Gyarah Amavas - 34 in Hindi Thriller by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | ग्यारह अमावस - 34

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ग्यारह अमावस - 34



(34)

हावड़ा पुलिस ने दीपांकर दास के बारे में एक फाइल गुरुनूर को ईमेल की थी। गुरुनूर डिनर के बाद अपने आवास पर उसे अपने लैपटॉप पर पढ़ने जा रही थी कि तभी उसके डैडी का फोन आ गया। इधर फिर अपनी व्यस्तता के चलते वह अपने घर फोन नहीं कर पाई थी। उसके डैडी ने उससे उसका हालचाल पूछा। उसे परेशानियों से घबराने की जगह धैर्य और हिम्मत से काम लेने की सलाह दी। अपने डैडी से बात करने के बाद गुरुनूर अपना लैपटॉप लेकर अपने कमरे में चली गई।
उसने लैपटॉप पर वह फाइल खोली। उसमें कुछ तस्वीरें और जानकारियां थीं। एक तस्वीर में कुछ साल पहले का दीपांकर दास एक औरत और एक लड़की के साथ खड़ा था। तस्वीर के नीचे उस औरत और लड़की के बारे में लिखा था। औरत का नाम सुनंदा दास था। वह दीपांकर दास की पत्नी थी। उसे एक ओडिसी नृत्यांगना बताया गया था। लड़की का नाम कुमुदिनी दास था। वह दीपांकर दास और सुनंदा की बेटी थी। उसे एक उभरती हुई ओडिसी नृत्यांगना बताया गया था। गुरुनूर को उन पेपर कटिंग्स की याद आई। उनमें भी ऐसा ही ज़िक्र था।
गुरुनूर ने आगे पढ़ा। पढ़ते हुए एक बहुत ही दर्दनाक बात सामने आई। कुमुदिनी अपने घर से किसी काम से निकली थी। वह अचानक लापता हो गई। पुलिस ने उसे तलाशने की कोशिश की। कुछ दिनों बाद उसकी लाश मिली। उसके साथ बलात्कार किया गया था। पुलिस की कोशिशों के बाद भी बलात्कार करने वालों का कोई पता नहीं चल पाया। कुछ दिनों में फाइल बंद हो गई।
फाइल में लिखा था कि सुनंदा अचानक बीमार पड़ी और चल बसी। दीपांकर दास भी दुख को सह नहीं पाया। अपना पब्लिकेशन का बिज़नेस उसने किसी को बेच दिया। कुछ वक्त के बाद अपने पुराने साथी के साथ कहीं चला गया। उसके बाद उसका कोई पता नहीं चला।
अंत में दीपांकर दास के पुराने साथी के बारे में लिखा था। उसका नाम शुबेंदु सेन था। वह बंगाली लेखक था। वह दीपांकर दास के पब्लिकेशन के बिज़नेस का पार्टनर था। रिपोर्ट में लिखा था कि वह भी अचानक कहीं चला गया था। दीपांकर दास की पत्नी और बेटी की मृत्यु के बाद लौटकर आया। कुछ दिनों तक उसके साथ रहा। उसके बाद दीपांकर दास को लेकर कहीं चला गया। फाइल में शुबेंदु सेन की तस्वीर भी थी। गुरुनूर ने उसे ध्यान से देखा। उसकी तस्वीर देखी तो उसमें उसके लंबे बाल दिखाई पड़ रहे थे। वह बहुत कम शुबेंदु से मिली थी। जब भी उसे देखा था वह अपने सर पर एक टोपी पहने रहता था। शायद अपने बालों को वह पीछे की तरफ बांध कर रखता था। इसलिए उसके लंबे बालों पर गुरुनूर का ध्यान नहीं गया था।
जो कुछ भी गुरुनूर ने पढ़ा था वह उसके बारे में सोचने लगी। सोचते हुए उसके दिमाग में कुछ बिंदु उभरे। सबसे पहला सवाल आया कि कुमुदिनी के दोषियों को पकड़ा क्यों नहीं जा सका ? क्या पुलिस को ऐसे कोई भी साक्ष्य नहीं मिले थे जिनके द्वारा दोषियों को पहचाना जा सकता ? क्या सब जानते हुए दोषियों को जानबूझकर छोड़ा गया ? कुमुदिनी का अपहरण जहाँ हुआ था उसके विपरीत दिशा में बहुत दूर उसकी लाश मिली थी। पुलिस का कहना था कि बलात्कार और हत्या कहीं और करने के बाद कुमुदिनी की लाश को उस जगह ले जाकर फेंक दिया गया था। अगर पुलिस इतना पता कर सकती थी तो दोषियों को क्यों नहीं पकड़ पाई ?
दीपांकर दास ने अपनी बेटी के गुनहगारों को पकड़वाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया ? वह सबकुछ भूलकर अपने साथी शुबेंदु के साथ यहाँ चला आया। यह बात गुरुनूर को समझ नहीं आ रही थी। उसे ऐसा लग रहा था कि कुमुदिनी के केस में कुछ ऐसा था जो सही नहीं था। उसने मन बनाया कि वह कुमुदिनी के केस की फिर से जांच करवाने के लिए कहेगी।
गुरुनूर ने पुलिस कमिश्नर से इस संबंध में बात की। उन्होंने आश्वासन दिया कि वह इस विषय में कुछ करेंगे।

ब्लैक नाइट ग्रुप में एक नया मैसेज आया। ग्रुप के सदस्यों को पालमगढ़ के बाहर बने मकान में आधी रात के बाद मिलने को कहा गया था। गगन ने अपने दोस्त संजीव से बात की। उसने कहा कि वह शाम तक पालमगढ़ उसके घर आ जाए। उसके बाद दोनों साथ में मीटिंग में जाएंगे। गगन अपनी मोटरसाइकिल से पालमगढ़ जा रहा था। नज़ीर एक निश्चित दूरी बनाए हुए उसका पीछा कर रहा था। उसने चलने से पहले सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को फोन किया था। पर उससे संपर्क हो नहीं पाया था। उस समय रुककर सूचना देने का समय नहीं था। उसने जल्दी से एक मैसेज टाइप किया कि वह गगन के पीछे जा रहा है। सही मौका मिलने पर सारी बात बताएगा।
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को सूचना मिली थी कि बसरपुर में पश्चिम वाले पहाड़ के पास एक मकान है। यह मकान जंगल शुरू होने से कुछ पहले ही पड़ता है। मकान एकांत में है और बंद है। सूचना पाकर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे हेड कांस्टेबल ललित और कांस्टेबल हरीश के साथ उस मकान पर गया था। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने देखा कि उस मकान के आसपास कोई और दूसरा मकान नहीं था। वह मकान जिस स्थिति में था वहाँ अपराधिक गतिविधियों को अंजाम देना आसान था।
वहाँ पहुँच कर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने मकान का अच्छी तरह मुआयना किया। दरवाज़े खिड़की अंदर से बंद थे। मकान के अंदर जाने का कोई रास्ता दिखाई नहीं पड़ रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कि कई दिनों से वहाँ कोई आया ही ना हो। लेकिन सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे का मन कह रहा था कि वहाँ अवश्य कुछ है। वह एकबार फिर सावधानी से इधर उधर देखने लगा। मकान के सामने के हिस्से में गार्डन था। लेकिन सही देखभाल न होने के कारण उजाड़ था। फिल्मों में दिखाए जाने वाले किसी पुराने भूतिया मकान के गार्डन जैसा लग रहा था। मकान के बाईं तरफ एक रास्ता बैकयार्ड की तरफ जा रहा था। इस रास्ते पर बेतरतीब घास उग आई थी। उसे पार कर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे अपने दोनों साथियों के साथ बैकयार्ड में गया। वहाँ भी बेतरतीब घास के अलावा कुछ नहीं था। हेड कांस्टेबल ललित ने कहा,
"सर इस जगह को देखकर लगता तो नहीं है यहांँ कोई झांकने भी आता होगा। आपको लगता है यहांँ कोई होगा।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"ऐसी जगहें आपराधिक गतिविधियों के लिए सबसे अच्छी होती हैं। लोगों को लगता है कि यहांँ कोई आता जाता नहीं होगा। उसी का फायदा उठाकर गुनहगार अपना काम करते हैं। हमको साधारण लोगों की तरह नहीं बल्कि पुलिस वालों की तरह सोचना होगा। आसपास बड़े ध्यान से देखो। शायद कुछ ऐसा मिल जाए जो हमारे काम का हो।"
तीनों लोग उस जगह को अच्छी तरह से देखने लगे।

मकान के ऊपरी हिस्से में एक छोटा सा कमरा था। उस कमरे में राजेंद्र था। राजू उसके पास ही ही बेहोश पड़ा था। राजेंद्र परेशान था। उसने अपना फोन निकाल कर नागेश को यहाँ की गतिविधियों के बारे में बताने का प्रयास किया। नागेश उसे राजू के पास छोड़कर एक ज़रूरी काम से बाहर गया था। राजेंद्र ने अपना फोन निकाला तो नेटवर्क नहीं आ रहा था। उसके लिए नागेश को सावधान करना ज़रूरी था। लेकिन नेटवर्क ना होने के कारण फोन नहीं कर पा रहा था। उसने नेटवर्क रीस्टोर करने का प्रयास किया किंतु कोई फायदा नहीं हुआ।
राजेंद्र जानना चाहता था कि पुलिस वाले नीचे क्या कर रहे हैं। कमरे की खिड़की में एक कोने में काँच टूटा हुआ था। उस पर कागज़ लगा था। राजेंद्र ने धीरे से कागज़ हटाकर बाहर झांका। उसे तीन पुलिस वाले दिखाई पड़े।
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को घास में कुछ दिखाई पड़ा। वह कुछ कदम आगे गया तो यह प्लास्टिक का एक चम्मच था। वहांँ प्लास्टिक का चम्मच होना इस बात का इशारा था कि जैसा लग रहा है वैसा है नहीं। उस मकान में लोगों का आना जाना है। उसी समय उसे एहसास हुआ जैसे कि आसपास से कोई उन पर नज़र रखे है। उसने नज़रें उठाकर ऊपर की तरफ देखा। ऊपर कमरे की खिड़की में कोई हलचल सी महसूस हुई।
उसका दिमाग तेज़ी से काम करने लगा। उसे पूरा यकीन था कि ऊपर कोई है। लेकिन एक से अधिक लोग हैं या कोई अकेला है वह कह नहीं सकता था। उसके दिमाग में आया कि यदि एक से अधिक लोग हथियारों के साथ हुए तो खतरा हो सकता है। वह धीरे से मकान से सटकर खड़ा हो गया। जिससे ऊपर की खिड़की से कुछ दिखाई ना पड़े। उसने पुलिस स्टेशन से मदद मंगाने के लिए अपना फोन निकाला। लेकिन उसके फोन में नेटवर्क नहीं था।
राजेंद्र को ऐसा लगा था कि शायद पुलिस वाले की नज़र उस पर पड़ गई है। वह सांस रोके चुपचाप बैठा था। मना रहा था कि पुलिस वालों को कोई भनक ना लगी हो। तभी उसके कानों में आवाज़ आई,
"ललित तुम ठीक ही कह रहे थे। यहांँ किसी के होने की कोई संभावना नहीं है। बेवजह यहाँ वक्त बर्बाद करने का कोई मतलब नहीं है। हमारे पास वैसे भी वक्त की कमी है। चलो यहांँ से चलते हैं।"
राजेंद्र को पुलिस वालों के लौटते कदमों की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह निश्चिंत हो गया। वह सोच रहा था कि अच्छा हुआ कि नागेश पुलिस वालों के रहते लौटकर नहीं आया‌। नहीं तो मुश्किल हो जाती। उसके मन में आया कि जो भी हो अब इस जगह पर भी रहना खतरे से खाली नहीं है। उन्हें यहाँ से कहीं और जाना पड़ेगा।

उस मकान से कुछ आगे जाते ही सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने जीप रोकने का आदेश दिया। उसने अपना फोन निकाल कर एकबार फिर देखा। नेटवर्क आ गया था। उसे नज़ीर का मैसेज दिखाई पड़ा। लेकिन अभी उसे उससे भी ज़रूरी काम था। उसने गुरुनूर को फोन करके मदद के लिए बुला लिया। हेड कांस्टेबल ललित और कांस्टेबल हरीश आवाक से बैठे थे। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने उन्हें बताया कि वह जानबूझकर वहांँ से आ गया था। उसे मकान में किसी के होने का अंदेसा था। बिना उचित मदद के कार्यवाही करना ठीक नहीं था।