Kartvya - 14 in Hindi Moral Stories by Asha Saraswat books and stories PDF | कर्तव्य - 14

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कर्तव्य - 14

कर्तव्य (14)

दो बहिनों का घर बड़े भैया के शहर के ही पास था, भाई-बहन का त्योहार रक्षाबंधन,भैया दौज और अन्य त्यौहारों पर वह ज़रूर जाते ।उनके घर में सभी उनके आने पर बहुत खुश होते । सभी बच्चे ज़िद करते और करते “बाबा आज हमारे घर रुक जाओ” तो वह कहते
“नहीं आज नहीं फिर कभी तुम्हारे पास रुक जाऊँगा, भाभीजी इंतज़ार कर रहीं होंगी ।

धीरे-धीरे उनका मन लग रहा था और भाभीजी उनका बहुत ख़्याल रखतीं । जब काम पर से आने में देर हो जाती, भाभीजी चिंता करने लगतीं । भैया से कहतीं “अभी छोटे लालाजी नहीं आये” “क्यों चिंता करती हो आ जायेगे, कोई वह बच्चे तो नहीं ।

भाभीजी तो उन्हें बच्चों की तरह रखतीं खाने पीने का समय-समय पर ख़्याल रखती, जब वह और बड़े भैया खाना खा लेते तभी स्वयं खाना खातीं ।

अपूर्व भैया उन्हें मॉं की तरह ही सम्मान देते, बड़े भैया कभी-कभी अपूर्व भैया को कुछ डाँटते या कुछ ग़लत कहते तो वह कभी जबाब नहीं देते न ही कभी नाराज़ होते।

अपूर्व भैया बहुत खुश रहते,अपने वेतन में से कुछ खर्च निकाल कर बाक़ी सब बड़े भैया को जमा करने के लिए दे देते। बड़े उनके पैसे संभाल कर रखते ,जमा कर देते ।
कुछ दिनों बाद पिताजी का घर बिका ,अपूर्व भैया को हिस्से के पैसे कुछ कम दिये गये । अपूर्व भैया से मंझले,मंझले छोटे भैया ने कहा “तुम्हारे परिवार नहीं है तुम्हें अधिक पैसे की क्या आवश्यकता है ।”उन्होंने कुछ नहीं कहा अपना मिला हुआ पैसा बड़े भैया को बैंक में जमा करने को दे दिया ।

जहाँ वह काम करते बहुत इज़्ज़त से करते, उनके हाथ में जो पैसा आता उसका पूरा हिसाब मालिक को देते। कभी कोई हेराफेरी या ग़लत हिसाब नहीं होने से मालिक बहुत सम्मान देते । कभी तबियत ख़राब होने पर कई दिनों की छुट्टी दे देते ।

वह सबके विश्वास पात्र हो गये , समय बहुत अच्छा बीत रहा था ।

कुछ दिनों में भाभीजी को बुख़ार रहने लगा,भाभीजी को मॉं की तरह सम्मान देते इसलिए उनके लिए परेशान रहते । कुछ दिनों तक तक बड़ी भाभीजी बीमार हो गई,ठीक नहीं हो पा रहीं थीं । बड़े भैया को कुछ समझ नहीं आया इलाज से कोई फ़ायदा नहीं हुआ,भाभीजी को लेकर अपूर्व भैया के साथ मंझले भैया के घर ले जाकर वहाँ एक अच्छे डाक्टर से इलाज कराने लगे । कोई फ़ायदा नहीं हो रहा था, भाभीजी हम सब को रोते हुए छोड़कर चल बसीं ।

कुछ दिनों तक मंझले भैया के साथ ही रहे, वहाँ से बड़े भैया, बड़ी दीदी के घर रहने लगे । अपूर्व भैया वहीं मंझले भैया के ही घर रहने लगे ।

अपूर्व भैया को वहाँ एक स्कूल में नौकरी मिल गई, नौकरी पर जाते और आकर खाना खाकर कुछ देर बाहर टहलते फिर सो जाते ।स्कूल घर से दूर था,पैदल जाने पर देर से पहुँचने के कारण वह नौकरी छोड़ दी ।

दूसरे एक कारख़ाने में उन्हें काम मिल गया जहॉं उन्हें किसी के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर आर्डर लेने और पैसा लेने जाना होता । वहाँ का काम उन्हें पसंद आया ।वहाँ सुबह नाश्ता कर के जाते, दोपहर को खाना वहीं खा लेते; रात को आकर खाना खाने के बाद सो जाते ।

मंझले भैया की दुकान बंद हो चुकी थी, वह तो कई दिनों को पहले की तरह ही बाहर जाते रहते । कभी-कभी बहुत सा सामान लाते कभी ख़ाली हाथ ही चले आते।फिर से अपूर्व भैया परिवार के ऊपर अपना वेतन खर्च कर देते । कुछ खर्च अपने पास रखकर सब वेतन घर में दे देते ।

वहाँ वहीं पुराना सिलसिला चलता रहा, उनकी कही हुई कोई बात किसी को अच्छी नहीं लगती। संतोषी हो गये , खाना नहीं मिलता तो कुछ न कहते हुए बाहर खाना खाने के बाद सो जाते । सुबह फिर अपने काम पर चले जाते, जब कभी छुट्टी होती; बहिनों के घर जाकर बच्चों से मन बहला लेते।

एक बार कहीं पुलिस ने किसी जुर्म में मंझले भैया को पकड़ लिया । वहाँ से किसी के द्वारा संदेश आया कि “मुझे पुलिस ने पकड़ लिया है,पैसा लेकर मेरी ज़मानत करा कर ले जाइए;मैं यहाँ बहुत परेशान हूँ ।

पैसे का इंतज़ाम किया गया दूसरे राज्य में पकड़े गये थे इसलिए वहाँ का वकील भी करना था । पैसे का इंतज़ाम करना कठिन हो रहा था, कुछ पैसा बहिनों ने इकट्ठा किया । जब पैसे लेने मंझले भैया का बेटा आया,
उसे पैसे देकर समझाया कि जिस काम को पैसे इकट्ठे हुए हैं,उसी काम में लगेंगे तो भैया घर जल्दी आ जायेंगे।
यदि किसी अन्य काम या खाने पीने में खर्च हो गये तो दोबारा इकट्ठे करना मुश्किल होगा । वह यह सुनकर पैसे लेकर चला गया । काफ़ी दिन तक ज़मानत का कोई काम नहीं हुआ,वह पैसा अन्य कामों में खर्च हो गया ।

जो बात मंझले भैया के बेटे से कही गई थी,वह उसने अपनी मॉं को बता दी।कुछ दिनों बाद दोबारा पैसे का इंतज़ाम किया गया, भैया ज़मानत पर छूट कर घर आ गये । भाभीजी ने उन्हें सारीं बातें बंता दीं ।

कुछ सालों बाद जब बहिन का आना ,उनके घर हुआ तो उन्होंने बहुत बुरा भला कहा “तुम बहुत पैसे वाली हो तुम्हारे पैसे तुम्हारे मुँह पर मार दूँगा जब मेरे पास होंगे ।
बहिन भारी मन से अपने घर आ गई । कभी भी मंझले भैया बहाने से पैसे लेने बहिन के पास पहुँच जाते और वह उनकी परेशानी जानकर अपने संचय किये हुए पैसे दे देतीं । वापस देने का आश्वासन देकर ले जाते लेकिन कभी भी वापस नहीं दिये । कभी-कभी पैसे न होने पर कहीं से उधार लेकर भी दे देती परंतु कभी वापस नहीं मिले ।

अपनी आवश्यकता पर वह कुंती आ जाते,बहाने बना कर ले ही जाते । कभी अपने काम के बारे में किसी को नहीं बताया । मंझले भैया को गंगा जी से बहुत श्रद्धा थी,
वह पूर्णमासी को गंगा स्नान करने अवश्य जाते ।

रक्षाबंधन पर पहले वह गंगा जी स्नान करने जाते फिर आकर राखी बँधवाते थे । अपनी बहिनों से बहुत प्यार करते,बहिनों ने भी सदैव अपना प्यार और स्नेह उन्हें खूब दिया, हमारे भाइयों को ईश्वर सदैव ख़ुश रखें यही प्रार्थना करतीं ।

बहिन भाई का त्यौहार था सभी अपनी बहिनों से टीका कराने गये , मंझले भैया की तबियत कुछ ढीली हो रही थी ।वायरल बुख़ार चल रहा था, उन्हें कुछ हरारत भी थी इसलिए वह कहीं नहीं गये घर में ही आराम करने का मन था । अपूर्व भैया दीदी के पास चले गए बेटे बहुओं को लेकर ससुराल चले गए भाभीजी अपने भाई के पास चलीं गई ।

अपूर्व भैया दीदी के घर शाम तक रुक गये बाक़ी सब समय से घर आ गये ।

भाभीजी को कुछ कहना था भैया से उन्होंने अपने पोते को उनके पास भेजा तो वह टेलीविजन देख रहे थे दूसरे हाथ में मोबाइल फ़ोन था।ऐसा लग रहा था कि किसी से फ़ोन पर बात होकर चुकी थी । बच्चे ने हाथ लगा कर जैसे ही छुआ वह कुर्सी पर एक तरफ़ गिर गये, बच्चे ने दादी को आवाज़ दी; “बाबा गिर गये ।”

क्रमशः ✍️

आशा सारस्वत