सामने एक लड़की खड़ी थी।
- एनी सर्विस? आपको कोई सेवा चाहिए? लड़की ने तपाक से कहा।
मैं सकपका गया। संभल कर बोला- कैसी सेवा? मतलब कौन हो तुम? क्या करती हो?
लड़की हंसी। धीरे से बोली- मैं एक वर्कर हूं। आप मेरे देश में हैं। आप ख़ुश रहें, ये मेरी ज़िम्मेदारी है। आप जो कहें, करूंगी। निश्चित ही, मेरी सेवा का वाजिब मूल्य आप चुकाएंगे!
अब तक मैं काफ़ी संभल चुका था। मैंने पूछा- तुम्हें किसने भेजा?
- मेरी ज़िम्मेदारी ने! मेरी सेवा भावना ने। लड़की इठलाई।
अब मेरे दिमाग़ ने प्रत्युत्पन्नमति से काम लिया। मैंने सोचा- वाह, एक तीर से दो शिकार करूंगा। इसे रोक लेता हूं, और कुछ देर के बाद इसे ही अपने काम के बारे में बताऊंगा। जब सेवा की इतनी बड़ी बड़ी डींगें हांक रही है तो मैडम के कमरे का एक फोटो तो मेरे लिए खींच कर ला ही सकेगी।
- देखो, मैं तुम्हें जानता नहीं, दूसरे मैं अपने देश से बाहर हूं, क्या तुम मुझे बताओगी कि तुम्हारी सेवा पाने के लिए मुझे कितना मूल्य चुकाना होगा? मैंने कहा।
लड़की कुछ गंभीर हो गई। फ़िर कुछ सोच कर बोली- आप मेरा क्या इस्तेमाल कीजिएगा?
- मतलब?
- मतलब मुझे कितनी देर यहां रहना होगा?
- ओह! बस थोड़ी देर... मैं कहूं कि लगभग आधा घंटा! मैंने कहा।
लड़की कुछ सोचने की मुद्रा में आ गई। मानो मेरा बताया हुआ समय उसके टैरिफ कार्ड में निर्धारित न हो।
मैं फ़िर बोल पड़ा- क्या तुम रात भर यहां रहती हो? मेरा मतलब है कि ड्यूटी पूरी रात है तुम्हारी?
- माफ़ कीजिए, उसके लिए मैं बहुत महंगी होती हूं... लड़की ने मेरे कपड़ों की ओर देखते हुए कहा जो अभी अभी एक वर्कर जैसा दिखने के लिए मैंने जानबूझ कर बदल लिए थे।
- फ़िर भी... कितनी? मैंने साहस बटोर कर कहा।
- आम तौर पर कोई एक, ऐसा एफोर्ड नहीं कर पाता। उसने मेरे पहने हुए पायजामे को गौर से देखते हुए कहा।
- फ़िर तुम चली जाती हो?
- ऑफ़ कोर्स, अगर कोई और सेवा न हो।
- तुम मुझसे क्या लोगी? मैंने हड़बड़ा कर कहा।
लड़की ने कुछ प्यार और आदर से देखा फ़िर बोली- जो चाहें दीजिएगा!
कहती हुई लड़की भीतर आ गई। उसके दरवाज़े को छोड़ते ही दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया।
- बैठो। मैंने कहा।
- कहां? लड़की की निगाहें किसी झूले की तरह कमरे में पड़ी कुर्सी और बैड के बीच थिरकीं।
मैं कुछ घबराया। अपनी इस घबराहट में मैं कमरे में पड़ी हुई उस एकमात्र कुर्सी पर बैठ गया। लड़की के पास कोई विकल्प नहीं बचा, उसे बैड पर बैठना पड़ा। उसने बिस्तर पर बैठते ही अपने पैरों को एक के ऊपर एक इस तरह चढ़ाया कि उसके ऊंची हील के सैंडल स्वतः ही उसके पैर से फिसल कर उतर गए।
कमरे की बत्ती लड़की की विपरीत दिशा से आकर उस पर पड़ रही थी। मुंह पर सीधा प्रकाश पड़ने से उसका चेहरा कुछ ज़्यादा चमकदार और स्निग्ध दिख रहा था।
मैंने बगल के काउंटर से पानी का फ्लास्क उठा कर गले में कुछ पानी उंडेला।
मुझे लगा- लड़की से भी पूछ लेना चाहिए।
मैंने कहा- पानी दूं?
- फॉरमेलिटी मत कीजिए। वैसे भी इस देश में आप मेहमान और मैं मेज़बान हूं।
- पर शिष्टाचार वश मुझे पूछना चाहिए, तुम मेरे कमरे में हो।
- शिष्टाचार छोड़िए, शिष्टाचार तो ये कहता है कि आपको ख़ुद पीने से पहले मुझे पूछना चाहिए था! नहीं? लड़की खुल कर हंसी। शायद ये बताने के लिए, कि ये मज़ाक है, इसे मैं अन्यथा न लूं।
- काफ़ी तेज़ हो!
- किसी मिर्च की तरह! कह कर लड़की फ़िर हंसी।
- तुम कभी भारत आई हो?
- व्हाट?
- आई मीन इंडिया! हैव यू एवर विज़िटेड इंडिया? तुम इंडिया आई हो?
- कभी नहीं। मैं कहीं नहीं जाती। मैंने दुनिया यहीं देखी है।
- ओह! मैं वहां मीडिया में काम करता हूं। एक टीवी चैनल में, हमारा बड़ा न्यूज़पेपर भी है।
- देट्स नाइस। क्या आप अब भी अपनी वर्क ड्यूटी पर हैं?
- नहीं, बिल्कुल नहीं, अभी तो मैं घूमने के लिए आया हूं। तुम मेरे लिए एक काम कर दोगी?
- मैं उसी के लिए यहां हूं। लड़की ज़ोर से हंसी।
... मैं कुर्सी से उठ कर उसके पास आया।