Sarjami - 2 in Hindi Motivational Stories by Saroj Verma books and stories PDF | सरजमीं - भाग(२)

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सरजमीं - भाग(२)

फ़रजाना तो अपने रास्ते चली गई लेकिन वो शख्स बुत सा बना तब तक फरज़ाना को देखता रहा जब तक कि फ़रजाना उसकी आँखों से ओझल ना हो गई.....
फ़रजाना ने बाज़ार से सौदा खरीदा और अपने घर चली आई.....
और फिर शाम के वक्त दरवाजे की घंटी बजी,फ़रजाना ने ही दरवाजा खोला,देखा तो वही शख्स खड़ा था जिसे सुबह फऱजाना की स्कूटी से टक्कर लग गई थी,फ़रजाना ने उसे देखा तो गुस्से से बोल पड़ी.....
गुस्त़ाखी माफ हो जनाब! लेकिन सुबह हमने आपसे माँफी माँग ली थी और ये कहाँ की श़राफ़त है कि आप शिकायत लेकर हमारे घर तक चले आए?
मोहतरमा!आप शायद हमें ग़लत समझ रहीं हैं,हम और किसी काम से यहाँ आएं थे,हमें क्या मालूम की आप भी इस घर में रहतीं हैं?वो शख्स बोला।।
जी! कहिए! आपको क्या काम है? फ़रजाना ने पूछा।।
जी! हमने अख़बार में इश्तिहार देखा था कि यहाँ कोई फ़रजाना अख़्तर रहतीं हैं,उनको अपने कोचिंग के लिए ट्यूटर की जुरूरत है,हम यहाँ नौकरी के लिऐ आएं थें,वो शख्स बोला।।
तो आपका नाम क्या है? फ़रजाना ने पूछा।।
जी!मेरा नाम शौकत़ मिर्जा है,वो शख्स बोला।।
तो आप कौन-कौन से सबजेक्ट पढ़ा सकते हैं? फ़रजाना ने शौकत से पूछा।।
मैं आपसे क्यों कहूँ?शौकत बोला।।
क्योंं? आप कोई नई-नवेली दुल्हन जो कहते हुए शर्म आ रही है,फ़रजाना बोली।।
जी! मैं फ़रजाना जी से कहूँगा,उनकी कोचिंग है तो उन्हें ही हक़ है हमसे सवाल पूछने का,शौकत बोला।।
ओहो...तो ये बात है,फ़रजाना बोली।।
जी! हाँ! यही बात है,शौकत बोला।।
आप बहस बहुत करते हैं,शौकत मियाँ!,फ़रजाना बोली।।
ओहो....जैसे कि आप संगमरमर का कोई मुजस्समा हैं,जो जुबान खोलना ही नहीं जानती,चुपचाप चुप्पी साधे खड़ीं रहतीं हैं,शौकत बोला।।
वाह....काश! हम संगमरमर का कोई मुजस्समा ही होते,चूँकि हम तब बेज़ान होते और हमें यूँ आपकी बकवास ना झेलनी पड़ती,फ़रजाना बोली।।
तो क्या हम उतनी देर से केवल बकवास ही कर रहे हैं?शौकत बोला।।
और क्या? फ़रजाना बोली।।
हमने आपसे कहा कि फ़रजाना जी को बुला दीजिए और आप हैं कि उन्हें बुला ही नहीं रहीं हैं,शौकत़ गुस्से से बोला।।
जी! हम ही फ़रज़ाना हैं,फ़रज़ाना बोली।।
मुझे तो लगा कोई बूढ़ी सी मोहतरमा होगीं,लेकिन माशाअल्लाह आप तो निह़ायती खूबसूरत और जवान हैं,
शौकत बोला।।
जुबान पर लगाम लगाएं जनाब! फ़रजाना बोली।।
गुस्ताख़ी माफ़ मोहतरमा! शौकत बोला।।
ठीक है तो आप कल शाम को कोचिंग सेन्टर आ जाएं,वहाँ बच्चों की क्लास लें अगर बच्चों को और हमें आपके पढ़ाने का तरीका ठीक लगा तो आपको कोचिंग में रख लिया जाएगा,हम आपको कोचिंग का पता बता देते हैं आप नोट कर लीजिए, फ़रजाना बोली।।
शौकत ने कोचिंग का पता नोट किया और बोला....
जी! तो कल हम आपकी कोचिंग आ जातें हैं,खुदाहाफ़िज़! और इतना कहकर शौकत चला गया।।
फ़रजाना ने दरवाजे बंद किए और भीतर गई तो उसके अब्बाहुजूर ने पूछा...
फ़रजाना बेटी! कौन आया था?
अब्बू! कोचिंग के सिलसिले में बात करने आया था कोई ,कहता था कि वो कोचिंग में पढ़ाने के लिए तैयार है,फ़रजाना बोली।।
ये बात तो ठीक है बेटी लेकिन किसी को भी जरा सोच-समझकर रखिएगा अपने सेन्टर में,आजकल किसी का भी भरोसा नहीं,अख्तर साहब बोले....
जी! अब्बू ! आप बेफिक्र रहें ,हम इस बात का ख़ास ख्याल रखेंगें,फ़रजाना बोली।।
उसके बारें में सारी खोज-बीन कर के ही उसे कोंचिग में रखना,वो हमारे दोस्त हैं ना राहिल मिर्जा जो कि मेरठ में रहते हैं उनकी बहन की बेटी जमीला ने अपनी पसंद के एक शख्स से निकाह कर लिया था,बेटी की पसंद पर घरवालों ने भी मोहर लगा दी थी लेकिन दो सालों के बाद पता चला कि वो एक पकिस्तानी जासूस था,जो उनके बीच रहकर भारत की जासूसी कर रहा था,
जमीला को तब शक़ हुआ जब उससे अन्जान लोंग मिलने आने लगे,फिर घर में उसके खिलाफ कुछ ऐसी चींजें मिली जिनसे साबित हो गया कि वो एक जासूस था,जमीला ने भी अपनी शौहर की सलामती के लिए ये बात सबसे छुपा ली लेकिन आखिर सच कब तक छुपा रहता,पुलिस को ख़बर लग ही गई और जमीला के शौहर को एक दिन गिरफ्तार कर लिया गया,फिर ना जाने पुलिस ने उस शख्स को कहाँ भेज दिया,आज तक उसकी कोई ख़बर नहीं,अख़्तर साहब बोले।।
जी!अब्बू! अगर खुद़ा-ना-ख़्वास्ता कभी आगें चलकर हमारे साथ कुछ ऐसा हुआ तो हम ज़मीला की तरह ऐसा नहीं करेगें,देश के गद्दार को दुनिया वालों से कभी भी छुपाकर नहीं रखेंगें चाहें इसके लिए हमें अपनी ज़ान ही क्यों ना देनी पड़ी,फ़रज़ाना बोली।।
हमें आप पर पूरा एतबार है और आपसे ऐसी ही उम्मीद रखते हैं,अख्तर साहब बोले।।
जी! चलिए! खाने का वक्त हो गया है अब खाना खाते हैं,हम अम्मी को बुला लाते हैं,आज तो हमने खाना बनाया है,फ़रजाना बोली।।
तब तो आज हम जी भरकर खाऐगें,हम भी इतने सालों से आपकी अम्मी के हाथ का खाना खाकर बोर हो चुके हैं,अख्तर साहब बोले।।
जी! मियाँ! हमने सब सुन लिया,अगर हमारे हाथ का खाना पसंद नहीं तो कोई ख़ानसामा क्यों नहीं रख लेते ?हमारा भी मुऐ बावर्चीखाने से पीछा छूटेगा,शाहिदा बोली।।
ओहो....तो हमारी बेग़म ने सब सुन लिया,लगता है ख़फ़ा हो गई हमसे,अख्तर साहब बोले।।
ना! जी! आपने तो ऐसा काम किया कि मन करता है कि आपकी इब़ादत करने बैठ जाऊँ,शाहिदा बोली।।
अरे! अम्मी ! आप भी क्या अब्बाहुजूर की बातों में आ रहीं हैं?आपको तो पता है कि उनके मज़ाक करने की आदत है,फ़रजाना बोली।।
बेटी! ये मज़ाक नहीं किया करते,ये मज़ाक-मज़ाक में अपने दिल की बातें कह जाते हैं फिर कहने लगते हैं कि ये मज़ाक था,शाहिदा बोली।।
अरे,अम्मी गुस्सा छोड़िए और अब्बू आप अम्मी से माँफी माँगिए,फरजाना बोली।
लीजिए बेग़म साहिबा! गुस्त़ाख़ से गुस्ताख़ी हो गई ,अब माँफ भी कर दीजिए,अख्तर साहब बोले।।
अख्तर साहब की बात सुनकर शाहिदा मुस्कुरा दी तो अख्तर साहब बोले....
ओहो....ये कात़िल निगाहें हमारा कत्ल ही करके मानेगीं ,
कुछ तो शरम कीजिए,बेटी के सामने भी,शाहिदा बोली।।
हमने ना कुछ सुना और ना कुछ देखा,टेबल पर खाना लगाते हुए फ़रज़ाना बोली....
फ़रज़ाना बेटी! आप खाना परोसें,इनके मुँह में निवाला जाएगा तभी इनका मुँह बंद होगा,शाहिदा बोली।।
जी! जो हुक्म अम्मी! और फिर फ़रजाना ने सबकी प्लेट में खाना परोसा फिर खाते खाते सबकी बातें यूँ ही जारी रहीं.....

दूसरे दिन सुबह के वक्त फ़रजाना तैयार होकर अपने स्कूल चली गई पढ़ाने के लिए और शाम को जब वो कोचिंग गई तो शौकत वहाँ पहले से मौजूद था,कुछ देर में बच्चे भी आ गए और शौकत ने बच्चों को पढ़ाना शुरु किया,
शौकत के पढ़ाने का तरीका फ़रज़ाना को पसंद आया और उसने शौकत को कोचिंग में रख लिया,बच्चे भी शौकत के पढ़ाने के तरीके से खुश नज़र आएं....
फिर शौकत ने फ़रज़ाना का शुक्रिया अदा किया और दूसरे दिन के लिए आने का कहकर चला गया,

क्रमशः...
सरोज वर्मा.....