Kartvya - 13 in Hindi Moral Stories by Asha Saraswat books and stories PDF | कर्तव्य - 13

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कर्तव्य - 13

कर्तव्य (13)

“बहुत दिनों तक भैया घर पर नहीं आये पिताजी को भी चिंता है और मेरा भी मन नहीं लग रहा है”अपूर्व भैया ने अपने दोस्त से कहा ।

तभी अपूर्व भैया ने देखा कि मंझले भैया रिक्शे से उतरे, उनके साथ बेग नहीं था । जब वह उतरे तो एक व्यक्ति का सहयोग लेकर बहुत ही परेशानी से उतरे । उन्हें देख कर सभी आसपास के लोग इकट्ठे हो गए ।उनकी परेशानी देख पड़ौस के चाचा जी उन्हें अस्पताल ले गए,दुकान भी बंद कर दी । जो बिक्री के पैसे थे इकट्ठे कर अपूर्व भैया भी वहॉं पहुँच गए । डाक्टर ने देख कर चेकअप किया और बताया इन्हें अंदरूनी चोट से कूल्हे की हड्डी टूट गई है जिसका हमें आपरेशन करना होगा ।
आप जल्दी से जल्दी पैसों का इंतज़ाम कीजिए ।

पिताजी और अपूर्व भैया ने पैसों का इंतज़ाम किया तब सफलतापूर्वक आपरेशन हो गया । घर में सभी चिंतित थे, जब उन्हें होश आया तो पिताजी ने कहा “बेटा तुम्हारे चोट कैसे लगी ।

“मैं अपने दोस्त के साथ उसके घर की छत पर सो रहा था, रात को लघुशंका के लिए जा रहा था तो पैर फिसल गया । मैं छत से नीचे गिर गया,फिर मुझे नहीं पता क्या हुआ ।” मंझले भैया ने इधर उधर देखते हुए कहा ।

उनकी बात का किसी को विश्वास नहीं हो रहा था परंतु उस समय किसी ने भी कुछ कहना उचित नहीं समझा ।भैया कुछ तो छिपा रहे थे यह पिताजी को भी समझ आ रहा था ।

पूरे दो महीने भैया ने आराम किया,अपूर्व भैया ने दुकान का पूरा काम सँभाल लिया ।उनके मन में एक ही विचार आता कि मंझले भैया जल्दी से ठीक हो जायें । भैया चलने फिरने लगे ।

सुबह ही किसी ने आवाज़ दी,तैयार होकर निकल गये,शाम तक नहीं आये तो बहुत चिंता हुई । तीन दिन बीत गये फिर भी नहीं आये तो उनके दोस्तों के यहाँ जानकारी करने पर पता लगा कि वह पिछली बार भी और इस बार भी किशनलाल के आदमी के साथ ही गये हैं । उनके चोट गिरने से नहीं लगी उन्हें किसी ने मारा था ।

यह सब सुनकर सभी चिंता में हो गये ,पिताजी की चिंता कई गुना बढ़ गई । बहुत बार सोचते कि पता नहीं कैसे किसने मारा होगा ।

घर का माहौल ही बदल गया, पिताजी चिंतित रहते,धीरे-धीरे वह बहुत कमजोर हो गये । घर में सब अपनी मनमानी करते,वह कुछ न कह पाते ;अपूर्व की आगे की ज़िंदगी कैसे कटेगी वह यही सोचते रहते।

पिताजी को देख अपूर्व भैया को मॉं की याद आ रही थी रोने लगे,रोते रोते सोचने लगे “मैं कितना अभागा हूँ, मेरा ख़्याल रखने वाली मॉं अब इस दुनिया में नहीं हैं पिताजी भी कमजोर होते जा रहे हैं ।मैं अब पिताजी के साथ बड़े भैया के घर चला जाऊँगा ।” वह सोचते हुए सो गये,सपने में मॉं को देखा तो वह बहुत रोये पिताजी ने आवाज़ सुनी तो उन्होंने प्यार से पूछा “क्या बात है तुम क्यों रो रहे हो तब सपने की बात बताकर पिताजी से लिपट कर रोने लगे ।

दस पंद्रह दिन में मंझले भैया फिर आ गये लेकिन किसी की बात का कोई उत्तर उन्होंने नहीं दिया ।वह जब मन होता चले जाते,जब मन होता आ जाते । भाभीजी के लिए उपहार लाते ,नये कपड़े लाते,गहने भी लाते । भाभीजी खूब होकर सबको अपने सामान पहन कर दिखातीं । अगली बार कुछ नये गहने पहनती,पुराने कहॉं चले जाते किसी को भी पता नहीं लगता । बच्चों के लिए बहुत अच्छे कपड़े और खाने का सामान भैया हमेशा लाते रहते और रसोई घर का सामान लाने को दुकान से पैसे लेकर लाते । मंझले भैया का परिवार बहुत खुश था उन्हें हर चीज़ अच्छी से अच्छी उपलब्ध थी।

पिताजी बहुत ही चिंता करते और कहते , समझ नहीं आता तुम बेटा कहॉं जाते हो कुछ बताते भी नहीं; अब तुम्हारे बच्चे बड़े हो रहे हैं । बिटिया भी बड़ी हो रही है अपने परिवार पर तुम्हें ध्यान देना चाहिए ।मंझले भैया सुनकर कुछ जबाब नहीं देते।

कभी-कभी अपने बड़े बेटे को दुकान पर बैठाने लगे ।अपूर्व भैया को समय तो मिल जाता लेकिन दुकान का हिसाब गड़बड़ा जाता ।

पिताजी की तबियत ख़राब हो गई,कुछ दिनों में वह भगवान के पास चले गए ।अपूर्व भैया का तो सहारा ही चला गया, वह उदास रहने लगे ।हमसब पिताजी के जाने पर बहुत दुखी हुए । जब हम सब भाई-बहन छोटे थे , रात को जब ऑंगन में अपनी-अपनी चारपाई पर लेट जाते तब पिताजी छोटी-छोटी अंतर्कथा सुनाकर हम सब को रामायण , महाभारत और भगवद्गीता के पात्रों के बारे में विस्तार से बताते और कभी-कभी हम से उनके बारे में जानकारी करते ।तभी पिताजी ने बताया कि जब शरीर प्राण छोड़ता है तब भगवद्गीता का पाठ करना चाहिए और तुलसी दल के साथ गंगाजल मरने वाले के मुख में डालना चाहिए । मैं दुखी मन से वहाँ पहुँची तो मुझे पिताजी के वह शब्द कानों में गूंज रहे थे,मैं भगवद्गीता का पाठ सुनाने लगी। कुछ ही देर में ले जाने की तैयारी होने लगी और हम भारी मन से पिताजी को विदाई दे रहे थे।

उनकी बताई हुई शिक्षा मेरे जीवन में हमेशा काम आई और आगे भी आती रहेंगी ।

अपूर्व भैया को सदमा बहुत लगा वह किसी से कुछ न कहते ,हम सब अपने परिवार में व्यस्त होकर कभी-कभी उनके हाल- चाल लेने चले जाते । बड़े भैया एक बार उनके हाल-चाल लेने गये तब वहॉं परिवार के ही लोगों ने उनसे कहा कि यदि इनकी चिंता है तो अपने साथ ले जाकर वहाँ रखो।

भैया वापस आ गये उन्होंने भाभीजी से कहा “क्या हम अपूर्व को अपने साथ रख लें तो तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं ।” “नहीं मुझे कोई परेशानी नहीं छोटे लालाजी हमारे साथ रहेंगे तो हमारा भी मन लगेगा ।” बड़ी भाभीजी ने कहा ।

कुछ दिनों बाद बड़े भैया अपने घर दूसरे शहर लेकर आ गये । बड़े भैया ने उनकी नौकरी लगवा दी जिससे वह सुबह जाते और शाम को घर आ जाते । अपना कुछ खर्च के लिए पैसे रखकर बाक़ी सब बड़े भैया को दे दिया करते । भाभीजी उन्हें सुबह शाम समय से खाना देती और बातें भी करती । शुरू में अपूर्व भैया का मन नहीं लगा लेकिन धीरे-धीरे मन लगने लगा और वह ख़ुश रह कर स्वस्थ रहने लगे । साइकिल चलानी नहीं आती इसलिए जहॉं काम करने जाते पैदल ही जाते,कभी-कभी टेम्पो से चले जाते ।

किसी भाई-बहन के परिवार में जाते तो बच्चों के लिए खाने खेलने का सामान ज़रूर ले जाते, सभी उनके इस स्वभाव को पसंद करते । बच्चे उन्हें बहुत पसंद करने के साथ उनके आने पर ख़ुशी से फूले न समाते और सदैव उनके आने का इंतज़ार करते ।

क्रमशः ✍️

आशा सारस्वत