tedhi pagdandiyan -33 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | टेढी पगडंडियाँ - 33

Featured Books
Categories
Share

टेढी पगडंडियाँ - 33

टेढी पगडंडियाँ

33

आशा के विपरीत सिमरन थोङी देर में ही तैयार हो कर आ गयी । आज उसने फिरोजी रंग का गुलाबी कढाई और गुलाबी दुपट्टे वाला सूट पहन रखा था जिसमे वह बहुत प्यारी लग रही थी । लंबे बालों को उसने परांदे में बाँध रखा था । गुरनैब ने उसे नजर भर कर देखा तो वह शर्मा गयी । बात बदलने के लिए उसने कहा - तू अब तक तैयार नहीं हुआ । अब तक गुरनैब ननी के साथ ही खेल रहा था । ननी ने थोङा थोङा बोलना सीख लिया था । वह अपनी तोतली भाषा में कुछ कहती । चिङिया उङ , तोता उङ , मैंस उङ ... गुरनैब खिलखिला कर हँस पङता तो वह भी ताङी मार कर खिलखिला उठती । सिमरन दूर खङी उन दोनों को इस तरह खेलते देखती रही फिर उसने टोका – “ बाजार नहीं चलना है ? मैं तो तैयार होकर आ गयी । चल अब तू तैयार हो जा । तब तक मैं ननी को भी तैयार कर दूँ ।“ पास बैठी चरखा कातती हुई चन्न कौर ने बात काटते हुए कहा – “ ननी को मेरे पास ही रहने दे बहु । इसे बाजार में कहाँ गोद में उठाए घूमोगे । ये बेचारी फालतू में थकती फिरेगी । बोर हो गयी तो तुम्हें कुछ खरीदने नहीं देना इसने । यहाँ आराम से मेरे पास खेलती रहेगी । “
“ ठीक है बीबी जी , जैसा आप कहो । फिर मैं इसे दूध पिला दूँ । पेट भरा रहेगा तो आपको तंग नहीं करेगी । “
गुरनैब दोनों को बातें करते छोङकर तैयार होने लगा । उसने नीली पगङी पहनी । मुक्तसरी जूती पहन कर वह बाहर आया तो चन्न कौर का दिल धङकने लगा । हे सच्चे पातशाह , मेरे बच्चे को कहीं की तत्ती हवा न लगे । इसे लंबी उम्र बख्शना मेरे दाता – उसने अज्ञात शक्ति को माथा निवाया और आगे बढकर उसे नजर से बचाने के लिए काला टीका लगा दिया । सिमरन और गुरनैब ने उसके पैर छुए और दोनों कार में बैठ शहर चले गये ।
वह सारा दिन उन दोनों का बाजार में बीता । सिमरन ने अलग अलग दुकानों से चार सूट पसंद किये तो गुरनैब ने अपनी पसंद के तीन और सूट भी खरीद लिए फिर उनके साथ मैच करते दुपट्टे और परांदे खरीदे गये । फिर सिमरन ने ढेर सारा मेकअप का सामान ले लिया । आर्यसमाज चौंक से तीन चार जूतियाँ खरीदी । धोबी बाजार और माल रोड से ननी के लिए फ्राकें , बूट , जुराबें और भी न जाने छोटा मोटा कितना ही सामान । वहीं से उन्होंने जूस पिया और फिर वे भारत स्टोर आ गये । वहाँ चादरें , कम्फर्टर , तकिये के गिलाफ सब लिफाफों में पैक होता चला गया ।जब वे वहाँ से बाहर निकले तब तक जमकर भूख चमक आई थी । सिमरन ने कलाई उठाकर टाईम देखा । शाम के चार बज रहे थे । भूख लगना तो वाजिब ही था । अपने दोनों हाथों में कई लिफाफे थामे वे दोनों दीपक ढाबे पर चले आये । दीपक ढाबे का मालिक संजय गुरनैब को देखते ही आगे बढा पर सिमरन को साथ देख कर झिझक गया और वहीं रुक गया । ये पहली बार था कि गुरनैब के साथ कोई महिला थी वरना दोनों चाचा भतीजा ही अक्सर खाना खाने आया करते थे ।
गुरनैब ने उसकी हालत देखी तो ठहाका लगाकर हँस पङा – “ ओए ये तेरी भाभी है । शापिंग करने आए थे तो सोचा आज तेरे हाथ का भोजन भी छका दिया जाए । “
आओ मालको आओ , आओ भाभी जी , ओए महेश ओ पप्पू जलदी से अंदर कमरे में टेबल लगाओ – वह अति व्यस्त हो उठा ।
दो मिनट में ही लङकों ने टेबल चमकाकर बैठने लायक बना दी । एक बेयरे ने मीनूकार्ड लाकर दिया तो गुरनैब ने सिमरन के सामने सरका दिया – मंगा ले जो मंगाना चाहती है । यहाँ सब कुछ स्वाद और ताजा ही मिलता है ।
“ तुझे क्या पसंद है ? ”
कुछ भी जो मिल जाए । तू जो मंगवाएगी , मेरे लिए भी मंगवा लेना ।
लङका तब तक लैमन कोरियेंडर सूप के दो बाउल रख गया था । वे चुपचाप सूप पीने लगे । सिमरन सोच रही थी कि अगर ये किरण नाम का प्राणी उनकी जिंदगी में न होता तो उनकी जिंदगी कितनी मजेदार होती । वहीं गुरनैब सोच रहा था कि जब वह किरण के टैस्ट कराने लेकर आएगा तो उसे भी तीन चार सूट और जूतियाँ तो ले ही देगा । फिर वे दोनों कहीं ऐसे ही खाना खा कर लौटेंगे ।
खाना खतम होने तक दोनों अपनी अपनी सोच में गुम चुपचाप खाना खाते रहे फिर बिल देकर बाहर आ गये । सिमरन ने कहा – अब घर चलें तो गुरनैब को चन्न कौर के दिये पैसे और उसकी बात याद आयी ।
चल चलें – वह बाजार की ओर लौट चला ।
इधर कहाँ चल दिये । शापिंग तो पहले ही जरुरत से ज्यादा हो गयी । अब क्या पूरा बाजार ही खरीदने का इरादा है ।
तू ऐसा ही समझ ।
ननी को छोङे बहुत टाइम हो गया है । अब रो रही होगी । बीजी का बुरा हाल कर दिया होनै उसने रो रोके ।
जहाँ इतनी देर रही है , वहाँ थोङा सा और सही ।
तब तक वह नसीब ज्वैलरस की दुकान पर पहुँच चुके थे । गुरनैब ने हाथ में पकङे हुए लिफाफे गेट के चौकीदार को पकङाए और काउंटर के सामने लगे बैंच पर बैठ गया ।
भाई पचास हजार के भीतर कोई जेवर दिखाओ ।
पचास हजार में तो बहुत कुछ आ जाएगा भाई जी । करीब डेढ तोला सोना । आप बताओ आप किस तरह का जेवर देखना चाहोगे ।
अँगूठी ...
जी अभी लीजिए ।
काफी अँगूठियाँ देखने के बाद आखिर एक टैंपल रिंग गुरनैब को पसंद आई । वाकयी बहुत खूबसूरत अँगूठी थी । बिल बनवाकर गुरनैब ने वह अँगूठी वहीं सिमरन के हाथ में पहना दी । और वे बाहर निकल आये ।
लौटते हुए कार में स्टीरियो पर गाना बज रहा था – चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो । रोमानियत में डूबे दोनों अपने में लीन थे कि गुरनैब ने चुप्पी तोङी – सिमरन
जी
एक फेवर चाहिए

क्या
तू बीजी को बता देगी .. वो चाची के दिन चढे हैं
क्या
हाँ सिमरन चाचा दोबारा आने वाला है । उसे किसी दाई या नर्स को दिखाना है ।
सिमरन को लगा जैसे किसी ने स्वर्ग से पैर पकङकर नीचे घसीट लिया हो । आज सुबह से तो वह सातवे आसमान पर थी ।
क्या हुआ । तू चुप क्यों हो गयी । बता न , बीजी से बात करेगी न ।
कर लूँगी ।
थैंक यू सिमरन

बाकी कहानी अगली कङी में ...