आठ वर्ष की रूहानी बहुत ही चंचल, बहुत ही शैतान, लेकिन उतनी ही संवेदनशील भी थी। वह छोटी-से छोटी बात को भी गहराई तक समझती थी। रूहानी की माँ निराली स्कूल में अध्यापिका थीं। जिस स्कूल में वह पढ़ाती थीं, उसी स्कूल में रूहानी भी पढ़ती थी। रूहानी जब तीसरी कक्षा में आई तब निराली उनकी कक्षा में हिन्दी पढ़ाने के लिए आईं। अपनी माँ को देखकर रूहानी बहुत ख़ुश हो गई। आज उन्होंने 'जल ही जीवन है' शीर्षक का पाठ बच्चों को पढ़ाना शुरू किया।
निराली ने कहा, “बच्चों आप जानते हो हमारे जीवन में पानी का कितना महत्व है। सुबह से लेकर रात तक हमें उसकी ज़रूरत होती है। पानी के बिना हम ज़िंदा नहीं रह सकते। इसीलिए भगवान ने हमें एक ऐसी ऋतु दी है, जिसे हम वर्षा ऋतु के नाम से जानते हैं। जब बादलों से पानी हमारी धरती पर गिरता है, नदी-नाले, तालाब, समुद्र सब पानी से छलकने लगते हैं। यही पानी हमें जीवन देता है इसलिए हमें कभी भी पानी का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। पानी को अपनी जान की ही तरह महत्त्वपूर्ण समझना चाहिए। जितनी ज़रूरत हो उतना ही उपयोग करना चाहिए। यहाँ तक कि हमें बारिश के पानी को संचित करना भी अवश्य ही सीखना चाहिए।”
रूहानी के दिल और दिमाग़ में यह बात गहराई तक उतर गई। वह इस बात को अपनी रोजमर्रा की ज़िन्दगी में भी अमल में लाने लगी। जब से रूहानी ने यह सीखा तभी से वह अपने घर में सभी के ऊपर नज़र रखने लगी। वह अपने घर में काम करने वाली कमला को भी अक्सर कहती, “कमला आंटी पानी बर्बाद मत करो। यदि बाल्टी भर गई है तो नल बंद कर दो। ऐसा मुझे स्कूल में मेरी मम्मा ने सिखाया है। यदि भगवान जी नाराज़ हो जाएंगे तो वर्षा भी नहीं करेंगे। जब वर्षा नहीं होगी तो नदी, तालाब और समंदर में रहने वाले प्राणी जीवित नहीं रह पाएंगे। हम भी एक-एक बूंद पानी के लिए तरसते रह जाएंगे।”
एक दिन रूहानी ने अपनी माँ को देखा, उन्होंने आधा गिलास पानी पिया और आधा फेंक दिया। रूहानी को यह बात बिल्कुल अच्छी नहीं लगी। अब वह अपनी माँ पर नज़र रखने लगी। उसकी माँ हमेशा ही आधा पानी पीती और आधा फेंक देती। यहाँ तक कि वह पानी बचाने की किसी भी बात का ध्यान नहीं रखती थी। उसे समझ में आने लगा कि उसकी माँ पानी का दुरुपयोग करती हैं। रूहानी अपनी माँ को इस तरह देख कर बहुत दुखी हो जाती किंतु कह ना पाती। वह असमंजस की स्थिति में थी कि मम्मा पढ़ाती कुछ और हैं और करती कुछ और हैं, ऐसा क्यों ? यही प्रश्न बार-बार उसके मन में शोर मचा रहा था।
रूहानी का बड़ा भाई युवान पाँचवीं कक्षा में पढ़ता था। एक दिन रूहानी को उदास देखकर उसने पूछा, “रूहानी क्या हो गया, बहुत उदास लग रही हो? मेरी शैतान बहन उदास चेहरे में अच्छी नहीं लगती।”
युवान की बात का रूहानी ने कोई जवाब नहीं दिया।
युवान ने कई बार रूहानी से पूछा, “रूहानी बता ना, क्या बात है, तुम्हारा बड़ा भाई हूँ मैं। तुम्हारी मदद कर सकता हूँ किंतु यदि तुम बताओगी ही नहीं तो फिर मैं मदद भी नहीं कर पाऊँगा।”
तब रूहानी ने अपनी उदासी का असली कारण युवान को बताया। उसने कहा, “भैया मैं इसलिए दुखी हूँ क्योंकि मम्मा टीचर बनकर हमें कक्षा में पढ़ाती है पानी का सदुपयोग करो। जल ही जीवन है, इस तरह की कई बातें लेकिन भैया घर पर मम्मा ख़ुद पानी का दुरुपयोग करती हैं। ऐसा क्यों है भैया ? मुझे पानी का दुरुपयोग देख कर बहुत दुख होता है। मुझे मम्मा से कहने में डर लगता है।”
“अरे पगली इतनी-सी बात है, चलो हम मिलकर इस समस्या को अलग ही ढंग से सुलझाते हैं। तुम यूँ ही मुँह से कहोगी तो शायद मम्मा ध्यान ना दे पाएं लेकिन लिख कर दोगी तो…अरे रूहानी तुम बता रही थीं मम्मा ने गृह कार्य में पत्र लिखने को दिया है।”
“हाँ भैया”
“अब तुम मम्मा को ही एक पत्र लिखो और उसमें तुम्हारे मन में आए हर प्रश्न का उत्तर उनसे मांग लो। तुम्हें तुम्हारी इस समस्या का हल मिल जाएगा, लिख लोगी ना?”
“हाँ भैया”
“पत्र लिखकर मुझे पहले पढ़ने के लिए अवश्य देना, ठीक है।”
“हाँ भैया”, कहते हुए रूहानी ने युवान को चूम लिया और बहुत ख़ुश हो गई। उसके बाद रूहानी ने अपनी माँ को एक पत्र लिखा-
मेरी प्यारी मम्मा,
मैं आपको बहुत प्यार करती हूँ और आप भी मुझे बहुत प्यार करती हैं लेकिन मम्मा आप हमारे जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण पानी को प्यार क्यों नहीं करतीं ? आप हमें सिखाती हैं, पानी का दुरुपयोग मत करो लेकिन आप पानी कहाँ बचाती हैं, ऐसा क्यों ? आप हमेशा बड़ा गिलास भर कर पानी लेती हैं और आधा पानी पीकर आधा क्यों फेंक देती हैं ? क्या स्कूल में हमें जो सिखाते हैं, वह बस ऐसे ही सिखाया जाता है? मम्मा यदि भगवान जी नाराज़ हो गए और वर्षा नहीं आई तो हम और पशु-पक्षी सब प्यासे मर जाएंगे ना? इसलिए मैं आपसे नाराज़ हूँ और मैं आपसे कट्टी भी हूँ। जब तक आप पानी का दुरुपयोग करेंगी, मैं आपसे बात नहीं करुँगी।
आप की बेटी
रूहानी
यह पत्र लिखकर रूहानी ने युवान को दिखाया युवान ने पत्र पढ़कर कहा, “अरे वाह रूहानी तुमने तो बड़ा ही संवेदनशील पत्र लिखा है। इसका मम्मा के मन पर बड़ा ही गहरा असर होगा।”
रूहानी वह पत्र लेकर निराली के पास गई और कहा, “मम्मा आपने जो गृह कार्य दिया था, मैंने वह पूरा कर लिया है, आप देख लो।”
“नहीं रूहानी, अभी बिल्कुल समय नहीं है। कल कक्षा में मुझे दिखा देना।”
नन्हीं मासूम रूहानी ने कहा, “ठीक है मम्मा।”
रात में जब निराली कामकाज से निवृत्त हुई तब उसने रूहानी की नोटबुक देखी और पढ़ने लगी। पत्र पढ़ते हुए उसकी आँखें छलक आईं और उसे अपनी ग़लती का एहसास भी हुआ। अपनी बिटिया के मन में उठ रहे सभी सवालों का उसके पास केवल एक ही जवाब था- “रूहानी बेटा मुझे माफ़ कर दो।”
सुबह रूहानी को उठाकर निराली ने स्कूल जाने के लिए तैयार किया। रूहानी अपनी माँ से बात नहीं कर रही थी।”
तब निराली ने कहा, “रूहानी मैंने रात को आपका पत्र पढ़ा। सचमुच मैं काम की जल्दी में यह ग़लती कर रही थी। मैं अपनी गलती स्वीकार करती हूँ और प्रॉमिस करती हूँ कि अब से कभी भी यह ग़लती नहीं होगी। अपनी मम्मा को माफ़ कर दो ना प्लीज़।”
रूहानी निराली से लिपट गई और ख़ुश होते हुए कहा, “मेरी प्यारी मम्मा।”
“अच्छा यह बताओ, यह पत्र लिखने का आइडिया तुम्हारे दिमाग़ में आया कैसे? तुम मुझे मुँह से भी तो कह सकती थी ना ?”
“अरे मम्मा यह आइडिया तो युवान भैया का था। वह कह रहे थे मुँह से कहने का शायद इतना ज़्यादा असर नहीं होगा। इसलिए मैंने भैया के कहने से पत्र लिखा।”
निराली ने जैसे ही युवान की तरफ़ देखा वह धीरे-धीरे मुस्कुरा रहा था। निराली ने अपने दोनों बच्चों को सीने से लगा कर कहा, “सॉरी बेटा।”
मन ही मन निराली सोच रही थी कि बच्चों को शिक्षित करने से पहले हमें वही शिक्षा अपने जीवन में भी अपनाना चाहिए। अच्छा हुआ जो मैंने रात में ही रूहानी का पत्र पढ़ लिया। वरना क्लास में…सोचकर ही रूह काँप जाती है। उसके पत्र से मुझे वह शिक्षा मिली जो इतने सालों से पढ़ाते हुए भी मैं अपने जीवन में शामिल न कर पाई थी। अब पानी की एक बूंद भी फेंकने से पहले रूहानी का प्यारा-सा पत्र, मुझे हर बार याद दिला देगा और मैं संभल जाऊँगी।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक