Tere Mere Darmiyan yah rishta anjaana - 10 in Hindi Fiction Stories by Priya Maurya books and stories PDF | तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग -10) - अस्मिता आम के पेड

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तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग -10) - अस्मिता आम के पेड

आदित्य -

"भीग कर आँखो से जो बही रात भर वो ग़ज़ल हमारे दिलों पर असर कर गयी

लोग पत्थर का दिल हमको कहते थे पर एक मुस्कान पत्थर मे घर कर गयी

थे बड़े चैन से हम कोई गम न था, कट रही थी जवानी सुकूँ से बहुत

वो नजर कुछ मिला कर के ऐसे गयी जिन्दगी को इधर का उधर कर गयी।।❤❤❤❤


उसकी बात सुन रौनक बोलता है -" अरे यार तू तो पूरा आशिक बन गया है ..... वैसे तू अस्मिता को बतायेगा नही क्या की तू उससे प्यार करता है।"

आदित्य सोचते हुये बेफिक्री से -" हम्म ,,, बता दूँगा कभी।"

रौनक चौककर अपने बगल मे आराम से गाड़ी चलाते हुये आदित्य को देखकर -" हम्म बता दूँगा ,,,,,, ऐसे बोल रहा है जैसे हलवा है सब ,,,,,,,अच्छा एक पूछू गुस्सा तो नही करेगा ना।"

आदित्य -" नही ,,,,,, लेकिन करने लायक बोलोगे तो पिट भी जाओगे।"

रौनक -" अगर अस्मिता नही मानी तो क्या करोगे।"

आदित्य उसे पहले तो घुरता है फिर मुस्कुरा कर अपने बालों मे एक हाथ फेर कर -" मै उनमे से नही जो लड़की के मना करने पर रोने धोने लगते है और साधू सन्यासी बन जाते है , उठा लाउँगा उनको,,,,, हमने प्रेम के साथ इश्क़ भी किया है प्रेम मे समर्पण होता है लेकिन इश्क़ बहुत स्वार्थी होता है ,,,, मै उनको छोड़ने वाला नही कभी अगर वो चाहे तो भी नही ,,,,,,।"

रौनक ताली बजाते हुये -" तू तो नये जमाने का अशिक़ है वाह बेटा लगा रह तू।"

दुसरी तरफ --

नहर की पगडंडियों पर चलते हुये अस्मिता और सारंगी छुपते छुपाते आदित्य के आम के बागीचे मे आती हैं।

अस्मिता -" उफ्फ ,,,, इतनी मेहनत के बाद यहां पहुचे है कम से कम एक बोरी तो आम ले कर ही जायेगें।"

सारंगी उसके सर पर मारते हुये -" तुम्हारे अब्बा जान की बगिया नहीं है जो एक बोरी ले जाओगी पहले ईहां से आम लेकर जल्दी से भागो नही तो बागीचे के रखवाली करने वाले आ गये ना तो लेने के देने पड़ जायेंगे।"
अस्मिता -" वैसे हमने सुना है ना जो हवेली की बुढिया है मतलब ऊ राजेस्वरी देवी है बड़ी नकचडी है।"
सारंगी -" हें ,,,,,,,, नकचडी ही नही चुडैल है एक नम्बर की ,,,,, हम लोगों से ऐसे बर्ताव करती है जैसे कोई दुसरे ग्रह के प्राणी है ।

बात करते करते दोनो एक पेड के नीचे आ गयी थी । अस्मिता ऊपर देखते हुये -" सारंगी तुझे इतनी खबर मिलती कहाँ से है ,,,, देख कितने बड़े बड़े आम है।"
सारंगी गर्व से -" हम्म ,,,, वैसे जल्दी से तू चड ऊपर क्योकि मै चड़ने गयी तो जल्दी उतर कर भाग नही पाऊंगी ।"
अस्मिता जो साल ओढ कर आई थी उसे निकाल कर नीचे फैलाते हुये -" हा जल्दी से मै आम तोड़कर नीचे गिराएगें तुम पकड कर इसपर रखना और समझ लो कोई आ गया तो तुम आम लेकर भाग जाना मै किसी तरह भाग कर आ जाऊंगी।"
सारंगी -" हो वैसे भी आम से ज्यादा हमको किसीसे प्यार नही है।"
अस्मिता मुहं बना कर पेड पर चढ़ते हुये -" हा चल चल।"
अस्मिता ऊपर चढ़ आम तोडने लगी और नीचे आम गिरा देती और सारंगी उन सबको बटोरकर साल पर रख रही थी। तभी उसे कुछ आवाज सुनायी दी।

सारंगी -" ए अस्मिता तुमको नही लग रहा कोई गाड़ी आ रही है इधर।"
अस्मिता -" हमको नही सुनायी दे रहा है तुम्हारे ही कान बज रहे है।"
कुछ देर बाद अचानक से सारंगी की नजर दूर से आ रहे रौनक और आदित्य पर पडी वो वही खड़ी बूत बनी थी।'
अस्मिता -" का हूआ जल्दी से आम पकडो।"
सारंगी उनको देखकर जोर से चिल्लाती है -" अस्मिता भाग आदित्य बाबू और उनके साथ का चिपकु बन्दर आ रहा है साथ मे ।"

अस्मिता पेड़ पर से -" अरे बाप रे ,,,,, यह हमेशा टपक जाते है जैसे कोई भूत हो हमेशा कही न कही से प्रकट हो जाते है एकदम खडुस है भगवान करे इनके सर मे कीड़े पड़े।"

अस्मिता इतना सब बकते हुये बिना देखे नीचे उतर रही थी कि उसकी नजर नीचे खड़े आदित्य पर पड़ी जो उसे ही घूर कर देख रहा था।
इधर सारंगी जैसे ही भागने लगी उसके सामने रौनक आ गया ।

सारंगी -" हमारा रास्ता छोडिए।
रौनक -" क्यू ,,,,चोर को तो पहले पकड पर पीटा जाता है और मुझे नही पता था की तुम चोरनी भी हो ऐसे आम ले कर जा रही हो।"
सारंगी को गुस्सा आ रहा था -" ये चिपकु बन्दर बता रहे है हट जाओ क्युकी हम और अस्मिता तुम सब से नही डरते है ना ही हमको डराने की कोशिश करो।"
रौनक -" क्या बोली ,,,, चिपकु बन्दर।"
वो अभी यह बोल उसके सामने आ ही रहा था की सारंगी ने वहाँ नीचे से मिट्टी उठा उसके ऊपर फेक कर भाग गयी।"
रौनक गुस्से से आंख मलते हुये -" आआ,,,, जंगली लड़की तुमको मैने सीधा नही किया तो मेरा नाम भी रौनक सिंह नही ।"
सारंगी वहाँ से भाग जाती है।

इधर अस्मिता जब आदित्य को ऐसे देखती है तो खूद से अपने सर पर मारते हुये -" हेय यमराज जी ,,,, आज हमको मार के ही छोडेंगे क्या ,,,, कोई बात नही हमारी आत्मा जब आपका भैसा लेने आयेगा ना तो उसके पीठ पर बैठ कर उसकी सिंघ तोड देंगे बता रहे है भगवान जी।"

वो इतना बक ही रही थी तभी पैर फिसला और वो जा गिरने लगी। अस्मिता को लग रहा था की आज तो उसकी हड्डी पसली दोनो टूट जायेगी लेकिन दो मजबूत हाथो ने उसके नाजुक से शरीर को पकड लिया।

अस्मिता ने डर से अपनी आँखे बंद कर रखी थी। उसे ऐसे मासूमियत के साथ देख आदित्य खूद ब खूद मुस्कुरा कर बोला -" इतनी भोली सकल पर ऐसी शैतानिया अच्छी नही लगती।"

उसकी बात सुन अस्मिता अपनी आँखे खोल जल्दी से अलग हो जाती है।

अस्मिता हकलाते हुये -" अ ,,, अ ,,, हम जातें है।"

वो जैसे ही अपनी जल्दी जल्दी सांसो को सम्हालते हुये आगे बढी उसका हाथ आदित्य ने पकड लिया और बिजली के करंट की तरह उसके शरीर मे दौड़ने लगा।

आदित्य-" अरे ऐसे कैसे जा रही हैं अभी जो हमको इतना बोली है उसकी सजा तो ले जाईये।"
अस्मिता -" व वो तो हमने जल्दी जल्दी मे बोल दिया हमने आपको देखा नही था।"
आदित्य उसके पास आते हुये -" ओहह मतलब देख लेती तो हमारे सामने नही बोलती लेकिन हमारे पीठ पीछे क्या क्या बोलती हमे भी पता चल गया ।"

इतना बोल वो अस्मिता के करीब आने लगा और अस्मिता पिछे जाने लगी।
अस्मिता पीछे जाते हुये उसी पेड से जा टकराई और आदित्य उसके एकदम करीब था।

आदित्य उसके होठों के तरफ बढ़ते हुये जा रहा था तभी अस्मिता की कापंती आवाज आई -" यह ठीक नही कर रहे है आप ठाकुर साहब।"

आदित्य के इतना पास आने से अस्मिता डर के मारे आंख बंद कर रखी थी की तभी उसे अपने सर पर कुछ महसूस हुआ।
आदित्य अस्मिता के सिर पर बालों को बिगाड़ते हुये हंस दिया।
आदित्य -" बिल्कुल बच्ची लगती है आप ,,,,,हमने तो सुना था आप डरती नही है लेकिन आज हमने आपके चेहरे पर डर देख लिया ,,, वैसे जाईये माफ किया आपको और हाँ और आम चाहिये तो ले लिजिये ।"

अस्मिता मुड़ कर जल्दी जल्दी जाते हुये -" बड़ा अजीब इन्सान है बोल रहे है जाओ माफ किया ,,,, बड़े आये माफ करने वाले ,,,,, आम दे रहे है हमको नही चाहिये हमे फ़्री का आम हम मेहनत कर के खाते है ।"

तभी उसे बगल से आवाज सुनायी दी -" आपने कुछ कहा क्या।"
आदित्य को अपने बगल मे देख अस्मिता वहाँ से दौड़ कर भाग गयी क्योकि उसका सामना वह नही करना चाहती थी।

क्रमश :