Khaam Raat - 3 in Hindi Classic Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | ख़ाम रात - 3

Featured Books
  • ખજાનો - 86

    " હા, તેને જોઈ શકાય છે. સામાન્ય રીતે રેડ કોલંબસ મંકી માનવ જા...

  • ફરે તે ફરફરે - 41

      "આજ ફિર જીનેકી તમન્ના હૈ ,આજ ફિર મરનેકા ઇરાદા હૈ "ખબર...

  • ભાગવત રહસ્ય - 119

    ભાગવત રહસ્ય-૧૧૯   વીરભદ્ર દક્ષના યજ્ઞ સ્થાને આવ્યો છે. મોટો...

  • પ્રેમ થાય કે કરાય? ભાગ - 21

    સગાઈ"મમ્મી હું મારા મિત્રો સાથે મોલમાં જાવ છું. તારે કંઈ લાવ...

  • ખજાનો - 85

    પોતાના ભાણેજ ઇબતિહાજના ખભે હાથ મૂકી તેને પ્રકૃતિ અને માનવ વચ...

Categories
Share

ख़ाम रात - 3

अभी हमारी बातचीत में कुछ आत्मीयता आई ही थी कि उन्होंने दूर से गुज़र रहे एक वेटर को आवाज़ दे ली।
वो बोलीं - चलिए जूस पीते- पीते बात करेंगे।
वेटर पास आकर खड़ा हो गया। शायद मलेशियन लड़का था। छोटा, स्कूल जाने वाले बच्चों जैसा।
उन्होंने उसे अनार का रस लाने का आदेश दे दिया। फ़िर कुछ सोच कर बोलीं- ओह, मैंने आपसे नहीं पूछा, कुछ और लेना चाहें तो!
- नहीं - नहीं, अनार का रस कोई ख़राब चयन नहीं। मैंने कहा।
वह मुस्कुराईं। लड़का चला गया।
एकबारगी मुझे लगा, अरे ये लड़का हिंदी समझता है क्या! ये हमारी बात पर हंसा क्यों?
फ़िर तुरंत ही मैं समझ गया कि उसे हमारी बात समझ में नहीं आई है वो तो सहज ही मैडम को मुस्कुराता देख कर हर्षाया होगा। वैसे भी वेटर के प्रशिक्षण में हंसमुख दिखाई देना तो सिखाया ही जाता है। तभी तो ज़्यादा टिप मिलने की संभावना बनती है।
वैसे भी लड़का बेहद खूबसूरत और ख़ुशमिजाज़ दिख रहा था, जवान भी।
उसके जाते ही मैडम बोलीं- आपका यहां आना कैसे हुआ?
- मैं अपनी हर किताब के बाद लंबी छुट्टी लेकर कुछ दिनों के लिए इसी तरह घूमने आता हूं। मैंने कहा।
- यहीं?
- नहीं- नहीं, यहां तो पहली बार आया हूं। कहीं भी चला जाता हूं।
- पहली बार आए हैं फ़िर भी ये ख़ूबसूरत देश देखने की जगह होटल में बेकार- बेजार बैठे लोगों से गपशप करने में समय बिता रहे हैं? उन्होंने फ़िर एक व्यंग्य करते हुए मुझे घेर लिया।
मैं हंसा, बोला- बेजार बैठे लोग ही तो हम जैसे लोगों को कुछ दे पाते हैं। व्यस्त लोग तो ख़ुद कुछ तलाश करने के लिए इधर- उधर की ख़ाक छानते घूम रहे हैं। वो हमें क्या देंगे! मैंने कहा।
- सच। आपकी बात सुन कर मेरा दिल कह रहा है कि आपको अपनी उलझन बता दूं।
- अगर आप न भी बतातीं तो भी मैं आपके मुंह से उगलवा ही लेता।
- कैसे?
- ये हमारा रोज़ का काम है। हम किसी चेहरे पर टंगे चिंताचक्र के पंजों से कहानियां छुड़ाते हैं!
- वाह! विशेषज्ञ हैं? अच्छा तो ज़रा बताइए कि मुझे क्या चिंता है?
- आपको इस वक्त चिंता है अपने बेटे की! ठीक कहा मैंने? मैं बोला।
उनकी आंखें चमकने लगीं। उत्साहित होकर बोलीं- एकदम सही। पर कैसे जाना आपने? वो कुछ चकित हुईं।
दरअसल जब मैं उनके पास आ रहा था तब एक बार थोड़ी देर के लिए उन्होंने किसी से फ़ोन पर भी बात की थी। और इस बातचीत में मैं केवल एक वाक्य सुन पाने में भी कामयाब हो गया था, वो किसी से पूछ रही थीं- खाना खा लिया बेटा?
बस, इसी आधार पर मैंने ये कयास लगा लिया था कि अपने वतन से दूर आने पर उन्हें अपने बच्चों का ख्याल ही रहा होगा। कोई चिंतित मां प्रायः बेटों की जितनी परवाह करती है उतनी बेटियों की नहीं करती। अगर आजकल की माएं बेटी की चिंता करती भी हैं तो अक्सर ये पूछती हैं कि घर आ गई? लड़की के खाने- पीने की उन्हें ज़्यादा फ़िक्र नहीं होती।
वो कुछ गंभीर होकर बोलीं- आप ठीक अंदाज़ लगा रहे हैं, मैं अपने बेटे को लेकर ही चिंतित हूं। ये कह कर वो सुबकने लगीं। उन्होंने साड़ी के पल्लू से अपनी आंखें भी साफ कीं।
ओह, ये तो कुछ ज़्यादा ही गंभीर बात हो गई।
मैं कुछ पल रुक कर उनके सहज होने की प्रतीक्षा करने लगा।