शाम को सात बजे अजय सीधे रुपाली के घर पहुँच गया। उसने डोर बेल बजाई तो रुपाली की माँ अरुणा ने दरवाज़ा खोला। उसे देखते ही उन्होंने कहा, "अरे अजय बेटा आओ-आओ।"
"नमस्ते आंटी"
"नमस्ते बेटा, क्या हुआ आज कल दिखते ही नहीं हो। रुपाली कह रही थी अलग-अलग पीरियड लगते हैं इसलिए साथ में नहीं जाते।"
रुपाली के झूठ को छिपाते हुए अजय ने कहा, "दोनों के सिर्फ़ पहले पीरियड का ही समय अलग है आंटी इसीलिए अलग-अलग जाते हैं।"
इतने में रुपाली भी वहाँ आ गई और इस तरह अजय को अचानक घर में देखकर हैरान रह गई। अपनी माँ के कारण उसने कुछ भी प्रतिक्रिया दिखाए बिना ही कहा, "अरे अजय! तुम अचानक?"
"बस इधर से गुजर रहा था, सोचा अंकल आंटी से मिले बहुत दिन हो गए। उनसे मिलने की इच्छा हो गई तो चला आया। तुम भी आजकल कॉलेज में मुझसे कहाँ मिल पाती हो।"
तभी रुपाली की मम्मी ने पूछा, "क्यों क्या हुआ? क्या तुम लोग कॉलेज में भी नहीं मिलते?"
"नहीं मिलते आंटी, रुपाली ने आजकल अपने नए दोस्त बना लिए हैं। अब वह मेरे साथ नहीं रहती, इतना ही नहीं वह मुझसे बात तक नहीं करती।"
"ये अजय क्या कह रहा है रुपाली?"
"क्या अजय कुछ भी बोल रहे हो। माँ ऐसी तो कोई बात नहीं है, दूसरे दोस्त भी हैं ना, उन्हें भी तो थोड़ा समय देना पड़ता है।"
"नहीं आंटी, रुपाली झूठ बोल रही है। मैं आपको सब कुछ बताने ही तो यहाँ आया हूँ। हमारे कॉलेज में…"
"अजय क्या बकवास कर रहे हो? जाओ, अभी तुम घर जाओ।"
"रुपाली क्यों उसे बोलने से रोक रही है और ये क्या मैनर्स हैं, क्यों उसे जाने के लिए कह रही है? बोलने दे उसे।"
"थैंक यू आंटी, आंटी हमारे कॉलेज में कुछ महीने पहले एक नया लड़का आया है प्रियांशु। वह कैसा लड़का है कोई नहीं जानता लेकिन आंटी, रुपाली उसके प्यार में पड़ गई है। वह रुपाली को धोखा दे रहा है। मैंने अपने कानों से उसकी बातें सुनी हैं।"
रुपाली गुस्से में अपना आपा खोते हुए जोर से चिल्लाई, "अजय तुम्हें मेरी पर्सनल ज़िंदगी में दखल देने की कोई ज़रूरत नहीं है।"
"रुपाली क्या है यह सब?"
"माँ यह अजय झूठ बोल रहा है क्योंकि यह मुझसे प्यार करता है पर मैं इसे प्यार नहीं करती। अजय मेरा बहुत अच्छा दोस्त है, बचपन से है और हमेशा रहेगा। लेकिन माँ यह सच है कि मैं प्रियांशु से प्यार करती हूँ। इसलिए अजय उसे बिल्कुल पसंद नहीं करता क्योंकि उसने अजय के प्यार के रास्ते को बंद कर दिया है।"
"रुपाली तुम उसे जानती ही कितना हो और अजय तो कह रहा है कि उसने प्रियांशु को कुछ बातें करते हुए भी सुना है ।"
"अजय झूठ बोल रहा है माँ। वह उसे मेरी ज़िंदगी से हटाना चाहता है। मैं प्रियांशु को सब कुछ बता चुकी हूँ। वह भी यही कह रहा था कि अजय झूठ बोल रहा है। प्रियांशु मुझे बहुत प्यार करता है माँ। वह मुझे कभी धोखा नहीं दे सकता।"
"पता नहीं बेटा मुझे समझ नहीं आता कि पढ़ने लिखने की उम्र में तुम्हें यह सब क्या सूझ रहा है। पहले अपना भविष्य तो बना लो। पढ़ाई लिखाई पूरी करनी है या अभी इतनी छोटी उम्र में ही घर गृहस्थी के चक्कर में पड़ जाना है। कहाँ तुम यह प्यार-व्यार के चक्कर में पड़ गई हो। मुझे तो तुमसे बहुत सारी उम्मीदें थीं पर तुमने तो सब मटियामेट कर दिया।"
अजय ने उठते हुए कहा, "आंटी मैंने तो आपको सब सच-सच बता दिया है। अब आप रुपाली को संभालो, उसके ऊपर प्यार का भूत चढ़ा हुआ है।"
रुपाली की माँ जानती थी कि जब प्यार का भूत चढ़ा हो तो कुछ भी समझाओ, कितना भी समझाओ लेकिन समझ में नहीं आता।
अपनी माँ के गुस्से को देखते हुए रुपाली ने कहा, "माँ आप नाराज़ मत होओ, मैं सबसे पहले अपने कैरियर पर ही ध्यान दूँगी। प्रियांशु भी यही चाहता है कि पहले अपने पैरों पर खड़े हो जाएँ उसके बाद शादी करेंगे।"
"अच्छा तो बात शादी तक की भी कर ली है तुमने?"
"माँ मैंने कुछ भी जानबूझकर नहीं किया, पता नहीं कब और कैसे मैं उससे प्यार कर बैठी। वह तो मेरी तरफ देखता तक नहीं था। मैंने ही कदम उसकी तरफ बढ़ाये थे।"
अरुणा ने कहा, "और अजय उसके बारे में क्या-क्या बोल रहा था? हो सकता है वह सच कह रहा हो?"
"नहीं माँ प्रियांशु तो लड़कियों की तरफ नज़र उठाकर देखता तक नहीं है। मैंने आपसे पहले भी कहा था ना कि अजय झूठ बोल रहा है।"
"पर रुपाली यह ग़लत है, पढ़ाई करने के बदले तुम कॉलेज में यह सब कर रही हो?"
"माँ आप मुझे मना कैसे कर सकती हैं? आपने भी तो लव मैरिज की है। आपका प्यार भी कॉलेज लाइफ का ही है, आपने ख़ुद ही बताया था।"
अरुणा नाराज़ हो गई और उसने अपने कमरे में जाकर जोर से दरवाज़ा बंद कर लिया।
रत्ना पांडे वडोदरा गुजरात
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः