TEDHI PAGDANDIYAN - 34 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | टेढी पगडंडियाँ - 34

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टेढी पगडंडियाँ - 34

टेढी पगडंडियाँ

34

सिमरन के हाँ कहते ही गुरनैब को लगा कि वह फूल से भी हलका हो गया है । कब से किसी को यह बात बताने को वह बेचैन हुआ पङा था । इतनी बङी खबर उससे अकेले हजम कैसे होती । आज चाचा जिंदा होता तो वह मरासियों को बुलाके ढोल बजवाता हुआ घर आता । अभी चाचा को गये पंद्रह दिन नहीं हुए । घर से मातम खतम नहीं हुआ । हर तरफ उदासी छाई है फिर भी खबर तो मन को ठंडक देने वाली हुई न । उसके सगे चाचे का अंश दुनिया में आने वाला है । यह सोच के उसका मन खुशियों से भर गया । वह बजते हुए गाने के साथ साथ गुनगुनाने लगा । कार के स्टीरियो पर बज रहा था – कोई मिल गया , मिल ही गया । गाना खत्म हुआ तो उसने बिंदरखिया लगा लिया । उसके बाद योयो हनी सिंह के सुर में सुर मिलाकर गुरनैब अपनी मस्ती में गाता रहा । उसने मुङ कर देखा ही नहीं कि सिमरन का चेहरा उतर गया है । वह कार की सीट पर सिर टिकाकर आँखें बंद किये अधलेटी हो गयी थी । सिमरन का मन यह बात सुनते ही खराब हो गया था , वह अनमनी सी बैठी रही । एक चुप पसर गयी थी दोनों के बीच । जैसे वह किसी अंधेरी सुरंग में फँस गयी हो । कहीं उजाले की एक किरण नजर आ रही थी , वह भी इस समय गायब हो गयी लग रही थी । अगर गुरनैब की बात सच निकली तब तो किरण नाम की वह जङ हवेली में जम जाएगी । कहाँ तो वह सोच रही थी कि एकबार पापाजी भाई के सदमे से बाहर आ जाएं तो वह मौका देख कर उनसे बात करेगी और इस किरण नाम के रोग को खानदान से निकाल फेंकेगी और कहाँ अब वह हवेली का वारिस लेकर आ रही है । भगवान भी ऐसों का ही साथ देता है । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे वह । अभी बीबी जी को बताए या न बताए । न बताए तो भी बात घर में पता तो चलनी ही हुई । ऐसी बातें भला छिपाये छिपती हैं । और हवेली के बच्चे के दुनिया में आने की खबर सौ परदे फाङ के भी बाहर आ जाएगी । फिर उसे करना क्या चाहिए । घर जाते ही बता देना चाहिए क्या ? फिर जो होना है सो हो ।
अचानक गुरनैब ने कार को ब्रेक लगाए तो उसकी तंद्रा टूटी । कार हवेली पहुँच गयी थी ।
नौकरों ने आगे आकर लिफाफे उतारे तो सिमरन भी कार का दरवाजा खोल कर उतर गयी । सूरज छिप गया था । शाम सुरमई हो गयी थी । तारे टिमटिमाने लग गये थे । चौके से दाल के पकने की खुशबू आ रही थी । चन्न कौर रसोई में ही उठापटक में लगी हुई थी ।
सिमरन और गुरनैब को आया देखकर वे बाहर आँगन में आ गयी ।
“ आ गये भई तुम दोनों । ननी सो गयी है । सिमरन तू भी हाथ मुँह धोके थोङा आराम कर ले । मैं चाय तेरे कमरे में ही भेज देती हूँ “
“ कोई न बीबी जी , आप सारा दिन लगे रहे हो । अब का काम मैं सम्हाल लेती हूँ “ ।
“ अपनी शकल देखी है । पूरा दिन सङकों पे घूम घूम के चेहरा हल्दी हुआ पङा है । जा जाके थोङा लेट जा । यहाँ का सारा काम तो हुआ ही पङा है । दाल बन गयी है । आटा गुथा है । दही जम गयी । बस फुल्के लगाने है “ ।
“ ठीक है बीबीजी , चाय पीकर मैं फुल्के उतार लूँगी । आप आराम कर लेना “ ।
सिमरन अपने कमरे में चली गयी । वाशवेसिन पर हाथ मुँह धोते हुए उसने अपना चेहरा देखा । इस समय वह कई दिनों की बीमार लग रही थी । उसने मुँह पर पानी के कई छींटे मारे और तौलिये से हाथ पौंछती हुई अपने पलंग पर आ गयी । वहाँ ननी निश्चिंत सोई हुई थी । ननी को देखते ही उसका चेहरा स्निग्ध हो आया । तब तक सुरजीत चाय और बिस्कुट ट्रे में रख कर ले आई थी । उसने चाय पकङ ली और चुस्कियाँ लेकर चाय पीने लगी ।
रात की रोटी बनाकर सबको खिलाकर जब खुद खाने के लिए बैठी तो ध्यान आया कि उसने आज का खरीदा हुआ सामान तो सास को दिखाया ही नहीं । तुरंत थाली ढक कर वह सारे लिफाफे लेकर सास के पास पहुँची । चन्न कौर पंज पौङियाँ का पाठ करने के लिए गुटका साहब खोलने लगी थी । सिमरन को देखकर उसने गुटका माथे से लगाकर एक ओर रख दिया ।
बीबी जी सामान आपको दिखाया ही नहीं मैंने ।
कोई न सुबह दिखा देना था । इतनी तो मुरझाई पङी थी । अब मन कैसा है
अब ठीक है बीबी जी ।
वह एक एक लिफाफा खोलती रही । चन्नकौर को सभी पसंद आए । खास तौर पर टैंपल रिंग । सिमरन ने गुरनैब के खरीदे तीन सूट सास को दिये – ये आपके बेटे ने आपके लिए खरीदे हैं ।
चन्नकौर ने उनमें से उन्नाबी रंग का सूट सिमरन को पकङा दिया – ये तू सिलवा लेना बेटे । तेरे रंग पर खूब खिलेगा ।
ना ना करे भी सिमरन ने सूट रख लिया ।
सच बीबी जी , आपको एक बात बतानी है ।
चन्न कौर ने उत्सुकता से सिमरन का मुँह देखा ।
वो किरण को दिन चढे है । शायद दो तीन महीने ।
तुझे किसने बताया ?
आज आपके बेटे ने ।
चन्न कौर के चेहरे पर दो मिनट के लिए खुशी चमकी फिर वह उदास हो गयी । काश यह खबर जसलीन या सिमरन की ओर से आई होती तो उसने रज रज खुशियाँ मनानी थी । सारे गाँव में हलवा बँटवाती । सबको मोतीचूर के लड्डू खिलाती । सोहर और घोङियाँ गाती । किरण से भी खबर आई तो निरंजन के रहते आनी चाहिए थी न । तब भी सारे मिलकर खुश हो लेते । अगले ही पल उसे किरण की चिंता होने लगी । अभी अट्ठारह साल की मासूम सी बच्ची है । कैसे संभाल पाएगी यह सब । उसकी देखभाल का पूरा इंतजाम करना पङेगा । परमात्मा सुख रखे । अब कोई दुख न देखना पङे ।

बाकी कहानी अगली कङी में ...