मेरी गर्लफ्रैंड भाग- 6
फ्रेंडशिप डे से अगला दिन यानी कि नौकरी का इक्कीसवाँ दिन; पूरी रात अंतिम के बारे में सोचते हुए मैं अब उससे गुस्सा होकर भी गुस्सा नहीं था। मैं उससे बात करना चाहता था। उसे तकलीफ देने के लिए सॉरी बोलना चाहता था। लेकिन एक दिन पहले के अपने किए हुए, अदभुत कारनामे के वजह से मुझे झिझक लग रही थी। लेकिन पाउलो कोहेलो ने कहा हैं। ना कि “जब तुम किसी चीज़ को दिल से चाहो, तो सारी कायनात उसे तुमसे मिलाने की साज़िश में लग जाती हैं।“ ये बात उस दिन मुझे पहली बार सच लगी थी।
उस दिन करीब एक बजने को हो लिए थे। और मैं रिसेप्शन पर बैठकर अपने मन में अंतिम के पास जाऊं ना जाऊं की चौसर बिछाकर बैठा था। कि अचानक वो मेरे सामने आकर खड़ी हो गई। और मुझे देखने लगी। जब वो ऐसा करती ही रही तो परेशान सा होकर मैंने अपनी पलकें उठाकर इशारे में उससे बिना बोले पूछा जिसका मतलब था। “क्या बात है? क्यों खड़ी हो सामने”
उसने रूठने के अंदाज़ में कहा, “देख रही हूँ। बगावत करता हुआ। तू कैसा दिखता हैं।“
उसकी बात सुनकर लगा। गुस्सा होने का दिखावा करूँ। लेकिन बाद में सोचा कि जब भी कुछ अपनी मर्ज़ी से बेमतलब करता हूँ। तो लेने के देने खुद को ही पड़ जाते हैं। इसलिए मैंने शांत स्वभाव में कहा, “आज कबाली सुनकर आई हो क्या, जो इतने मुश्किल शब्द बोल रही हो”
उसने मेरी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और कहा, “तू गुस्सा हैं। मुझसे, पर किस बात पर ज़रा..”
ज़रा कहने के बाद गुस्सा वाली बात बताने का इशारा उसने हाथों को फैलाकर निमंत्रण देते हुए किया। लेकिन चेहरे पर भाव बगावत जब बोला था। वो वाले थे।
मैंने भी अबकी बार सोचा, समय बर्बाद ना करते हुए क्यों ना जल्दी ही मुद्दे पर आया जाए क्योंकि मुहावरों के चक्कर में तो बात बिगड़ जाएगी। इसलिए मैंने उसके सवाल के जवाब में ग़ालिब की एक शायरी कही, “तुम्हें देखकर आ जाती हैं। मेरे चेहरे पर रौनक
और तुम पूछते हो बीमार का हाल क्या हैं।“
उसने कहा, “अच्छा! फिर कल रौनक कहा चली गयी थी।“
उसकी इस बात पर, मैंने चुप्पी साध ली, वैसे भी मेरे पास जवाब नहीं था। और मेरी इस उदासीनता को देखकर वो नाराज़ होकर, अपनी जगह पर जाकर माथे पर हाथ रख कर बैठ गयी।
इतने दिन साथ रहकर, वो इतना तो जान ही चुकी थी। कि उसका माथे पर हाथ रखना मेरी कमजोरी हैं। इसलिए वो अपनी चाल चल चुकी थी। और अब बारी मेरी थी। मैं जाकर उसे मनाऊं और अपने दिल को जो उसके प्यार में वज़ीर से अर्दली बन चुका था। उसे सौंप दूँ।
हम जब किसी से प्यार करते हैं। और वो अगर सच्चा हो, तो सबसे पहले हम जो खुद पर से जो चोला उतार कर फैकतें हैं। वो शर्म का होता हैं। उस दिन मैंने भी अपना शर्म का चोला उतारकर, अंतिम से सबके सामने अपने दोनों घुटनों पर बैठकर पहले सॉरी बोला और उसके बाद रोमियो जूलिएट फ़िल्म के डायलॉग को शायरी के अंदाज़ में बोला, “ए फ़क़ीर तू ये क्या कर रहा हैं।
क्या हाथ उठाकर किसी की इबादत कर रहा हैं।
मैंने तो सुना था साधुओं के हाथों में चमत्कार होते हैं।
क्या इन्हें छूने से मुझे कोई फायदा ना होगा"
मेरे अंदाज़ को देखकर उसे जाने क्या हुआ उसने भी शायरी में बात करनी शुरू कर दी।
"फ़क़ीर तेरा दर्द से बिखर रहा हैं।
और तू हैं। के उसे देखकर कल से हँस रहा हैं।
साधु ही समझा था तुझे, इसलिए हाथ पकड़कर दोबारा जीने की उम्मीद मिली थी
और तू हैं। कि दूर जाने की सोच रहा हैं।"
मैंने कहा, “थोड़ी देर पहले तो खुश थी और बात भी कर रही थी। अब अचानक क्या हो गया
कही एक दिन में मुझे छोड़कर किसी और से प्यार तो नहीं हो गया"
उसने कहा, “एक दिन मुझसे दूर बैठा, मेरे बारे में सब कुछ पता चल गया
अब इस पर मातम मनाऊँ या खुशी ये समझ नहीं आता
पर अगर तुझे तंज़ मारकर खुशी मिलती हैं। तो शोक से मारले इससे मेरा कुछ नहीं जाएगा
बस इससे होगा ये, तू मेरी नज़रों में अभिनव वाली श्रेणी में आ जाएगा"
मैंने कहा, “माफी मांगता हूँ। अगर बुरा लगा हो तो
पर अभी बहुत कुछ हैं। जो तूमने अभी तक बताया नहीं
क्या तुम्हें मेरी आँखों में दिखने वाले प्यार पर भरोसा नहीं'
उसने कहा, “आखिरी, शब्द राइमिंग में कहती हूँ, उसके बाद नार्मल बात करनी हैं। मुझे
ये भरोसे जैसे शब्द कभी मायने रखते थे ज़िन्दगी में
लेकिन इतना कुछ हुआ। मेरे साथ अब इनकी कोई परवाह नहीं हैं। मुझे
आंखों में प्यार, बातों में दुलार मान लिया
पर अगर इतना ही था ये सब तो बात करता आकर मुझसे
ज़रा से अतीत के चक्कर में रिसेप्शन वाली का हाथ पकड़ लिया
ये बात गवारा नहीं हैं मुझे"
मैंने कहा, “रिसेप्शन वाली के साथ मुझे जोड़ दिया बस यहीं अपनापन हैं।
इतनी अच्छी शायरी के साथ प्रपोज़ किया उसका कोई मतलब नहीं हैं।"
शक बहुत बुरी चीज होती हैं। ना पता हो, तो ऑथेलो पढ़लो
और जब राइमिंग की शुरुआत मैंने की तो खत्म भी मैं ही करूँगा। ये जिम्मेदारी मेरी हैं।
अच्छा! वैसे शेक्सपियर वाली लाइनों को हटा दे तो तेरी बाकी शायरी में कोई दम नहीं था। इसलिए गलती से भी खुद को शायर मत समझ लेना।
अगर ऐसी बात हैं। तो अपना हाथ दो और सुनो,
“तुम हो तो मैं हूँ।
तुम ना हो तो मैं ना हूँ
साजिश सी लगती हैं। ऐसा कुछ होने में
पर अगर हैं। तो अच्छा ही हैं।
क्योंकि, ये मेरे कमरों की खामोशियों को तोड़ती हैं।
मेरे अंदर के बेचैनियों को खत्म करती हैं।
मेरा अकेलापन जो जाने कब से मुझसे लिपटा था।
उससे मुझे दूर करती हैं।
इस साजिश ने जो एहसास मुझे दिया हैं। वो किसी ने नहीं दिया
क्योंकि, ये वो ही साज़िश हैं। जिसे मैं अब तक ढूंढ रहा था।
जो मेरे इस संसार में होने को कोई महत्व देती हैं।“
जो हाथ पर किस किया। उसके अलावा जो कहा वो पहले से अच्छा था। और इसलिए अब मैं भी कुछ अच्छा सा कहना चाहती हूँ।
A girl like was a free bird wandered away
Seeing your conscious finding herself
Then you get it. And he stopped flying
And now they want to be with you always
इसके बाद आने वाले आठ दिन हमारे लिए बड़े अच्छे गुज़रे थे। सच कहूँ तो वाकई बड़े अच्छे गुज़रे थे। मेरे मन में फालतू की जो भी बातें थी। वो दूर हो चुकी थी। उसने मुझे सुधीर से जुड़ी हुई सारी बातें बताई। बल्कि उसने यहाँ तक कहा कि वो मेरा पहला प्यार हैं। और मैं उसे चाहकर भी नहीं भूल सकती। मुझे इस बात से कोई समस्या नहीं थी। कि वो अपने प्यार को नहीं भूली हैं। या वो शादीशुदा हैं। बल्कि मुझे खुशी इस बात की थी। कि वो मन से किसी और की और तन से किसी और की होकर भी मेरी थी।