Sarjami - 3 in Hindi Motivational Stories by Saroj Verma books and stories PDF | सरजमीं - भाग(३)

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सरजमीं - भाग(३)

दूसरे दिन से शौक़त कोचिंग सेन्टर में पढ़ाने लगा,उसका पढ़ाने का अन्द़ाज बहुत अच्छा था,सभी बच्चे मन लगाकर पढ़ते थे और जब कोई स्टूडेंट उससे सवाल पूछता तो वो उसे बहुत अच्छे तरीके से समझाता था,उसके पढ़ाने का तरीका काब़िल-ए-तारीफ था,फ़रजाना को भी उसके पढा़ने का तरीका काफ़ी पसंद आया,अब शौक़त को कोचिंग में पढ़ाते काफ़ी समय हो गया था और एक दिन शौक़त एक बूढ़ी औरत को फ़रजाना के पास लाकर बोला....
मोहतरमा! इन्हें काम की बहुत जुरूरत है,इनके बेटा-बहु इन्हें अपने पास रखना नहीं चाहते,पहले ये भी एक अध्यापिका थीं,अगर इन्हें आपकी कोचिंग में पढ़ाने की इजाज़त मिल जाती तो बड़ा एहसान होता।।
फ़रजाना को वैसे भी एक और टीचर की जरूरत थी इसलिए उसने कहा ठीक है,अगर आप का पढ़ाया हुआ बच्चों को पसंद आता है तो हम आपको कोचिंग सेन्टर में रख लेगें.....
और फिर उस औरत के पढ़ाने का तरीका देखकर जो कि बहुत अच्छा था,उसे फ़रजाना ने अपनी कोचिंग में रख लिया,उस औरत ने अपना नाम शकुन्तला बताया और बोली कि दिल्ली की रहने वाली है,यहाँ अपनी एक सहेली के यहाँ ठहरी है,रहने का कोई इन्तजाम होने पर वो अपनी सहेली का घर छोड़ देगी।।
फ़रजाना ने उसकी बात पर भरोसा कर लिया और उसे अपने कोचिंग सेन्टर के पास ही एक कमरा भी किराए से दिलवा दिया,धीरे-धीरे दिन बीतने लगें और अल्लाह के फ़जल से फ़रजाना के कोचिंग सेन्टर में बच्चों की तादाद बढ़ने लगी,गरीब बच्चों के लिए कोचिंग की पढ़ाई मुफ्त थी,इससे गरीब बच्चों को बहुत सहारा हो गया था।।
वक्त ऐसे ही बीत रहा था,शौक़त और फ़रजाना के बीच अच्छी दोस्ती हो चुकी थी और एक दिन बातों ही बातों में शौक़त ने फ़रजाना से कहा कि वो यतीम है,उसका परिवार एक हादसे का शिकार हो गया था,तब से वो अपनी जिन्दगी अकेले ही बस़र कर रहा है,आज तक निकाह़ इसलिए नहीं किया कि कोई भी लड़की हम जैसे गरीब आदमी से भला क्यों निकाह़ करने लगी?
शौक़त मिर्जा की बात सुनकर फ़रजाना को उस के लिए हमदर्दी महसूस हुई,उसने मन में सोचा ये तो ग़मो का मारा लगता है,यतीम है बेचारा ऊपर से गरीब फिर भी हमेशा मुस्कुराता रहता है,दिल का भी साफ़ है तभी तो अपनी सारे बातें हमें बता दी।।
इसी बीच फ़रजाना ने ये भी महसूस किया कि शौक़त हमेशा शकुन्तला की मदद करने उसक घर जाता रहता,वो बूढ़ी थी ज्यादा भाग-दौड़ नहीं कर सकती थीं,बाहर के काम करने में भी लाचार थी,इसलिए उसके ये काम शौक़त ही कर दिया करता था,शौक़त कहता था कि उसे शकुन्तला में अपनी अम्मी नज़र आती है इसलिए वो उनकी मदद करने पहुँच जाता है और फिर इन्सान ही इन्सान के काम नहीं आएगा तो कौन आएगा?
शौक़त की यही बातें फ़रजाना का दिल जीत लेतीं और फ़रजाना धीरे-धीरे शौक़त से मौहब्बत करने लगी लेकिन इस बात से शौक़त बिल्कुल अन्जान था,वो भी फ़रजाना को पसंद करता था लेकिन कहने से डरता था क्योकिं वो यतीम भी था और गरीब भी,उसकी इतनी हैसियत नहीं थी कि वो फ़रजाना से बराबरी कर सकें,इसलिए शौक़त ने अपने जज्बातों को अपने दिल के भीतर ही रखा उन्हें बाहर ना आने दिया।।
लेकिन फ़रजाना ने जब ये बात अपने अब्बू और अम्मी से जाह़िर की कि वो शौक़त को पसंद करने लगी है और उससे निकाह की चाहत रखती है तो अब्बू का सबसे पहले यही सवाल था कि आपने उनके बारें ठीक से सबकुछ पता कर लिया है ना! जल्दबा़जी में कोई भी क़दम ना उठाएं,ठीक से पहले उनकी तहकीकात करें,
तब फ़रजाना बोली....
जी! अब्बू!वो एक यतीम है,किसी हादसे ने उनके परिवार को उनसे अलग कर दिया,इस दुनिया में उनका कोई नहीं है,वो लोगों की भी बहुत मदद करते हैं,हमारी कोचिंग की शकुन्तला आण्टी है ना! वो उन्हें अपना बेटा ही मानती हैं,शौक़त बहुत खुशमिजाज़ हैं,हमारी खुशकिस्मती होगी जो वें हमारी जिन्दगी में आएं।।
ठींक है फ़रज़ाना बेटी! अगर आपकी यही चाहत है,लेकिन एक बार हम उनसे मिलना जुरूर चाहेगें,अख्तर साहब बोले।।
जी!जुरूर! अब्बू! आप जब चाहें हम उन्हें घर बुला लेगें,फ़रज़ाना बोली।।
फ़रज़ाना बेटी! एक बार और सोच लीजिए,क्या शौक़त मियाँ आपके काब़िल हैं? आपको यकीन है कि वो आपको ताउम्र खुश रख सकेगें,शाहिदा बोली।।
जी! अम्मी ! हमें पूरा यकीन हैं,आप खामख्वाह में इतनी फिक्र ना करें,फ़रजाना बोली।।
कैसें ना करें आपकी फिक्र? आप हमारी बेटी जो हैं,अगर कल को कोई बात हो गई तो,शाहिदा बोली।।
कुछ नहीं होगा अम्मी! ऊपरवाले की इनायत हैं हम पर,सब अच्छा ही होगा,फ़रज़ाना बोली।।
फिर दूसरे दिन फ़रजाना ने शौक़त से कहा....
शौक़त साहब!आपसे कुछ बात करनी थी।।
जी! कहिए!शौक़त बोला।।
हम निकाह़ करने वाले हैं,फ़रजाना बोली।।
और ये बात सुनकर शौक़त को कुछ अच्छा नहीं लगा क्योकिं उसका चेहरा साफ-साफ बता रहा था कि उसे ये बात हज़म नहीं हुई फिर भी शौक़त ने चेहरे पर फीकीं सी मुस्कुराहट के साथ कहा....
ये तो बहुत खुशी की बात है।।
लेकिन आपके चेहरें को देख कर तो ऐसा नहीं लग रहा कि आप खुश़ हैं,फ़रजाना बोली।।
जी! हम खुश हैं बेहद़ खुश हैं,शौक़त बोला।।
आप तो हमें मायूस नज़र आते हैं,फ़रजाना बोली।।
जी! हम और मायूस ,क्योंं होगें हम मायूस?शौक़त बोला।।
हमारे निक़ाह की बात सुनकर,फ़रजाना बोली।।
जी!नहीं!आपके निकाह़ की बात सुनकर हम क्यों मायूस होगें भला?अल्लाह का करम है आप पर ,आपका दूल्हा नायाब़ ही होगा,अल्लाहताला! आपकी सभी हसरतें पूरी करें,शौक़त बोला।।
हसरतें तो और भी बहुत थी हमारीं,लेकिन सभी हसरतें पूरी कहाँ होतीं हैं?फ़रज़ाना बोली।।
सही कहा आपने सभी हसरतें कभी पूरी नहीं होतीं,शौक़त बोला।।
अगर हम आपकी हसरत पूरी कर दें तो,फ़रजाना बोली।।
आप हमारी हसरत पूरी नहीं कर पाएंगीं,मोहतरमा! शौक़त बोला।।
पूरी कर दें तो,फ़रज़ाना बोली।।
मज़ाक मत कीजिए,शौक़त बोला।।
हम मज़ाक नहीं कर रहें,अच्छा!एक बात कहें!फ़रजाना बोली।।
जी! कहिए!शौक़त बोला।।
आप ही वो शख्स हैं जिनसे हम निकाह़ करने की चाहत रखतें हैं,क्या आप हमारी चाहत पूरी करेंगें,फ़रजाना ने शौक़त से पूछा।।
सच कह रहीं हैं आप! शौक़त ने पूछा।।
जी! बिल्कुल सच! फ़रजाना बोली।।
आपको पता है फ़रजाना! हम भी आप से ना जाने कब से दिल ही दिल में मौहब्बत करते थे लेकिन आपसे कहने की कभी भी हिम्मत ना हुई ,डर लगता था कि कहीं आप इनकार ना कर दें,शौक़त बोला।।
हमने आपकी आँखों में अपने लिए चाहत महसूस कर ली थी इसलिए तो आपको हमेशा के लिए अपना बनाना चाहते हैं,क्या आपको हमारी मौहब्बत कुबूल है?फ़रज़ाना ने पूछा।।
जी! कूबूल है,ताउम्र के लिए हम आपके गुलाम हैं,शौक़त बोला।।
जनाब! गुलाम नहीं ,हमें तो मौहब्बत करने वाला शौह़र चाहिए,जो सारे जाहान की खुशियाँ हमारे कदमों में रख दें,फ़रजाना बोली।।
दुनिया जाहान की खुशियाँ आपके कदमों में रख दें इस काब़िल तो नहीं हम,हाँ लेकिन वायदा करते हैं कि हमारी वज़ह से कभी भी आपकी आँखें नम नहीं होगीं,शौक़त बोला।।
बस,हमारे लिए यही काफ़ी हैं और इतना कहकर फ़रजाना ,शौक़त के सीने से लग गई।।

और फिर सबने। फ़रजाना की बात मानकर शौक़त को मिलने के लिए घर बुलाया,जीश़ान और श़मा को कानपुर फोन किया गया कि आप भी फ़रजाना के होने वाले दूल्हे से मुलाकात कर लें,जीश़ान और श़मा भी अपने चार महीने के बेटे के संग लखनऊ आएं,शौक़त से मिलने,सबकी मुलाकात शौक़त से हुई,सबको शौक़त पसंद आया लेकिन जीश़ान के मन को कुछ खटक रहा था,वो सबके सामने कुछ कह ना सका,फिर उसे फ़रजाना की खुशी का ख्याल हो आया क्योकिं फ़रजाना बहुत खुश थी।।
जीश़ान को लग रहा था कि उसने शौक़त को कहीं देखा लेकिन कहाँ? ये उसे ठीक ठीक याद नहीं आ रहा था,उसने अपनी उलझन शमाँ को बताई तो शमाँ बोली....
जीश़ान साहब! आप पुलिसवाले हैं और आप सभी को मुलज़िम की नज़र से ही देखते हैं,फ़रजाना को देखिए ना!वो कितनी खुश है और आप उसकी खुशी में शरीक़ हो जाएं ना कि शौक़त मियाँ में ख़ामियाँ निकाले,उन पर शक़ करें।।
फिर जीश़ान को शमाँ की बात ठीक लगी और उसने अपनी उलझनों को अपने मन में रखा,किसी पर भी जाह़िर ना होने दिया लेकिन फिर भी जीश़ान कश्मकश में था कि आखिर उसने शौक़त को कहाँ देखा है,दिम़ाग पर बहुत जोर डालने के बाद भी जीश़ान को कुछ याद नहीं आया और वो अपनी बहन की खुशियों में शरीक़ हो गया और कुछ दिनों के बाद ही निकाह़ की तारीख़ भी तय हो गई,
लेकिन शौक़त की सबसे गुजारिश़ थी कि इस निक़ाह में ज्यादा धूम-धड़ाका ना हो ,निक़ाह शालीनता से हो तो ज्यादा अच्छा है क्योकिं हम इतने अमीर नहीं और फिर हमारा इस दुनिया में भी कोई नहीं तो मुझे थोड़ा अज़ीब लगेगा,फिर शौक़त की ये बात मान ली गई और ये निक़ाह बहुत ही शालीनता से निपट गया।।
निक़ाह़ के बाद फ़रजाना अपने छोटे से एक कमरें के किराएं के घर में आ गई,जिसे शौक़त ने बेशुमार फूलों से सजाया हुआ था और फ़रजाना का इस्तक़बाल किया...

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....