Kshitij - 4 in Hindi Poems by Rajesh Maheshwari books and stories PDF | क्षितिज (काव्य संकलन) - 4

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क्षितिज (काव्य संकलन) - 4

प्रतिभा

प्रतिभा नही होती है

परिचय की मोहताज

वह उभरती है

सामने आती है,

समय और भाग्य के कारण

उसके सामने आने में

हो सकता है विलम्ब

लेकिन जहाँ होती है प्रतिभा

वहाँ होती है रचनात्मकता

वहाँ होता है सृजन

प्रतिभा ईश्वर द्वारा

मनुष्य को प्रदत्त

प्राकृतिक सौन्दर्य है

अनुकूल वातावरण में

हेाता है इसका विकास

और यह खिलता है।

इसका रूप औरों को

देता है प्रेरणा

और इसकी सुगन्ध

चारों ओर बिखरकर

बिखराती है प्रसन्नता।

अंधकार

सुबह हुई और जाने कहाँ

चला गया अंधकार।

चारों ओर फैल गया प्रकाश ।

अंधेरे को हराकर

विजयी होकर उजाला

जगमगाने लगा चारों ओर।

लेकिन जब उजाले में आ गया

विजय का अहंकार

तब फिर आ गया अंधकार

और निगल गया सारा प्रकाश ।

क्योंकि प्रकाश के लिये

जलना पडता है सूरज को

बल्ब को, दिये को,

या किसी और को।

लेकिन अंधकार के लिये

कोई नही जलता।

प्रकाश शाश्वत नही

शाश्वत है अंधकार।

आस्था और विश्वास

नास्तिकता बोली -

ईश्वर कहाँ है ?

क्या तुम उसे मिले हो ?

क्या तुमने उसे देखा है ?

उसका रूप कैसा है ?

या तो तुम मानो कि

ईश्वर कोरी कल्पना हैं।

या फिर मुझे विश्वास दिलाओ

कि ईश्वर है और ऐसा है।

आस्था बोली -

क्या तुमने हवा को देखा है

नही देखा।

किंतु उसका आभास तुम्हें है।

उसका एहसास तुम्हें है।

प्रेम का स्वरूप नही होता

पर वह होता है।

आत्मा को किसी ने नही देखा

किंतु वह है

उसके होने से ही हममें जीवन है

इसी तरह ईश्वर भी है

हमारी चलती हुई सांसे,

बढते हुए वृक्ष,

लहलहाती हुई पत्तियाँ

चहचहाते हुए पक्षी, ये सब

ईश्वर के अस्तित्व के प्रत्यक्ष प्रमाण है

और ऊँचा खडा हुआ पर्वत

शांत पडा हुआ रेगिस्तान

रेगिस्तान मे छलकते पानी के सोते

लहराता हुआ सागर

ये सब वैसे तो निर्जीव है

परंतु इनके भीतर भी ईश्वर है

जिसके कारण इनमें है मर्यादा।

वह कह उठी - हाँ,

मानती हूँ ईश्वर है

हमारी दृष्टि से परे

हमारे भीतर भी

और हमारे बाहर भी।

कर्मवीर

वह नास्तिक था,

ईश्वर को नही मानता था।

धर्म और कर्मकांड पर

उसे विश्वास नही था।

धर्म और कर्म के बीच का संबंध

उसके लिये बेमानी था।

उसके पास धन था, संपत्ति थी,

वैभव और सुख था।

दूसरों की मदद करके

उसे संतोष मिलता था।

दूसरों की सेवा करके वह

आनंदित होता था।

उसका जीवन आधारित था

उसके सद्कर्मों पर

एक महात्मा से किसी ने पूछा -

वह ईश्वर को नही मानता

पूजा नही करता, व्रत नही रखता,

उपवास नही करता, तीर्थयात्राएँ नही करता,

संतो की संगति नही करता,

ज्ञानियों के प्रवचन नही सुनता।

मृत्यु के पश्चात उसको

कौन सी गति मिलेगी ?

महात्मा बोले

यह सच है कि वह

ईश्वर को नही मानता

लेकिन वह करता तो वही है

जो ईश्वर चाहता है।

इसलिये वह मोक्ष पाएगा।

कर्म के कारण वह

ईश्वर का हो जाएगा।

कल्पना और हकीकत

कल्पना और हकीकत में

कौन है महान ?

दोनो है एक समान।

कल्पना ही साकार होकर

बनती है हकीकत

कल्पना जन्म लेती है मस्तिष्क में

फिर मेहनत, लगन और प्रयास

उसे बदलते है हकीकत में।

हकीकत में बदलते ही

समाप्त हो जाता है

कल्पना का अस्तित्व।

मानव के प्रत्येक परिवर्तन का

उसके प्रत्येक सृजन का

आधार है उसकी कोई न कोई कल्पना।

हमारी संस्कृति और सभ्यता की भी

कल्पना ही है आधार।

कल्पना ही है सृजन का सत्य

इसे करें स्वीकार।

जीवन की नियति

संसार है नदी,

जीवन है नाव,

भाग्य है नाविक

कर्म है पतवार,

पवन व लहर है सुख तथा

तूफान व भंवर है दुख।

पाल है भक्ति

जो नदी के बहाव

हवा के प्रवाह और

नाव की गति एवं दिशा में

बैठाती है सामंजस्य।

भाग्य, भक्ति और

कर्म के कारण

व्यक्ति को मिलता है

सुख और दुख।

यही है जीवन की

सद्गति और दुर्गति।

इसी में छिपी है

इस जीवन की नियति।

असफलताएँ

असफलताएँ दर्ज होती है

इतिहास के पृष्ठों पर।

उन्हें हर कोई

दुहराता है बार बार।

वे दिखलाती है

हमारी पीढियों को रास्ता।

परंतु असफलताओं को

कोई याद नही करता

वे चली जाती है

विस्मृतियों के गर्भ में।

हमें अपनी असफलताओं को भी

ध्यान में रखना चाहिए

क्योंकि वे बताती है

हमारी गलतियों को

और दिखलाती है

हमारी कमियों को

हमें याद रखना चाहिए

असफलता ही

सफलता की जननी होती है।

जीवन पथ

हम है उस पथिक के समान

जिसे कर्तव्य बोध है

पर नजर नही आता है सही रास्ता।

अनेक रास्तों के बीच

हो जाता है दिग्भ्रमित।

इस भ्रम को तोडकर

रात्रि की कालिमा को भेदकर

स्वर्णिम प्रभात की ओर

गमन करने वाला ही

पाता है सुखद अनुभूति और

सफल जीवन की संज्ञा।

हमें संकल्पित होना चाहिए कि

कितनी भी बाधाएँ आएँ

कभी नही होंगें

विचलित और निरूत्साहित।

जब धरती पुत्र मेहनत,

लगन और सच्चाई से

जीवन में करता है संघर्ष

तब वह कभी नही होता पराजित

ऐसी जीवन षैली ही

कहलाती है सफल जीवन

जीने की कला l

नीला आकाश

मेघों से आच्छादित आकाश

उमड घुमड कर बरस रहे बादल

गरज रही बिजली।

वायु का एक तीव्र प्रवाह

छिन्न भिन्न कर देता है बादलों को

शेष रह जाता है

विस्तृत नीला आकाश।

कौन है ऐसा

जिसके जीवन रूपी आकाश में

घिरे ना हो परेशानी के बादल

गरजी ना हो मुसीबत की बिजलियाँ।

वह जो सकारात्मकता, सृजनशीलता और

धर्म निष्ठा के साथ जूझता है

परेशानियों और मुसीबतों से

उसके संघर्ष की वायु का प्रवाह

निर्मल कर देता है

उसके जीवन के आकाश को।

लेकिन जहाँ होती है नकारात्मकता

जहाँ होता है अधर्म, वहाँ होता है पलायन,

वहाँ होती है पराजय,

वहाँ होती है कुंठा और अवसाद।

वहाँ छाये रहते है बादल,

वहाँ गरजती रहती है बिजलियाँ।

प्रत्येक का जीवन होता है नीला निर्मल आकाश ।

व्यक्ति की सोच, सच्चाई और सक्रियता

भर देती है उसे बादल, पानी और बिजली से

अथवा कर देती है उसे नीला, निर्मल और प्रकाशवान,

यही है जीवन का यथार्थ।

आशा

दुनियाँ में ऐसा कोई नही

जिसे चिंता ना हो

ऐसी कोई चिंता नही

जिसका निवारण ना हो।

चिंता एक निराशा है

और उसके निवारण

का प्रयास आशा है

आशा है सुख

और निराशा है कष्ट

जीवन है

आशा और निराशा के बीच

झूलता हुआ पेण्डुलम।

आशा से भरा जीवन सुख है

निराशा के निवारण का प्रयास ही

जीवन संघर्ष है।

जो है इसमें सफल

वह है सुखी और संपन्न।

असफलता है

दुख और निराशा से

जीवन का अंत।

यही है जीवन का नियम

यही है जीवन का क्रम।

संतुष्टि

आसान नही है

जीवन में मंजिल पा जाना,

पर नही है असंभव भी।

जो ठहर गया

उसके लिये कठिन है राहे

और जो चल पडा

उसके लिए राहे

होती जाती है आसान।

यदि श्रम और कर्म

का हो संगम

तो राहें भी बन जाती है

मार्गदर्शक और प्रेरणा स्त्रोत।

यदि मस्तिष्क एवं हृदय में हो

धैर्य और लगन

तब मंजिल हेाती है कदमों में।

कांटों में ही खिलते है गुलाब

सफलता, कठिनाईयों के बीच

कही रास्ता बनाती है।

इसी से मिलता है

जीवन में सुख

इसी से आती है

जीवन में समृद्धि

और इसी में छुपी है

जीवन की संतुष्टि।

संघर्ष पथ

आस्था जीवन का आधार है

पर वह जीवन नही है।

श्रद्धा और भक्ति

दिखलाती है रास्ता

पर वह मंजिल नही है।

हमें संघर्षरत रहना है,

अनवरत बहती हुई हवा

और बहते हुए पानी सा।

सत्य जीवन को देता है ऊर्जा

और बनाता है मानव को मानव।

काल अपनी गति से चलता है

उससे क्या घबराना

वह चलता है अपनी राह पर

हमें है अपनी राह पर जाना।

हम पथिक है

कठिनाईयों और परेशानियों के बीच

हमें खोजना है सफलता का रास्ता

बढना है आत्मविश्वास के साथ

संयम के साथ, अविचलित।

यह प्रयास ही जीवन है।

संघर्ष की गाथा है।

सफलता की कुंजी है

इसी से बनेगा समाज में स्थान,

इसी से मिलेगा सम्मान,

यही है जीवन का प्रारंभ

यही है जीवन का अवसान

यही है परमात्मा की कृपा

यही है जीवन का ज्ञान।

जीवन संघर्ष

प्रतिभा, प्रतीक्षा, अपेक्षा और उपेक्षा में

छुपा है जीवन का रहस्य।

सीमित है हमारी प्रतिभा,

पर अपेक्षाएँ है असीमित।

यदि हम अपनी प्रतिभा केा जानें

फिर वैसी ही करें अपेक्षा

तो बचे रहेंगे उपेक्षा से।

प्रतिभावान व्यक्ति

सफलता की करता है प्रतीक्षा

वह पलायन नही करता

वह करता है संघर्ष

एक दिन वह हेाता है विजयी

उसे मिलता है सम्मान

दुनिया चलती है उसके पीछे

और लेती है उससे

सफलता और विकास का ज्ञान।

यही है जीवन का चरमोत्कर्ष।

कल कोई और प्रतिभावान

करेगा संघर्ष

और पहुँचेगा उससे भी आगे।

यही है प्रगति की वास्तविकता

कल भी थी

आज भी है

और कल भी रहेगी।