thank you in Hindi Horror Stories by Vishal Kumar99 books and stories PDF | घटवार का उपकार

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घटवार का उपकार

सब कुछ सामान्य था उस दिन। सावन के महीने में रविवार का दिन था, बारिश नहीं हो रही थी मगर मौसम अच्छा था। कोई आराम कर रहा था तो कोई पड़ोसियों के साथ अपने पुरे हफ्ते के अनुभव की चर्चा कर रहा था। मैं भी सुबह उठ कर नाश्ता पानी करके टीवी देख रहा था। तभी कॉलोनी में जैसे हाहाकार सा मच गया। पूरा इलाका घर से बहार था, पूरी कॉलोनी में रोने की चिल्लाने की आवाज़ गूंजने लगी थी। मैंने उसी भीड़ में शामिल अपने एक दोस्त इस हंगामे का कारण पूछा तो मेरे भी होश उड़ गए।

हुआ ये था के हमारे करीब कुछ दूर पर एक परिवार रहा करता था, परिवार के मुखिया उपाध्याय जी अच्छे आचरण वाले और सम्रध व्यक्ति थे। उनके चार बेटे थे, रविवार का समय पाकर उपाध्याय जी के ३ बेटे गंगा किनारे अपने 2 दोस्तों के साथ उस सुहाने दिन के मजे लेने गए थे। जाने वहां क्या हुआ क्या घटना घटी ये किसी को नहीं पता था, मगर उन पांचो में से ४ वही डूब गए और सिर्फ एक जो की नदी में उतरा ही नहीं था डरा हुआ वापस आया और उनके घर वालों के घटना की जानकारी दी। जो कुछ भी उसने बताया उस पर विश्वास करना मुश्किल था।

हाँ वहां जो कुछ भी हुआ था उस लड़के के मुताबिक वो चारो डूब चुके थे। पुलिस बुलाई गयी रिपोर्ट हुयी और फिर छानबीन शुरू हुयी। उपाध्याय जी काफी पहुँच वाले आदमी थे इसलिए पुलिस बिना नतीजे के शांत नहीं बैठ सकती थी। पूरे दिन पुलिस ने छानबीन जारी रखी। जिस घाट के पास वो लोग नहाने गए थे उस घाट से २ किलोमीटर दूर तक पुलिस के गोताखोरों ने लाशो को तलाश किया परन्तु उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा। पुलिस की नींद उड़ गयी और उधर उपाध्याय परिवार में शोक के साथ एक उम्मीद भी आ गयी के शायद कुछ अनर्थ न हुआ हो।

सब एक आशा के साथ उन लोगो के लौट आने की उम्मीद में कुछ न कुछ प्रयास में लगे हुए थे। पुलिस ने उनके बचे हुए दोस्त को ही हिरासत में लेकर पूछताछ करना शुरू किया। लेकिन पुलिस को उस लड़के ने जो जो बताया वो सेकड़ो लोगो के सामने कल ही बयां कर चुका था।

उसने बताया था के वो पांचो कल सुहाना मौसम देख कर गंगा के घाट पर गए थे वहां उन लोगो ने बैठ कर पहले काफी बातें की और फिर उसके बाद घाट से गंगा के किनारे किनारे दूसरी तरफ चल दिए। वहां पर काफी शांति थी इसलिए पांचो ने वहीँ डेरा जमा लिया। फिर उनमे से चारो ने तय किया के इसे कुछ मजा नहीं आ रहा थोड़ी बीअर या शराब होती तो ज्यादा मजा आता। फिर उनमे से एक ने जाकर २ बोतल और कुछ गिलास का इंतजाम कर लिया। लेकिन वो पीता नहीं था इसलिए उसने उन चारो का साथ देने से मन कर दिया। वो शराब पी रहे थे और अपने अपने हफ्ते भर की बातों को कर रहे थे, जैसे जैसे उनकी शराब खत्म हो रही थी वहां का माहोल शांत और शांत होता जा रहा था। कुछ देर में वहां पानी के सिवा पेड़ पाल्लो में भी हलचल होना बंद हो गयी। उसने सोचा शायद आंधी तूफान आने वाला है उसने उन चारो से वापस चलने को कहा मगर वो चारो मिलकर ४ बोतल गटक चुके थे। उन्होंने सोचा अगर इसी हालत में घर गए तो बहुत जूते पड़ेंगे इसलिए सोचा के थोडा सा पानी में नहा लिया जाये ताकि नशा कम हो जाए और फिर अपने अपने घर चलेंगे।

फिर वो सब ही नहाने के लिए वहां बनी सीढियों से उतर कर नहाने के लिए नदी में उतर गए। न जाने फिर क्या कैसे हुआ एक एक कर के चारो उसी में अन्दर चलते चले गए और फिर ऊपर नहीं आये।

उस लड़के का इतना बयां लेकर पुलिस ने उसे जाने दिया और फिर से उस जगह और वहां आस पास फिर से छानबीन की। अभी भी उनके हाथ कुछ नहीं लगा। पुलिस ने सबको सिर्फ इतना बताया की चारो ने शराब पी हुयी थी इसलिए वो तैर नहीं पाए और डूब गए, शराब की भी जांच की गयी मगर वो ब्रांडेड शराब भी उसमे किसी असामान्य तत्व का होना मुश्किल था। मगर पुलिस अभी भी बेचैन थी के वो लोग डूब तो गए मगर लाश कहाँ गयी?

उपाध्याय जी के घर में जो माहोल था उसका थो बखान करना ही मुश्किल है। जिसके ३ बेटे जो मर चुके हो लेकिन उनकी लाश तक न मिली हो ऐसी माँ की क्या हालत होती है ये हर कोई समझ सकता है। वो सुबह होते ही मन्नत मांगने मंदिर जाती, कभी कुछ खाती तो कभी कुछ भी नहीं खाती, कभी रोती तो कभी हंसती तो कभी चिल्लाते हुए बाहर भागने लगती। आज तीसरा दिन था पूरा उपाध्याय परिवार उस दिन कोस ही रहा था और उन तीनो के मिल जाने की मन्नते कर रहा था।

दोपहर के समय एक बाबा हमारी कॉलोनी में आया उस वक़्त उपाध्याय जी और उनका बेटा पुलिस स्टेशन गए हुए थे। माँ जी तो घर में सो रही थी, सोना क्या उसे तो गम की बेहोशी ही कहेंगे, एक दो रिश्तेदार भी घर में थे।

घटना बहुत प्रचलित हो चुकी थी तो साधू ने पूरी घटना का बखान उनके आगे किया और फिर माता जी से कहा की "आपके तीनो बेटे मिल जायेंगे मगर इसकी कीमत लगेगी क्योकि वहां जो भी चीज़ है वो बहुत लालची है उसने ही तुम्हारे बेटो और उसके दोस्त अपने पास रखा हुआ है मगर उनकी जान छुपा ली है उसे धन चाहिए फिर वो उनकी जान वापस उनके शरीर में डाल कर लौटा देगा।"

"कैसी कीमत बाबाजी मैं हर कीमत देने को तैयार हूँ मगर मुझे मेरे बेटे चाहिए" माता जी ने उस बाबा से पूछा।

ये सारी बातें उन दोनों के बीच अकेले में चल रही थी क्योकि बाबा ने ही कहा था के वो ये बातें सिर्फ माता जी से करेगा।

"वो बहुत लालची आत्मा है इसलिए तुम्हारे पास जितना धन है सोना चांदी, लेकर वहीँ गंगा के रेतीले घाट पर आ जाना। मगर आधी रात को अकेले आना के तुम्हारे घर में भी किसी को पता न चले। हम उस आत्मा को उतने धन में ही मनाने की कोशिश करेंगे। और फिर तुम्हारे बेटे तुम्हे वापस मिल जायेगे। अगर तुमने ये बात किसी को घर में बताई तो वो हमारी क्रिया में बाधा डाल देगा और फिर तुम अपने बेटो से हाथ धो बैठोगी। समझ आया ?" बाबा ने माता जी से कहा।

"जी मैं बिलकुल समझ गयी।" आँखों में चमक लिए माता जी ने उस साधू से कहा। उन्हें अब उम्मीद की किरण नज़र आ रही थी।