दानी की कहानी
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दानी की बातें जैसे मलाई कोफ़्ते ! बड़े ही मस्त !
बच्चे खाने से तो क्या चटकारे लेते होंगे जो दानी की कहानी से चटकारे लेते हैं |
उस दिन बारिश बहुत तेज़ी से पद रही थी | लाइट आती,फिर चली जाती |
सारे बच्चे दानी के कमरे में मस्ती कर रहे थे |
"अच्छा ! तुम लोग एक बात बताओ ,कौन है जो अंधेरे से नहीं डरता ?"
दानी भी कैसी बात करती हैं !अंधेरे से तो सभी डरते हैं | दानी भी तो ---
"दानी ! क्या आप भी ---हम तो बच्चे हैं ,आप तो बड़ी हैं ,आप भी डरती हैं फिर हम बच्चों से पूछ रही हैं --" गुनगुन ने दानी के सामने ही अपनी परेशानी कह दी |
"किसने बोला ,दानी अंधेरे से डरती हैं ?" दानी का चमचा बबलू बोला |
दानी अपना प्रश्न परोसकर चुप्पी साधकर बैठ गईं थीं |
अचानक बड़ी ज़ोर से बिजली कड़की और सारे बच्चे चीखने लगे | इस बार देर से लाइट नहीं आई थी |
बाहर पापा बंसी से फ्यूज़ देखने की बात कहकर उसके साथ टॉर्च लेकर चले |
अचानक फिर से ज़ोर से बादल गडगड़ाया ,सारे बच्चे और भी घबराकर दानी के इर्द-गिर्द होकर चिपककर बैठ गए |
गड़गड़ की आवाज़ बंद ही नहीं हो रही थी | बच्चे चिपके हुए बैठे थे |
लाइट आ गई लेकिन बिजली कड़कने की आवाज़ बंद नहीं हुई तो बच्चे भी आँख बंद करके बैठे रहे |
उन्होंने आँखें नहीं खोलीं तो उन्हें पता ही नहीं चला कि लाइट आ गई थी | पापा बंसी के साथ जाकर फ्यूज़ लगवाकर आए थे |
मज़े की बात थी कि पूरे घर में लाइट थी लेकिन दानी के कमरे में लाइट नहीं थी |
उनके कमरे में से केवल बच्चों की साँसें लेने की और फुसफुस करने की आवाज़ें आ रहीं थीं |
जब काफ़ी देर हो गई ,बच्चों में हलचल मचने लगी |
ये दानी बोल क्यों नहीं रही हैं ? आधा घंटे से ऊपर हो गया और दानी की आवाज़ सुनाई नहीं दी तब गुनगुन ने शोर मचाना शुरू किया |
"दानी ! आप बोल क्यों नहीं रहीं ?"
"दानी--दानी ---" सब चिल्लाने लगे |
लेकिन दानी वहाँ होतीं तब बोलतीं न !
अचानक पापा ने दानी के कमरे की बत्ती खोली |
"डरपोक कहीं के !" वो ज़ोर से हँसे |
"अभी भी डर रहे हो ?"
अक-एक करके सभी बच्चों ने आँखें खोलीं |
अरे! यह क्या ? दानी तो पापा के साथ सामने खड़ी थीं |
"दानी तो हमारे साथ थीं ।वहाँ कैसे चली गईं ?" उन्होंने देखा जिससे वे लिपटे पड़े थे वह तो दानी की रज़ाई थी |
दानी तो पापा के साथ खड़ी मुस्कुरा रहीं थीं |
"चलो ,तुम्हारे लिए मलाई कोफ़्ते बनाकर आई हूँ | " दानी ने हँसकर बच्चों से कहा |
सब बड़े आश्चर्य में थे ,दानी आखिर निकाल कहाँ से गईं ?
"देखो ,दानी के अंधेरे से डरती हैं तुम कह रहे थे न ।दानी तुम्हारे लिए अंधेरे में मलाई कोफ़्ते बना रही थीं और तुम सबको पता भी नहीं |" पापा मुस्कुराए |
सब बच्चे उठकर दानी से चिपट गए ,
"दानी ! हम तो डर ही गए थे ,अगर हमें कुछ हो जाता तो ?"
"ऐसे कैसे हो जाता ,आखिर तुम सब दानी की रज़ाई से ही तो चिपके पड़े थे --" दानी ने हँसकर कहा |
बंसी ने टेबल लगा दी थी और वह सबको बुलाने आ गया था |
सब बच्चे दानी को घेरकर डाइनिंग टेबल पर आ गए थे |
"दानी ! आप तो खुद ही मलाई कोफ़्ता हो ---" गुनगुन ने दानी को प्यार से कहा |
"दानी का प्यार भी मलाई कोफ़्ता ही तो है ,सॉफ्ट वाला ---"
बच्चों का इतना प्यार देखकर दानी की आँखों में आँसू भर आए | उन्होने सब बच्चों के अपने अंक में समेट लिया |
पापा-मम्मा के साथ बंसी के चेहरे पर भी तरल मुस्कान थिरक रही थी |
'जिस घर में बच्चों को अपने बुज़ुर्गों का प्यार मिलता है और वे उन्हें सम्मान देते हैं उस घर से अधिक कोई सौभाग्यशाली घर नहीं होता|' बंसी मुस्कान के साथ खाना परोसने में तल्लीन हो गया था |
डॉ. प्रणव भारती