Khaam Raat - 11 in Hindi Classic Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | ख़ाम रात - 11

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ख़ाम रात - 11

मैं असमंजस में था। क्या करूं? क्या अपना इरादा छोड़ कर चैन से अपने कमरे में जा सोऊं? भूल जाऊं मैडम और उनके आशिक को?
नहीं- नहीं, इतनी आसानी से हार नहीं मानूंगा। हाथ में आया हुआ मौका यूं नहीं छोड़ूंगा। क्या हुआ जो वो मलेशियन लड़का डर कर भाग गया। उस बेचारे की भी क्या ग़लती?
उसे भी तो अपनी नौकरी प्यारी है। वो फ़िज़ूल मेरे खातिर इतना बड़ा जोखिम क्यों लेता? उसके लिए तो मैं दो रात का कस्टमर ही ठहरा न! और कस्टमर तो उसकी मैडम भी हैं। बल्कि वो तो मेरे से ज्यादा दिन से यहां रह रही हैं। अभी और भी रहने वाली हैं।
लड़के को मुझसे टिप मिली है तो क्या, हो सकता है कि मैडम से और भी ज़्यादा ही मिल रही हो। फ़िर वो मेरी खातिर उनसे गद्दारी क्यों करेगा? बात तो उसकी ठीक ही है।
लड़का उनकी कैसी सेवा कर रहा था? उनकी अनुपस्थिति में भी नीबू- पानी के लिए पूछने आया था। अच्छा ही हुआ जो लड़का चला गया। वो मेरा काम कर भी नहीं पाता। जो लड़का एक औरत और मर्द के एक साथ सोने की बात सुन कर ही शर्म से इस तरह लाल हो गया वो भला इतना जोखिम भरा काम करता भी कैसे? जाने दो।
यही सब सोचता हुआ मैं कमरे के भीतर आया और मैंने दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया।
लेकिन मुझे नींद नहीं आई। वैसे भी मैंने अभी कपड़े उतारे नहीं थे। मैं अभी तक इसी उधेड़- बुन में था कि थोड़ी रात गहरा जाए तो मैं खुद ही वो काम कर लाऊं जिसके लिए मैं लड़के से कह रहा था।
ऐसी चटपटी स्टोरी में तभी मज़ा आता है जब साथ में कोई रंगारंग फ़ोटो भी हो। किसी शक- संदेह की गुंजाइश ही न रहे। पाठक देखें कि खबरची जो कुछ कह रहा है उसकी आंखों देखी तस्वीर तक मौजूद है। मतलब ठीक ही कह रहा है।
लेकिन अगर किसी ने मुझे ऐसा करते हुए देख लिया तो?
उस लड़के की बात और थी। वो तो रात भर ड्यूटी पर रहेगा। कभी भी आते- जाते झट से फ़ोटो खींच लेगा। आधी रात का समय होगा। वो चाहता तो आराम से कुछ देर खड़ा रह कर भीतर के सीन देखने का आनंद लेता। फ़िर झट से एक क्लिक कर लाता।
... पर डर गया साला!
चलो, मैं खुद जोखिम उठाऊंगा। अभी जाता हूं थोड़ी देर में।
लेकिन हनीमून रूम्स तो हैं भी अलग विंग में। मुझे वहां किसी ने चहल कदमी करते देख लिया तो और मुश्किल हो सकती है। मैं वहां उस विंग के ठहरे किसी व्यक्ति को जानता भी तो नहीं जो उससे मिलने जाने का बहाना ही कर दूं।
मुझे एक आइडिया आया। क्यों न मैं किसी वर्कर की तरह सादगी से ही वहां जाऊं, ताकि अगर किसी आते- जाते आदमी की मुझ पर नज़र भी पड़ जाए तो कोई हंगामा न खड़ा हो।
मैंने पैंट खोल कर पायजामा पहन लिया। पैरों में स्लीपर और एक पुरानी मैली सी कमीज़ भी पहन ली। और मैं कमरे से निकल ही रहा था कि मेरे कमरे पर हल्की सी दस्तक हुई।
इस वक्त! कौन होगा? मैं तो यहां किसी को इस तरह जानता भी नहीं कि कोई इतनी रात गए मुझसे मिलने आए।
फ़िर? कौन हो सकता है।
हो सकता है शायद वो मलेशियन लड़का ही हो। उसका मन बदल गया हो। उसने मेरी मदद करने का विचार बना ही लिया हो। कई बार ऐसा भी तो होता है कि आदमी एकाएक किसी बात को सुन कर घबरा जाता है लेकिन फिर कुछ देर बाद उसी बात को सैकंड थॉट देने पर उसे वह बात मामूली सी लगती है।
वैसे भी लड़का मुझसे भारी टिप के रूप में काफ़ी सारे रिंगित ले ही गया था। हो सकता है कि बाद में सोचने पर उसका ज़मीर जागा हो और उसके मन में मेरी मदद करने का ख्याल आया हो।
ये सब सोचता हुआ मैं दरवाज़ा खोलने के लिए बढ़ा।
लेकिन दरवाज़ा खोलते ही मैं दंग रह गया। सामने...