Pativrita in Hindi Moral Stories by amit kumar mall books and stories PDF | पतिव्रता

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पतिव्रता

रमिया एक अच्छी व कुशल गृहणी थी । वह पूरे मनोयोग से अपने परिवार का देख भाल कर रही थी। उसका मरद - रामजीत ,खेतो में खूब मेहनत करता था , जिससे उसकी फसल , पूरे गांव में सबसे अच्छी होती थी । खेती के अलावा , रामजीत ने गाय व मुर्गी भी पाल रखी थी , जिनके दूध अंडे भी बेचता था । रमिया भी रामजीत के साथ , कंधे से कंधा मिलाकर पूरा काम करती । दुवार पर मौजूद गायों को खिलाने , पिलाने , नहलाने , देख रेख करने की जिम्मेवारी रमिया की थी। मुर्गियों के पालने में भी वह , बहुत मदद करती थी।रामजीत व रमिया अपने मे खुश थे , मस्त थे। बच्चे भी थे , कमाई भी थी, दोनों महीने में एक बार जरूर पास के कस्बे में जाकर सिनेमा भी देखते, खाते भी और घूमते भी।

गांव के लोग रमिया को चटक समझते और रामजीत को उत्साही।रामजीत कभी कभार, 10 - 15 दिन में एक बार शराब पी लेता था , और कभी कभी भांग भी खा लेता। इन दोनों स्थितियों में रामजीत बहुत रोमांटिक हो जाता, जिसे रमिया बहुत पसंद करती । इसीलिये रमिया कभी भी भांग खाने या शराब पीने से, रामजीत को नही रोकती। सब कुछ ठीक चल रहा था।

लेकिन रामजीत के दूर के मौसेरे भाई सुमेर के यहाँ अच्छा नही चल रहा था । उसके पट्टीदारों का मानना था कि सुमेर के पिता ने उनके परिवार के दो लोगो की हत्या कराई है। वे लोग धमकी दे रहे थे कि वे लोग सुमेर के परिवार को मार कर बदला लेंगे । इस धमकी को सुमेर के पिताजी ने गंभीरता से नही लिया और सुमेर के पिता मारे गए।पिताजी के मरने के बाद , सुमेर अकेला हो गया । पूछार करने जब रामजीत , सुमेर के घर गया तो पाया कि सुमेर डरा हुआ है ।

रामजीत ने सुमेर को सांत्वना देते हुए बोला,

- ऐसी स्थिति में यहाँ रहना ठीक नही है।

-जमीन घर तो यही है । कहाँ जाऊं ?

सुमेर ने उत्तर दिया ।

-तुम यहाँ की जमीन , घर बेच दो । मेरे गाँव चलो । वहाँ जमीन , घर खरीदवा देंगे।

रामजीत बोला।

-ठीक है । मुझे भी यही सही लग रहा है।

सुमेर, सोचते हुए बोला।

दो महीने में सुमेर , अपना खेत व घर बेचकर , रामजीत के गांव में खेत खरीदने व बसने के लिये आ गया।

रामजीत व रमिया - दोनों लग गए कि सुमेर को जमीन खरीदवा दिया जाय तथा उसका एक घर बन जाय।सुमेर ने सारा पैसा रमिया के पास रखवा दिया था , ताकि जैसे जैसे पैसे की जरूरत होगी वह पैसे ले लेगा । रंजीत ने , अपने घर के पास ही सुमेर को जमीन खरीदवा दी , जिस पर सुमेर का घर बन गया और कुछ बीघे जमीन भी खरीद गयी।

इन सबमे 5 -6 माह लग गए। इतने दिन तक सुमेर, रामजीत के घर ही रहता, उनके साथ ही खाता और उसके दरवाजे पर ही सोता।

रामजीत से सुमेर दो साल छोटा था। इस नाते सुमेर की , रमिया भाभी थी और उसी नाते इन दोनों में हँसी मजाक भी होने लगा। सुमेर नई जगह से आया था , कॉलेज से पढ़ा था। उसका फ़ैशन अलग था , उसकी बाते अलग थी , और नई थी।जिसको सुनने में रमिया को मजा आने लगा ,और धीरे धीरे उसका साथ अच्छा लगने लगा।

जमीन खरीदने के बाद ,सुमेर ने रामजीत से कहा ,

- मैं तो अकेला हूँ । ... मेरी खेती तुम कराओ,अधिया पर , प्रॉफिट में आधा आधा हो जाएगा।

- तुम अपनी खेती खुद करो।

रामजीत बोला।

- भइया , हम तो अकेले है। मेरा खर्चा ही कितना है ? ,... तुम्हारा परिवार है। तुम्हारा खर्चा अधिक है।तुम्हे खेती करने का अनुभव है। तुम पहले से , अपनी , इतनी अच्छी खेती कर ही रहे हो । मुझे कोई यहाँ की कोई जानकारी नही है। हर चीज़ ढूंढनी पड़ेगी। फिर मैंने कभी खेती की नही है।वहाँ भी , बाबूजी ही खेती करते थे।

सुमेर बोला।

जब तक रामजीत कुछ बोले , रमिया बोली ,

- सुमेर बाबू सही कह रहे है। इसी बहाने , हम लोगो की कुछ आमदनी बढ़ जाएगी।

इस प्रकार रामजीत सुमेर की भी खेती करने लगा । लेकिन इससे रामजीत पर काम का दबाव और बढ़ गया। रमिया पर भी काम बढ़ा । अब उसे अपने परिवार के सदस्यों के साथ साथ , सुमेर के भी खाने का ध्यान रखना पड़ता। रामजीत पहले जब भांग खा कर लौटता ,तब वह वह और रानियां होते। दोनो रोमांस करते थे ।अब सुमेर भी रहता, तब रोमांस तो हो नही पाता । मन मसोस कर , उल्ह मेलह कर रामजीत सो जाता और सुमेर तथा रानियां देर रात तक , बाते करते जाते।

ऐसा कई बार हुआ और रामजीत की थकावट बढ़ने लगी ।नई परिस्थिति का दबाव था कि अब वह एक हफ्ते में दो तीन बार भांग खाने लगा। रमिया पहले भी, भांग खाने से , मना नही करती थी और अब भी मना नही करती । थकावट मिटाने के लिये शुरू हुआ भांग की लत, धीरे धीरे नशा बन गया। और धीरे धीरे भांग खाना , उसकी दैनिक आदत बन गई। खेतो से आते समय ,वह भांग खा कर , घर आता । भांग के सरूर में उसे थकावट तो नही लगता लेकिन वह कभी खाना खाता और कभी बिना खाये ही सो जाता। काम बढ़ने और सुमेर से बात करने के कारण ,रमिया भी रामजीत को खिलाने में लापरवाह हो गयी थी ।अब , रमिया पर कोई फर्क नही पड़ता । वह और सुमेर , देर रात तक खाना खाते और देर रात तक बातें करते।

कुछ महीनों के बाद , भांग के नशे का असर कम होने लगा । इसलिये रामजीत ,भांग की जगह मोदक खाने लगा। मोदक में नशीली दवाइयों के साथ भांग मिलाया जाता था। रोज रोज मोदक खाने तथा पूरा खाना न खाने से , रामजीत कमज़ोर होता गया। मोदक ने उसके दिमाग को कुंद कर दिया। इस परिवर्तन से रमिया और सुमेर तटस्थ रहे।लेकिन कुंद रामजीत का अब खेती में मन नही लगता और रामजीत ने धीरे धीरे खेती करना भी छोड़ दिया।

रमिया ने सुमेर व एकाध सहायकों के साथ , खेती , गाय , मुर्गी का- सभी काम संभाल लिया। रमिया चटक बनी रही , सुमेर उत्साही बन गया और रामजीत डिप्रेस्ड रहने लगा। गाँव वालों के साथ रामजीत थोड़ा बहुत सामान्य व्यवहार करता लेकिन जैसे ही सुमेर को देखता या सुमेर व रमिया को एक साथ देखता , बिल्कुल खामोश हो जाता। ऐसा क्यों होता , यह रमिया नही समझ पाती या यों कहें ,वह भी गांव वालों की तरह , इस पर ध्यान ही नही देती।

रमिया ने , रामजीत को पास पड़ोस के वैद्य और डॉक्टरों को दिखाया। वे रामजीत का रोग नही पकड़ पाए , वे लोग डिप्रेसन की दवा देते रहे। रामजीत कभी दवा खाता , कभी नही खाता । कभी खाना खाता और कभी नही खाता ।रमिया भी , दोनो परिवारों की खेती , गाय , मुर्गियां , सुमेर को सम्हालने में , रामजीत का उतना ध्यान नही दे पाती और एक दिन रामजीत अपने बिस्तर पर मृत पाए गए। बहुत हिम्मत से रनिया ने रामजीत का अंतिम संस्कार किया ।

गांव में चर्चा होती रही कि इतने हंसमुख , स्वस्थ व उत्साही रामजीत को किसकी नजर लग गयी ।आदर्श जोड़ी थी , पूर्ण परिवार था।

रामजीत के मरने के बाद , बहुत हौसले से रमिया ने अपनी खेती , गाय व मुर्गी को , बिना गाँव वालों की मदद के संभाल लिया। सुमेर जरूर उसके साथ , सुबह से लेकर रात तक लगा रहता था , लेकिन वह तो घर का ही था । गांव वाले कहने लगे,

- अपने पति के मरने पर , रमिया तो ढंग से रोइ भी नही।

- रमिया पर तो कोई असर पड़ा ही नही।

- रमिया ,वैसे ही चटक बनी है।

- सुमेर पर भी , ....कोई असर नही पड़ा।

-सुमेर ... तो दिन रात रमिया के साथ लगा रहता है।

- सुमेर के कारण ही रामजीत का मन उचट गया

- सुमेर ने ही रामजीत को मोदक का आदत डलवाया ।

यह सब बातें रमिया भी सुनती , लेकिन इसे अनसुना करके , वह अपने मे मगन रहती ।चटक बनी रहती । सुमेर के साथ हंसी मजाक करती रहती और अपने काम मे लगी रहती।

जब गांव में , इस प्रकार की चर्चायें बढ़ गयी , तब एक दिन रमिया भभक पड़ीं ,

-जो चला गया , उससे मुझे कितना प्यार था , यह गांव ने देखा है। उसके प्रति प्यार को बताना , जरूरी नही है । जो चला गया , वह बहुत अच्छा था , लेकिन बच्चे को , खेती को , गाय को , मुर्गियों को पालना जरूरी है । जिंदगी तभी आगे बढ़ेगी । इसमे हँसना भी पड़ता है , काम भी करते रहना पड़ता है और चटक भी रहना पड़ता है।

अपने जिंदापन और उत्साह को बढ़ाने के लिये अब , सुमेर 10 -15 दिन में एक बार भांग खाने लगा।जिस दिन भांग खाता , उसके अगले दिन सुमेर बहुत खुश रहता । रमिया भी बहुत खुश रहती। 2 -3 माह बाद सुमेर दैनिक रूप से भाँग खाने लगा। नियमित भांग खाने से उसका असर कम होने लगा । तब , वह भी , रामजीत की भांति रोज मोदक खाने लगा । जब मोदक का असर कम होने लगा तब मोदक के बाद , वह नशीली दवाई खाने लगा ।गांव वालों को बहुत आश्चर्य होता था कि किस कारण से सुमेर इतना नशा करने लगा । रामजीत वाले मामले में तो गांव वालों को संदेह था कि सुमेर ,मोदक का लत लगा रहा था , लेकिन सुमेर को कौन इसकी लत लगा रहा था ? रमिया ने सुमेर को भी वैद्य को दिखाया , उन्होंने दवा भी दी । कभी वह खाना खाता और अक्सर नही खाता । धीरे धीरे वह 24 घंटे नशीली दवाई खाये रहता और एक रात , अपने दरवाजे के कुएं में ,डूब कर मरा मिला ।

रमिया ने बड़ी बहादुरी से इसका भी क्रिया कर्म किये और अपनी तथा सुमेर की खेती , मुर्गी ,जानवर आदि का काम मजदूर रखकर सम्हाल लिया ।गांव वाले, आज तक नही जान पाए कि दोनों , रामजीत व सुमेर को नशे की लत कैसे लगी ? और यह लत , इतनी बढ़ कैसे गयी कि दोनों मर गए ? रमिया के बहुत नजदीकी ,कुछेक गांव वालों के बीच यह चर्चा , जरूर सुनी गई ,

- जो जैसा करता है , उसके साथ वैसा ही होता है।

बाकी गांव वाले , इस बात का मतलब नही समझ पाए ।

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