unknown connection - 87 in Hindi Love Stories by Heena katariya books and stories PDF | अनजान रीश्ता - 87

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अनजान रीश्ता - 87

अविनाश आराम से सोफे पर लेटा हुआ था । वह आंखे बंद करते हुए मुस्कुरा रहा था । तभी उसे बरतन पटकने की आवाज आती है । जिस वजह से उसकी मुस्कुराहट और भी बढ़ जाती है। वह पारुल को आवाज लगाते हुए कहता है। " वाईफी... आराम से... क्योंकि अगर तुम्हे पता चला कि बर्तन की कीमत क्या है... तो तुम पक्का हार्ट अटैक से मर जाओगी! तो केर फुल बेबी! । " । पारुल गुस्से को कंट्रोल में करने की कोशिश कर रही थी । वह खुद ही जानती थी की अगर उसने गुस्सा कंट्रोल नहीं किया तो अविनाश उसे और भी परेशान करता रहेगा! । वह टेबलेट में शेड्यूल देखते हुए... पहली रेसिपी देखती है... वह रेसिपी को युटुब पर सर्च करते हुए... सारी चीज़े प्लेटफार्म पर इकट्ठा कर लेती है। पारुल जैसा-जैसा वीडियो में सीखा रहे थे वैसे ही धीरे धीरे...खाना बनाते जा रही थी । करीबन ३० मिनिट में ही उसके हाथ दर्द करने लगे थे... उसने पहले कभी भी इतनी मेहनत नहीं की थी जितनी आज कर रही है। वह टावल से पसीना पोंछते हुए .... अगली रेसिपी की वीडियो चलाती है। पारुल के पैर भी अब जवाब दे रहे थे । वह मन ही मन अविनाश को दुनिया के हर एक बुरे लफ्ज़ लेकर याद कर रही थी। मानों जैसे अगर पारुल के बस में होता तो वह इस गैस पर खाना नहीं बल्कि अविनाश को जला के राख कर दे । वह खुद का मन लगाने के लिए फिर से अगली रेसिपी में व्यस्त हो जाती है। आखिर कार पारुल ने... १.५-२ घंटे में खाना बना ही लिया। वह टावल को प्लेटफार्म पर फेकते हुए ..... चेयर खींचते हुए बैठ जाती है। उसकी पीठ दर्द के मारे फट रही थी। मानो जैसे वह कोई साथ सतर साल की बूढी इंसान हो गईं हो । वह प्लेटफार्म पर सिर रखकर एक चैन की सांस ली ही थी की तभी आवाज आती है ।

अविनाश: माय! स्वीट वाईफ! खाना बन गया क्या!? ।
पारुल: ( आंखों को भींचते हुए खुद को अविनाश का खून करने से रोक रही थी। क्योंकि अभी ना तो पारुल में बोलने की हिम्मत थी और ना ही इसके साथ बहस करने की । वह चुपचाप ऐसे ही प्लेटफार्म पर सिर रख कर सोई रहती है । ) ।
अविनाश: अरे! वाईफी! क्या बात है! तुम तो अभी से थक गई हो क्या!? कहीं मैंने तुम्हे कुछ ज्यादा तो काम करने के लिए नहीं कहां!? । ( मासूम बनते हुए ) ।
पारुल: ( गुस्से में प्लेटफार्म पर से फिर उठाते हुए देखती है तो अविनाश प्लेटफार्म की दूसरी ओर खड़ा था। पारुल उससे किसी भी तरह की बात नहीं करना चाहती थी। इसीलिए वह कोई जवाब नहीं देती। और चैयर पर से उठते हुए... कपबोर्ड में से प्लेट ढूंढ रही थी। जब उसे प्लेट मिलती है। तो वह उसे लेकर मुड़ती है तो उसके मुंह से चीख से भरी सिसकारी निकल जाती है। अविनाश ठीक उसके सामने खड़ा था । वह प्लेट को अपने सीने के पास रखते हुए खुद को शांत करने की कोशिश कर रही थी। वह जब दाई ओर से जाने की कोशिश करती है तो अविनाश प्लेटफार्म पर हाथ रखकर उसका रास्ता रोक लेता है। वह बाई ओर से जाने की कोशिश करती है तो फिर से अविनाश उसका रास्ता रोक लेता है । पारुल अविनाश से दूर एक कदम पीछे बढ़ाती ही है की पीछे प्लेटफार्म से टकरा जाती है। अविनाश उसकी ओर मुस्कुराते हुए कहता है। ) ।
अविनाश: ( शयतानी मुस्कुराहट के साथ ) क्या! बात है वाईफी! ( पारुल की शक्ल के नजदीक जितना झुकते हुए ।) आज कोई लड़ाई नहीं! जब से आए है तब से ना कोई चिल्लाना ना ही ताना मारना! सब कुछ ठीक तो है ना! ( पारुल के सिर पर हाथ रखने ही वाला होता है की पारुल उसका हाथ पकड़ लेती है। ) ।
पारुल: ( अविनाश का हाथ छोड़ने ही वाली होती है की अविनाश पारुल के हाथ को पकड़ते हुए अपनी ओर खींच लेता है। जिस वजह से वह आश्चर्य में अविनाश की ओर देखती है। उसके और अविनाश के बीच सिर्फ प्लेट ही दूरी बनाए रखी थी। पारुल अविनाश के हाथ में से अपना हाथ छुड़ाने कोशिश कर रही थी। लेकिन कोई फायदा नहीं था वह जितना कोशिश करती अविनाश और कसकर पकड़ लेता । पारुल थक हार के हाथ छुड़ाने की नाकाम कोशिश छोड़ देती है। वह बस चुपचाप उसी स्थिति में खड़ी थी। क्योंकि वह जानती थी वह जितनी कोशिश करेंगी उतना ज्यादा अविनाश उसे परेशान करेगा। पारुल नजरे झुकाए फर्श की ओर देख रही थी । मानो जैसे कोई दिलचस्प चीज हो!? । ) ।
अविनाश: ( मुस्कुराते हुए ) कमोन! वाईफी! इतना क्या रूठना! अब एक छोटा सा झगड़ा ही तो हुआ है। तुम ऐसा व्यवहार करके मेरे दिल पर कहर ढा रही हो!।
पारुल: ( मुंह बिगाड़कर एक नजर अविनाश की ओर देखती है फिर वह नजरे झुकाते हुए उसके टी शर्ट पर बने डिजाइन की ओर देखने लगती है । और मन ही मन सोचती है: ये पागल तो नहीं हो गया! कौन सा झगड़ा!? जहां पर रीश्ते की कोई बुनियाद होती है... वहां झगड़ा होता हैं। और हमारा कौन सा रीश्ता है!? मैं तो नफरत का भी रीश्ता नहीं रखना चाहूं! तो नाराज तो दूर की बात है । ) ।
अविनाश: अच्छा तो तुम ऐसे नहीं मानोगी! ठीक है! फिर! ।
पारुल: ( मुस्कुराते हुए! उसे लगा कि अविनाश हार मान रहा है । ) ।
अविनाश: ( मुस्कुराते हुए ... अपना दूसरा हाथ जो प्लेटफार्म पर था। वह हटाते हुए! पारुल की कमर कसकर पकड़ते हुए और भी अपने नजदीक करता है। जैसे मानो... दोनो के बीच कोई दूरियां...! हो.। और पारुल का हाथ जो उसने पकड़ा था वह अपने कंधे पर रख देता है। ) ।
पारुल: ( गुस्से और आश्चर्य में अविनाश की ओर ही देखे जा रही थी। वह चिल्लाकर कहना चाहती थी की गधे! बेशर्म इंसान दूर हो! पर वह अविनाश से किसी भी तरह का ताल्लुक नहीं रखना चाहती थी और इसी जिद की वजह से वह अड़ी हुई है। इतनी करीबी की वजह से उसकी धड़कन बढ़ रही थी । अविनाश की महक उसके लिए सांस लेना मुश्किल कर रही थी।) ( मन में: पता नहीं जरूर इसने पूरी स्प्रे की बोतल छिड़की होगी! ना जाने किसको मारने का प्लान बना रहा है। और उम्मीद भी क्या की जा सकती है। )।
अविनाश: ( पारुल के करीब आते हुए धीरे से उसके कान में कहता है। मानों जैसे कोई और सुन ना ले। ) आहान! प्लेइंग! हार्ड टू गेट! आई लाईक ईट! । पर बेबी तुम्हे लगता है तुम मेरे सामने टिक पाओगी क्योंकि जब बात जितने की आती है तो में किसी भी हद तक जा सकता हूं! और यह बात तुमसे अच्छी तरह कौन जानता है। ( मुस्कुराते हुए वह पारुल की आंखों में देखता है। मानो वह वॉर्निग दे रहा था की अभी भी वक्त है! अपने कदम पीछे ले लो। ) ।
पारुल: ( इधर उधर नजर करते हुए खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी। वह खुद को अविनाश की पकड़ से छुड़वाने की कोशिश करती है लेकिन तभी अविनाश कहता हैं। ) ।
अविनाश: आहा! नो वाईफी नो! अब तो जब तक तुम कुछ बोलोगी नहीं तब तक हम ऐसे ही खड़े रहेंगे ।
पारुल: ( मन ही मन: पागल हो गए हो क्या!? या स्क्रू ढीला हो गया है। ) ।
अविनाश: अब अगर तुम जिद पर अड़ सकती हो तो सोचो मैं अविनाश खन्ना हूं! मैं तो तुमसे भी बडा सनकी हूं तो हां पागल तुम कह सकती हो!।
पारुल: ( बड़ी आंखों से अविनाश की ओर देखते हुए: इसे कैसे पता चला!? जल्दी से दूर हो जाओ पारुल व्यास ये अच्छा नहीं है। ) ।
अविनाश: ( पारुल को और भी करीब करते हुए ) इट्स पारुल खन्ना वाईफी नॉट व्यास... और अभी तो मैने कुछ किया भी नहीं! और अभी से डर गई। बाय चांस कुछ कर भी लिया! तो ना जाने क्या करोंगी! । ( पारुल के चेहरे के करीब अपना चेहरा ले जाते हुए ) ।
पारुल: ( प्लेट को दोनो हाथो से अपने चेहरे के करीब ले जाते हुए! गॉड गॉड प्लीज बचा ले! प्लीज प्लीज! आंखे बंद करते हुए! ) ।
अविनाश: ( पारुल के हाथ से प्लेट हटाने ही वाला था की तभी उसका फॉन बजता है जिस वजह से वह पारुल से थोड़ी दूरी बनाते हुए! हंसते हुए कहता है । ) हाहाहाहा! ! लकी! यू आर। चलो कोई नहीं! ।

अविनाश एक हाथ से फोन उठाता है उसका दूसरा हाथ अभी भी पारुल की कमर पर ही था। वह फोन पर बात कर ही रहा था की तभी पारुल उसके हाथ में प्लेट मारती है। दर्द की वजह से अविनाश पारुल की कमर पर से हाथ हटा देता है। पारुल भागने ही वाली होती है की अविनाश उसका हाथ थाम ते हुए फोन को कान से दूर करते हुए कहता है। " इस हरकत के बारे में हम बाद में बात करेंगे! और इतनी आसानी से में हारने वाला नहीं हूं बीवी! तो जितना भाग सकती हो भागो! पर में तुम्हे बात तो करवा के ही रहूंगा! क्योंकि आई लव चैलेंज ।" मुस्कुराते हुए पारुल को आंख मारते हुए वह पारुल का हाथ छोड़ देता है।