खून का खेल
मंदिर का दरवाज़ा बन्द होने को था और श्रेय वहां पहुंचा। उस वक़्त मंदिर में श्रेय और पुजारी के अलावा और कोई न था। श्रेय के कपड़े खून से लथपथ थे। श्रेय काफ़ी डरा हुआ था और हाफ़ रहा था। पुजारी ने उसे पूछा कि कोई दिक्कत है? पर वो वहां से भाग गया और मंदिर के पिछले हिस्से में जाकर छुप गया।
श्रेय गांव के मुखिया का बेटा ही नहीं था पर काफ़ी होनहार और बाहदुर पुलिस ऑफिसर भी था। उसकी भरती हुए पूरा १ महीना भी नहीं हुआ था। पास के अमोला गांव में ही उसे पुलिस की नौकरी मिली थी उपर से मुखिया का लड़का। उसको थाने में बहुत आदर और सम्मान देते थे सब। अमोला गांव में यूं तो कोई तकलीफ़ न थी सिवाय मुंशी लालचंद। जो सबको ब्याज पर पैसे देता था और ज़मीन का ले बेच का सौदा करवाता था। उसे भी गांव में आये क़रीब ३-४ महीने ही हुए थे पर गांव में एक ऐसा घर नहीं था जिसने उससे कोई सौदा ना किया हो। या घर या ज़ेवर या ज़मीन। कुछ ना कुछ तो उस लालचंद के गीरफ़ में था ही।
एक दिन श्रेय के पापा को अपने संगठन से मालूम होता है कि लालचंद सबको लूट कर सबका धन ज़ेवरात ज़मीन सब हड़पकर भागने का षडयंत्र बना रहा है। तब उन्होंने श्रेय को यह सूचना दी।
श्रेय ने सोचा कि जब तक इस बात की पुष्टि नहीं हो जाती पूरी पुलिस फोज़ के साथ वहां जाना उचित नहीं होगा। इसी लिए रात होते ही वो अकेला ही लालचंद की हवेली पर गया। उसने वहां जाते ही देखा कि लालचंद किसी व्यपारी के साथ कुछ सौदा कर रहा होता है। और उनकी बातें सुनकर पुष्टि हुई कि जो बात उसके मुखिया पापा ने कहीं थी वह सच है। उसने सामने आकर उसे सवाल करना शुरू किया। लालचंद ने चुपके से अपनी कमीज़ की जेब में से बन्दूक निकाली और श्रेय की और निशाना लगाया। श्रेय तुरंत वहां से हट गया। और लालचंद की बन्दूक हाथ में से खींचने लगा।
श्रेय और लालचंद के बीच हो रहीं हाथाफाई में गलती से श्रेय से बन्दूक का ट्रिगर दब गया और लालचंद वहीं अपनी जान से हाथ धो बैठा। श्रेय पूरा खून से लथपथ था और काफ़ी डर गया था। इसे एनकाउंटर का नाम देता या आत्मरक्षा का? उस समझ नहीं आ रहा था। लालचंद के हाथ में पिस्तौल थमा कर वो वहां से निकल गया। ये सब धटना होते हुए लालचंद की बीवी ने देखली थी। श्रेय को जाते हुए देख तब तो वो कुछ बोली नहीं ना ही चिल्लाई।
श्रेय बहुत डर गया था। और भागते भागते अपने और अमोला गांव के बीच में स्थित मंदिर में आ कर रुक गया। उसने सोचा कि यह बात किसीको पता चली तो वो फस जायेगा क्यूंकि गांव वाले अभी भी लालचंद को मसीहा ही समझते थे। पर उसके अंदर छुपा हुआ दरिंदा किसीने कभी देखा नहीं था। ये सब होते हुए लालचंद की पत्नी ने वैसे भी देखा था इसी लिए उसने सोचा सूबह होते ही यहां से कहीं दूर भाग जाना ही उचित रहेगा।
दूसरे दिन सुबह होते ही वो भेस बदलकर भाग रहा था और उसने लोगों को बातें करते हुए सुना कि, "लालचंद अपनी नई पिस्तौल शहर से लेकर आया था उसे देख रहा था और गलती से पिस्तौल का ट्रिगर दब गया और वो मर गया। और यह पूरी धटना उसकी पत्नी ने अपनी आंखों से देखी और गवाही भी यही दी उसने।
वो समझ गया की लालचंद तो लालची इंसान था पर उसकी पत्नी नेक दिल थी। उसने श्रेय को ही नहीं पूरे गांव के लोगों को उस हैवान की बुरी नज़र से बचाया था।
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