वे रोज इतनी मिठाई का करते क्या है?कहां से आते है?और इतनी मिठायीं कहां ले जाते है"अनेक प्रश्न थे।और राम बाबू उत्सुकता रोक नही पाया और एक दिन पूछ ही बैठा,"रोज आप लोग इतनी मिठाई का क्या करते है?"
"जानना चाहते हो?"उनमे से एक आदमी बोला थ।
"हां"राम बाबू ने उत्तर दिया था।
"ठीक है।कल तुम हमारे साथ चलना।तुम्हे खुद ही सब कुछ पता चल जायेगा"।यह कहकर वे मिठाई लेकर चले गए।
और अगले दिन राम बाबू उन लोगो के साथ जाने के लिए तैयार होकर आया था।रोज दोपहर को उसका बेटा खाना लेकर दुकान पर आता था।आज वह आया तो राम बाबू बोला,"तुम्हारी माँ से सुबह बोल कर आया था।याद दिला देना।आज रात को घर नही आऊंगा"
"अच्छा बाबू"
उन अजनबी लोगो के साथ जाने की उधेड़बुन में न जाने दिन कब गुज़र गया।शाम ढलते ही राम बाबू बेसब्री से उनका इन्तजार करने लगा। जब किसी का इन्तजार करना हो तो समय बड़ी मुश्किल से गुज़ारता है।राम बाबू के साथ भी ऐसा ही हो रहा था।ऐसा लग रहा था,मानो घड़ी की सुई थम गयी हो।ग्राहकों को समान देते समय भी राम बाबू का ध्यान घड़ी पर ही था।और आखिरकार घड़ी की सुई धीरे ही सही ग्यारह पर पहुंच ही गयी थी।और रोज की तरह वे निश्चित समय पर आए थे।आते ही उनमे से एक बोला,"हमारे साथ चलोगे न?"
"हां बिल्कुल चलूंगा"
"मिठाई तौल लो"।रोज की तरह राम बाबू ने सब मिठाई तोल कर बांधी थी।पैसे देने के बाद मिठाई लेते हुए वह आदमी बोला,"चलो।"
"गंगू दुकान बढ़ाकर चाबी साथ ले जाना।"और राम बाबू नौकर को हिदायत देकर उनके साथ हो लिया था।वह रास्ते मे उन लोगो से बातें करता हुआ आया था।इसलिए उसे पता ही नही चला कब रास्ता गुज़र गया और राम बाबू उनके साथ जा पहुंचा।
वहां जबरदस्त महफ़िल सजी हुई थी।मसालों की रोशनी से में पंडाल जगमगा रहा था।कुछ लोग मजीरा,हारमोनियम और दूसरे साज बजा रहे थे।कुछ लोग संगीत की धुन पर नाच गा रहे थे।मंच के सामने कुछ लोग बैठे थे।राम बाबू उन बैठे लोगों के बीच मे जा बैठा।
राम बाबू को लंबे अरसे बाद किसी महफ़िल में शामिल होने का अवसर मिला था।दुकान से उसे फुर्सत ही नही मिलती थी।जो वह किसी कार्यक्रम में शामिल होने जा सके।सुबह से रात देर तक कोल्हू के बैल की तरह दुकान में पिसता रहता।न कोई छुट्टी,न आराम।देर रात को घर पहुंचता तो वह इतना थक चुका होता कि बिस्तर में पड़ते ही निद्रा देवी की गोद मे समा जाता।पर आज की रंगा रंग महफ़िल में आकर नींद न जाने उसकी आँखों से कहां दूर चली गयी थी।उसकी दुकान से आयी मिठाई सब मे बांटी गयी थी।राम बाबू को भी।
पता ही नही चला राम बाबू कब तक बैठा देखता रहा।और देखता भी रहता।पर अचानक उसके सामने सजी महफ़िल न जाने कहां गायब हो गयी तो राम बाबू चोंक पड़ा।क्या वह सपना तो नही देख रहा था।उसने नज़रे घुमाकर चारो तरफ देखा तो उसकी कंपकपी छूट गयी।वह श्मशान के अंदर बैठा था।उसे समझते देर नही लगी।गांव के बुजर्गो के मुंह से सुना था।रात को श्मशान के पास से गुजरते हुए डर लगता है।ढोल मजीरों की आवाज आती है।
लोग भूत के बारे में बताते थे,लेकिन उन्होंने साक्षात भूत देख लिए थे।जो रात में महफ़िल सजाते और भोर होते ही गायब हो जाते थे।उन लोगों का रहस्य मालूम होते ही राम बाबू की सिट्टी पिट्टी गुम हो गयीऔर बेहोश हो गए।
सुबह होने पर लोगो की उन पर नज़र पड़ी थी।राम बाबू का उस घटना का दिल दिमाग पर इतना असर हुआ कि लाख इलाज और गण्डा ताबीज के बावजूद वह खाट से उठ नही सके।