bagi striyan - 9 in Hindi Fiction Stories by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | बागी स्त्रियाँ - भाग नौ

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बागी स्त्रियाँ - भाग नौ

जल्द ही अपूर्वा को पता चल गया कि कि वे कोई समदर्शी,आदर्शवादी,त्यागी,विरागी संन्यासी नहीं बल्कि किसी भी साधारण पुरूष की तरह ही हैं,जिसका अपने मनोभावों पर नियंत्रण नहीं होता, अंतर बस यही है कि वे जल्द ही उन मनोभावों पर नियंत्रण कर लेते हैं।हालांकि क्रोध उनमें ज्यादा देर तक टिका रहता है ।बाकी काम,लोभ,मोह क्षणिक भाव है।वैसे वे पूरी तरह बिजनेस माइंडेड हैं ।घाटे का सौदा नहीं करते।यही कारण है उन्होंने स्कूल को आधुनिकतम सुविधाओं वाला कर दिया है।जिसका लाभ भी उन्हें खूब मिला है।बिना किसी प्रचार के भी स्कूल में एडमिशन के लिए लाइन बड़ी होती जा रही है।उनके ऊपर के अधिकारी और उनकी संस्था उनसे अतीव प्रसन्न है।यही कारण है कि तीन बार उनका ट्रांसफर रूक गया।वे एक ही जगह पर दस साल रह गए पर आखिरी दो सालों में उनकी अपनी लोकप्रियता कम होती गई।उनके स्वभाव में अड़ियलपन,घमंड और क्रोध ज्यादा बढ़ गया और यह सबको नज़र भी आने लगा।उसे उन्हें देखकर तुलसी की पंक्ति याद आ जाती थी 'को न नृप पद पाई मदाई।' वे छात्रों,अभिभावकों से भिड़ जाते।टीचर्स और अन्य कर्मचारियों की इज्जत उतार देते।उनकी कृपणता बढ़ती जा रही थी।वे चापलूसों से घिरे रहने लगे।उनकी बात मानने लगे।टीचरों को स्कूल से निकालने का बहाना ढूंढने लगे।
अपूर्वा को भी उनके इस व्यवहार का सामना करना पड़ा।एक बार एक उज्जड छात्र की बदतमीजी पर उसने उसके कान उमेठकर एक चांटा जड़ दिया था।इसके लिए उन्होंने उसको अपने ऑफिस बुला लिया और डाँटने लगे--
आपको किसने अधिकार दिया कि छात्र पर हाथ उठाएं?
'वह कक्षा में पढ़ नहीं रहा था।कभी किताब- काँपी लेकर भी नहीं आता।अन्य बच्चों से अश्लील बातें करता है।मैं कई दिन से उसे वार्न कर रही थी।आज मुझे गुस्सा आ गया।'
--आजकल आपको गुस्सा बहुत आता है।आपके खिलाफ बहुत से कम्प्लेन आ रहे हैं ।कई बार पैरेंट्स शिकायत कर चुके।आप बच्चों को एब्यूज करती हैं।आपसे नहीं हो पा रहा तो रिजाइन कर दीजिए।मेरे पास बहुत सारे एप्लिकेशन पड़े हैं।
'फादर, मैं तो बच्चों को अपने बच्चों की तरह प्यार करती हूँ ।उन्हें गलत रास्ते जाते नहीं देख सकती इसलिए कभी- कभार डांट देती हूँ।'
--बच्चे कुछ भी करें ,पढ़े न पढ़ें,किताबें लाएं न लाएं।आपको कोई राइट नहीं कि उन्हें सज़ा दें।
'मेरी बात तो सुने।'
--मैं कुछ नहीं सुनना चाहता....आप जाइए..।
गुस्से से उनका चेहरा विकृत हो गया था।वे होंठ टेढ़ा करके और दाँत पीसकर बोल रहे थे।उसे बोलने का अवसर ही नहीं दे रहे थे।उनका हर वाक्य उसके दिल पर लग रहा था।वह आहत नजरों उन्हें देखते हुए सोच रही थी
--'क्या यही उसका आदर्श पुरूष है?'
उन्होंने उसकी वर्षों की सेवा और निश्छल समर्पण को सिगरेट के धुएं -सा उड़ा दिया था।
वह जान गई थी कि उसकी नौकरी पर ख़तरा मंडरा रहा है।
उसने उनसे क्षमा मांग लेना ही उचित समझा--सॉरी फादर,आगे से ध्यान रखूंगी। ऐसी गलती फिर नहीं होगी।
उसने समझदारी दिखाकर 'सॉरी' बोल दिया ।अगर वह उनसे तर्क -वितर्क करती तो उसी दिन उसकी नौकरी चली जाती।अपने आगे किसी की न सुनना उनकी आदत में शुमार था।
पर उस दिन के उनके व्यवहार से उसके मन को धक्का लगा था,जिसके कारण मन में स्थित उनकी देव -मूर्ति खंडित हो गई थी।अब वह पढ़ाते समय बहुत सावधान रहती थी।उस दिन के बाद उसने गुस्सा करना छोड़ दिया था।बच्चों की बदतमीजियों को भी इग्नोर करती।बच्चे भी ढीठ होकर कक्षा में ही रोमांस करने लगे।घटना के तीसरे ही दिन स्कूल में एक कार्यक्रम था।उसने देखा कि उसी बदमाश लड़के को वे दौड़ाकर पीट रहे हैं।अपनी आदत के अनुसार उसने कुछ बदतमीजी की थी।उसका जी चाहा कि उनसे पूछे कि 'आपको गुस्सा क्यों आया ?आप क्यों उसे डंडे से पीट रहे हैं?अंग्रेजी में एब्यूजिंग क्या गलत नहीं होता?हिंदी का गधा और मूर्ख अगर अपशब्द है तो अंग्रेजी का डंकी,रास्कल,ब्लडी फूल,इडियट क्या है?'
अपूर्वा सोच रही थी कि वे इधर के लोगों को कुछ भी कह देते हैं। उनसे बुरा व्यवहार करते हैं ।जैसे वे मालिक हों और सब उनके नौकर।नौकरी सबकी जरूरत है और नौकरी देना- लेना उनके हाथ में है।इसी कारण वे किसी को अपने समान स्तर का नहीं समझते।
पहले भी कई बार उसे महसूस हुआ था कि वे इधर के लोगों को बड़ा ही दीन -हीन,गरीब और बेचारा समझते हैं।उनको उपहास की दृष्टि से देखते हैं,उन लोगों में वह भी शामिल है। पर वह इसे अपनी गलतफहमी समझती थी।धीरे -धीरे उसे सब- कुछ साफ दिखने लगा था।यह सच्चाई जानकर वह उदास हो गयी थी।शायद भ्रम ही सुख है ।जब तक वह इस भ्रम में थी कि वे उसे खास समझते हैं।उसके अनुभव ,उसकी योग्यता का सम्मान करते हैं,वह खुश थी। पर उस दिन उन्होंने जैसे उसे उसकी औक़ात दिखा दी थी। रहा- सहा भ्रम भी एक दिन टूट गया।स्कूल का नया सत्र शुरू होने वाला था।उसे भी सीनियर कक्षाएं मिल गई थीं।दिल को तसल्ली मिली थी कि एक वर्ष और नौकरी रहेगी ।उस दिन के अपने व्यवहार से शायद वे शर्मिंदा थे क्योंकि उसके बाद न उन्होंने उसे कुछ कहा था और न ही उसने कुछ कहने का अवसर ही दिया था पर उसके मन में खटास आ चुकी थी।
शायद दैव को भी उसे उनसे दूर करना था।मार्च महीने में सत्र शुरू होने से पहले ही कोविड 19 का प्रकोप फैल गया।