मासी टोनहीन नहीं थीं पर टोनहीन कही जाती थीं।एक तो उनका व्यक्तित्व आम औरत से अलग किस्म का था दूसरी उनकी सारी गतिविधियां भी रहस्यमयी थीं।उनका मूड कब क्या से क्या हो जाए,कोई नहीं जानता था।वे बहुत स्वादिष्ट भोजन बनाती थीं।कम सामग्रियों में भी लज़ीज़ भोजन तैयार कर देतीं।उनका बेसन से बनाया आमलेट मुझे बहुत पसंद था।मैंने उनसे उसकी रेसिपी भी सीखी पर उनके हाथ जैसा स्वाद खुद के बनाए आमलेट में नहीं मिला।माँ कहती कि कुछ स्त्रियों के हाथ में ही स्वाद होता है।वे कुछ भी बना दें अच्छा लगता है।मासी ढोलक बजाकर गीत गाने और नृत्य करने में भी लाज़बाब थीं ।किसी भी मांगलिक उत्सव,तिलक सगाई विवाह आदि में वे समा बांध देती थीं ।मेरी माँ भी गीत गा लेती थीं पर मासी की तरह सुरीली नहीं थीं।ना ही उन्हें नाचने या ढोलक बजाने ही आता था।उम्र के साथ साथ माँ की आवाज़ फटे बाँस -सी होती गई और उनका गला बार -बार फंस जाता था।मासी उनका खूब मजाक बनाती।मासी की एक और खूबी यह थी कि वे बातें बनाने और कहानियाँ गढ़ने में माहिर थीं।झूठी बातों का नया भी वे ऐसे करतीं कि के सच्ची लगतीं।
पर इन खूबियों के साथ माड़ी में कई सारी बुराइयाँ थीं।वे स्वार्थी किस्म की थीं जबकि मेरी माँ उदार थीं।मासी के चार बच्चे थे।जिसमें बड़ी थोड़ी बदसूरत और दिमाग से थोड़ी कम थी।बाकी दो लड़की और एक लड़का सांवले तो थे पर ठीक ही लगते थे।जबकि मेरे माता पिता और सभी भाई- बहन सभी गोरे -चिट्टे और बहुत ही सुंदर थे।हम लोग शहर में रहते थे और पढ़ाई लिखाई,रहन- सहन में भी मासी के परिवार से बहुत आगे थे।यही कारण था कि मासी माँ से जलती थीं।माँ हर मामले में मासी से ऊपर निकल जाती थीं ।सर्वत्र उनके रूप -गुण के चर्चे होते।वे ज्यादा सामाजिक और लोकप्रिय भी थीं।इसलिए मासी जब भी किसी आयोजन में आतीं उनके दो रूप देखने को मिलते।गाते- बजाते,हंसते -हँसाते वे प्यारी लगतीं,पर उनका स्वार्थी रूप सबको खल जाता।वे हमेशा अपने बच्चों को खिलाने पीलाने में लगी रहतीं।बाकी किसी के खाने पीने की परवाह न करतीं।दूसरे हम बच्चों की सेहत को नजर लगाती रहतीं।उनके बच्चे खूब खाने -पीने के बाद भी मरियल और सुस्त ही दिखते।वे पढ़ाई -लिखाई भी नाममात्र का ही करते थे।
मासी की एक आंख में बचपन में बड़ी चींटी धुस गई थी नानी ने सूती कपड़े की बत्ती बनाकर चींटी तो निकाल दी थी पर चींटी की आकृति वहीं बनी रही।मासी की आंखें भी बड़ी बडी थीं।उनको देखते हुए लगता कि चींटी जिंदा है।बच्चे अक्सर उनसे कहते -आपकी आंख में चींटी पड़ी है।
मासी नाटकीय मुद्रा बनाकर कहतीं--बेटा निकाल दो,दुख रही है आँख।बच्चे जतन करते पर चींटी हो तो निकले।
मासी जब भी मेरे या नानी के घर आतीं।ये नाटकीय दृश्य जरूर दुहराया जाता।सभी इस नाटक का मजा लेते।
पर मासी का ईर्ष्यालु स्वभाव मेरे घर नें किसी को पसन्द नहीं था।माँ हम बच्चोँ को मासी की नज़र से बचाए फिरतीं ताकि उनकी बुरी नज़र न लगे।पर एक ही घर में यह कहां सम्भव था।ज्यों ज्यों हम बड़े हो रहे थे,नासी का नेचर हमें खल रहा था।मुसीबत थी कि कोई उन्हें कुछ कह भी नहीं पाता था।घर में सभी जानते थे कि मासी अगर दुःखी या नाराज़ हो गईं और किसी को कोई बददुआ दे दी तो वह फलित हो जाती है।सभी उनसे इसी जार्न भयभीत रहते थे।और उन्हें उनके हिसाब से ही रहने देते थे।एक बार मैं मासी से लड़ पड़ी तो माँ ने मुझे ही डांट दिया और अकेले में समझाया कि मासी के मुंह न लगना।उसकी जीभ काली है जो कह देगी वह हो जाएगा।
मैंने कई बार मासी की जीभ देखने की कोशिश की पर उनकी जीभ सामान्य ही लगी।मैंने यह बात माँ को बताई तो वे बोलीं कि मासी की जीभ पर काली नागिन तब आकर बैठ जाती है जब वे किसी पर नाराज़ हो जाती हैं।
माँ जानती थी कि मासी टोनहीन नहीं हैं पर वे मामा के उनके ऊपर रहने की बात जानती थीं।यही कारण था कि वे हमेशा मासी से डरती रहीं ।
एक बार उन्होंने बड़ी दी कि शादी में मासी को न बुलाने का फैसला किया ।....तो उसी रात सपने में बड़े मामा आकर खड़े हो गए और गुस्से में बोले--तुमने मुझे शादी में न बुलाने का फैसला लिया है।का चाहती हो तुम्हारी बेटी की शादी न होने पाए.....।
माँ भयभीत हो गईं और उन्होंने न चाहते हुए भी मासी को दीदी की शादी में बुलाया और उन्हें सबसे ज्यादा सम्मान भी दिया।
मैंने कभी मासी पर बड़े मामा को आते नहीं देखा।उनसे जुड़ी सारी घटनाओं के बारे में नानी और माँ ने ही मुझे बताया था।उनकी टोनहीन होने की बात भी भरम ही थी।
मुझे तो वे भाग्य की मारी बेचारी ही लगीं।
बचपन से अजीब किस्म के दौरे,फिर बूढ़े से विवाह फिर तमाम आपत्ति- विपत्ति ,ऊपर से टोनहीन होने का ठप्पा!बेचारी!पर नानी और माँ की नज़र में मासी अभागी,मनहूस और कुलक्षिणी थी।
क्योंकि उनके जाते ही धनाढ्य ससुराल तहस- नहस हो गया।भरा -पूरा परिवार बिखर गया।घर में लड़ाई -झगड़े, बंटवारा सब हो गया था।
सबसे बड़ी आपदा तब आई जब महीनों बीमार रहने के बाद मासी के पति चल बसे।इस मृत्यु का कारण भी मासी को ठहराया गया।
हुआ ये था कि एक दिन मासी की किचकिच से तंग आकर मौसा ने उनपर हाथ उठा दिया।मासी भी कहाँ कम थीं ,वे भी मौसा को गालियां देने लगीं। बुड्ढा, साला ,नामर्द निकम्मा,कामचोर सब कह डाला।मौसा बूढ़े शेर थे अपना अपमान न सह सके।मासी को घसीटते हुए कमरे से दुआर पर लाके पटक दिया।उनका पूरा मुहल्ला इकट्ठा हो गया था।सबके सामने ही मौसा मासी को गाली दे रहे थे--भाग मेरे घर से साली कुतिया !कुलक्षिणी!इसके आते ही मैं बर्बाद हो गया।बेटे अलग हो गए।व्यापार में घाटा हो गया।दूकान जल गई।घर में हिस्सा हो गया।अब मुझे मारना चाहती है।मुझे खा जाएगी यह डायन!
मौसा की गालियाँ सीधे मासी के दिल पर लग रही थीं।वे विलाप करने लगीं और मौसा को कोसने लगीं फिर उनके मुँह से निकला कि बुड्ढा मर जाए तो शांति मिले।इसके कारण मैं जवानी में बूढ़ी लगने लगी।मेरे सारे अरमान अधूरे रह गए।ऐसे सुहागन से विधवा होना ही ठीक।
मुहल्ले वालों ने किसी तरह दोनों पति पत्नी को शांत कराकर घर के भीतर भेज दिया।
आधी रात को अचानक किसी अदृश्य हाथ ने मौसा को बिस्तर से उठाया और उन्हें जमीन पर इस बेदर्दी से पटका कि दुबारा मौसा उठ न सके।मासी की काली जुबान फलित हुई थी।