Gyarah Amavas - 37 in Hindi Thriller by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | ग्यारह अमावस - 37

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ग्यारह अमावस - 37



(37)

बसरपुर में असंतोष का माहौल था। यह बात जंगल की आग की तरह फैल गई थी कि जिस आदमी को पुलिस ने केस के सिलसिले में पकड़ा था उसकी लॉकअप में संदिग्ध हालात में मौत हो गई है। यही नहीं पुलिस स्टेशन के पास एक गली में एक दूसरी लाश मिली है। वह लाश बसरपुर के रेस्टोरेंट में काम करने वाले की है जो पुलिस स्टेशन में खाना पहुंँचाने गया था। लोग गुस्से में थे कि एसपी गुरुनूर कौर बातें तो बड़ी बड़ी कर रही है पर कुछ कर नहीं पा रही है। हर थोड़े समय के बाद बसरपुर में कोई ऐसा हादसा हो जाता है जिससे लोगों में डर बैठ जाता है।
इस बार पहले से भी अधिक बड़ी भीड़ गुरुनूर से जवाब मांगने के लिए पुलिस स्टेशन पहुँची थी। वो लोग गुरुनूर से बात करने की ज़िद कर रहे थे। पर समस्या यह थी कि गुरुनूर खुद ही गायब थी‌। अब यह बात अगर पुलिस स्टेशन के बाहर खड़ी भीड़ को पता चलती तो लोग बवाल मचा देते। इसलिए पुलिस स्टेशन के अंदर सभी बहुत परेशान थे। सोच रहे थे कि लोगों को शांत करके कैसे वापस भेजा जाए। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"लगता नहीं है कि इस बार भीड़ को समझा कर वापस भेजना आसान होगा। लोग कुछ सुनेंगे नहीं। कहीं यह बात उन तक पहुंँच गई कि मैडम थाने में नहीं हैं। कल रात से गायब हैं तो लोगों को संभालना ही मुश्किल होगा।"
विलायत खान ने कहा,
"जो भी हो....पर हमें लोगों के पास तो जाना ही होगा। उनके सवाल सुनने होंगे। उनके जवाब देने होंगे।"
इंस्पेक्टर मोहन बोला,
"हम लोगों की तो हिम्मत ही नहीं पड़ रही है।"
"हिम्मत करनी पड़ेगी। इस थाने का प्रभारी मैं हूँ। इसलिए अगुवाई मैं करूँगा। पर तुम लोगों को साथ आना होगा। इतने सारे लोगों को साथ मिलकर ही संभाला जा सकता है।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"हम सब आपके साथ लोगों के पास चलेंगे। पर उन लोगों की मांग है कि मैडम से बात करना है। उन्हें मैडम के बारे में क्या बताएंगे।"
विलायत खान कुछ सोचकर बोला,
"हम कहेंगे कि मामला बहुत गंभीर है। मैडम आला अधिकारियों के साथ मीटिंग के लिए गई हैं।"
यह सुनकर इंस्पेक्टर मोहन ने कहा,
"इस जवाब से भला कितनी देर काम चल सकता है।"
विलायत खान ने कहा,
"हमारे पास बहुत अधिक सोचने का समय नहीं है। फिलहाल तो लोगों को शांत करने के लिए कुछ कहना है। अभी बाहर चलो। मैं लोगों के सवालों के जवाब देने की कोशिश करूँगा। पर अगर कहीं अटकूँ तो अपनी समझदारी से काम लेना।"
विलायत खान के साथ सब लोग बाहर आ गए। उनका सामना एक बड़े दल से हुआ। सबके पास अपने अपने सवाल थे। सब जवाब मांग रहे थे। विलायत खान ने देखा कि भीड़ में बसरपुर के लोकल अखबार रोज़ाना के पत्रकार के साथ साथ एक दूसरे अखबार का नुमाइंदा भी था। उसने अपने साथियों की तरफ देखा। फिर भीड़ को शांत रहने का संकेत करके बोला,
"आप लोग इस तरह पुलिस स्टेशन आकर शोर मचाएंगे तो पुलिस अपना काम कैसे करेगी। आप लोग जानते हैं कि स्थितियां कितनी संवेदनशील हो गई हैं। आप लोगों का यह व्यवहार बात को और खराब करेगा।"
रोज़ाना का पत्रकार आगे बढ़कर बोला,
"स्थितियां संवेदनशील हैं इसलिए ही हम आए हैं। पुलिस की जवाबदेही तो बनती ही है। पुलिस स्टेशन में उस शख्स की संदिग्ध अवस्था में मौत हो गई जो केस में अहम कड़ी साबित हो सकता था। अभी तक तो निर्जन स्थानों पर लोगों की हत्या हो रही थी। अब मामला पुलिस स्टेशन तक आ गया। आम जनता किसके पास जाकर सवाल करेगी ?"
लोगों ने रोज़ाना के पत्रकार की बात का समर्थन किया। भीड़ से एकसाथ आवाज़ उठी कि उन्हें इस मामले की इंचार्ज एसपी गुरुनूर कौर से बात करनी है। उनकी बात का समर्थन करते हुए दूसरे अखबार के पत्रकार ने कहा,
"आप एसपी गुरुनूर कौर को बुलाइए। हमें उनसे सवाल पूछने हैं।"
विलायत खान ने कहा,
"ये नहीं हो सकता है।"
रोज़ाना के पत्रकार ने कहा,
"क्यों नहीं हो सकता है ? अगर केस की ज़िम्मेदारी उन पर है तो वह जवाब देने की अपनी ज़िम्मेदारी से वो कैसे बच सकती हैं।"
विलायत खान ने कहा,
"वो किसी ज़िम्मेदारी से भाग नहीं रही हैं। बल्की केस के लिए अपनी ज़िम्मेदारी निभा रही हैं। केस के संबंध में आला अधिकारियों से मीटिंग करने गई हैं।"
रोज़ाना के पत्रकार ने कहा,
"हमें उनसे बात करनी है। कब तक वापस आएंगी।"
विलायत खान ने कहा,
"कहा नहीं जा सकता है कि मीटिंग कब तक चले। आप लोगों को जो सवाल पूछने हैं हमसे कीजिए।"
भीड़ में से फिर आवाज़ उठी कि एसपी गुरुनूर कौर को बुलाइए। विलायत खान ने परेशानी से अपने साथियों की तरफ देखा। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"आप लोगों को बताया गया है कि मैडम ज़रूरी मीटिंग के लिए गई हुई हैं। यहाँ मौजूद पत्रकारों को जो सवाल पूछने हैं हमसे पूछें।"
दूसरे पत्रकार ने कहा,
"चलिए फिर आप लोग ही बताइए कि यह हो क्या रहा है ? केस के लिए इतना महत्वपूर्ण व्यक्ति पुलिस हिरासत में संदिग्ध हालात में मर जाता है। यह कैसे हुआ ? अगर पुलिस स्टेशन ही सुरक्षित नहीं हैं तो आम लोग अपने आप को कैसे सुरक्षित महसूस करेंगे ?"
पत्रकार का यह सवाल ऐसा था जिसका किसी भी पुलिस वाले के पास जवाब नहीं था। विलायत खान ने कहा,
"अभी जांच जारी है। जल्दी ही सारी बातें आप लोगों को स्पष्ट कर दी जाएंगी।"
रोज़ाना के पत्रकार ने कहा,
"स्पष्ट तो है कि लापरवाही बरती गई है। पर इस लापरवाही का आप लोगों के पास कोई स्पष्टीकरण है नहीं। एसपी मैडम से बात हो नहीं सकती है। पर हम दोबारा आएंगे और अपने जवाब मांगेंगे।"
उसने अपने साथी पत्रकार की तरफ देखा। उसने भी हाँ में हाँ मिलाई। सही अवसर देखकर विलायत खान ने कहा,
"अभी हमें हमारा काम करने दीजिए।‌ बाद में हम आप लोगों के सामने सारी बात खुद ही रखेंगे।"
दोनों पत्रकारों ने लोगों को समझाया। भीड़ वहाँ से जाने को तैयार हो गई।

पुलिस स्टेशन के अंदर हुई हत्या का मामला गंभीर था। इस सिलसिले में उस समय ड्यूटी पर तैनात थाना इंचार्ज विलायत खान, इंस्पेक्टर मोहन और कांस्टेबल हरीश को अधिकारियों के सामने पेश होने का आदेश मिला। तीनों जब हेडक्वार्टर में पेश हुए तो उनसे सवाल किए गए। एसीपी मंदार पात्रा ने विलायत खान से कहा,
"आपको पता था कि ‌राजेंद्र की गवाही कितनी अहम थी। फिर भी इतनी लापरवाही बरती। उसके पेट में ज़हर पाया गया था। वह खाने में ही रहा होगा। उसे खाना देने में सावधानी रखना चाहिए था। पर ऐसा किया नहीं गया।"
विलायत खान ने जवाब दिया,
"सर हमने जगदंबा रेस्टोरेंट से खाना मंगया था। हर बार वहीं से खाना आता था। हम लोगों ने भी वहीं का खाना खाया था।"
"तो क्या राजेंद्र ने वही खाना खाया था जो आप लोगों ने खाया था ?"
"नहीं सर उसे पनीर नहीं खानी थी। इसलिए उसका खाना अलग पैक होकर आया था। कांस्टेबल हरीश ने उसके पास पहुँचा दिया था।"
एसीपी मंदार ने कांस्टेबल हरीश से पूछा,
"राजेंद्र को खाना कब दिया था ?"
"जैसे ही आया था मैं उसे दे आया था। मैंने कहा था खा लो। पर उसने कहा था कि कुछ देर में खाएगा। मैं खाना उसे देकर आ गया। उसके बाद हम लोगों ने खाना खा लिया। इंस्पेक्टर मोहन ने कुछ देर बाद देखकर आने को कहा था। मैं गया तब भी वह बैठा था। मैंने दोबारा उससे खाना खाने को कहा। मेरे सामने वह खाना थाली में डालने लगा था। मैं वापस आ गया। कुछ देर में उसके उल्टी करने की आवाज़ आई तो हम सब उसके पास गए। फर्श में खून पड़ा था और वह मर चुका था।"
"रेस्टोरेंट से खाना लेकर कौन आया था ?"
विलायत खान ने जवाब दिया,
"अनुज....वही पुलिस स्टेशन में खाना लेकर आया था।"
"उसकी भी लाश पुलिस स्टेशन के पास वाली गली में मिली है। इसका मतलब है कि अपराधी ने पहले उसे लालच देकर खाने में ज़हर मिलाया। बाद में अनुज को भी मार दिया।"
एसीपी मंदार पात्रा ने उन लोगों से और भी सवाल किए। उनसे बातचीत करने के बाद तय हुआ कि राजेंद्र के मामले में लापरवाही की गई है। उन लोगों के खिलाफ कार्यवाही करने का फैसला किया गया।

सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे और हेड कांस्टेबल ललित से भी पूछताछ की गई। उन्होंने सारी बात बताई कि किस तरह उन लोगों ने मुखबिर नज़ीर को बचाया। गुरुनूर के ज़ोर देने पर ही उसे छोड़कर वह और हेड कांस्टेबल ललित पालमगढ़ पुलिस से मदद लेने गए थे। गुरुनूर की खोज के लिए एक विशेष टीम का गठन किया गया।
मीडिया में राजेंद्र की मौत और गुरुनूर के गायब होने पर खूब चर्चा की गई। सब तरफ पुलिस की नाकामी की ही बात हो रही थी। इससे बसरपुर की जनता में भी डर और हताशा का माहौल था।

जांबूर अपने आसन पर बैठा हुआ था। उसके सामने गगन, संजीव और भानुप्रताप खड़े थे। उन तीनों के चेहरे पर चमक थी। उन्होंने एक बड़ा काम किया था। जांबूर ने कहा,
"तुम लोगों ने बहुत ही बहादुरी का काम किया है। ये पुलिस वाली हमारे आराध्य ज़ेबूल की आराधना में विघ्न डालने की कोशिश कर रही थी। अब हमारे अनुष्ठान में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होगी। तुम तीनों पर ज़ेबूल की विशेष कृपा होगी।"
जांबूर की बात सुनकर तीनों खुश हो गए। जांबूर ने उनसे कहा कि वैसे तो एसपी गुरुनूर कौर का पकड़ा जाना एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन फिर भी उन लोगों को सावधान रहने की ज़रूरत है। वो तीनों लोग जाएं और आगे के निर्देश का इंतज़ार करें। तीनों वहाँ से चले गए।
यह एक मकान का बेसमेंट था। बेसमेंट के कमरे में बहुत हल्की सी रौशनी थी। उस कमरे में बिस्तर पर गुरुनूर बेहोश पड़ी थी।