Woman after layer: from the Vedic age to the present - Purnima Mishra in Hindi Book Reviews by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | दर-परत-दर स्त्रीः वैदिक युग से वर्तमान तक

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दर-परत-दर स्त्रीः वैदिक युग से वर्तमान तक

दर-परत-दर स्त्रीः वैदिक युग से वर्तमान तक

पूर्णिमा मित्र, बीकानेर

स्त्री-विमर्श जैसे विवादास्पद व दुसह विषय की, जिन लेखिकाओं ने आम पाठकों तक पहुँचाने का चुनौतीपूर्ण कार्य किया है, नीलम कुलश्रेष्ठ भी उनमें से एक हैं ।

अपनी पठनीयता व समृद्ध सृजनशीलता के कारण नीलम की नवीनतम कृति ‘परत-दर-परत स्त्री’ खास-ओ-आम पाठक को अपने साथ वहाँ ले जाती है ।

इस संग्रह में नीलम के द्वारा रचित साक्षात्कार, रिपोर्ताज व लेखों को, 22 अध्यायों में समेटा गया है । नीलम का स्त्रीविमर्श का आधार पश्चिमी स्त्रीवादियों का अध्यातित चिंतन न होकर, उनके समाजशास्त्रीय शोध व सक्रिय समाजसेवा के अनुभवों पर आधारित हैं ।

इस संकलन में उन्होंने वैदिक युग, मध्यकाल और आज की नारी की, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक और प्रशासनिक स्थिति पर पूरी तटस्थता से दृष्टिपात किया है । आदिम काल की कन्या से लेकर आज की कार्पोरेट सेक्टर की बॉस नारी की आकांक्षा अस्मिता, विवशता, सर्जनात्मकता क्षमता, संकल्प शक्ति, शारीरिक सीमा, बौद्धिक चातुर्य, प्रियतम के लिये अनन्य प्रेमोत्सर्ग भावना का मार्मिक चित्रण करते वक्त, नीलम समस्त पुरुष जाति को दोषी ठहराने या पाश्चात्य नारियों को हेय दिखाने से बची रही हैं । इस संकलन की सबसे बड़ी विशेषता यही है । भाषा की रवानगी, वातावरण के कुशल रचाव के कारण पाठक को लगता ही नहीं है कि वह स्त्रीविमर्श जैसे गंभीर मुद्दे से संबंधित रचना पढ़ रहा है । हिंदी में इस तरह स्त्रीविमर्श संबंधित आमफ़हम भाषा में शोधपूर्ण लेखन हेतु नीलम साधुवाद की पात्र हैं ।

पुस्तक के पहले अध्याय ‘नारी ही शोध का विषय क्यों बनी ’ में नीलम ने भारत में 1952 में ‘आधुनिक भारत में नारी’ में शोध करने वाली डॉ. नीरा देसाई के कृतित्व व व्यक्तित्व का परिचय दिया है । भारत में महिला शोध केन्द्रों को खुलवाने में उनके योगदान की चर्चा की है ।

परिवार में स्त्री को उचित स्थान मिले, इस बात की नीलम पुरजोर मांग करती हैं ।

‘ऋग्वेद व उपनिषद् काल में वर्णित स्त्री की स्थिति’ में वे ऋग्वेद की ऋचाएं रचने वाली सत्ताइस विदुषियों का उल्लेख करती हैं । अपाला व घोषा की ऋचाओं का सार पढ़ते समय पाठकों को पता चलता है, ये स्त्रियाँ भी आम स्त्री की तरह भगवान् से पिता, पति, पुत्र की समृद्धि कामना करती थीं ।

उपनिषद्काल को ये भारतीय संस्कृति का सर्वोत्तम काल मानते हुए, बताती  है कि इसी समय से ‘मातृ देवो भव’ शब्द प्रचलित हुआ ।

‘सुजान की पाती’, ‘मांडू के एहसासः रानी रूपमती’, और ‘इतिहास की एक दर्दीली आहः गन्ना बेगम’ जैसे आलेखो के माध्यम से नीलम, पाठकों को मध्यकालीन मुगलकाल की रोचक सेर करवाती प्रतीत होती हैं ।

तत्कालीन राजनीतिक साजिश व निरंकुश निर्मम शासकों द्वारा इन गुणी गायिकाओं के प्रेम का दुःखद अंत आज के खाप पंचायत के खूनी फरमान की याद दिला देता है ।

नीलम इन गुणी स्त्रियों के सौंदर्य, वफादारी कलासाधना का जिक्र करते हुए पाठकों के सामने कुछ सवाल उठाती हैं ।

इस संकलन के एक लेख ‘एक महारानी की जुबानी’ में नीलम ने भारत में सर्वप्रथम पर्दाप्रथा समाप्त करने वाली महारानी चिमणाबाई का विस्तार से परिचय दिया है ।

इस संकलन में नीलम ने फिल्म, राजनीति व कॉर्पोरेट-दुनिया में स्त्रियों की दोयम स्थिति और उनके शोषण का बेबाकी से वर्णन किया है ।

संकलन के अंतिम अध्याय में, एक सदी तक नारीवाद के बदलते स्वरूप की खुलकर चर्चा की की गयी है।  इक्कसवीं शताब्दी की भारतीय शिक्षित नारियों के अंधविश्वास व फैशन के जाल में फँसने की चर्चा करते हुए नीलम कई गंभीर सवाल पाठकों से करती हैं ।

संक्षेप में, नीलम कुलश्रेष्ठ के इस प्रयास की सार्थकता, नारी का अपने कर्तव्य व अधिकार में संतुलन बनाने की दिशा में सक्षम होना है । स्वैच्छिक संगठनों द्वारा इस पुस्तक का स्वागत होगा । पाठक इस पुस्तक को पढ़कर अपने दृष्टिकोण को उदार बनाने की दिशा में प्रयत्नरत होंगे । यही कामना की जा सकती है ।

आशा है, भविष्य में नीलम इस विषय में, नये तथ्यों को समेटे अपनी पुस्तक के साथ पाठकों से संवाद करती दिखायी देंगी ।

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पुस्तक का नामः परत-दर-परत स्त्री

लेखिकाः नीलम कुलश्रेष्ठ

प्रकाशकः नमन प्रकाशन, दिल्ली

मूल्यः 350/ रूपये

पूर्णिमा मित्र -बीकानेर ए-59 करणी नगर, नागानेची रोड, बीकानेर 3344003