन दुखियों की सेवा
प्यासे को पानी
भूखे को रोटी
समर्पण की भावना
घमंड से रहित जीवन से होता है
परमात्मा से मिलन
अपनी ही अंतर्रात्मा में
होते है उसके दर्शन।
जीवन होगा धन्य तुम्हारा
प्रभु की ऐसी कृपा पाओगे
हँसते हँसते अनंत में विलीन हो जाओगे।
06. जननी और जन्मभूमि
सूर्योदय की बेला में
जननी और जन्मभूमि को
हम करें याद।
हम पर है इनके अनमोल अहसान
जिन्हें कभी नही चुका सकते
हम और आप।
इनकी अपेक्षाओं को पूरा करने का
हम करें प्रयास।
मानवीयता को करें अंगीकार
और फिर गुँजाएँ
विश्व-शांति का पैगाम।
इतनी ही है इनकी अपेक्षा
हम कब इसे करेंगें पूरा
वही है इनकी प्रतीक्षा।
यह शाश्वत सत्य है कि
इनका आशीष
जीवन की धुरी है
और है सफलता का आधार।
इसे करें स्वीकार
तब जीवन होगा
सूर्य सा प्रकाशवान।
सरिता के बहते जल सा
निरन्तर गतिवान।
यह है सृष्टि का नियम
इसे करें अंगीकार
सही दिशा में
सही राहों पर
चलते रहे।
बढ़ते चलें।
पूरी करते रहें
जननी और जन्मभूमि की अपेक्षा।
07. जीवन और हम
जीवन में
असफलताओं को
करो स्वीकार
मत होना निराश
इससे होगा
वास्तविकता का अहसास।
असफलता को सफलता में
परिवर्तित करने का करो प्रयास।
समय कितना भी विपरीत हो
मत डरना
साहस और भाग्य पर
रखना विश्वास
अपने पौरूष को कर जाग्रत
धैर्य एवं साहस से
करना प्रतीक्षा सफलता की
पौरूष दर्पण है
भाग्य है उसका प्रतिबिम्ब
दोनो का समन्वय बनेगा
सफलता का आधार।
कठोर श्रम, दूर दृष्टि और पक्का इरादा
कठिनाईयों को करेगा समाप्त
होगा खुशियों के नए संसार का आगमन
विपरीत परिस्थितियो का होगा निर्गमन
पराजित होंगी कुरीतियाँ
होगा नए सूर्य का उदय
पूरी होंगी सभी अभिलाषाएँ
यही है जीवन का क्रम
यही है जीवन का आधार।
08. जीवन ऐसा हो
विसंगतियों और कुरीतियों का
हो विध्वंस
व्याभिचार एवं अनीतियों का
हो मर्दन
स्वविवेक और स्वचिंतन से हो
नूतन सृजन।
सभी के प्रति हो स्नेह और
सभी से मिले प्यार
श्रम से परिपूर्ण हो जीवन
हृदय और आत्मा में हो
प्रभु के प्रति विश्वास और समर्पण
नदी में प्रवाहित जल के समान
जीवन में
नित नई उपलब्धियाँ हों।
सदाचार, सदभावना और सद्बुद्धि
चिंतन और मनन से निर्धारित हेा
जीवन का लक्ष्य।
जीवन में हो
सुख, समृद्धि, वैभव और मान-सम्मान।
प्रभु की अनुकम्पा से पूरा हो
लक्ष्य को प्राप्त करने का संकल्प।
परपीडा केा दूर करने के लिए
खुले रहे दोनो हाथ।
समाज के हर वर्ग
की प्रगति में हमारा
तथा हमारी प्रगति में
समाज के हर वर्ग का
येागदान हो।
तन, मन व मस्तिष्क में हो
राष्ट्र प्रथम की भावना।
कर्तव्य के रूप में यह भावना
हमारे जीवन में समाहित हो।
ऐसा जीवन हमारा हो।
09. मार्गदर्शक
गुरू बिना ज्ञान नही
माता-पिता के आशीर्वाद के बिना
सही राह की पहचान नही।
हम कर रहे कठोर परिश्रम
लेकिन नही मिल रहे अपेक्षित परिणाम
व्यर्थ जा रहा है समय
क्योंकि हम नही पहचान पा रहे हैं
सही समय,
नही है हममें
सही निर्णय लेने की क्षमता
मन में उपज रही है कुंठा।
अपनी बौद्धिक क्षमता को
धनुष समझें,
धैर्य को धारण कर
कर्म के तीर चलाएँ
सफलता अवश्य मिलेगी।
जीवन में होगा नई ऊर्जा का संचार
समाज को मिलेगी नई दिशा
तभी पूरी होगी
हमारे गुरू और माता पिता की आशा।
10. धर्म और कर्म
धर्म और कर्म में
कौन है महान ?
प्रश्न है जटिल
समाधान भी नही है आसान।
धर्म से कर्म या
कर्म से धर्म
सच क्या है ?
सोच रहा इंसान
धर्म नही होता तो
कर्म होता
अनियन्त्रित और अव्यावहारिक।
मानव का कर्म
सद्कर्म है या दुष्कर्म
अंतर समझ में नही आता।
धर्म देता है इसका ज्ञान
धर्म ही है वह राह
जिस पर चलकर
कर्म बनता है सद्कर्म।
धर्म के बिना
मानव होगा दिग्भ्रमित
और उसे नही हो सकेगी
सही दिशा की पहचान।
सभी धर्मों का
एक ही है मूलाधार
जो बतलाता है
मानवता है धर्म
और मानवीयता है कर्म
इसीलिए
धर्म और कर्म
दोनो ही है महान।
11. सच्चा प्रेम
प्रेम एक अनुभूति है
जिसका कोई स्वरूप नही
जिसका कोई विकल्प नही
एक ज्योति है
हृदय में हेाता है जिसका प्रकाष
एक अहसास है
एक कल्पना है
जो वास्तविकता में परिवर्तित हो
बनती है जीवन का आधार
एक तपस्या है
भावनाओं का समर्पण है
एक ऐसी भक्ति है
जिसका प्रारम्भ है
परंतु अंत नही है।
यह तिरस्कार नही है
इसमें है सुख और षांति
इसमें है जीने की कला
यह देता है
तन और मन को बल
आत्मा को चेतना।
विपरीत परिस्थितयों में भी
होता है समर्पण
यही तो है सच्चा प्रेम।
जिसमे अहंकार होता है अर्पण l
12. जीवन का आधार
मेहनत, ईमानदारी, लगन,
तप, त्याग और तपस्या,
सत्य, अहिंसा, सदाचार,
सहृदयता और परोपकार
इनका नही है कोई विकल्प।
ये सभी है हृदय में
स्पन्दन के प्रणेता।
इनके होने से ही
मन कहलाता है मंदिर।
सत्य की होती है पूजा
पाप और पुण्य का निर्णय
जीवन में सही लक्ष्य और
सही राह चुनने की
अपेक्षा व प्रतीक्षा हो
ऐसा लो मन में संकल्प।
मनसा-वाचा-कर्मणा
जीवन का एक रूप बनेगा
जीवन में सफलता का आधार
और इनके चिंतन मनन व प्रेरणा से
होता है जीवन का समग्र विस्तार।
13. हमारी संस्कृति
हृदय से निकली अनुभूति
कविता बनती है।
सुरों की साधना
स्वरों में ढलकर
प्रसिद्धि पाती है।
कविता है भक्ति और
संगीत है उस भक्ति की अभिव्यक्ति।
एक समय था
कविता और संगीत
सकारात्मक सृजन की दिशा में
शिक्षा के रूप में
मील के पत्थर थे।
आधुनिकता एवं आयातित संस्कृति के
बाहुपाश ने इसे जकड लिया है।
कविता और संगीत की
भावनात्मकता और रचनात्मकता
खो रही है।
आधुनिकता ने इन्हें
कर दिया है आहत
इन्हें बना दिया है
उछल-कूद का साधन
अश्लीलता, फूहड़ता और कामुकता ने
बदल दिया है इनका रूप
अब पुनः युवा पीढ़ी को
समझना होगा
संगीत और कविता की आत्मा
उसका महत्व
और उसे सार्थक करते हुए
समाज में
उन्हें करना होगा
पुनः स्थापित।
14. भूख
गरीबी और विपन्नता का
वीभत्स रूप है भूख।
राष्ट्र के दामन पर
एक काला धब्बा है भूख।
सरकार गरीबी खत्म करने का
कर रही है प्रयास
पाँच सितारा होटलों में बैठकर
नेता कर रहे है बकवास।
गरीब भूख से हैं बेहाल
कर रहा है मदद का इंतजार
जनता चाहती है
सब कुछ करे सरकार।
यदि सब मिलकर करें प्रयास
प्रतिदिन करें एक रोटी की तलाश
तो हो जाएगा भूख का निदान।
यह कटु सत्य है कि
भूखे भजन ना होय गोपाला
पहले भूखे को रोटी खिलाइए।
निठल्ला मत बैठाइए
रोटी के बदले श्रम करवाइए।
तभी हो सकेगा देश में
नई सोच का शुभारंभ।
मिटेगा भूख का अभिशाप
नई सुबह का होगा प्रारंभ।
अपराधीकरण होगा कम
स्वमेव आएगा अनुशासन
भूख और गरीबी का होगा क्षय
होगा नए सूर्य का उदय।
15. वेदना
जीवन में कभी भी
किसी के प्रति भी
मन में मत रखो
तिरस्कार की दुर्भावना।
इससे उसकी आत्मा को
होगी वेदना,
यह वेदना
तुम पर भी करेगी प्रहार।
उसके कष्ट का दंड
भोगना पडेगा
तुम्हें भी बारम्बार
हर प्राणी में होती है
आत्मा और संवेदना
वह महसूस करती है कष्ट
आत्मा को कष्ट से बडा पाप नही
और उसकी खुशी से बडा
पुण्य नही।
इसी जन्म होता है
धर्म-कर्म का हिसाब-किताब।
किसी की भी आत्मा को
कष्ट देने से बचो,
कभी भी किसी को भी
प्रताडित मत करो।
किसी को सुख देागे
तो स्वयं भी सुख पाओगे।
यहाँ भी सुखी रहोगे
वहाँ भी सुख पाओगे।
16. निर्णय
तुम क्या सेाचते हो
उसका चिंतन करो।
यह मत सोचो
दुनिया क्या सेाच रही है।
अपने मनन और चिंतन से
आगे बढो।
निराशा को
अपने उत्साह पर
हावी मत होने दो।
निर्णय तुम्हें करना है
रास्ता तुम्हें चुनना है।
तुम्ही हों अपने
भाग्य और भविष्य के निर्माता।
सृजन करो !
प्रशंसा पर मद मत करो
कर्म पर विश्वास रखो
धर्म को कर्म का आधार बनाओ
जीवन समर्पित करो
सेवा और सद्भाव हेतु
सृजन हो सकारात्मक और प्रशंसनीय
तब जीवन बनता है अनुकरणीय।
17. कठिनाईयाँ
कठिनाईयों में
कठिनाईयों को
कठिन होते हुए भी
कठिन मत समझो।
कठिनाईयाँ हैं
मन का भ्रम।
हममें है
इन्हें खत्म करने की शक्ति
और इन्हें खत्म करने का दम।
जीवन में ऐसी कोई कठिनाई नही
जिसका हल संभव न हो।
करनी पडती है प्रतीक्षा,
विलम्ब संभव है
हारना नही है
ये अवश्य खत्म होंगी।
विपरीत परिस्थितियों को समझो
उन्हें हँसते हुए स्वीकार करो
उनसे संघर्ष करो
प्रभु पर विश्वास रखो।
विजयश्री प्राप्त करके
मत भूलना
यही है जीवन का अनुभव
यही बनता है
जीवन में सफलता का पर्याय।
18. वक्त
वक्त हमारा मित्र है
उमंग, तरंग एवं सृजन का
जन्मदाता है
पोषणकर्ता है।
वक्त की सही पहचान है,
जीवन में सफलता की कहानी।
वह है आशाओं का उद्गम
और है कल्पनाओं का
वास्तविकता में परिवर्तन।
हम वक्त को पहचानने का
प्रयास तो करें
सही समय पर दस्तक तो दे
वह तो सभी को उपलब्ध है।
वह नही करता है
अमीर और गरीब का भेद।
जिसने वक्त को समझ लिया
सही समय पर
और बना लिया
उसे अपना साथी।
जीवन में उसी ने
पा लिया
सुख, शांति और वैभव।
वक्त सबसे बडा दाता है
हम इसे समझें
और कृतज्ञ हो
हृदय से समर्पित हो।
दम्भ से रहित रहें
विनम्रतापूर्वक
वक्त को नमन करें।
19. अभाव
आवश्यकता अविष्कार की
जननी है
और आवश्यकता का
जनक है अभाव।
इस शब्द का जीवन में है
जोरदार प्रभाव।
यह करता है सृजन और
बनता है नई दिशा का संकेत।
यदि यह न हो तो
जीवन हो जाएगा
नीरस और स्थिर।
अवरूद्ध हो जाएगी
प्रगति की दिशा।
आवश्यकता और अभाव
हमें बनाते है गतिवान।
प्रतिदिन करते है
नूतन इतिहास का सृजन
जीवन में सन्तुष्टि का अभाव
अभावों को कभी
खत्म नही होने देता
इसीलिए समाप्त नही हो सकती
आवश्यकता।
इसलिए होते रहेंगे
नए-नए अविष्कार।
20. मन्थन
प्रातः काल की बेला
सूर्य का उदय
सभी दिशाओं में बिखरा हुआ प्रकाश
हृदय और मस्तिष्क में कर रहा
आज की दिनचर्या का चिन्तन
आज के कार्यों का
और उनके संपन्न होने का
हो रहा है मन्थन
प्रभु की कृपा का अहसास
जिस पर है हमारा विश्वास।
अपने में
अपने ही विचारों का
हो रहा है गहन अध्ययन।
हम सही राहों पर चलने का
अपने बुजुर्गों से लें मार्गदर्शन
जो करता है जीवन में नए सृजन।
जीवन का ऐसा हो क्रम
जो समाज में करे सकारात्मक परिवर्तन
हमेशा दे सही दिशा और मार्गदर्शन।
इसी से होता है
कल्पनाओं और सपनों का
वास्तविकता में परिवर्तन।
यही हैं मन्थन।
21. यथार्थ
जीवन में नैतिकता एवं विश्वास हो
भाग्य के साथ साथ
स्वाभिमान भी साथ हो।
बुद्धिमत्ता और धैर्य में
समन्वय और सामंजस्य हो
तब ये बनते हैं
सफल जीवन के आयाम।
अपनी संस्कृति और सभ्यता के प्रति
मानव प्रतिबद्ध हो।
अवसरवादिता, मानवीयता का
दमन ना कर सके।
तन, मन और आत्मा के
संघर्ष के बीच भी
परमात्मा का अटूट विश्वास हो।
धैर्य और बुद्धि को हो
उचित समय की प्रतीक्षा।
ये सभी मिलकर बनते हैं
सफलता के सुदृढ़ आधार।
अपनी दृष्टि को सजग रखो
सावधान रहकर करो
चिंतन और मनन,
ये सभी तुम्हारे पास हैं
इन्हें संतुलित रखने की कला है
सुख, समृद्धि और संपन्नता का आधार।
22. विवेक
विवेक को जब हम
खो देते है
तब हम खो देते है
अपने भीतर का इंसान।
क्रोध व संताप
नही है जीवन
वह लाता है दुर्दिनों को
और दुर्दशा को देता है जन्म।
विवेक को खोना
मिटा देता है
उचित और अनुचित का भेद।
बुद्धिमान कभी नही खोता
अपना विवेक।
विपरीत परिस्थितयों में भी
रखता है संयम
और बैठाता है सामंजस्य।
बुद्धिहीन
नही करता है प्रतीक्षा
विवेकहीन होकर
होता है पराजित।
खो जाता है
काल के गाल में
विवेकशील पाता है
गंगा सा प्रेम और ममता
यमुना सी हृदय की कोमलता
और सरस्वती के समान निर्मलता।
सृजन करता है
नया इतिहास और
जग में पाता है मान सम्मान
और विशिष्ट स्थान।
23. आशा
आशा है एक चमत्कारिक शब्द
सूर्योदय की प्रकाश की किरणों के समान
करता है ऊर्जा का संचार
निराशा का करता है प्रतिकार
मत भूलो
आशा पर ही टिका है संसार।
यह कराता है
मन को सुख का अहसास
यह एक चेतना है
जो करती है मनन और
चिंतन का मार्गदर्शन
आशाओं के आच्छादित रहे
यह संसार
तभी होगा
सद्भाव, शांति और सदाचार
आशा के प्रकाश से प्रकाशित रहे
हमारा अन्तर्मन
सफलता के प्रति
आशान्वित रहे जीवन
वही है जीने की कला और
जीवन का श्रृंगार।
24. सृजन
सृजन जीवन है
जीवन है तभी सृजन है
सृजन है भावनाओं
और कल्पनाओं को
वास्तविकता में परिवर्तित
करने की कला।
मन में सकारात्मक सोच हो तो
सृजन देता है जन्म
वैचारिक क्रांति को।
सृजनकर्ता एक दिन चला जाता है
पर उसका सृजन यही रहता है
उसकी कर्मठता की
विजय गाथा बनकर।
जब तक वह रहता है अपने सृजन में
उसे दिखता है अपना ही प्रतिबिम्ब।
उसके अनन्त में विलीन होने पर
समाज उसके सृजन में
देखता है उसका प्रतिबिम्ब।
समाज को दिशा देने वाला सृजन
अनन्त में विलीन हो जाने पर भी
उसे कर देता है अजर-अमर।
हम भी करें कुछ ऐसा सृजन
और फिर उसे कर दें
समाज को समर्पित।
25. प्रेम
प्रेम पुजारी है हम
प्रेम की ज्योतिर्मय गंगा बहाते चलो।
राह में जो आएँगी कठिनाइयाँ
उनको प्रेम से मिटाते चलो।
प्रेम है पूजा, श्रद्धा, भक्ति
प्रभु को पाने का आधार
प्रेममय वसुन्धरा को बनाकर
हर्ष एवं उल्लास का जीवन
साकार करते चलो।
प्रेम से दिलों को जीतकर
उन पर राज करते चलो।
माता-पिता से प्रेम का आशीर्वाद लेकर,
नवजीवन जीते चलो।
प्रेम है चेतना
सामाजिक शांति का आधार
अपनी कल्पनाओं को
प्रेममय रूप में साकार करो
प्रेम से जीवन जीकर
प्रेममय रस में विभोर होते हुए
अनन्त में प्रस्थान करो।
26. जीवन का आधार
जीवन में, कटुता के भाव
कुटिलता का व्यवहार
सृजन पर अहंकार
मित्रता पर संदेह का वार एवं
संवाद में हुँकार।
कटुता और कुटिलता
करती है चरित्र का पतन
अहंकार करता है
मानसिक विकृतियों का उन्नयन
सृजन तो है
मानव का नैतिक कर्तव्य
मित्रता में संदेह
कर देता है मित्रता का अंत
और संवाद में हुँकार
बना देती है उसे विवाद।
मन निर्मलता, वाणी में मधुरता
व्यवहार में निश्छलता
सृजन में समर्पण
और हो सीमित शब्दों का प्रयोग
तो जीवन में होगी
बहार ही बहार
ये ही तो है
जीवन में सुख का आधार।
27. सांस्कृतिक प्रदूषण
हम अपनी संस्कृति
और सभ्यता पर करें गर्व
जीवन में आधुनिकता को अपनाएँ
पर मर्यादा को नही भुलाएँ
एक दिन देखा
एक तथाकथित आधुनिक चित्र
वह चित्र कला था
या संस्कृति पर आघात ?
आधुनिक साहित्य को पढकर
मन पर लग रही है चोट।
आधुनिकता के नाम पर
सृजनात्मकता व रचनात्मकता के स्थान पर
यह कैसे साहित्य का
सृजन हो रहा है
जो कर रहा है
युवा पीढी को दिग्भ्रमित
और पथभ्रष्ट।
कलाकारों और साहित्यकारों को भी
नैतिक और सामाजिक रूप से
आचार संहिता का पालन करना चाहिए।
आधुनिकता के नाम पर
कला और साहित्य से खिलवाड
रोका जाना चाहिए।
सृजन ऐसा हो
जो समाज को दे नई दिशा
ऐसा सार्थक व
प्रशंसनीय प्रयोग होना चाहिए।
28. कर्म
चलते चलते
जीवन पथ पर
अनजानी राहों पर
आप मिले और हम
सपनों में खो गए।
तुम बने मेरे मीत
और तुम्हारा प्यार
बन गया जीवन का संगीत।
मुझे मिला नवजीवन
हर पल सुनहरा हो गया
मैं प्यार के मधुर स्वरों में खो गया।
मेरी आँखों से
छलकने लगे प्रेमाश्रु
अर्पित होने लगे
प्रभु के श्री चरणों में।
तुम्हारा प्यार पाकर
मेरा रोम रोम हर्षा
हमारे जीवन में होने लगी
सुख समृद्धि और वैभव की वर्षा।
जीवन पथ पर चलते चलते
तुमने ही मुझे समझाया
जन्म मृत्यु है
जीवन का सत्य
और यह सत्य है
प्रभु के हाथों में।
यह थी प्रभु की कृपा
जो तुम मुझे मिले
तुमसे मिलकर
मैंने जानी जीने की कला
जीवन का सत्य
और जाना
सार्थक जीवन में ही छुपा है
जीवन का अमरत्व।
29. नैतिकता
नैतिकता
बाजार में नही मिलती
यह एक आध्यात्मिक गुण है
जो करती है सभ्यता का विकास
और संस्कृति का निर्माण
यह है हमारी जीवन चेतना का आधार
पर हम भटक रहे हैं
इसे खोज रहे है दूसरों में।
धन से प्राप्त हेा सकते है
भौतिक सुख
पर नही खरीदे जा सकते
जीवन के मूलभूत सिद्धांत
ये बिकाऊ नही होते
ये है सूर्य की पहली किरण के समान
हमारे हृदय को
ये प्रदान करते है ऊर्जा
इन्ही से प्रकाशित है
जीवन की राहें
इन पर चलकर ही मिलेगा
सुख-समृद्धि और वैभव
और इन पर चलकर ही
मोक्ष का द्वार।
30. पत्रकारिता
पत्रकारिता, समाज की दिशा दर्शक
सभ्यता और संस्कृति की प्रहरी।
प्रतिदिन की घटनाओं को
संसार के उन्नयन और अवनमन को
समय की प्रतिबद्धता के साथ
समाज के सामने रखता
सुबह का अखबार
समाज का आइना था।
पत्रकार स्वतंत्र और निष्पक्ष था।
अर्थ तंत्र ने
दोनो पर किया प्रहार
पत्रकारिता और पत्रकार
हानि लाभ के गणित में उलझे
व्यवसायी हो गए।
अभी भी समय है
सरकार आगे आए
पत्रकार को आर्थिक रूप से सक्षम बनाए
पत्रकारिता को
व्यवसायितकता से मुक्त कराए
तभी समाचार पत्र
समाज का आईना बन पाएगा
पत्रकार अपनी
सच्ची भूमिका निभा पाएगा।
31. प्रगतिशीलता
वायु, प्रकाश और जल का
कोई धर्म नही
संप्रदाय नही
जातिगत भेदभाव नही
आपस में विवाद नही
विद्वेष नही
सभी से समान व्यवहार
सभी को हर समय उपलब्ध
कोई सेवा कर नही
सभी को समझाते है
मानवता की सेवा का महत्व।
हम अपने में
अपने आप को भूल जाते है
धर्म, संप्रदाय और जातिगत भेदभाव में
खो जाते है
जब तक हम
वैचारिक रूप से नही सुधरेंगे
तब तक
राष्ट्र में नही आएगी
सकारात्मक परिवर्तन की क्रांति।
मन में राष्ट्र प्रथम की भावना लाइए
और अपने राष्ट्र को
एक महान राष्ट्र बनाइए।
32. पत्थर और आस्था
एक पत्थर पर
एक व्यक्ति ने लगा दिया सिंदूर
पूजा पाठ हो गया आरंभ
पत्थर में हो गया प्रभु का वास
पुजारी भी आ गए
शुरू हो गई
एक नई कहानी
आशीर्वाद पाने उमडने लगी भीड
धन की वर्षा होने लगी
भावनाओं के सैलाब में
बहने लगे श्रद्धालु।
पत्थर के आसपास
बन गया मंदिर
संत आने लगे
महंत वही जम गए
अपने भाग्य पर गर्वोन्नत पत्थर
सुबह सुनहली किरणों के संग जागता
रात में दूधिया चाँदनी में नहाता।
अब उस मंदिर का है
दूर दूर तक नाम
वह बन चुका है
एक बडा धाम।
इंसान के सृजन में
वह ताकत है कि वह
पत्थर को
बना सकता है भगवान
लेकिन वह
इतना दुर्बल भी है
मानव को
नही बना पाता इंसान।
33. दिशा
प्रेरणा, प्रयास और संघर्ष
जीवन में हैं
ब्रह्मा, विष्णु और महेश।
मस्तिष्क में होता है
चिंतन और मनन
हृदय में होता है विचारों का जन्म
फिर होता है
सही विचारों का चयन
और फिर होता है
जीने की कला का शुभारंभ।
विचार बनते हैं
अपेक्षाओं के जन्मदाता
प्रतीक्षा जागती है
उनकी पूर्णता की।
अभ्युदय होता है
संघर्ष का,
संघर्ष रहेगा तब तक
सफलता नही मिलेगी जब तक।
दृढ़ निश्चय,
आत्म विश्वास
दूरदृष्टि,
पक्का इरादा
और अनुभव से
संघर्ष होता है सफल
सूर्योदय के प्रकाश के समान
सफलता दिखलाती है
जीवन को नई दिशा का शुभारंभ।
34. सृजन का आधार
साहित्यकार
चिंतन, मनन में लीन
भावनाओं के प्रवाह में तल्लीन
हाथ में कलम
स्वयं से करता प्रश्न
वह क्यों कर रहा है
साहित्य का सृजन ?
धन की लालसा नही
मान सम्मान की अपेक्षा नही
बस ज्ञान को लिपिबद्ध करने की लालसा
इतिहास के पृष्ठों पर
वर्तमान की तस्वीर से
आनेवाली पीढी
परिचित हेा, लाभान्वित हो
यही है उसकी अभिलाषा
जहाँ समाप्त हो रही है उसकी रचना
भविष्य में कोई करेगा
वहाँ से प्रारम्भ
मिलेगी उसे
संतोष व प्रसन्नता
यही है उसके
सृजन का आधार।
35. दिशा और राहें
जीवन पथ प्रायः होता है
अनजाना, संकटपूर्ण,
कंटकपूर्ण और संघर्षभरा।
पथिक होता है प्रायः
दिग्भ्रमित।
यदि सही मार्गदर्शक मिल गया तो
पहुँच जाता है वह अपने गंतव्य पर।
अन्यथा भटकने में
समय नष्ट करता है।
बचपन में माता पिता
जवानी में पत्नी और परिवार
वृद्धावस्था में साधु और संत
देते हैं मार्गदर्शन।
यह मार्गदर्शन ही
बनता है
हमारे जीवन की सफलता का आधार।
यदि दिशा सही तो
सफलता निश्चित।
लेकिन यदि हो गए दिग्भ्रमित
तो आजीवन उलझन।
हम भटकते रहते है
सही राह की चाह में।
इसीलिए कहते हैं
सबकी सुनो
और फिर अपने विवेक से
उसकेा चुनो।
तभी मिलेगी सही दिशा,
तभी मिलेगी सही राह
ओर तभी मिलेगी सफलता।
36. हमारा जीवन
धोखा व फरेब मत करो
वाणी पर संयम रखो
धोखा और फरेब
थोडे समय के लिए
दे सकते है लाभ और खुशी
पर दीर्घकाल में
कर देंगे तुम्हारा विनाश।
जीवन में इससे बढकर
नही है दूसरा कोई पाप।
क्या तुम स्वयं को
धोखा देनेवाले को
कर सकते हो माफ ?
वाणी पर संयम है
हमारी संस्कृति का
एक बहुमूल्य सूत्र
इसके अभाव में
बनते हैं हँसी के पात्र
और होते है तिरस्कृत
गँवा बैठते है अपना
मान और सम्मान।
इसीलिए सँभलकर रहो
मान मर्यादा कलंकित ना हो।
क्या कोई अपने साथ हुए
दुव्र्यवहार को भूलता है ?
यदि हाँ,
तो वह संत है
उसे समय देकर
प्राप्त करो मार्गदर्शन।
सही दिशा में चलकर
प्रकाश पुंज बनकर
समाज में बनो
देदीप्यमान नक्षत्र।
37. अमीरी गरीबी
गरीबी से अधिक दुखद है
गरीबी का एहसास।
यह मन में लाता है
हीनता, आक्रोश और अवसाद।
अमीरी का एहसास भी
जन्म देता है
दुर्गुणों और अहंकार को।
दोनो ही स्थितियाँ
इंसान के लिए घातक है।
गरीब दो वक्त की रोटी
सीमित आवश्यकताएँ, सुख की नींद।
अमीर, रोटी है, और है
अधिक अमीर बनने की चाहत, निद्रा विमुख।
अत्याधिक अमीर एवं गरीब
दोनो से दूर रहता है सुख।
मानव अपनी आवश्यकताओं को
सीमित करें, तभी होगी
सुख की अनुभूति और तब
अमीर हो या गरीब
प्रसन्नता से जी सकेंगे सुख का जीवन।
गरीबी एवं अमीरी कर्मों का फल है।
भूमिगत जल, रेत, मिट्टी और पत्थर
के नीचे जाने पर ही प्राप्त होता है
जीवन में जनहितकारी भावना से
सद्कार्य करने से ही सुख प्राप्त होता है।
यह है जीवन का शाश्वत सिद्धांत
कल भी था, आज भी है
और कल भी रहेगा।
38. माँ
जब तक साँस है
तब तक आस है।
आस है जब तक,
साँस है तब तक।
चिंता नहीं है उपाय
यह देती है परेशानी
और करती है दिग्भ्रमित।
कर्मों का प्रतिफल
भोगना ही होगा
इससे मुक्त नहीं हो सकते।
कर्तव्यों को पूरा करो
जो हार गया
उसका अस्तित्व समाप्त हो गया।
पराक्रमी बनो,
संघर्षशील बनो,
सफलता अवश्य मिलेगी।
ये शब्द वह कह रही थी
हमें याद है उसका जीवन संघर्ष
अंतिम समय तक थी उसमें
जीने की चाह
समय पूरा हुआ
उसे मालूम था
फिर भी वह कर रही थी संघर्ष
उसने हमें आदेश दिया-
अब खिड़की खोल दो
मुझे जाना है प्रभु की शरण में
ये चिकित्सक,ये दवाएँ हटा दो
मुझे शांति दो, मुक्त करो
हिम्मत रखो, विचार मत करो।
उसका अंतिम संदेश
कहते-कहते वह विदा हो गई
हमें बतला गई
जीवन के सूत्र।
39. परिश्रम
मानव ने
बुद्धि व परिश्रम से
किए अभूतपूर्व सृजन
नदी की बहती धारा को
किया परिवर्तित
और दिया बाँधों को जन्म।
जल का किया उपयोग
भूमि को बनाया उर्वरा
पर मानव नही कर पाया
अपने ही स्वभाव और
विचारों में परिवर्तन।
वह उलझा हुआ है
भटक रहा है
काम, क्रोध, लोभ, मोह माया में।
हमें अपने विचारों को मोडना होगा
सृजन की भावना लाना होगा
तभी धरती बनेगी
स्वर्ग भूमि
और कलयुग परिवर्तित होगा
सतयुग में।
हमें छोडना होगा
अहंकार और स्वार्थ
तभी जीवन होगा गतिमान
हम प्रयास करें
सद्भाव और मानवीयता को
अपनाने का
और ऐसी भावना पाने का
जो दिखाए समाज को नई दिषा
और राष्ट्र को बनाए सृदृढ
राष्ट्र प्रथम की भावना के प्रति
करें स्वतः को समर्पित
तभी हो सकेगा
राष्ट्र में परिवर्तन
एक नया जागरण।
40. दिशा
संसार में जीवन का
सदुपयोग भी है और
दुरूपयोग भी।
दिशाहीन जीवन
होता है निरर्थक।
दिशा से निर्धारित होती है
सही राह।
माता पिता, शिक्षा, अनुभव,
हितैषी, प्रभु की कृपा और
भाग्य का साथ
करता है सही दिशा का निर्धारण।
यदि जीवन की दिशा सही है तो
जीवन में है
सुख, समृद्धि, वैभव और सफलता
मानव करेगा सृजन
होगा समाज का उत्थान
दिषा गलत होगी तो
जीवन का होगा पतन
अस्तित्व का होगा नाश
जीवन होगा परास्त
सावधान रहो !
दिशा के चयन में
यही है सफलता का आधार।
41. अनुभव
अनुभव ने बताया है
रहो सजग और सावधान
दूसरों से अधिक अपनो से
जहाँ विश्वास हेाता है
वही विश्वासघात होता है
नाव वही अस्थिर होती है
जहाँ पानी उथला होता है
दिल वही पर टूटता है
जहाँ स्वप्न में नही सोचा होता है
सफलता तब तक नही मिलती
जब तक परिश्रम नही होता
समय अपनों को पराया
और परायों को
अपना बना देता है
राजनीति में कोई
दोस्त या दुश्मन नही होता
धन जब धर्म पर हावी होता है
पतन वही से प्रारंभ होता है
व्यक्ति जब विवेक खो देता है
तो वाणी मधुरता खो देती है
तो राष्ट्र की अस्मिता पर
प्रहार होता है
संदेह एवं विश्वास
जीवन को
पीडा में परिवर्तित कर देता है
यदि इनसे रहें सावधान
तो बनेगा जीवन में सफलता का आधार
और यदि अनुभवहीनता से
होगा जीवन निर्वाह
तो नर्क बन जाएगा
हमारा संसार।
42. पाप और पुण्य
प्रतिदिन होता है
सूर्योदय और सूर्यास्त
प्रतिदिन होते है
अच्छे और बुरे कर्म
कर्मो से होता है
पाप और पुण्य का निर्धारण
हमारा प्रयास होता है
पुण्य हों, पाप न हों
पर कैसे ?
प्रतिदिन शयन से पूर्व
करें अपने कर्मों पर चिंतन
करें उन्हे पाप और पुण्य में विभाजित
हम ही हों फरियादी
और हम ही बनें न्यायाधीश
स्वयं को दें पुरूस्कार और दंड
धीरे धीरे पाप कम
और पुण्य होंगे अधिक
इसी से होगा भविष्य का निर्माण
पहले हम बनेंगें इंसान
और फिर बनेंगे संत
जीवन होगा सार्थक
समाज के लिए उद्देश्यपूर्ण
जीवन में आएगी संतुष्टि
और मृत्यु भी देगी शांति।
43. भविष्य का निर्माण
अंधेरे को परिवर्तित करना है
प्रकाश में
कठिनाईयों का करना है
समाधान
समय और भाग्य पर है
जिनका विश्वास
निदान है उनके पास
किन सपनों में खो गए
सपने है कल्पनाओं की महक
इन्हें हकीकत में बदलने के लिए
चाहिए प्रतिभा
यदि हो यह क्षमता
तो चरणों में है सफलता
अंधेरा बदलेगा उजाले में
काली रात की जगह होगा
सुनहरा दिन
जीवन गतिमान होकर
रचेगा एक इतिहास
यही देगा नई पीढी को
जीवन जीने का संदेश।
44. प्रेम की सहजता
प्रेम है श्रद्धा
प्रेम है पूजा
प्रेम है वसुधा का आधार
प्रेमी रहें प्रसन्न
प्रेममय हो उनका संसार
दिलों को जीतो प्रेम से
प्रकृति भी देगी साथ
प्रेम बनेगा जगत की
सुख शांति का आधार
प्रेम की ज्योति करेगी
सपनों को साकार
प्रेम से जीना
प्रेम से मरना
सबसे करना प्यार
विश्व शांति का स्वप्न
तभी होगा साकार।
45. प्रार्थना और जीवन
हम किन सपनों में खो गए
अपने ही सपनों के हो गए
कल्पनाएँ बदल गई हकीकत में
जीवन में आ गई बहार
आँखों में रहे ऐसा ही
प्रेम व समर्पण का भाव
यही हो हमारे जीवन की राह
कभी धूप कभी छाँव
कभी सुख कभी दुख
किसी की आँखों के भाव
दिल में कर देते है
एक मीठा घाव
जीवन ऐसा ही रहे हमारा
सुखों से संपूर्ण
प्रभु से प्रार्थना है
करना इसे पूर्ण।
46. सुख का आधार
विद्वता देती है
सद्कर्मों से सृजन को जन्म
मूर्खता करती है
विध्वंस एवं पतन
धैर्य, चतुराई एवं गंभीरता के मिलन से
होते है धर्म से अच्छे कर्म
सत्यमेव जयते
शुभम करोति
सुमंगलम की कल्पना
होगी साकार
जीवन है नाविक
भाग्य है पतवार
सभ्यता एवं ईमानदारी और नैतिकता
नाव पर हो सवार
तो कभी भी नही डूबेगी
भँवर में जीवन की नैया
ऐसी नाव का तो
परमात्मा ही होता है खिवैया।
47. कुटिलता और जीवन
कुटिल, हठी एवं लोभी,
इन्हें किसी से नही है मोह।
सत्य में भी असत्यता की,
यह करते है खोज।
सत्य को जानकर भी
अनजान ये बनते है।
असत्य को सत्य में
परिवर्तित करने हेतु
असफल रहने पर भी
बार बार प्रयास और
प्रहार करते है।
सकारात्मक सृजन
से रहते हैं दूर।
अपनी विचित्र सोच, समझ व
कार्यशैली में रहते है मशगूल।
इन्हें समझाने व राह दिखाने वाले
को समझते है
अपना दुश्मन और मजबूर।
वे समझतें हैं,
अपने को ही न्यायाधीश।
इनके सन्मुख विनम्रता, सहृदयता
एवं व्यवहारिकता भी रहती है मजबूर।
परंतु वह आत्मसमर्पण नही करती,
स्ंघर्ष के लिए रहती है मजबूत।
वक्त निकलता जाता है,
पर कोई समाधान नही हो पाता है।
इसीलिए कहते है
अंगूर है खट्टे और
दिल्ली है बहुत दूर।
48. दो बूँद
दो बूंद स्याही की
धरती पर टपकीं।
उन पर पड़ी
चित्रकार की दृष्टि
उसने अपनी तूलिका से
बना दिया उन्हें
एक चित्र।
अब वे बूंदें
हो गई थीं मूल्यवान।
दो-दो बूंदों से
भर जाता है घड़ा
बुझाता है हमारी प्यास।
पानी की दो-दो बूंदों का
व्यर्थ बहना रोको।
करो इनका संरक्षण
यह देंगी
किसी प्यासे को
नया जीवन।
दो बूंदें
करती हैं पोलियो से रक्षा,
विकलांगता से सुरक्षा,
नवागत के स्वागत में
आँखों में छलकती
दो बूंदें
बिखराती हैं
हर्ष और उल्लास।
मृत्यु पर यही दो बूंदें
अर्पित करती हैं
श्रृद्धा-सुमन।
जीवन में दो बूंदों के महत्व को
करो स्वीकार
इनमें छुपी है
जीवन की अभिव्यक्ति
जीवन की संतुष्टि
और जीवन का आधार।