हेलो...! मैं तुम से ही बात कर रहा हूं। विराज ने अपना एक हाथ उस लड़की के आगे दाएं बाएं हिलाते हुए कहा।
वोह लड़की झेप गई और विराज का फोन उसके हाथ में देते हुए तुरंत सॉरी बोल के वहां से आगे बढ़ गई।
अजीब लड़की है.....कहते हुए विराज ने अपना सर झटका और अपनी गाड़ी की ओर बढ़ गया।
दिल्ली में सिसोडियाज़ का अपना बंगला था जिसकी देख भाल तीन लोग करते थे एक माली देवीदास जिसका इस दुनिया में कोई नहीं था उसे पेड़ पौधों से बहुत लगाव था दो वक्त की रोटी और सोने के लिए छत इस से ज्यादा उसकी सोच नही गई कभी, एक रसोइया जीवन लाल खाने और बनाने का शौकीन पत्नी के मारने के बाद कभी कभी गांव जाते थे अपने दो बेटे और बहुओं से मिलने वरना यहीं दिल्ली में ही सिसोडियाज़ विला में ही रह कर बंगले की देखरेख करते और तीसरा सबसे छोटा मुरली, उन्नीस साल का मुरली पूरे विला की साफ सफाई का काम करता था बाहर से जरूरत का सामान लाना उसी की जिमिदारी थी या यूं कहो बाकी दोनो को जाने ही नही देना चाहता था उनकी देख भाल भी खुद करता था बचपन से ही अनाथ मुरली स्वभाव से एक दम चुलबुला।
ये तीनों लोग पूरे विला की अच्छे से देख रेख करते थे थोड़ी दूरी पर बने आउटहाउस में रहते थे।
किसी को नहीं पता था की सिसोडियाज़ का सुपुत्र, उनका लाडला, सिसोडियाज़ का उतराधिकारी यानी विराज महेश सिसोदिया इंडिया में पधार चुका है। ना ही सिसोडियाज़ में रहने वाले नौकरों को और नाही ऑफिस में कोई जानता था। एक प्राइवेट टैक्सी हायर करके विराज को सिसोदिया विला पहुंचाने का इंतजाम किया गया था जिसका काम विराज को उसके घर पहुचाके पूरा हो जायेगा उसके बाद उनका कोई लेना देना नही।
आखों में काला चश्मा चढ़ाए टैक्सी में पीछे की सीट से सिर टिकाए बैठा विराज बंद शीशे की खिड़की से बाहर की ओर देख रहा था। भले बचपन में कुछ साल उसने इंडिया में ही बताया था और यही इसी देश में पैदा हुआ था लेकिन जब से होश संभाला था तब से अपने आप को ऑस्ट्रेलिया में हो देखा था। उसके लिए इंडिया बिलकुल नया जैसा था यहां का तौर तरीका रहन सहन सब ऑब्जर्व कर रहा था। हां हल्की फुल्की कुछ धुंधली सी भी यादें थी उसकी बचपन की। कुछ देर बाद गाड़ी रैड लाइट पे रुकी, और दिल्ली का ट्रैफिक तो दिल्ली में रहने वाले अच्छे से जानते ही होंगे जितनी दिल्ली की आबादी नही है उससे ज्यादा यहां गाडियां सड़को पे रोज़ उतरती है थोड़ी थोड़ी देर में ट्रैफिक लाइट का सामना करना और दिल्ली के ट्रैफिक को कोसना यहां के लोगों के लिए आम बात है, विराज अपनी नज़र अपने फोन पे गड़ाए फोन की स्क्रीन पे तेजी से अपनी दाएं हाथ की उंगली चलते हुए स्क्रॉल कर के कुछ देख रहा था। सहसा ही उसकी नज़र अचानक दाएं खिड़की के बाहर पड़ी, एक लड़की लाल रंग की स्कूटी पे बैठी लाल रंग का हैल्मेट लगाए बार बार ना में इशारा कर रही थी। उस लड़की के दाएं तरफ एक नौ से दस साल के आसपास की उम्र का एक बच्चा खड़ा था जो उससे कुछ कह रहा था। विराज ने बटन दबा के खिड़की का शीशा नीचे किया तभी उसके कानो में एक मीठी सी आवाज़ पड़ी "अरे बच्चा में इसका क्या करूंगी ना ही में बच्ची हूं जो इससे खेलूं और ना ही मेरे घर में कोई बच्चा है"।
ले लीजिए ना दीदी प्लीज़.... उस बच्चे ने रिक्वेस्ट करते हुए कहा।
अच्छा रुक!.....ये सारे बलून देदे मुझे। उस लड़की ने दो सौ रुपे उस बच्चे को पकड़ाए और उसके हाथ से सारे बलून ले लिए।
थैंक्यू दीदी पर आपने मुझे ज्यादा पैसे देदिये और आपको लौटाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं है। उस बच्चे ने खुशी और परेशानी दोनो ही मिले जुले भाव से कहा।
मुझे चाहिए भी नही तू रख इसे। इतना कहते ही वो लड़की बिना उसकी तरफ देखे अपना हैल्मेट उतारा और अपनी स्कूटी स्टैंड पे लगा के उतर गई और आस पास देखने लगी। गोरा रंग काली गहरी बड़ी बड़ी आंखें माथे पे एक छोटी सी काली बिंदी पतले पतले गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठ कानो में लटकते झुमके और बीच में उस खूबसूरत से चेहरे पर खूबसूरत तरीके से सजी हुई पतली सी नाक। और सबसे खूबसूरत उसकी मुस्कुराहट जो किसी को भी उसकी तरफ बार बार देखने पर मजबूर कर दे। अभी सभी गाडियां रैड लाइट पे रुकी हुई ही थी तो जिस भी गाड़ी या बाइक पे कोई छोटा बच्चा दिखता सब को उसने मुस्कुराते हुए एक एक बलून पकड़ा दिया। सभी बच्चे खुश हो गए थे।
अरे तू गया नही....! वोह लड़की अपनी स्कूटी पर वापस बैठते हुए बोली।
दीदी एक बात कहूं...
बोल
आप बहुत सुंदर हैं...
उस लड़की ने उस बच्चे की तरफ देखा।
उस बच्चे ने आगे कहा "शक्ल से भी और दिल से भी"।
वह लड़की खिलखिला कर हस पड़ी।
विराज जो कबसे अपनी नज़र उस लड़की पर बनाए हुए था उसके चहरे पर भी एक छोटी सी मुस्कुराहट आ गई।
ये बता स्कूल क्यों नही जाता पढ़ाई करना अच्छा नहीं लगता क्या या मम्मी पापा जबरदस्ती काम करवाते हैं। उस लड़की की आवाज़ फिर विराज के कानो में पड़ी।
नही ऐसा नहीं है...स्कूल में कौनसा पढ़ाई होती है वहां भी काम ही करवाते हैं बस फर्क ये है वहां काम करने के बदले कुछ नही मिलता और बाहर पैसे मिल जाते हैं।
तभी विराज के कानो में पौ.. पौ.. जैसी हॉर्न की आवाज़ पड़ी और उसका ध्यान खिड़की तरफ से हट कर सामने की तरफ हो गया सभी गाडियां एक साथ हॉर्न दे रही थी विराज के ड्राइवर ने भी गाड़ी आगे बढ़ा दी क्योंकि ट्रैफिक लाइट ने ग्रीन सिग्नल दे दिया था सभी गाडियां अपने अपने गंतव्य स्थान की तरफ बढ़ने लगी थी। विराज ने एक बार फिर उस स्कूटी वाली लड़की की तरफ देखना चाह फिर कुछ सोच कर अपना सिर झटका और अपने सन ग्लासेस ठीक करते हुए गाड़ी के शीशे चढ़ा दिए और सीधा होके बैठ गया था।
कुछ पल बाद ट्रिंग ट्रिंग आवाज़ करता उसका फोन बज पड़ा विराज ने नज़र घुमा के अपने हाथ में पकड़े हुए फोन की तरफ देखा तो मुस्कुरा पढ़ा "डैड कॉलिंग"। उसने फोन उठा के कान पे लगाया "हैलो....
हैलो विराज बेटा...पहुंच गए। उसके डैड महेश जी ने दूसरी तरफ से कहा।
विराज कुछ बोलता उससे पहले ही उसके कान में दूसरी आवाज़ पड़ी "हैलो विराज कैसा है बच्चे तू ठीक से पहुंच गया तू ठीक तो है न कुछ खाया तूने या अभी तक भूखा है तू कुछ बोल क्यों नही रहा....?????
आवाज़ सुनते ही विराज की मुस्कुराहट और बढ़ गई थी।
रूपाली जी, विराज की मां, ने महेश जी से तुरंत फोन छीन लिया था और खुद अपने बेटे का हाल चाल लेने लगीं थी।
मां..मां..मां.. शांत हो जाओ मुझे मौका तो दो बोलने का।
में अभी ही एयरपोर्ट से निकला हूं एक बार मुझे घर तो पहुंचने दो। विराज अपनी मां को शांत कराने और चिंता को दूर करने के लिए तुरंत सफाई देने लगा था।
यहां ऑस्ट्रेलिया जैसा कुछ नही है मां सब कुछ अलग है लेकिन................लेकिन अच्छा है।
ट्रैफिक की वजह से में अभी तक घर नहीं पहुंचा हूं और घर पहुंचते ही में खा भी लूंगा और आराम भी कर लूंगा।
बेटा बस तू ठीक से रहना और मुझे बार बार फोन करते रहना वरना मुझे तेरी फिक्र सताती रहेगी। रूपाली जी ने अपनी आंखों की नमी छुपाते हुए कहा।
अपने तीन साल के करियर में मैं दो बार बिज़नेस मैन ऑफ द ईयर का खिताब जीत चुका हूं मेरा दिमाग एक बिज़नेस मैन के पोते और एक बिज़नेस मैन के बेटे का है। मैं सात समुंदर पार दूर बैठी अपनी मां की आंखों को फोन से ही पढ़ सकता हूं। तो मुझसे झूठ बोलने की तो बिलकुल जरुरत नही है। आपको पता है आपकी आंखों के आंसू में बर्दाश्त नहीं कर सकता चाहे वो आंसू मेरे लिए चिंता में ही क्यों न बहे हो।
दूसरी तरफ अपने लिविंग रूम के सोफे पे बैठी रूपाली जी मुस्कुरा दी थी अपनी जान के टुकड़े की बात सुनके। 🥰🤗
अरे भई तुम मां बेटे का हो गया हो तो मैं भी कुछ बात कर लूं अपने बेटे से। महेश जी ने अपना सिर पीट लिया था मां बेटे का मैलो ड्रामा सुन के अभी तो चौबीस घंटे भी नही हुए थे विराज को गए हुए और रूपाली जी ने अपनी गंगा जमुना बहाना शुरू कर दिया था।
रूपाली जी ने महेश जी को फोन देते हुए घूरा वहीं विराज अपने डैड की बात सुनके उनका इशारा समझ के मन ही मन हस पढ़ा था।
फिर महेश जी ने विराज से कुछ जरूरी बात की और अपना ख्याल रखने को कह कर फोन रख दिया।
उधर मायरा जैसे ही ऑफिस पहुंची किसी स्टाफ ने आके उससे से कहा की बॉस कबसे तुम्हारा वेट कर रहें हैं जाओ जल्दी। मायरा ने अपनी सीट पर अपना बैग रखा और तुरंत अपने बॉस मिस्टर नीरज चोपड़ा के केबिन में पहुंच गई। केबिन का डोर नॉक करने से पहले उसने एक लंबी सांस भरी फिर नॉक करके अंदर चली गई।
कहानी अभी जारी है......
धन्यवाद🙏