Tere Mere Darmiyan yah rishta anjaana - 12 in Hindi Fiction Stories by Priya Maurya books and stories PDF | तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग-12) - अस्मिता के बाबा को

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तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग-12) - अस्मिता के बाबा को

आदित्य का कमरा --

आदित्य अपने कमरे मे खिडकी से कुद कर आता है। आदित्य मुसकुराते हुये आइने के पास जाकर अपने बालों मे हाथ फेरने लगता है और अस्मिता का घबराता हुआ चेहरा याद कर हंसने लगा।
आदित्य खूद से ही -" कितनी मासूम हो ना तुम यूं घबराने लगती हो।"

आदित्य को अचानक कुछ याद आता है और वो मुडकर अपनी आलमारी खोल कुछ खोजने लगता है। कपडों को इधर उधर पलटने ले बाद एक छोटा सा डिब्बा निकाल उसे खोलता है।
उसमे एक पैर की एकदम पतली सी पायल थी जिसे देख उसकी आँखे खूद ब खूद चमकने लगती है ।
आदित्य उसे अपने हाथ मे लेकर -" मुझे नही पता था की आप मुझ जैसे अडियल इन्सान को भी अपने पीछे भगवा देंगी।"

अस्मिता का कमरा --

इधर अस्मिता को अचानक कुछ याद आता है वो भी अपनी लकड़ी की छोटी सी सन्दूक खोल उसमे से आदित्य की तस्वीर निकाल देखने लगती है जिसे अस्मिता ने खूद ही बनाया था।
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धीरे धीरे दिन बीत रहे थे और अस्मिता का B A का परिणाम आने का दिन भी नजदीक आ रहा था।

एक सुबह हवेली के बाहर बने बागीचे के झूले पर बैठे भान प्रताप अकबार पढ रहे थे और बगल मे रेडिओ मे गाना भी चल रहा था। सभी बॉडीगार्ड अपने काले वर्दी मे हाथ मे बन्दूके लिये पहरा दे रहे थे।

कृष्णा जो की हवेली का ही एक नौकर था जो अक्सर गाड़ी चलाकर आदित्य को शहर से लाता था और बाकी काम करता था वो वही किसी चीज के लिये विमला (हवेली की रसोइया) को डांट रहा था।

राजेस्वरी देवी भी वहीं कबूतरो को दाना खिला रही थी। आदित्य अपने कमरे मे पेट की बगल सोया था । सूरज की रौशनी उसके मुह पर पड़ रही थी जिसके कारण वो बार बार तकिये से मुह ढक ले रहा था।।

वीर भी बागीचे मे बैठा फव्वारे मे पत्थर मार रहा था वहीं ममता रसोई मे थी।
इधर भान प्रताप का ध्यान अकबार पढते पढते एक खबर पर गयी जिससे उनका पारा चढ़ गया । आँखे धधकने लगी । इतना गुस्सा था चेहरे पर मानो अभी कोई भी आ जाये सामने तो मार ही डालेंगे।

भान प्रताप गुस्से से चिल्लाते हुये झूले से उठे और पैर से रेडिओ को ऐसे मारा की रेडिओ दूर फीका गया और बंद हो गया ।

भान प्रताप -" कृष्णा,,,,,,,,,, ऊ दक्षिणी टोले वाले घनश्यामवा को बुलाओ।"

उनका आदेश पा कृष्णा तुरंत जीप निकाल अपने आदमियों के साथ चला जाता है।
उनको दक्षिणी टोले के किसी आदमी को हवेली मे बुलाता देख राजेस्वरी जी गुस्से से हाथ फेकते हुये आती हैं -" पगला गयें हैं का जी ,,,, ऊ दक्षिणी टोले वालों को यहां बुलाना चाहते है ,,,, छी: पूरा हवेली दूषित करवायेंगे का।"

उनको अपने सामने बोलता देख भान प्रताप गुस्से से -" चुप एकदम चुप एक लफ्ज और नही हम जो कर रहे है करने दो हमको नही तो तुमको भी आज छोडेंगे नही।"

उनको इतना गुस्से मे देख सभी सहम जाते है और राजेस्वरी जी की इतनी हिम्मत ही नही होती है की वो कुछ बोले।

वीर उनके पास आकर उनके कंधे पर हाथ रखता है जिसे भान प्रताप झटक देते हैं। वीर -" बाऊ जी क्या हुआ इतना क्यू गुस्सा कर रहे है।"
भान प्रताप -" ऊ दक्षिणी टोले वाले घनश्याम का इतना हिम्मत की हमरे मना करने के बावजूद अपनी लईकी को पढ़ाया।"

इतना बोल वो अकबार सीधे वीर के हाथो मे रख देते है।
वीर देखता है तो अखबार मे लिखा था -- "पूरे रामगढ के इतिहास मे पहली एक छात्रा हुई साक्षर और यही नही पूरे प्रदेश मे दितीय स्थान के साथ पूरे गाव का नाम रौशन किया अस्मिता कुमारी ने । जैसा की आप जानते है रामगढ़ मे कुछ लोगो के आतंक की वजह से दक्षिणी टोलों वालों को शिक्षा का अधिकार भी छीन लिया गया और बड़े बड़े नेताओ अफसरो का भी इनके ऊपर हाथ रहा जिससे ना तो कोई इनके खिलाफ आवाज उठाता ना ही कोई उठने देता ,,,,,,,,,,,,,,,,,,।।

इतना पढते ही वीर भी गुस्से से कांपने लगा क्युकी वो जानता था यह खबर दुसरे गाँव का लखन ही अपने पत्रकार भाई महेश से लिखवाया होगा। महेश तो ठहरा पत्रकार सत्यता के लिये वो अपनी जान पर भी खेल सकता था लेकिन लखन अपनी दुश्मनी निकाल रहा था वीर से और अपने भाई का फायदा उठा रहा था। और यहां पर भान प्रताप का नाम सीधे सीधे तो था नही लेकिन निशाना उन्ही पर था।

दक्षिणी टोला --

इधर अभी अभी अस्मिता सो कर उठी ही थी की उसके बाबा घनश्याम जी दौड़ते हुये आते है ।अजीब सी खुशी चेहरे पर थी । शायद अभी खेत मे काम कर रहे थे जिससे उनके हाथो मे और पैरों मे मिट्टी भी लगी थी।
उनके पीछे सारंगी भी दौड़ कर आयी।

घनश्याम जी खुशी से अस्मिता के सिर पर चूम कर गले लगा लेते है ।
उनके आँखों मे अनगिनत खुशी के आंशु थे।
अस्मिता -" अरे इतना उधम खूद क्यू मचा रहे हैं भाई थोड़ा धीरे आईये और क्या हुआ की इतना प्यार लुटा रहे है ।"

अभी घनश्याम जी कुछ बोलते उससे पहले सारंगी बोलती है -" अस्मिता तुम्हरे BA का परिनाम आ गया।"
अस्मिता चहकते हुये-" का बात कर रही हो।"
तभी पीछे से उर्मिला चाची जो हमेशा अस्मिता को ताना मारा करती थी हाथ मे अकबार लिये आती है और अस्मिता को देते हुये बोलती हैं -" ई देखो इमे कही लिखा है ऊ बाहर सब लइका लोग बोलत रहे ।"

अस्मिता झट से अकबार लेकर देखती है और खुशी से -" अरे हमने परीक्षा मे पास ही नही किया है बल्कि पूरे प्रदेश मे दूसरा स्थान भी प्राप्त किया है।"

उसकी बात सुन उर्मिला चाची खुशी से अपने आंख से काजल ले उसके कान के पीछे लगाती है और कहती हैं -" खूब तरक्की करो लाडो नाम रौशन करो सबका।"
उनके मुह से इतना घी शक्कर वाली बात सुनकर सारंगी बोलती है -" का बात है चाची आज शहद खा कर आई हो का।"

उसकी बात सुन उर्मिला -" तो का रोज करैला खाकर आते है का।"
सारंगी धीरे से फुसफुसाते हुये -" नही आप तो करैला के साथ नीम भी खा कर आती है।"
उसकी बात सुन सब हंसने लगते हैं लेकिन उर्मिला जी का मुह फूल जाता है।
तभी अचानक सारंगी चुप हो जाती है और बोलती है -" अस्मिता ,,,,, अस्मिता सुनो अब तक तो भान प्रताप को भी पता चल गया होगा ऊ का करेंगे अब।"
अभी अस्मिता कुछ बोलती ही की कृष्णा उसके घर के अंदर लगभग 5 -6 आदमियों के साथ घुसे आ गया।

अस्मिता -" अरे अरे तुम लोग कहा घुसे आ रहे हो।"
कृष्णा घनश्याम जी से -" ए बुढे तुझे बड़े मालिक ने बुलाया है हवेली में।"
अस्मिता कृष्णा के बात करने के लहजे से गुस्सा होकर कुछ कहने ही जाती है की घनश्याम जी उसे रोक कर बोलते है -" हम आ रहे है।

कृष्णा -" आ नही रहे हैं मेरे साथ चलो।"

इतना बोल वो घनश्याम जी का हाथ पकड लेता है और उन्हे खीचते हुये जीप मे बिठा चला जता है।

घनश्याम जी को भान प्रताप के आदमियो के साथ जाता देख दक्षिणी टोले के लोग एकदम घबरा जाते हैं ।
और उर्मिला जी भी चिल्ला चिल्ला कर बता आई थी सबको की वो हवेली गये है जिससे सभी डर गये क्योकि हवेली मे आजतक कोई नही गया । अरे जाने की बात छोड़ो किसी भी दक्षिणी टोले वाले ने उसकी झलक भी नही देखी थी।
एक बार एक आदमी को बुलाया गया था और वही मार दिया गया उसका शरीर भी नही मिला।
अब तो सबको डर लग रहा था लेकिन हमारे आदित्य बाबू तो अभी भी सो रहे थे।

क्रमश: