Chhal - 3 in Hindi Moral Stories by Sarvesh Saxena books and stories PDF | छल - Story of love and betrayal - 3

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छल - Story of love and betrayal - 3

मैने जब फोन उठाया तो फोन पर तुम्हारे पिताजी ने कहा–

"पुष्पा ...मैं आज नहीं आ सकता हूं, मुझे कुछ इमरजेंसी एरिया में जाना होगा, सॉरी...लेकिन मैं वादा करता हूं की मैं जल्दी आऊंगा" |

" मैंने फोन रख दिया मेरे मन में बहुत सवाल और शिकायतें थी लेकिन मैंने नहीं की क्योंकि मैं जानती थी देश की सेवा और अपनी ड्यूटी उनके लिए सर्वोपरि थी और सही भी था ।

मैंने गुस्से में उनकी अलमारी से शराब की बोतल निकाली और पीने लगी, मेरी आंखों में उनका इंतजार अभी भी था ।

रात के दो बज चुके थे, मेरी आंखें नशे और नींद से बोझिल हो रही थी फिर भी मेरे मन में उन्हीं का इंतजार था, मैं जाकर अपने बिस्तर पर लेट गई तभी दरवाजा खटका पहले तो मुझे लगा यह सिर्फ मेरा नशा और मेरा इंतजार मेरे दिमाग में घूम रहा है लेकिन लगातार काफी देर तक डोर बेल बजती रही तो मैंने दरवाजा खोल कर देखा तो आर्मी की ड्रेस में तुम्हारे पापा थे, मैं खुशी के मारे उनके गले लग गई उन्होंने भी मुझे गले से लगाया और चूमने लगे |

मैं उस दिन इंतजार में किसी प्यासी नदी की तरह उनके गले लग गई और हम दोनों अपने बिस्तर पर चले गए फिर….."।

पुष्पा यह कहते-कहते रोने लगी, वह आगे बोल ना सकी उसकी जुबान पर मानो अंगारे सुलगने लगे हो, वो इधर उधर देखने लगी, उसने कोशिश की कुछ और कहने की लेकिन वह नाकामयाब हो गई |

इस पर प्रेरित ने अपने माथे पर पसीना पोछते हुए पुष्पा से पूछा,

" फिर क्या हुआ माँ" |

पुष्पा ने रोते हुए कहा - "जब सुबह मुझे होश आया तो मैं ये देख कर चिल्ला पड़ी क्योंकि जिस आदमी के साथ मैने रात गुजारी वह आदमी अशोक नहीं बल्कि रंजन था, तुम्हारा चाचा, मैंने जैसे ही उसे देखा मैं बिस्तर की चादर अपने शरीर पर ढकने लगी"।

उसने मुझे देख हंसते हुए कहा,

"क्या भाभी.. मुझसे क्या शर्माना, मैं तो आपका अपना ही आदमी हूं, वैसे भी भाभी आपने मेरी वीरान रात को सुहागरात में बदल दिया, सच में मजा आ गया, लेकिन आप घबराए ना ये राज़, राज़ ही रहेगा, बस आप ऐसे ही अक्सर मेरी काली रात को सुहागरात में बदल दिया करिएगा"।

"यह कहकर वो वहां से चला गया, मैं रोती रही मैं किसी से कुछ नहीं कह पा रही थी |

दो दिनों बाद तुम्हारे पिताजी ड्यूटी से घर आए, मैंने उनको बताने की कोशिश की लेकिन इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाई और उनके सामने ऐसे रही जैसे कुछ हुआ ही न हो, उन्हें खूब प्यार करती रही ।

कुछ दिनों बाद मुझे पता चला कि मैं मां बनने वाली हूं, मैं इस बच्चे को रखना नहीं चाहती थी लेकिन मैं मजबूर थी तुम्हारे पिताजी बहुत गुस्से वाले थे, मैं उनको अगर बताती तो हो सकता है कि वह कुछ गलत कदम उठाते इसलिए मैं अंदर ही अंदर ये जहर का घुट पी गई और जब तुम्हारे पिताजी को पता चला कि मैं मां बनने वाली हूं तो बहुत खुश हुए सालों बाद मैंने उनके चेहरे पर ऐसी खुशी देखी थी इसलिए मैंने यह राज अपने सीने में दफन कर लिया लेकिन मैं अपने अंतिम समय में अपने दिल पर यह बोझ रख कर जाना नहीं चाहती और आज तुम्हें सब बता दिया" |